मधुमेह के बारे में सबसे भयावह बात यह है कि इस रोग के रोगियों में औषधियों एवं इन्सुलिन हार्मोन के प्रति प्रतिरोध होना शुरू हो गया है और यदि समय से हम नहीं चेते तो भारतवर्ष में मधुमेह एवं इसके दुष्परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले अनेक असाध्य रोगों के आंकड़े बहुत चैंकाने वाले होंगे। हालांकि सभी चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक और वैज्ञानिक इसके इलाज एवं रोकथाम के लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं, परंतु जनमानस में इस रोग के प्रति जागरूकता पैदा किये बिना इस रोग पर नियंत्रण पाना बहुत ही कठिन है।
मधुमेह क्या है? मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त के ग्लूकोज (शर्करा) का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इसका स्रोत भोजन होता है जो हम खाते हैं। सभी भोज्य पदार्थ जिनमें स्टार्च पायी जाती है, ग्लूकोज के स्रोत होते हैं जो ग्लूकोज का स्तर बढ़ाते हैं। शरीर का अंग पैंक्रियाज (अग्न्याशय) हार्मोन इन्सुलिन को बनाता है।
इस इन्सुलिन का कार्य रक्त से ग्लूकोज, मांसपेशीय वसा (muscle fat) और लिवर सेल्स को ले जाना और ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना है। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों में उच्च शर्करा का स्तर होता है। इसका कारण यह है कि उनके अग्न्याशय प्रचुर मात्रा में इन्सुलिन का निर्माण नहीं कर पाते हैं या फिर उनके शरीर की कोशिकाएं इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोधक हो जाती हैं।
आयुर्वेद मतानुसार यदि मनुष्य आरामतलब हो, व्यायाम सर्वदा न करे, न ही समय-समय पर शरीर का शोधन करे, शरीर में स्थूलता हो तथा मधुर अम्ल-लवण रस, गुरु शीत-स्निग्ध आहारों को अधिक मात्रा में ग्रहण करे तो उससे कफ दोष बढ़ जाता है। फिर जब वायुवर्धक अर्थात निर्बलता जनक कारणों से शरीर में वायु की वृद्धि हो जाय अर्थात शरीर में अन्न को इस्तेमाल कर लेने की शक्ति भी कम हो जाय, चिंता आदि से नाड़ी मंडल भी निर्बल हो जाये तो भोजन से उत्पन्न हुआ सार, अर्थात ओज (जिसे अब हम ग्लूकोज कहते हैं) शरीर से मूत्र द्वारा निकलने लगता है। इसी को मधुमेह कहते हैं।
कारण: मधुमेह का रोग बहुधा 50-60 वर्ष के बीच में उच्च वर्ग के शिक्षित, बैठकर काम करने वाले, अधिक मात्रा में आहार लेने वाले स्थूल व्यक्तियों में होता हुआ देखा जाता है श्रम करने वाले ग्रामीण क्षेत्र के व्यक्तियों में नहीं जिससे पता चलता है कि शरीर को जितनी कैलोरी वाले भोजन की आवश्यकता होती है उससे अधिक कैलोरी वाले भोजन निरंतर अधिक समय तक लेते रहने से, विशेषतया कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में लेते रहने से उसका कुछ अंश फैट में परिवर्तित होकर वसामय प्रदेशों में बैठ जाता है जिससे शरीर स्थूल हो जाता है।
इस परिवर्तन के लिए अर्थात वसीय ऊतकों में वसीय अंश को संचित करने के लिए भी इन्सुलिन आवश्यक है, परंतु बराबर अत्याहार करते रहने से अग्न्याशय की कोशिकाओं पर इतना अधिक कार्यभार पड़ता है कि इनमें क्षीणता उत्पन्न हो जाती है। वे कुछ समय बाद इसके व्यर्थ भार को उठा नहीं पाते जिससे उत्पन्न होने वाले इन्सुलिन की मात्रा जितना अधिक भोजन लिया जाता है इसके पाचन के लिए पर्याप्त नहीं रहती।
इसलिए स्थूलता इस रोग का बड़ा कारण है जिससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती है। इस रोग की निर्बलता पैतृक परंपरा से भी आती प्रतीत होती है क्योंकि यदि माता-पिता दोनों में मधुमेह रोग होता है तो संतान में मधुमेह रोग होता हुआ देखा जाता है।
संभव है कि यदि इस रोग की निर्बलता जन्म से हो और उसपर 30-40 वर्ष की आयु में अति मात्रा में कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन लिया जाय तो यह रोग या तो खंड को नियंत्रित रखने वाले अंतः स्रावों के असंतुलन से या ग्लूकोज को पचाने वाले ग्लूकोकाइनेज आदि इन्जाईम की न्यूनता के कारण हो जाता है। सर्व प्रकार के ज्वर तथा संक्रामक रोगों के कारण भी रक्त में खांड की मात्रा बढ़ जाती है।
संभवतः यह जीवाणु जनित विष के कारण अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland) तथा पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland) के उत्तेजित हो जाने से ऐसा होता है। अतः इन दोनों की उत्तेजना भी इस रोग का कारण प्रतीत होती है। इसलिए मधुमेह रोग की प्रकृति हो तो जीवाणु-विष भी इस रोग का कारण हो जाते हैं।
मानस-उद्वेग व चिंता के वेग से भी संभवतः अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal Gland) के उत्तेजित होत रहने से रक्त में शर्करा बढ़ जाती है। संभवतः आरामतलब होने से स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह रोग अधिक पाया जाता है। पैतृक प्रवृत्ति होने पर भी यदि व्यक्ति कार्बोहाइड्रेट भोजन स्वल्प मात्रा में ले तो वह मधुमेह रोग से बच सकता है।
मधुमेह के लक्षण: मधुमेह का रोग धीरे-धीरे अज्ञात रूप से होता है और उनमें निम्न लक्षण दिखाई देते हैं:
1. अत्यधिक मूत्र त्याग: रोगी को सबसे पहले बहुमूत्र की शिकायत होती है। दिन-रात में बार-बार तथा मात्रा में अधिक मूत्र आता है। 24 घंटे में वह 1) सेर से बढ़कर 3 सेर या इससे भी अधिक हो सकता है। रक्त तथा गुर्दों में बने मूत्र मंे बढ़ी हुई शर्करा को निकालने के लिए शरीर में से जल को तथा वृक्कों से मूत्र को शरीर से अधिक मात्रा में निकालना पड़ता है अर्थात वृक्कों की नालियों में शर्करा के कारण परासरणी (Osmotic) भार की अधिकता से बहुमूत्र होता है और विशेषतः रात में अधिक देखा जाता है।
2. अधिक प्यास - अधिक मूत्र विसर्जन में अधिक जल के साथ लवण जैसे -पोटैशियम, कैल्सियम तथा बाइकार्बोनेट भी अधिक मात्रा में निकल जाते हैं। इस प्रकार जल के अधिक निकल जाने से प्यास (पोलीफेजिया) अधिक लगती है।
3. अधिक भूख: रोगी के शरीर में से खांड के अधिक मात्रा में निकल जाने से तथा शरीर द्वारा इसका उपयोग न कर पाने की वजह से भूख (पोलीफजिया) अधिक लगती है।
4. शारीरिक कमजोरी: अधिक आहार लेने पर भी उस शर्करा का शरीर द्वारा उपयोग न कर सकने के कारण तथा प्रोटीन व वसा के जलते रहने से शरीर कृश होता जाता है एवं स्वल्प श्रम से शरीर थक जाता है। इसलिए रोगी प्रायः अपनी बढ़ती हुई अशक्ति एवं घटते हुए भार की शिकायत करता है।
5. त्वचा में संक्रमण एवं खुजली ः जल के अधिक निकलते रहने से त्वचा शुष्क एवं कक्ष हो जाती है। त्वचा की शुष्कता के कारण तथा उसका पोषण भली प्रकार न होने से उसमें मृदुता की न्यूनता या शुष्कता और रक्षता का लक्षण होता है। इसी कारण उसमें बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण शीध्रता से हो जाता है जिससे पिंडिकाएं तथा मधुमेह पिंडिकाएं निकल आती हैं।
मूत्रगत खांड के मूत्र स्थान पर लगे रहने से स्त्रियों में भगकण्डू तथा पुरुषों में मुण्ड-शोथ का लक्षण हो सकता है। स्त्रियों में स्तनों के नीचे तथा जननेंद्रिय के समीप की त्वचा में रक्त वर्ण पामा (इक्जिमा) रोग भी हो जाता है। शरीर पर कण्डू का रोग भी हो जाता है जिसका कारण अवयवों में शर्करा का संचित हो जाना होता है।
6. घाव न भरना - मधुमेह रोगी का घाव शीघ्र नहीं भरता है।
7. दृष्टि रोग - मधुमेह रोगियों में दृष्टि मंद हो जाती है। उनकी आंखें कमजोर हो जाती है।
8. मलबंध: मधुमेह के रोगियों में आंतों की श्लेष्म कला के शुष्क रहने से मलबंध की शिकायत रहती है।
9. नाड़ी शोथ: जांघों में नाड़ी शोथ का लक्षण भी कुछ रोगियों में पाया जाता है जिससे टांगों में दर्द रहता है तथा पेशियों में कृशता एवं निर्बलता आ जाती है।
मधुमेह के भेद: आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह दो प्रकार का होता है।
1. वातिका - धातु क्षय होने से वायु के प्रकोप के कारण जो मधुमेह होता है वह वातिका मधुमेह कहलाता है।
2. उपेक्षित: पित्तादि दोष के कारण मार्ग के अवरूद्ध हो जाने से जो मधुमेह होता वह उपेक्षित कहलाता है। आयुर्वेद में मधुमेह का वर्णन गुण-दोष के अनुसार वर्णित 20 प्रकार के प्रमेह रोग में मिलता है और कहा गया है कि सब प्रकार के प्रमेह (साधारण, साध्य, कफज आदि मेह भी) चिकित्सा न करने पर और अधिक समय तक बने रहने पर (पुराने हो जाने पर) मधुमेहत्व को प्राप्त हो जाते हैं और चूंकि मधुमेह असाध्य हैं इसलिए वे भी असाध्य हो जाते हैं।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार मधुमेह रोग निम्न 3 प्रकार से होता है:
1. टाइप 1 मधुमेह: इसे किशोर मधुमेह भी कहा जाता है। इसमें रोगी की इन्सुलिन उत्पन्न करने वाली अग्न्याशय की बीटा सेल्स (कोशिकाएं) नष्ट होने के कारण इन्सुलिन का उत्पादन कम या नहीं करती हैं। इसका ठोस कारण ज्ञात नहीं है लेकिन आनुवांशिक प्रभाव, विषाणु आदि जैसे कारक इसकी उत्पत्ति के प्रमुख कारण हैं।
ऐसे मरीजों को बाहर से इंसुलिन देनी पड़ती है। इसलिए इसे इंसुलिन डिपेन्डेंट डाइबिटीज मेलाइटस या प्क्क्ड भी कहते हैं। संसार में लगभग 10 प्रतिशत मधुमेह रोगी टाइप 1 के पाये जाते हैं।
2. टाइप 2 मधुमेह: टाइप 2 मधुमेह में या तो शरीर में इन्सुलिन आवश्यकता के अनुसार स्रावित नहीं होता है या फिर शरीर की कोशिकाओं में इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है
जिसके कारण रक्त शर्करा शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाती है और रक्त में बनी रहती है जिसके कारण हाईपर ग्लायसेमिया (रक्त में शर्करा की बढ़ी हुई स्थिति) की स्थिति हो जाती है। इस टाइप की मधुमेह स्रावित इन्सुलिन पर निर्भर नहीं करती है।
इसलिए इसे नान इन्सुलिन डिपेन्डेट मैलाइट्स या (NIDDM) गैर इंसुलिन आश्रित मधुमेह मेलेतुस या वयस्क शुरूआत मधुमेह कहते हैं। यह मधुमेह अधिकांशतः मेदो वृद्धि व्यक्ति में पाया जाता है तथा किसी भी उम्र में हो सकता है। संसार में 90 प्रतिशत रोगी टाईप 2 मधुमेह के पाये जाते हैं।
3. गर्भावधि (जेस्टेशनल) मधुमेह - महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान अस्थायी मधुमेह की उत्पत्ति होती है
जिसे जेस्टेशनल (गर्भावस्था जन्य) मधुमेह कहा जाता है और यह अवस्था शिशु के जन्म पश्चात ठीक हो जाती है लेकिन भविष्य में इन महिलाओं को टाईप-2 मधुमेह उत्पत्ति होने का खतरा ज्यादा बना रहता है। अगर गर्भावस्था के समय इसको नियंत्रित न किया जाय तो रोगी को उच्च रक्त चाप हो जाता हैं जिससे प्रसव के समय परेशानियां पैदा हो जाती है तथा जन्म के बाद बच्चे में रक्त शर्करा का स्तर निम्न हो सकता है। रक्त शर्करा के परीक्षण रक्त में शर्करा के स्तर को जानने के लिए कई तरह के परीक्षण किये जाते हैं:
1. सुबह खाली पेट परीक्षण: खाली पेट रक्त परीक्षण के लिए मधुमेह रोगी को रात्रि खाने के पश्चात 12 घंटे उपवास पर रखा जाता है। उसके बाद उसका रक्त परीक्षण के लिए जाता है।
2. खाने के बाद परीक्षण: इसमें रक्त का परीक्षण खाना खाने के 2 घंटे बाद किया जाता है। इसे पोस्ट परैन्डियल रक्त शर्करा परीक्षण ठै;च्च्द्ध कहते हैं।
3. ग्लूकोज टाॅलरेन्स टेस्ट: इसे जेस्टेशनल मधुमेह के लिए किया जाता है जिसमें मधुमेह पीड़ित महिला को 75 ग्राम ग्लूकोज पानी में घोल कर पिलाया जाता है और फिर हर आधे घंटे में उसके रक्त में शर्करा के स्तर का परीक्षण किया जाता है।
4. भ्इ।1ब् टेस्ट: यह मधुमेह का एक ऐसा परीक्षण है जो रक्त शर्करा के 2-3 माह के औसत स्तर को प्रदर्शित करता है। यह रोगी द्वारा लिये जा रहे उपचार के प्रभाव को प्रदर्शित करता है। इसका स्तर 7 प्रतिशत के बराबर या अधिक होने का अर्थ मधुमेह रोग से पीड़ित होना है।
5. कीटोन परीक्षण: यह एक विशेष जांच है जिसमें रक्त या मूत्र में कीटोन्स की उपस्थिति का परीक्षण किया जाता है। जब शरीर शर्करा के स्थान पर वसा का इस्तेमाल करने लगता है तो कीटोन्स का निर्माण होता है जिसके फलस्वरूप कीटो-एसिडोसिस का निर्माण होता है। इस कीटो एसिडोसिस से रोगी की मृत्यु हो सकती है।
चिकित्सा: आयुर्वेद मतानुसार कफ-वृद्धि के कारण होने से इस रोग के रक्षण तथा अपतर्पण चिकित्सा की जाती है तथा व्यायाम कराया जाता है, साथ ही प्राण शक्ति की हीनता को दूर करने के लिए इसमें स्वर्ण, मुक्ता, लौह, अभ्रक, शिलाजीत आदि का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ अति व्यायाम तथा अति मानसिक श्रम से बचाया जाता है।
1. अपतर्पण चिकित्सा: अपतर्पण के लिए रोगी को स्वल्प तथा रूक्ष आहार पर रखा जाता है। रूक्ष, शोषक गुण वाली औषधियों जैसे- त्रिफला, त्रिवंग, नीम, करेला, लोघ्र, बिल्वपत्र तथा शाल सारादि वर्ग और न्यग्रोधादि वर्ग की औषधियों का इस रोग में प्रयोग ठीक रहता है। इनसे मूत्र में शर्करा की निकासी कम हो जाती है। अतः इस रोग की चिकित्सा निम्न योगों में से किसी एक का प्रयोग करके की जा सकती है।
1. रोगी को जामुन के फल की मज्जा 4 भाग, निंब पत्र 4 भाग, आंवला 4 भाग, गुड़मार पत्र 2 भाग, बिल्वपत्र 2 भाग और सूखा करेला 8 भाग मिलाकर बनाया हुआ चूर्ण 2 माशा (लगभग 2 ग्राम) मात्रा दिन में 2-3 बार लेने से 1-2 मास में लाभ प्रतीत होता है।
2. सूखा करेला 4 भाग, जामुन चूर्ण 2 भाग, त्रिवंग भस्म 2 भाग, अभ्रक भस्म 1 भाग, लौह भस्म 1 भाग, शिलाजीत- 2 भाग और अफीम आधा भाग मिलाकर बनाई गोलियों की 2 रत्ती (लगभग 250 मिली ग्राम) मात्रा दिन में तीन बार देने से लाभ होता है।
3. मकरध्वज 125 मि. ग्राम और काले जामुन की मिंगी का चूर्ण 1 ग्राम, मधु के साथ सेवन करने से मूत्र में चीनी बनना कम हो जाता है एवं मूत्र के परिमाण भी कम होते हैं।
4. शिलाजित्वादि वटी की तीन-तीन गोलियां 4-4 घंटों के अंतर पर ठंडे जल से सेवन करने से अच्छा लाभ होता है।
5. वसंत कुमात्सर रस तथा स्वर्ण घटित चंद्रकांत रस में से किसी एक का प्रयोग दिन में एक बार करने से रोगी की प्राणशक्ति बढ़ती है।
6. चंद्रप्रभावटी 2-4 गोली प्रातः सायं दूध से लेने से अच्छा लाभ मिलता है।
7. डाबर द्वारा निर्मित मधुरक्षक चूर्ण की 3-6 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम भोजन से पहले लेने से अच्छा लाभ होता है।
8. मधुमेह नाशिनी गुटिका की 2-3 गोली दिन में 3-4 बार, ताजी हल्दी का स्वरस और आंवला स्वरस से सेवन करने से लाभ मिलता है।
आहार चिकित्सा: मधुमेह चिकित्सा में आहार की विशेष महत्वपूर्ण भूमिका है। आहार पौष्टिक होने के साथ ही सही मात्रा में उपभोग किया जाना चाहिए। रोगी को वसा, शक्कर का प्रयोग परहेज से करना चाहिए। आहार के लिए रोगी को दोनों समय जौ और गेहूं की बनी रोटी केवल 2 छटांक (लगभग 116 ग्राम) की मात्रा में करेले तथा दूसरी हरी सब्जियों के साथ लेना चाहिए।
चिकनाई रहित दही या मट्ठा 2 समय लेना चाहिए। आहार में कच्ची सब्जियां, करेला, खीरा, प्याज, लहसुन तथा फलों में आंवला, जामुन और अंगूर आदि को सम्मिलित करना चाहिए। इसके साथ-साथ धूम्रपान, तंबाकू और शराब के सेवन से परहेज करना चाहिए। व्यायाम चिकित्सा: व्यायाम शरीर में रक्त संचार को बढ़ाते हैं खासकर बांह एवं पैर शरीर के वे अंग हैं जहां मधुमेह पीड़ित आम तौर पर मुश्किलों का सामना करते हैं।
व्यायाम शारीरिक और मानसिक दोनों तनावों से लड़ने का बेहतरीन तरीका है जिसके परिणामस्वरूप ग्लूकोज का स्तर कम होता है। नियमित योगाभ्यास ब्लड शुगर लेवल कम करने के साथ-साथ रक्तचाप को कम करता है, वजन को नियंत्रित करता है, प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है।
इसके लिए प्राणायाम, सेतुबंधासन, बलासन, वज्रासन, सर्वांगासन, हलासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तासन आदि आसनों का अभ्यास कर लाभ लिया जा सकता है। इसके अलावा मधुमेह रोगी 2-3 मील के लगभग प्रतिदिन पैदल भ्रमण कर के भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं।