हस्तरेखा शास्त्र की पृष्ठ भूमि में रत्नों का प्रयोग
हस्तरेखा शास्त्र की पृष्ठ भूमि में रत्नों का प्रयोग

हस्तरेखा शास्त्र की पृष्ठ भूमि में रत्नों का प्रयोग  

व्यूस : 10176 | आगस्त 2012
हस्तरेखा शास्त्र की पृष्ठ भूमि में रत्नों का प्रयोग रीमा अरोड़ा अरस्तु ने कहा था ‘‘मानव के हाथ की रेखाओं का अनुसरण नहीं किया गया है - ये स्वर्ग तथा मानव के व्यक्तित्व के प्रभाव से उत्पन्न होती है।’’ हथेली पर पाई जाने वाली रेखाएं व्यक्ति के स्वभाव एवं विशेषताओं की ओर संकेत करती हैं। हाथ में इन रेखाओं का स्थान एवं विशेषताएं इस प्रकार हैं: 1. जीवन रेखा: यह रेखा शुक्र पर्वत के चारो ओर फैली होती है तथा व्यक्ति के सामान्य जीवन स्तर, उसकी बीमारियांे एवं आयु तथा शारीरिक स्वास्थ्य एवं क्षमता के बारे में बताती है। 2. मंगल रेखा: यह रेखा मंगल पर्वत से प्रारंभ होकर जीवन रेखा की सहायक रेखा के रूप में होती है जो जीवन रेखा पर पाये जाने वाले दोषों एवं कष्टों को दूर करती है। 3. मस्तिष्क रेखा: यह जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान से आरंभ होकर हथेली के दूसरी ओर तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति के मन, मानसिक स्थिति एवं बुद्धिमत्ता की ओर संकेत करती है। 4. हृदय रेखा: यह रेखा मस्तिष्क रेखा के समानांतर चलती है तथा हृदय से संबंधित विषयों के बारे में तथा व्यक्ति के व्यवहारिक स्वभाव को दर्शाती है। 5. भाग्य रेखा: यह रेखा हाथ के मध्य भाग में पाई जाती है तथा कलाई से प्रारंभ होकर शनि के पर्वत तक जाती है और सांसारिक कार्य, व्यवसाय में सफलता एवं असफलता एवं सभी प्रकार के व्यावहारिक लाभों की ओर संकेत करती है। 6. सूर्य रेखा: यह रेखा कलाई से प्रारंभ होती है तथा मंगल के मैदान से होती हुई सूर्य के पर्वत तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति की सांसारिक स्थिति तथा स्तर को मजबूत बनाती है। यह जीवन में सफलता, नाम, यश एवं उन्नति देती है। 7. बुध की रेखा: यह रेखा मणिबंध से प्रारंभ होकर बुध पर्वत तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता की ओर संकेत करती है। रेखाओं के साथ-साथ हथेली पर पाये जाने वाले पर्वत भी विशेष महत्व रखते हैं। दोनों हाथों की चारों उंगलियों तथा अंगूठे के नीचे के उभरे हुए स्थानों को पर्वत का नाम देते हैं। प्रत्येक पर्वत किसी न किसी ग्रह से संबंधित है तथा उसी नाम से पुकारा जाता है। प्रत्येक पर्वत उस ग्रह की विशेषताओं को दर्शाता है। पर्वतों का स्थान एवं विशेषताएं बृहस्पति पर्वत: तर्जनी उंगली के मूल में स्थित बृहस्पति पर्वत लक्ष्य तथा शक्ति की ओर संकेत करता है। शनि पर्वत: मध्यमा उंगली के मूल में स्थित शनि पर्वत दार्शनिक विद्याओं के अध्ययन में रूचि और उदासी एवं नीरसता की ओर संकेत करता है। सूर्य पर्वत: अनामिका उंगली के मूल में स्थित सूर्य पर्वत बुद्धिमत्ता, फलदायक एवं सफलता की ओर संकेत करता है। बुध पर्वत: कनिष्ठिका उंगली के मूल में स्थित बुध पर्वत विज्ञान तथा वाणिज्य, वाणी व आचार-विचार की ओर संकेत करता है। शुक्र पर्वत: अंगूठे के मूल में स्थित शुक्र पर्वत प्रेम तथा जोश की ओर संकेत करता है। चंद्र पर्वत: हाथ के निचले भाग में बायीं ओर स्थित चंद्र पर्वत अस्थिरता, प्रेम तथा कल्पनाशक्ति की ओर संकेत करता है। निम्न एवं उच्च मंगल पर्वत: मस्तिष्क रेखा और अंगूठे के बीच स्थित निम्न मंगल पर्वत और हृदय रेखा और चंद्र पर्वत के बीच स्थित उच्च मंगल पर्वत जोश, प्राणशक्ति, साहस तथा वीरता की भावना की ओर संकेत करता है। नेपच्यून पर्वत: मणिबंध के साथ, चंद्र पर्वत तथा शुक्र पर्वत के बीच स्थित नेपच्यून पर्वत बेचैन एवं बेखबर स्वभाव, समुद्री यात्रा में रूचि की ओर संकेत करता है। इन पर्वतों एवं रेखाओं के आधार पर रत्न का चुनाव किया जा सकता है। किसी भी अनुकूल ग्रह का ही रत्न धारण करना चाहिये। किसी प्रतिकूल ग्रह से संबंधित दान करना उचित है तथा किसी अनुकूल ग्रह से संबंधित रंग का प्रभाव बढ़ाना लाभदायक है। नौ ग्रहों के नौ रत्न प्राचीन शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि सूर्यादि नौ ग्रहों के प्रतिनिधि माणिक्य, मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनिया आदि नौ रत्न है। इन रत्नों के अद्भुत प्रभाव को व्यक्तियों ने स्वीकारा है तथा विभिन्न ग्रहों से संबंधित समस्याओं को दूर करने के लिये और वांछित लाभ पहुंचाने के लिये उनका रत्न धारण कराया जाता है। पर्वतो के आधार पर रत्न धारण यदि हथेली पर कोई पर्वत सामान्य स्थिति एवं उभार लिये हुये होगा तो व्यक्ति अपने जीवन एवं उन पर्वतों की विशेषताओं के अनुसार सकारात्मक भावना रखेगा एवं उसके महत्व एवं प्रभाव को बढ़ाने के लिये उसे उससे संबंधित रत्न पहनना चाहिये। यदि कोई पर्वत कम उभार लिये हुये होगा तो व्यक्ति जिंदगी के प्रति उदासीन होगा एवं किसी कार्य को करने में रूचि नहीं लेगा। अतः उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए भी उस पर्वत के ग्रह से संबंधित रत्न पहनना चाहिये। विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये कि यदि किसी भी पर्वत पर नकारात्मक चिन्ह जैसे कि बिंदु, क्राॅस, द्वीप, जाल इत्यादि पाये जायें तो उस पर्वत से संबंधित रत्न धारण नहीं करना चाहिये। और अगर किसी पर्वत पर सकारात्मक चिह्न जैसे कि वर्ग, त्रिकोण, त्रिशूल, शंख इत्यादि पाये जायें तो उस पर्वत से संबंधित रत्न धारण किया जा सकता है। रेखाओं के आधार पर रत्न धारण हथेली पर पायी जाने वाली रेखायें उनसे संबंधित ग्रहों के अनुसार उनके व्यावहारिक लाभों की ओर संकेत करती हैं। यदि हथेली पर लंबी, स्वस्थ एवं सुंदर रेखायें हों तो उनसे संबंधित ग्रहों के अनुसार उनके व्यावहारिक लाभों की ओर संकेत करती हैं। यदि हथेली पर लंबी, स्वस्थ एवं सुंदर रेखायें हो तो व्यक्ति अपने जीवन में उनसे संबंधित विशेषताओं के अनुसार सकारात्मक भावना रखेगा एवं उसके महत्व तथा प्रभाव को बढ़ाने के लिये उससे संबंधित रत्न पहनना चाहिये। स्वस्थ, महीन, लंबी तथा सुंदर रेखाएं अच्छा प्रभाव देती हैं तथा उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिये उससे संबंधित रत्न धारण करना चाहिये। गुलाबी एवं लाल रेखायें जोशीले एवं सकारात्मक सोच की ओर संकेत करती है तथा उससे संबंधित रत्न धारण भी फलदायक है। जंजीरदार रेखाएं, पुच्छदार रेखाएं, टूटी हुई रेखाएं, द्वीपयुक्त रेखाएं, असामान्य रेखाएं इत्यादि खतरनाक संकेत तथा नकारात्मक प्रभाव देती हैं। अतः व्यक्ति को उनसे संबंधित रत्न नहीं पहनना चाहिये बल्कि उनके उपाय के लिये मंत्र जाप या उनसे संबंधित दान करना चाहिये।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.