श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संपूर्ण भारत में भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि मिलती है। संपूर्ण भारत में भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि मिलती है। इस दिन प्रातःकाल दैनिक नित्यकर्मों से निवृŸा होकर व्रती को संकल्प लेकर व्रत प्रारंभ करना चाहिए इस दिन यम-नियमों का पालन करते हुए निर्जल व्रत रखना चाहिए। व्रत के दिन घरों और मंदिरों में भगवान् श्रीकृ ष्ण के भजन, कीर्तन और लीलाओं का आयोजन किया जाता है। संध्या के समय झूला बनाकर बालकृष्ण को उसम झुलाया जाता है। आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी व अन्य प्रसाद भोग लगाकर बांटे जाते हंै। कुछ लोग रात में ही पारण करते हैं और कुछ दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर स्वयं पारण करते हैं। कथा है कि द्वापर में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का राज्य था। उनका पुत्र कंस परम प्रतापी होने के बावजूद अत्यंत निर्दयी था। उसने भगवान् के स्थान पर अपनी पूजा करवाने के लिए प्रजा पर अनेक अत्याचार किए। अपने पिता को भी उसने कारागार में बंद कर दिया। उसके पापाचार और अत्याचारों से दुःखी होकर पृथ्वी गाय का रूप धारण कर ब्रह्माजी के पास पहुंची, तो उन्होंने गाय और देवगणों को विष्णु के पास भेज दिया। विष्णु ने कहा कि ‘‘मैं जल्द ही ब्रज में वसुदेव की पत्नी और कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। आप भी ब्रज में जाकर यादव कुल में अपना शरीर धारण कर लें।’’ जब वसुदेव और देवकी का विवाह हो चुका, तो विदाई के समय आकाशवाणी हुई, ‘‘अरे कंस! तेरी बहन का आठवां पुत्र ही तेरी मृत्यु का काल बनेगा।’’ कंस यह सुनते ही क्रुद्ध होकर उन्हें कारागार में डलवा दिया। देवकी को एक-एक करके सात संतानें हुईं, जिन्हें कंस ने मरवा डाला। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात्रि 12 बजे जब भगवान् विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया, तो चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और उसी वक्त आकाशवाणी हुई कि शिशु को गोकुल ग्राम में नंद बाबा के घर भेज कर उसकी कन्या को कंस को सौंपने की व्यवस्था की जाए। वसुदेव ने बालक को जैसे ही उठाया, उनकी बेड़ियां खुल गईं। सभी पहरेदार सो गए और कारागार के सातों दरवाजे अपने आप खुल गए। दैवीय कृपा से वसुदेव ब्रज में जाकर नंद गोप की पत्नी यशोदा, जो रात्रिकाल में सोई हुई थी, के निकट श्रीकृष्ण को रख, उनकी नवजात कन्या को वापस कारागार ले आए। वसुदवे के अंदर आते ही सारे दरवाजे अपने आप बंद हो गए। सब कुछ पहले जैसा ही हो गया। उनके पैरों में पुनः बेड़ियां पड़ गईं और पहरेदार जाग गए। इधर, कंस ने आठवीं संतान का समाचार सुना, तो वह कारागार पहुंचा। देवकी की गोद से कन्या को छीनकर उसे मारने के लिए जैसे ही उसने उसे उठाया, वह हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और तत्क्षण कन्या ने कहा- ‘दुष्ट कंस! तेरा संहारकर्ता तो पैदा चुका है।’’ यह सुनकर कंस चकित रह गया। आखिर में उसने पता लगा ही लिया कि गोकुल में नंद गोप के यहां कृष्ण पल रहा है। उसका वध कराने के लिए उसने कई प्रयास किए पर, सब बेकार। बड़े होने पर कृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को भय और आतंक से मुक्ति दिलाई, अपने नाना उग्रसेन को फिर से राजगद्दी पर बैठाया तथा अपने माता-पिता को कारागार से छुड़ाया। कृष्ण के अलौकिक एवं दिव्य रूप व लीलाओं के आकर्षण में सभी बंधे थे।