कितना लाभदायक होगा आपके लिए व्यापार? डॉ. अर्जुन कुमार गर्ग इस संसार में प्रत्येक मनुष्य अच्छी नौकरी या व्यवसाय को अपनी आजीविका के रूप में अपनाना चाहता है, किंतु यह सौभाग्य किसी बिरले को ही मिलता है। ऐसा क्यों? ज्योतिष शास्त्र इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालता है। ज्योतिष में कुंडली का दशम भाव मनुष्य के कर्म का स्थान माना गया है। यदि दशमेश शुभ ग्रह से युक्त होकर शुभ स्थान में स्थित हो, तो राजकीय माध्यमों और व्यापार से धन लाभ होता है। इसके विपरीत दशमेश के अशुभ स्थान में होने से धन की हानि होती है। महर्षि गर्ग और वराहमिहिर जैसे महान ज्योतिष आचार्यों का मत है कि लग्न और चंद्रमा में जो बलवान हो, उससे दशम भाव से कर्म और मनुष्य की वृत्ति का ज्ञान होता है। महर्षि गर्ग के अनुसार दशम भावगत ग्रह कर्म को सफलता प्रदान करते हैं। यदि यह भाव किसी शुभ ग्रह या उसकी दृष्टि से वंचित हो, तो जातक भाग्यहीन होता है। ज्योतिषाचार्यों का यह भी मत है कि लग्न, चंद्रमा और सूर्य में जो बली हो, उससे दशम भाव द्वारा कर्म की प्रकृति और जातक की वृत्ति का विचार करना चाहिए। लग्न से दशम भाव मनुष्य के दैहिक परिश्रम के द्वारा, चंद्रमा से दशम भाव मनुष्य की मानसिक वृत्ति के द्वारा और सूर्य से दशम भाव उसके आत्मबल द्वारा कर्म की सफलता, उन्नति और आर्थिक संपन्नता का बोध कराते हैं। फलदीपिका के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय उसकी जन्मकुंडली में उस नवांश अधिपति के अनुसार होता है, जिसमें दशमेश स्थित हो। जैसे धनु लग्न की कुंडली में दशमेश बुध मिथुन राशि के 170 19' अंशों में है। मिथुन का छठा नवांश 16040' से 20 अंशों तक है। अतः दशमेश बुध अधिष्ठित मिथुन राशि के छठे नवांश अर्थात् मीन राशि में है। इससे प्रकट होता है कि जातक का व्यवसाय मीन नवांश पति गुरु के अनुसार होगा। इसलिए उस जातक के लिए वेद-पुराण, ज्योतिष और अन्य धार्मिक कार्यों अध्यापन एवं न्याय अधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए श्रेष्ठ सिद्ध होंगे। इसी प्रकार अन्य ग्रहों के गुण-धर्म के अनुरूप आजीविका साधनों की भविष्यवाणी की जा सकती है। किंतु अन्य कारकों का भी ध्यान रखना आवश्यक है। कुंडली का प्रथम भाव और उसका स्वामी जातक के वर्तमान जीवन के प्रतिबिंब हैं। बलवान लग्न-लग्नेश व्यक्ति को स्वस्थ और दीर्घायु, आत्मबली, उत्साही, सामर्थ्यवान, दूरदर्शी और स्थिरबुद्धि बनाते हैं। ऐसे लोगों में तेजोबल और पुरुषार्थ की प्रचुरता होती है, जिनसे विपरीत परिस्थितियों में भी प्रगति के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। ऐसे लोगों के गुण, पद, मान और कर्म उच्च श्रेणी के होते हैं, जिनसे घर-परिवार, नौकरी-व्यापार और समाज में उनका विशेष प्रभुत्व होता है। ऐसे मनुष्यों का लग्नेश द्वितीय, एकादश, केंद्र या त्रिकोण भाव में स्व, उच्च या मित्र राशि में शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर स्थित होता है। इसके विपरीत निर्बल लग्न-लग्नेश जातक में विकृतियां उत्पन्न कर चरित्र, व्यवहार, व्यक्तित्व, भाग्य निर्माण और जीवन की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। किसी व्यक्ति को प्रायः ऐसी ग्रंथियों का आभास नहीं होता और यदि उसे इनका आभास कराया जाए, तो वह उन्हें स्वीकार नहीं करता। ऐसे लोगों में आत्मबल, उत्साह, स्फूर्ति और प्रेरणा का सर्वथा अभाव होता है, जिसके कारण वे विपरीत परिस्थितियों में अधिक देर तक स्थिर नहीं रह सकते। उन्हें अपने चारों ओर भय, दुख, निराशा और हताशा के बादल मंडराते हुए दिखाई देते हैं, जिनके कारण उनका व्यक्तित्व श्रीहीन हो जाता है। ऐसे लोगों का लग्नेश त्रिक भाव अर्थात् 6, 8 या 12 में पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट या पाप ग्रह की राशि में स्थित होकर निर्बल होता है। अतः बलवान लग्न-लग्नेश के लोगों के लिए ही व्यापार उपयुक्त होता है, अन्य के लिए नौकरी। यदि लग्नेश केंद्र या त्रिकोण में हो, शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, किसी शुभ ग्रह के घर में हो और बलवान हो, तो जातक का यश सुदूर देशों तक फैलता है। लग्नेश जिस भाव या जिस भावेश के संग बैठा हो, उसका फल प्रदान करता है। यदि लग्नेश अधिष्ठित भाव पुष्ट हो तो सुख और यदि निर्बल हो, तो उस भाव से संबंधित कष्टों का बोलबाला होता है। लग्नेश नैसर्गिक रूप से चाहे शुभ हो या पापी, वह अधिष्ठित भाव के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है। मेष लग्न की कुंडलियों में लग्नेश मंगल अष्टमेश भी है, फिर भी वह अधिष्ठित भाव की हानि नहीं करता, बल्कि उसकी शुभता को बढ़ाता है। एक तथ्य यह है कि शुभ ग्रहों की उनके शुभ होने मात्र से शुभता नहीं होती और पाप ग्रहों की उनके पापी होने मात्र से अशुभता नहीं होती। लग्नेश चाहे शुभ ग्रह हो या क्रूर, यदि वह षडबल, स्थानबल, कालबल, दिक्बल, चेष्टाबल और दृग्बल में बली हो और शुभ वर्गों में स्थित हो, तो अच्छे फल प्रदान करता है। प्रायः सभी महापुरुषों, व्यापारियों और राजनीतिज्ञों की कुंडलियों में लग्न- लग्नेश बहुत बलवान होते हैं। धीरूभाई अंबानी के लग्न, चंद्र और सूर्य तीनों लग्न बलवान हैं, जिन पर पाप ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं है। उनका जन्म घोर आर्थिक बदहाली में हुआ। उनकी लग्नकुंडली में लग्नेश गुरु दशम भाव में और चलित कुंडली में बहुत बलवान है, इसलिए उन्होंने अपना जीवन शून्य से शुरू करके लग्नेश गुरु की महादशा (मई, 1982 से मई, 1998 तक) में अपार प्रगति की और 1 लाख करोड़ के साम्राज्य की स्थापना करके मारकेश शनि की महादशा में इस संसार से विदा हो गए। धीरू भाई की कुंडली में सूर्य, बुध, बृहस्पति और शनि ये चारों ग्रह बहुत बलवान थे, इसलिए उन्हें अपने कर्म के प्रगति पथ पर असफलताओं का मुख नहीं देखना पड़ा। इसी प्रकार, अमिताभ बच्चन के जीवन में प्रगति का दौर लग्नेश शनि की महादशा ( दिसंबर , 1970 से दिसंबर, 1989 तक) में प्रारंभ होकर यश, धन, संपत्ति, स्त्री, संतान आदि के सुखों के शिखर तक पहुंचा। उनका लग्नेश शनि चतुर्थ भावगत वृष राशि के 19013' अंशों में बहुत बलवान है और सभी पाप प्रभावों से मुक्त है। अनेक ऐसे लोग हैं, जिनकी कुंडलियों में लग्न और लग्नेश बलवान हैं, फिर भी उन्हें अपने जीवन में व्यावसायिक सफलताओं का सुख नहीं मिला। पूर्व जन्म के कुछ सुकर्मों के कारण लग्न और लग्नेश बलवान हो जाते हैं, तो जातक को स्वस्थ देह और दीर्घायु प्रदान करते हैं। इसके विपरीत किसी कुंडली में त्रिकोण भाव निर्बल हो जाते हैं, तो जातक को मनवांछित सफलताओं का सुख नहीं मिल पाता। सर्वविदित है कि कुंडली में त्रिकोण के रूप में नवम भाव सर्वश्रेष्ठ स्थान होता है और गुरु इसका कारक ग्रह है। जब ये दोनों बलवान होते हैं, तो मनुष्य को अल्प परिश्रम से कई गुणा अधिक फल प्राप्त होते हैं। परिश्रम और पुरुषार्थ के साथ यदि भाग्य भी सुंदर हो, तो मनुष्य सफलता की बुलंदियों को अवश्य छूता है। दूसरी ओर नवम भाव और गुरु के पीड़ित होने से कई गुणा अनिष्ट और कष्टकारी फल प्राप्त होते हैं। इसका कारण यह है कि त्रिकोण भाव की निर्बलता से जातक में बौद्धिक चातुर्य, तार्किक शक्ति और दूरदर्शिता का नितांत अभाव हो जाता है, इसलिए ऐसी अवस्था में जातक के द्वारा लिए गए निर्णय समय और कर्म के लिए प्रतिकूल सिद्ध होते हैं। यह भाग्यहीनता की अवस्था है। प्रायः यह कहा जाता है कि मनुष्य साहस के साथ पुरुषार्थ करता रहे, तो उसका भाग्योदय होता ही है। किंतु, जिन व्यक्तियों के केंद्र और त्रिकोण भाव निर्बल होते हैं, उनके समक्ष दुर्भाग्य की स्थिति आती ही है, जिसके कारण उनका परिश्रम और पुरुषार्थ निष्फल होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के दृष्टिकोण से ऐसे मनुष्य कदापि व्यापार की ओर उन्मुख न हों। केंद्र और त्रिकोण भावों का संबंध यदि त्रिक भावों और किसी अन्य पाप ग्रह से हो तो वे निर्बल होते हैं। व्यवसाय-व्यापार का धन से अटूट संबंध है। बिना धन के व्यापार हो ही नहीं सकता। सर्वविदित है कि कुंडली में एकादश भाव धनोपार्जन का और द्वितीय भाव धन समृद्धि का स्थान है। लग्न, द्वितीय और एकादश भावों में शुभ ग्रह तथा इन भावों का आपस में शुभ संबंध अनेक स्रोतों से धन संचय के प्रेरक होते हैं। इन भावों में पाप ग्रहों सूर्य, मंगल, शनि, राहु और केतु में से कोई एक स्थित हो तो वह धन-समृद्धि में बाधक नहीं होता। केवल दो या अधिक पाप ग्रहों का समूह धननाशक होता है। व्यापार प्रायः उन्हीं मनुष्यों के लिए लाभप्रद होता है, जिनकी कुंडलियों में धन भाव बलवान हो अर्थात् उसमें स्थित ग्रह, उस पर दृष्टि डालने वाले ग्रह शुभ या योग कारक हों और धनेश बली अवस्था में हो। अमिताभ बच्चन की कुंभ लग्न की कुंडली में धनेश गुरु षष्ठ भावगत कर्क राशि में है। षष्ठ भाव एक पापी स्थान है, जिसमें केंद्रेश, त्रिकोणेश और धनेश अपना बल खो देते हैं, किंतु इस कुंडली में धनेश उच्च राशि में होने के कारण अपना बल नहीं खोया। इसी प्रकार तुला लग्न की कुंडली में अष्टम भावगत वृष राशिस्थ दशमेश चंद्रमा अपना बल नहीं खोता, बशर्ते उसे कोई पाप ग्रह पीड़ित न करे। लग्न, द्वितीय और एकादश भावों के आपसी शुभ संबंध से जातक अपने परिश्रम और प्रयत्न से धन प्राप्त करता है। यदि किसी भावेश का लग्न या लग्नेश से संबंध हो और साथ ही किसी धनदायक ग्रह जैसे द्वितीयेश, लाभेश, चतुर्थेश, पंचमेश, नवमेश और दशमेश से भी संबंध हो तो जातक को उसी भावकारक से धनोपार्जन में सहायता मिलती है। जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में पंचमेश लग्न भावगत हो या लग्नेश के संग स्थित हो और किसी धनदायक ग्रह से युत या दृष्ट हो, तो वह अपनी संतान की सहायता से धनोपार्जन करेगा। इसी प्रकार सप्तमेश का लग्न या लग्नेश से और साथ ही किसी धनदायक ग्रह से भी संबंध हो तो जीवनसाथी की सहायता से धनोपार्जन करेगा। धीरूभाई की कुंडली में धनेश स्वगृही है और एकादश भाव पर दृिष्ट डाल रहा है। लग्नेश गुरु दशम भाव से धन स्थान और धनेश दोनों को देख रहा है। इस प्रकार लग्न, धन और लाभ स्थानों का संबंध पराक्रम द्वारा प्राप्ति का धन योग स्थापित कर रहा है। अतः उन्हें अपने व्यापार में किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं हुई। इसके अतिरिक्त उनकी कुंडली में अन्य सभी धनदायक ग्रह बलवान हैं, जैसे लग्नेश दशम भाव में, भाग्येश सूर्य लग्न भाव में और पंचमेश मंगल नवम भाव में बहुत बलवान अवस्था में हैं। यह ग्रहयोग उच्च श्रेणी के व्यापार, धन समृद्धि तथा पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर उच्चता का कारक बनकर धीरूभाई को प्रसिद्धि दिलाई। व्यापार के इच्छुक व्यक्तियों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनकी कुंडली में लग्न-लग्नेश, धन स्थान, धनदायक ग्रह और गुरु बलवान हों, पराक्रम से धनार्जन का योग हो अथवा किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से धन प्राप्ति का योग हो। फिर कुंडली एवं अन्य ग्रह योग से जिस व्यवसाय का संकेत मिले, उसे ही आजमाएं।