जीवत्पुत्रिका व्रत वत्पुत्रिका का व्रत महिलाएं अपने पुत्रों के दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रखा जाता है। व्रती महिलाएं नित्य कर्म, स्नानादि से निवृŸा होकर भगवान् सूर्य, राजा जीमूतवाहन आदि की पूजा करके प्रसाद चढ़ाती हैं। स्त्रियां निर्जल उपवास करके अगली सुबह दही चिउड़े का भोग लगा कर दानादि करके पारण करती हैं। कथा है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तो पांडवों की अनुपस्थिति में अश्वत्थामा ने अपने साथियों के साथ उनके सैनिकों व द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया था। दूसरे ही दिन केशव को सारथी बनाकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का पीछा किया और उसे कैद कर लिया, लेकिन श्रीकृष्ण के यह कहने पर कि ‘ब्राह्मणों का वध नहीं करना चाहिए’ अर्जुन ने अश्वत्थामा का सिर मुंडवाकर छोड़ दया। इस घटना से अश्वत्थामा अपमानित महसूस कर अपना अमोघ अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उŸारा के गर्भ पर चला दिया। स्थिति को भांपते हुए श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप धारण कर उŸारा के गर्भ में प्रवेश किया और अमोघ अस्त्र को अपने शरीर पर झेल लिया। इस तरह उŸारा के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा हो गई। यही पुत्र आगे चलकर परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।