यह व्रत फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से द्वादशी तक बारह दिन में पूर्ण होता है। इसके लिए गुरु शुक्रादि का उदय और उन्नत मुहूर्त देखकर फाल्गुनी अमावस्या को वन में जाकर “त्वं देयादिवराहेण रसाया: “ स्थानमिच्छ्ता, उदधृतासि नमस्तुभ्यं पाप्मानं... और पढ़ें
देवी और देवअन्य पराविद्याएंउपाय