महाशिवरात्रि का पुण्य पर्व संपूण्र् ा भारत वर्ष में बड़ी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त विश्व में जहां-जहां हिदं ू रहत े ह ंै वहा ं भी इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इनका नाम आशुतोष भी है। आशु-अर्थात शीघ्र, तोष- अर्थात संतुष्टा शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव का नाम ही आशुतोष है।
भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़ा गंगाजल एवं बिल्वपत्र भक्ति पूर्वक चढ़ा देने मात्र से शीघ्र संतुष्ट होकर भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं। भगवान शिव सृष्टि के सभी प्राणियों पर समान भाव रखते हैं। साधारण् ातया हम जिन प्राणियों से घृणा एवं वैर करते हैं। उनको भगवान शंकर ने अपनी शरण दे दी है।
भूत-प्रेत गण, सर्प बिच्छू आदि से उनका प्रेम भाव उनकी समदृष्टि ही दर्शाता है। गले में सर्प को धारण करने का तात्पर्य काल पर विजय प्राप्ति से है। जिससे इनका एक नाम महामृत्युंजय भी है। वृष की सवारी का तात्पर्य काम पर विजय एवं धर्म की रक्षा है। इनका दरिद्र एवं अमंगल वेश होने पर भी ये सभी प्राणी मात्र के लिए मंगलकर्ता एवं दरिद्रहर्ता है। इनकी पूजा करने वाला व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं होता है। वे भक्त की इच्छा अनुसार भोग एवं मोक्ष देने वाले हैं।
शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याणकारी होता है। इस दृष्टि से महाशिव रात्रि का अर्थ हुआ कल्याणकारी रात्रि। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। यह तिथि उनकी प्रिय तिथि है। जैसा कि निम्न श्लोक में वर्णित है।
चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्।
तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।।
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।
शिवरहस्य महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी को शिव भक्त मास शिवरात्रि के रूप में व्रत करते हैं, लेकिन इस शिवरात्रि का शास्त्रों के अनुसार बहुत बड़ा माहात्म्य है।
ईशान संहिता के अनुसार शिवलिंगतयोद्भूतः कोटि सूर्यसमप्रभः अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय भगवान शिव परम ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप हो गए थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं। सिद्धांत शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं, परंतु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आंरभ एवं निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिव रात्रि का व्रत होता है।
समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण, पूजा, उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है। व्यक्ति जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है।
इस लोक में सुख भोगकर व्यक्ति अंत में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। जीवन पर्यंत इस विधि से श्रद्ध ा-विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं।
यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सायंकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है।
गृहस्थ जनों के अलावा संन्यासी लोगों के लिए इस महारात्रि की साधना एवं गुरुमंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है। अपनी गुरु परंपरा के अनुसार संन्यासी जन इस रात्रि में साधना आदि करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धि दायिनी होती है। इस समय में किए गए दान पुण्य, शिवलिंग की पूजा, स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है।
इस सिद्ध मुहूर्त में पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग को अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल या कार्यालय में स्थापित करने से घर-परिवार, व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है। परमदयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
संक्षिप्त पूजन एवं स्थापना विधिः शिवरात्रि को प्रदोष काल (रात्रि के आरंभ) में अथवा निशीथ काल (अद्धर् रात्रि) के समय शुद्धावस्था में पारद शिवलिंग अथवा स्फटिक शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए। सबसे पहले गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएं और तब दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से क्रम अनुसार स्नान कराकर चंदन लगाएं फिर फूल, बिल्वपत्र चढ़ाएं और धूप और दीप से पूजन करें।
शीघ्र फल प्राप्ति के लिए निम्न मंत्रों में से किसी एक मंत्र का महाशिवरात्रि से जप प्रारंभ करके लिंग के सम्मुख बैठकर नित्य एक माला जप करें। इससे भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
मंत्र:
नमः शिवाय तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi