व्रत की सफलता के सूत्र
व्रत की सफलता के सूत्र

व्रत की सफलता के सूत्र  

व्यूस : 9399 | नवेम्बर 2008
व्रत की सफलता के सूत्र पं. लोकेश द. जागीरदार मनुष्य अदृश्य शक्तियों का भंडार है, किंतु उसकी शक्तियां आंतरिक विकारों के कारण क्षीण हो जाती हैं। फलस्वरूप वह सदा ही किसी न किसी व्याधि या समस्या से ग्रस्त रहता है। अंततः समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अथवा सत्कर्म या सदगति के लिए व्रत आदि का सहारा लेना पड़ता है। व्रतों को नियमपूर्वक करने से व्यक्ति को जीवन में कई लौकिक और पारलौकिक लाभ व अनुभव प्राप्त होते हैं। साथ ही वह जिस समस्या से जूझ रहा होता है वह या तो समाप्त हो जाती है या व्रत करने से इतना आत्मबल मिल जाता है कि वह हंसते हुए उस समस्या का सामना कर लेता है। वस्तुतः व्रत के प्रभाव से मनुष्य की आत्मा, बुद्धि व विचार शुद्ध होते हंै, संकल्प शक्ति बढ़ती है। शरीर के अंतःस्थल में परमात्मा के प्रति भक्ति, श्रद्धा और तल्लीनता का संचार होता है। घर-परिवार के कार्यों के साथ-साथ नौकरी, व्यापार, कला-कौशल आदि का सफलतापूर्वक संपादन किया जा सकता है, इसलिए व्रत नियमपूर्वक करना चाहिए। ध्यान रखें- संकल्प के बिना व्रत अधूरा है। अतः किसी कार्य विशेष के लिए, कितनी संख्या में और कब तक व्रत करना है, इसका संकल्प व्रत प्रारंभ करने के पूर्व कर लेना चाहिए। व्रत शुभ मुहूर्त में आरंभ करें ताकि यह निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण हो सके। व्रत के दिन क्रोध, निंदा आदि न करें। ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से करें। बड़े बुजुर्ग, माता-पिता व गुरुजनों के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें। जो भी व्रत करें, शास्त्र व पुराण में बताई गई विधि के अनुसार ही करें। उसमें अपनी सुख-सुविधा के लिए परिवर्तन न करें। व्रत के बीच में मृत्यु या जन्म का सूतक आने पर व्रत पुनः शुरू से प्रारंभ करना चाहिए। यदि व्रती स्त्री हो और वह व्रत के बीच में रजस्वला हो जाए तो केवल उस दिन के व्रत की संख्या न ले। ऐसे में व्रत तो करे, किंतु पूजन नहीं। व्रत पूर्ण होने पर उसका शास्त्रानुसार हवनादि के द्वारा उद्यापन जरूर करना चाहिए, क्योंकि उद्यापन न करने से व्रत का फल नहीं मिलता। क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, पं. लोकेश द. जागीरदार इंद्रिय-निग्रह, देव पूजा, अग्नि हवन, संतोष, अस्तेय आदि का पालन करना किसी भी व्रत के लिए अनिवार्य है, ऐसा शास्त्रकारों ने कहा है। यदि किसी व्रत में किसी भी देवता की पूजा न हो तो अपने इष्ट देव का स्मरण करें। व्रत के दिन देवताओं के साथ अपने पूर्वजों व पितृगणों का स्मरण अवश्य करना चाहिए। इससे देवाशीर्वाद के साथ-साथ पूर्वजों का आशीष भी मिल जाता है और जिस कार्य के निमित्त व्रत किया जाता है, वह शीघ्रता से पूर्ण होता है। यदि किसी कारण व्रत बिगड़ जाए, छूट जाए या व्रत के दिन कोई शास्त्र विरुद्ध कर्म हो जाए तो पहले व्रत के लिए प्रायश्चित करें, फिर व्रतारंभ करें। व्रत के दिन उपवास अवश्य करें। व्रत और उपवास का वही संबंध है जो शरीर और आत्मा का है। अतः पुराणों में बताई गई विधि के अनुसार उपवास करना चाहिए। व्रत के दिन सात्विक आहार ही लंे ताकि शरीर हल्का रहे। बासी, गरिष्ठ कब्ज बढ़ाने वाले, तले हुए, प्याज युक्त भोजन, मांस-मदिरा, अंडे, लहसुन आदि का सेवन बिल्कुल न करें।



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