पीड़ादायक दमा आचार्य अविनाश सिंह द मा को आयुर्वेद में श्वास रोग कहते हैं। शरीर में कफ और वायु दोषों के असंतुलित हो जाने के कारण यह रोग होता है। बढ़ा हुआ कफ फेफड़े में एकत्र होने पर उसकी कार्यक्षमता में बाधा पहुंचती है और सांस के द्वारा लिये गये और छोड़े गये वायु के आवागमन में अवरोध उत्पन्न होता है। बढ़ा हुआ वायु इस कफ को सुख देता है जिससे वह श्वास नली में जम जाता है और सांस की तकलीफ शुरू होती है। तभी रोगी को दमे का भयंकर आक्रमण होता है। इसके अलावा कुछ और भी ऐसे लक्षण हैं, जिन्हें पूर्वरूप कहा जाता है, जैसे छाती में हल्की पीड़ा, पेट में भारीपन, या वायु जम जाना, मुंह का स्वाद बदल जाना और सिर दर्द आदि। कर्ह बार लक्षणों के बिना अकस्मात् ही दमा शुरू हो जाता है। कारण दमा के मुख्यतः तीन कारण हैं: व्याधि, आहार एवं विहार। व्याधि: व्याधि में शरीर में कफ और वायु दोष असंतुलित हो जाते हैं, जिसके कारण दमा होता है। आहार: असंतुलित भोजन करने से भी रोग होता है। तेल या मसालेदार पदार्थों का अतिसेवन, भारी पदार्थ का अपचन, जो कब्ज पैदा करे, रूखा अन्न, बासी, खट्टी चीजें अधिक खाना और असमय खाना, जैसे रात में दही या दूध, केला या फल, सलाद, आइसक्रीम का सेवन एवं शीतल आहार, जैसे फ्रिज का ठंडा पानी, शीत पेय एवं तंबाकू के सेवन आदि से श्वास रोग हो सकता है। विहार: यह आपके रहन-सहन पर निर्भर करता है। हमेशा शीत स्थान में रहना, जैसे वातानुकूलित कार्यालय में काम करना, वातानुकूलित कार्यालय में काम करना, वातानुकूलित कमरे में रहना और बर्फीले स्थान पर सफर करना आदि भी यह बीमारी पैदा करते हैं। धूल या धुंआ इस रोग के विशेष कारण हैं। इस्पात के कारखानों में, भट्टियों के पास, सीमेंट के कारखानों में, रसायन कारखानों में कार्यरत है। इसके अलावा तीव्र वायु में रहना, अधिक व्यायाम करना, वेगावरोध, जैसे मल-मूत्र के वेगों को रोकना, पोषणयुक्त आहार न करना, ये सभी दमा रोग को आमंत्रित करते हैं। घरेलू उपचार स मुलहटी और सुहागा फूल को अच्छी तरह पीस लें और दोनों को बराबर मात्रा में मिला कर एक ग्राम दवा दिन में दो-तीन बार शहद के साथ चाटें, या गर्म पानी के साथ लें। ऐसा करना साधारण दमे में लाभकारी होता है। स सोंठ, छोटी पीपर, सफेद पुनर्नवा, वायविडंग, चित्रक की जड़ की छाल, सत गिलोय, अश्वगंध, बड़ी हरड़ का छिलका, असली विधारा, बहेड़ की छाल, आंवला की छाल और काली मिर्च, सब को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीस कर चूर्ण बना लें। बाद में इन्हें गुड़ की एक तार की चाशनी में मिला कर पांच-पांच ग्राम की गोलियां बना कर सुखा लें। प्रातः काल एक गोली गाय या बकरी के दूध के साथ लें। इससे श्वास दमे में विशेष लाभ होता है। स एक तोला, सोंठ का चूर्ण पचास ग्राम पानी में उबाल कर पकाएं। जब पानी आधा रह जाए, तो उसे छान कर पीने से दमें में लाभ होता है। स सफेद जीरा तीन माशे, छोटी दुद्धी चार माशे, इन दोनों को ढाई ग्राम पानी में पीस कर छान लें। थोडा सा सेंधा नमक भी मिला कर सुबह पीएं। स अडूसे का शरबत (बाजार से मिल जाता है) दो चम्मच भर पानी के साथ लेने पर सांस की नली साफ होती है और सांस लेने में तकलीफ नहीं होती। स तुलसी के पत्तों का रस दो से चार चम्मच दिन में तीन-चार बार पीने से दमे में आराम होता है। तुलसी, काली मिर्च, हरी चाय की पत्ती का काढ़ा भी फायदेमंद होता है। स धाय के फूल, पोस्ता के डोडे, बबूल की छाल, कटेरी अडूसा, छोटी पीपर, सोंठ, इन सबको बराबर मात्रा में ले कर पांच सौ ग्राम पानी में पकाएं। जब पानी आधा रह जाए, तो छान कर पांच माशे शहद के साथ लें। यह दमे में लाभ देता है। स अजवायन, सुहागा, लोंग, काला नमक, सेंधा नमक, सांभर नमक, इन सबको बराबर मात्रा में ले कर मिट्टी की हांडी में डाल कर अच्छी तरह बंद कर दें और फिर गैसों की आग पर चार घंटे तक जलाएं। बाद में ठंडा कर हांडी से भस्म निकाल कर अच्छी तरह पीस कर चूर्ण बना लें। चुटकी भर भस्म शहद में मिला कर चाटें और हल्का गर्म पानी पीएं। अंजीर को कलई किये हुए बत्र्तन में चैबीस घंटे तक पानी में भिगोएं। सुबह अंजीर को उसी पानी में उबाल लें। प्रातः काल प्राणायाम करने के बाद जब श्वास सामान्य हो जाए, तब उबले हुए अंजीर को चबा कर खा लें और वही पानी पी लें। इससे दमा रोग में विशेष लाभ होता है। स दमे का आक्रमण होने पर लहसुन के तेल से रोगी के सोने पर मालिश करें और एक-दो चम्मच हल्दी, एक चम्मच अजवायन पानी में डाल कर उबाल कर पिलाएं। दमे के आक्रमण से जल्द आराम मिलेगा। दमा के ज्योतिषीय कारण ज्योतिष के अनुसार तृतीय एवं चतुर्थ भाव के मध्य का स्थान श्वास प्रणाली का नेतृत्व करता है। तृतीय भाव श्वास नली एवं चतुर्थ भाव फेफड़ों का होता है। श्वास नली एवं फेफड़े आपस में जुड़े रहते हैं और सारा तंत्र श्वास प्रणाली कहलाता है। इसलिए दमा रोग श्वास प्रणाली की गड़बड़ी के कारण होता है। इसलिए तृतीय और चतुर्थ भाव का इस रोग में विशेष महत्व है। तृतीय एवं चतुर्थ भाव के परस्पर मंगल एवं चंद्र कारक ग्रह हैं। मिथुन राशि एवं कर्क राशि भी श्वास प्रणाली का नेतृत्व करती है, जिनके परस्पर स्वामी बुध एवं चंद्र हैं। इसलिए तृतीय भाव, चतुर्थ भाव, मंगल, बुध एवं चंद्र जब जातक की कुंडली में दूषित प्रभावों में रहते हैं, तो दमा रोग होता है। दशा, अंतर्दशा एवं गोचर में जब उपर्युक्त भाव एवं ग्रह प्रभावित होते हैं, उस समय दमा रोग जातक को घेर लेता है। अगर मारकेश भी चल रहा है, तो यह जानलेवा भी हो जाता है। विभिन्न लग्नों में दमा के ज्योतिषीय योग मेष लग्न की कुंडली में मंगल चतुर्थ भाव में हो, शनि लग्न में बुध के साथ सूर्य राहु के साथ द्वादश भाव में हो, तो श्वास प्रणाली में रुकावट पैदा होती है। वृष लग्न की कुंडली में चंद्र-मंगल तृतीय स्थान पर, सूर्य-शुक्र चतुर्थ स्थान में हो, गुरु नवम या दशम भाव में हो तो दमा रोग होता है। मिथुन लग्न की कुंडली में मंगल तृतीय, गुरु नवम, चंद्र-शनि आठवें, बुध छठे या आठवें में रहे, तो जातक को श्वास लेने में काफी कठिनाई होती है। कर्क लग्न की कुंडली में मंगल-शनि छठे, सूर्य-चंद्र तृतीय, बुध चतुर्थ, राहु सप्तम भाव में हों, तो दमा रोग उत्पन्न करते हैं। सिंह लग्न की कुंडली में लग्नेश छठे या आठवें भाव में हो, बुध सप्तम भाव में, राहु बारहवें मंगल के साथ हो और शुक्र अस्त हो, तो जातक को श्वास रोग होता है। कन्या लग्न की कुंडली में बुध-गुरु चतुर्थ भाव में, सूर्य-चंद्र तृतीय भाव में, मंगल नवम, शनि छठे भाव में हों, तो दमा होने का संकेत देते हैं। तुला लग्न की कुंडली में गुरु-शुक्र आठवें, सूर्य नवम, बुध दशम, मंगल तृतीय और चंद्र चतुर्थ भाव में हों, तो श्वास प्रणाली में रोग होता है। जातक सांस लेते हुए खर्राटे मारता है। वृश्चिक लग्न की कुंडली में बुध लग्न में, लग्नेश चतुर्थ में, राहु द्वादश भाव में, शनि-चंद्र छठे भाव में हों तो दमा रोग उत्पन्न करते हैं। धनु लग्न की कुंडली में शनि-बुध लग्न में, सूर्य द्वितीय भाव में, शुक्र तृतीय भाव में, राहु ग्यारहवें में हो, तो श्वास नली में संक्रामक रोग उत्पन्न होते हैं। मकर लग्न की कुंडली में गुरु-मंगल आठवें, शनि ग्यारहवें, चंद्र छठे, सूर्य-शुक्र तृतीय एवं बुध चतुर्थ भाव में हों तो श्वास रोग उत्पन्न करते हैं। कुंभ लग्न की कुंडली में शनि-मंगल छठे, बुध नवम, सूर्य दशम भाव में रहने से दमा रोग होता है। मीन लग्न की कुंडली में सूर्य-बुध तृतीय भाव में शुक्र चतुर्थ, मंगल नवम, गुरु छठे भाव में श्वास प्रणाली में रुकावट पैदा करते हैं। किसी भी लग्न में कई योग रोग उत्पन्न कर सकते हैं, लेकिन यहां प्रत्येक लग्न का एक ही योग बताया गया है।