रहस्यमय है ज्वाला जी की अखंड ज्वाला
रहस्यमय है ज्वाला जी की अखंड ज्वाला

रहस्यमय है ज्वाला जी की अखंड ज्वाला  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9514 | अप्रैल 2006

रहस्यमय है ज्वाला जी की अखंड ज्वाला चित्रा फुलोरिया पापियों के लिए धधकती ज्वाला और भक्तों के लिए सन्मार्ग दिखाने वाली स्नेहमयी ज्योति की प्रतीक मां शक्ति ! प्रकृति की नयनाभिराम छटाओं के बीच स्थित मां जगदंबा की निरंतर जलती रहने वाली ज्वाला का रहस्य आज भी किसी अनबूझ पहेली की तरह बना हुआ है। कहते हैं, सच्चे मन से जो कोई मां की शरण में गया, खाली हाथ नहीं लौटा। प्रस्तुत है उसी शक्तिस्वरूपा मां के शक्तिपीठ का सजीव चित्रण...

हमेशा भावना की भूखी होती है। अपने बच्चों एवं भक्तों पर स्नेह लुटाना ही उसका परम धर्म होता है। ऐसी ममतामयी मां जगत जननी कण-कण में विद्यमान है। मां के नौ रूप तो जग प्रसिद्ध हैं ही, 51 शक्तिपीठों के रूप में भी मां जगदंबा पूरे भारतवर्ष में पूजी जाती है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वालामुखी मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक है।

दक्ष यज्ञ में पार्वती के कूदने के बाद जब सती पार्वती का शव लेकर शिव निकले तो माता सती की जिह्वा यहां गिरी तब इस शक्तिपीठ का निर्माण हुआ। यहां निरंतर जलती रहने वाली ज्वाला के रूप में मां ज्वाला की पूजा-अर्चना की जाती है। इस शक्ति मंदिर की स्थापना के विषय में एक अन्य आख्यान भी प्रचलित है।

बहुत दिनों से एक ग्वाला इस बात पर गौर कर रहा था कि उसकी गाय के थनों से दूध पहले ही कोई दुह लेता है। जब वह बहुत दिनों तक इस रहस्य को नहीं जान पाया तो उसने एक बार गाय का पीछा किया और पाया कि जंगल में एक कन्या आती है और गाय का दूध पीकर प्रकाश में विलीन हो जाती है।

अपनी आंखों से यह दृश्य देखकर वह भौचक्का रह गया। उस रात वह सो नहीं पाया, सुबह उठकर उसने उस चमत्कारी बालिका के विषय में राजा को बताने का निश्चय किया। राजा ने ग्वाले से यह घटना सुनी तो उसे उस क्षेत्र में सती की जिह्वा गिरने वाली कथा स्मरण हो आई। राजा ने क्षेत्र का बारीकी से निरीक्षण किया मगर वह उस पावन स्थल को तलाशने में सफल नहीं हो पाया।

कुछ साल बाद वह ग्वाला दोबारा उस क्षेत्र में गया तो उसे वहां एक ज्वाला जलती दिखी। ग्वाला फिर राजा के पास गया और बताया कि उसने पर्वत शिखरों के बीच से जलती हुई ज्वाला निकलती देखी है। राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया। तब से यहां नित्य पूजा-अर्चना की जाने लगी।

कहा जाता है कि बाद में पांडव यहां आए और उन्होंने इस मंदिर का पुनरुद्धार किया। कुछ समय बाद कटोच वंश, कांगड़ा के तत्कालीन राजा भूमि चंद ने पहली बार यहां एक भव्य मंदिर बनाया। तब से अब तक यहां निरंतर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है।

ज्वाला जी में भूमि से अनवरत निकलने वाली ज्वाला सबके लिए आकर्षण का केंद्र है। जिन लोगों की आद्य शक्ति माता के चमत्कारिक व्यक्तित्व में आस्था नहीं है उन लोगों ने यहां जाकर इस ज्वाला को बुझाने के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रयास किए लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी। कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझाने के लिए लोहे की एक चकती रख दी, जब उससे भी लौ नहीं बुझी तो उसके ऊपर नहर का पानी छोड़ दिया।

परंतु इस सबके बावजूद लौ जलती ही रही, तो अकबर ने माता की शक्ति से प्रभावित होकर मंदिर में सोने का छत्र चढ़ाया, हालांकि मां के प्रति उसके अविश्वास के चलते वह छत्र अन्य धातु में परिवर्तित हो गया। लेकिन इस घटना के बाद शक्तिस्वरूप मां के प्रति अकबर की आस्था और भी दृढ़ हो गई। मां शक्ति के विरुद्ध अकबर द्वारा किए गए शक्ति प्रयोग ने जन-जन के मन से सारी शंकाएं मिटा दीं और मां के दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही चली गई।

देवी मां यहां नौ ज्वालाओं के रूप में एक दूसरे से भिन्न दिखाई देती हैं, जिनके नाम महाकाली, अन्नपूण्र् ाा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, महासरस्वती, अंबिका और अंजना हैं। रंगारंग मेला: ज्वाला जी में मार्च-अप्रैल एवं सितंबर-अक्तूबर में आने वाली नवरात्रियों में साल में दो बार बहुत बड़ा मेला लगता है।

इस मेले में लोक गीत, लोक नृत्य, नाटक आदि की रंगारंग झलक तो मिलती ही है, साथ ही कुश्ती, दौड़ आदि की प्रतिस्पर्धाएं भी आयोजित की जाती हैं। हिमाचली संस्कृति मानो जीवंत हो उठती है। यहां मिलने वाली हस्त शिल्प की लुभावनी वस्तुएं पर्यटकों का मन बरबस मोह लेती हैं। नवरात्रियों के दौरान यहां बहुत भीड़ रहती है। श्रद्धालु लोग लाल ध्वज हाथ में लेकर मां का जयकार करते हुए मंदिर में आते हैं।

माता को चढ़ाए जाने वाले भोग में रबड़ी या गाढ़े दूध की मलाई, मिश्री और मौसमी फल होते हैं। पूरे दिन विभिन्न चरणों में पूजा-अर्चना चलती रहती है। दिन में पांच बार आरती और एक बार हवन होता है, मंदिर परिसर में दुर्गा सप्तशती के श्लोकों के भक्ति एवं भावपूर्ण स्वर गुंजायमान होते रहते हैं। भक्तों का विश्वास है कि नवरात्रियों के दौरान यह ज्वाला साक्षात मां के मुंह से निकलती है।

आसपास के दर्शनीय स्थल:

नागिनी माता: ज्वाला जी मंदिर की ऊपरी पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। इसके आसपास ही मेला लगता है।

श्री रघुनाथ जी मंदिर: यहां पर राम, लक्ष्मण एवं सीता की मूर्तियां हैं। इस मंदिर के संकेत भूकंप के बाद मिले। कहा जाता है कि इसे पांडवों ने बनाया।

अष्टभुजा मंदिर: इस प्राचीन मंदिर में प्रस्तर से अष्ट भुजाओं वाली माता की मूर्ति बनी हुई है।

नादौन: यह ज्वाला जी से लगभग 12 किमी दूरी पर स्थित है। कांगड़ा के राजाओं की इस भव्य नगरी में कई प्राचीन मंदिर एवं महल बने हुए हैं।

चैमुखा मंदिर: नादौन से होते हुए 22 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर में शिव की चार मुंह वाली प्रतिमा स्थापित है।

चिंतपूर्णी: ज्वाला जी से लगभग 940 मीटर दूर पंजाब के होशियारपुर जिले में भक्तों की समस्त चिंताएं हरने वाली माता चितं पणर््ू ाी का मंि दर है। यहा ं वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग सच्चे मन एवं विश्वास से अपनी चिंताओं को लेकर यहां आते हैं, माता उनकी चिंताएं अपने पास रख, खुशियों से झोली भर देती है। सोलह सीढ़ियां चढ़कर माता के दर्शन होते हैं। यहां देवी मूर्ति रूप में नहीं पिंडी के रूप में अवस्थित है। यहां देवी का मस्तक नहीं है इसलिए इसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है।

कब जाएं: यहां हर मौसम में जा सकते हैं। सर्दियों में ठंड पड़ने के कारण ऊनी कपड़े साथ रखें। नवरात्रियों के दिनों में यहां उत्सवी वातावरण तो होता है लेकिन बहुत भीड़ होने के कारण तसल्ली से दर्शन करने वाले अन्य दिनों में आना पसंद करते हैं।

अब कहीं भी कभी भी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषाचार्यों से। अभी परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.