विभिन्न प्रकार के शंख तथा उनसे लाभ आचार्य रमेश शास्त्री शं ख हमारी धर्म संस्कृति एवं जागरूकता का प्रतीक है। पुराणों के अनुसार शंख को लक्ष्मी का सहोदर कहा गया है, क्योंकि दोनों की उत्पŸिा समुद्र से ही हुई है। नित्य शंख पूजन एवं शंख वादन से आयु-अरोग्यता एवं धन-समृद्धि की वृद्धि होती है। पूजा में बजाने वाला शंख: यह शंख कई रूप में पाया जाता है। प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति इसे अपने घर में रखता है तथा नित्य दैनिक पूजा-पाठ संध्या के समय घर में शंख ध्वनि करता है। नित्य शंखनाद से व्यक्ति को आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और घर तथा आस-पास का वातावरण पवित्र होता है, आभ्यंतर आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। घर में भूत-प्रेत आदि आसुरी शक्तियों से रक्षा होती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी शंख वादन लाभदायक होता है, इससे गले एवं आवाज से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है। दक्षिणावर्ती शंख: यह शंख दुर्लभ माना जाता है। स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए इस शंख का विशेष महत्व है। गणेश शंख: यह शंख गणेश जी की आकृति जैसा होता है। इसे विघ्नहर्ता गणेश जी का प्रतीक माना जाता है। इस शंख को गणेश चतुर्थी अथवा सोमवार, बुधवार या बृहस्पतिवार को कच्चे दूध, गंगा जल आदि से स्नान कराकर धूप-दीप से पूजन करके घर के पूजा स्थल में स्थापित करें और इससे नित्य दर्शन करें। इसके प्रभाव से घर-परिवार में खुशहाली रहती है, विघ्न बाधाओं का शमन तथा विद्या एवं बुद्धि का विकास होता है।