विवाह की सफलता असफलता वर-कन्या दोनों के स्वभाव और आपसी विचारों पर अत्यधिक निर्भर करती है जिसके निर्णय में हाथ के अन्य चिह्नों एवं रेखाओं के अतिरिक्त ‘अंगूठे’ की मुख्य तथा निर्णायक भूमिका है। कीरो के शब्दों में कहें तो ‘‘अंगूठे से व्यक्ति का पूरा चरित्र जाना जा सकता है।’’ वास्तव में ‘अंगूठा’ हाथ का प्राण तत्व है इसका थोड़ा भी ज्ञान होने पर निर्णय सही उतरता है। मैंने अपने जीवन काल में अंगूठे के आधार पर किये हुए मिलान असफल नहीं पाए। मनुष्य के हाथ में चार उंगलियां और एक अंगूठा पांच अवयव हैं। उंगलियां अपना महत्व रखती हंै, मगर अंगूठे के बिना बेकार हंै। अंगूठे की सहायता के बिना मुट्ठी भी नहीं बंध सकती कुछ पकड़ने के लिए भी अंगूठा जरूरी है। व्यक्ति क्रोध में या किसी से लड़ता हुआ जब विवेक खो देता है तो अंगूठा मुट्ठी के अंदर हो जाता है। इसके अलावा कोई निर्णय लेना हो, अंदर मंथन चल रहा हो और अंगूठा अंदर चला जाए तो निर्णय नकारात्मक होगा और यदि बाहर रहे तो सकारात्मक होगा। अर्थात् उंगलियों के ऊपर हो तो स्थिति नियंत्रण में रहती है और उंगलियों के नीचे हो तो स्थिति अनियंत्रित हो जाती है। न्यूटन कहता था कि ईश्वर के साक्षात प्रमाण के लिए किसी प्रकार के अन्य सबूत की जरूरत ही नहीं है। कीरो के अनुसार ‘‘अंगूठा ईश्वर का प्रतिनिधि है।’’ अंगूठे की जड़ में ब्रह्मतीर्थ, पहली उंगली और अंगूठे के बीच में पितृतीर्थ उंगलियों के ऊपरी भाग में देवतीर्थ तथा कनिष्ठा के नीचे कायतीर्थ स्थापित है।
पितरों के तर्पण कार्य में अंगूठा ही काम आता है। पितर स्थान दक्षिण में मान्य है और दायें हाथ में अंगूठा दक्षिण में ही स्थित है। अंगूठे की पहली पोर इच्छा शक्ति की सूचक है, दूसरी पोर तर्क शक्ति की और तीसरी, जो शुक्र पर्वत की परिसीमा ै, प्रेम की सूचक है। गृहस्थ जीवन का दर्शन है। हाथ में अंगूठे की अपनी अनूठी विशेषता है। सुदृढ़ अंगूठा जीवन को संतुलित बनाता है। जिसका अंगूठा सीधा, लंबा, सुडौल दोनों पोरों से समान रूप से युक्त होता है वह अपनी बात का धनी तथा समय का सदुपयोग करने वाला होता है। समाज क्या कह रहा है, इन बातों का उस पर कम असर होता है। वह सही गलत का निर्णय अपने मन व बुद्धि के सामंजस्य से लेने की क्षमता रखता है। ऐसा व्यक्ति अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित तथा सतर्क होता है। वह अपना भेद किसी को नहीं देता। ईश्वर प्रदत्त संुदर भविष्य होने के बावजूद ऐसा व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करने पर विश्वास रखता है। स्वयं कुशल होने के साथ-साथ दूसरों को भी सुधारने की क्षमता रखता है। कुल मिलाकर सुदृ़ढ़ अंगूठे वाला व्यक्ति घर व समाज में प्रतिष्ठित, कर्तव्यनिष्ठ, व्यवहारकुशल, महत्वाकांक्षी तथा सुंदर व्यक्तित्व का मालिक होता है। अंगूठे में थोड़ी लचक भी जरूरी है। जिसके अंगूठे में लचीलापन होता है वह वक्त के अनुसार अपने को मोड़ लेता है। छोटी-छोटी बात पर अड़ता नहीं। मृदुभाषी होने के साथ-साथ बुद्धिमान होता है।
यदि दूसरी पोर लंबी हो तो क्या कहने। वह तर्क-वितर्क सुंदर करता है, कुतर्क नहीं करता महिलाओं में इस प्रकार के अंगूठे उनकी गृहस्थी को सुख शांति पूर्वक जिम्मेदारी से निभाने वाले होते हैं। इसके अतिरिक्त छोटा अंगूठा काम विकृति तथा जिद्दी स्वभाव दर्शाता है। पहली पोर बहुत मोटी और छोटी मुद्गर जैसी आकृत हो तो ऐसा अंगूठा ‘‘क्लब्ड टाइप थम्ब’ कहलाता है। (साथ-साथ मंगल क्षेत्र भी दोषी हो) ऐसे अंगूठे वाले लोग छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने वाले व बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देने वाले होते हैं। दोनों हाथों के अंगूठे यदि इसी प्रकार के हों तो मुजरिम प्रवृत्ति प्रदर्शित होती है। एक हाथ में ऐसे लक्षण हों तो व्यक्ति थोड़ा बुद्धि से काम लेगा, लेकिन उसका व्यक्तित्व अंदर बाहर अलग होगा। चैकोर अंगूठा सामान्य बुद्धि और विवेक का द्योतक है। नुकीला अंगूठा सामान्य बुद्धि और विवेक का परिचायक है। व्यक्ति शीघ्र काम करने वाला होता है। चपटा अंगूठा कोमल होता है। चैड़ा अंगूठा स्वयं के विचारों पर व बाधाओं पर विजय प्राप्ति का दृढ़ निश्चय दर्शाता है। यदि अंगूठा बीच में से पतला अर्थात पतली कमर के समान हो तो व्यक्ति बहुत चतुर, चालाक तथा अपना काम निकालने वाला होता है।
महिलाओं का अंगूठा बड़ा होना उनमें व्यापार, काम काज आदि को संगठित कर आगे बढ़ने व अपना प्रभुत्व जमाने का गुण प्रदर्शित करता है। लो सेट और हाई सेट अंगूठे का जिक्र भी जरूरी है। यदि अंगूठा गुरु पर्वत से दूर हो तो उसे लो सेट और यदि नजदीक हो तो उसे हाई सेट अंगूठा कहते हैं। अंगूठा जितना ऊंचा और गुरु पर्वत के जितना नजदीक होगा, व्यक्ति उतना ही दिमागी तौर पर कम समृद्ध होगा।
अल्प ज्ञानी, बुद्धू इसी श्रेणी में आते हैं। इसके विपरीत लो सेट अंगूठा गुरु पर्वत से समान दूरी बनाए हुए हाथ में खूबसूरती से स्थापित हो तो व्यक्ति मिलनसार, विवेकी, शिक्षित विज्ञान और साहित्य के ज्ञाता, वक्ता, दयालु, विद्रोह के खिलाफ आवाज उठाने वाले, देश प्रेमी व महान पुरुष होता है। उपर्युक्त सभी विचारों के बाद विशेष बात देखनी यह चाहिए कि वर-कन्या दोनों के अंगूठे सीधे न हांे, अन्यथा दोनों का अहं टकराएगा तथा विचार नहीं मिलेंगे। दोनों के अंगूठे अधिक लचीले भी न हों अन्यथा दोनों में से कोई भी ठोस निर्णय नहीं ले पाएगा जिससे विचारेां में भिन्नता आएगी। अतः दोनों (लड़का-लड़की) में से एक का अंगूठा सीधा और एक का लचीला होना आवश्यक है। तात्पर्य यह कि विवाह हो या व्यापारिक साझेदारी, दोनों के अंगूठे समान नहीं होने चाहिए।