वस्तु एवं शेयर के कारोबार पर ग्रहों की चाल का असर
वस्तु एवं शेयर के कारोबार पर ग्रहों की चाल का असर

वस्तु एवं शेयर के कारोबार पर ग्रहों की चाल का असर  

व्यूस : 13580 | फ़रवरी 2009
वस्तु एवं शेयर के कारोबार पर ग्रहों की चाल का असर वस्तु बाजार और शेयरों के कारोबार पर भी ग्रह स्थिति का असर होता है। ग्रहों की युति या दृष्टि, योग, उदय, अस्त उनके वक्री या मार्गी होने का शेयर और बाजार पर असर पड़ता है। वारों के अनुसार तेजी-मंदी का ज्ञान स अनुभव के अनुसार वस्तुओं में तेजी-मंदी प्रायः सोमवार और मंगलवार को या शुक्रवार और शनिवार को ही बनती है। स सोमवार को तेजी या मंदी से विपरीत भाव मंगलवार को रहता है। यदि किसी वस्तु पर सोमवार को तेजी रहे तो वह मंगलवार की दोपहर तक ही रहती है। यदि सोमवार को मंदी आए तो वह भी मंगलवार को दोपहर तक रहती है। स मंगलवार को तेजी हो तो वह बुधवार की दोपहर तक रहती है और उसके बाद मंदी आ जाती है। इसी प्रकार यदि मंगलवार को मंदी हो तो प्रायः बुधवार की दोपहर तक रहती है और उसके बाद वस्तु में तेजी आती है। स बुधवार को वस्तु पर मंदी हो तो गुरुवार को तेजी जरूर आएगी। स यदि गुरुवार को तेजी हो तो शुक्रवार दोपहर के बाद मंदी और फिर शनिवार को तेजी होगी। कभी-कभी गुरुवार की तेजी फ्फ्रयूचर पाॅइंट के सौजन्य से’’ शनिवार तक बनी रहती है। स शुक्रवार की तेजी या मंदी कभी भी स्थिर नहीं रहती। स शनिवार को वस्तु पर आई तेजी या मंदी प्रायः मंगलवार की दोपहर तक चलती है। स कभी-कभी शनिवार की तेजी-मंदी अगले शनिवार तक ही समाप्त होती है। शनिवार को यदि किसी वस्तु में उतार-चढ़ाव या तेजी-मंदी दो तरफा चलती है तो उसमें शीघ्र मंदी आ जाती है। स रविवार की तेजी या मंदी सोमवार को प्रायः उलटी दिशा में चलती है। इसके अतिरिक्त यदि रविवार की चली तेजी सोमवार को मंदी न हो तो मंगलवार को बाजार का रुख देखकर ही कार्य करना चाहिए। किसी भी बड़े उद्योग को स्थापित करने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। इतनी बड़ी पूंजी की व्यवस्था करना किसी एक व्यापारी या कंपनी की क्षमता से बाहर होता है। अतः वह व्यापारी या कंपनी उस पूंजी को प्राप्त करने के लिए जनता के पास जाती है। ऐसी स्थिति में कंपनी को पब्लिक लिमिटेड करवाना तथा सरकार से रजिस्टर करवाना पड़ता है। फिर कंपनी शेयर निकालती है। शेयर का अर्थ है हिस्सेदारी। उस शेयर का एक अंकित मूल्य होता है। अंकित मूल्य बाजार में कंपनी के व्यवसाय के अनुसार बढ़ता या घटता रहता है। शेयर की खरीद-बिक्री को ही शेयर का कारोबार कहते हैं। शेयर बाजार में शेयर की तीन स्थितियां होती हैं । स पहली अवस्था में शेयर अपने उच्च स्तर पर होता है। इस स्थिति में मूल्य शीर्ष मूल्य कहलाता है। स शेयर के नीचे के स्तर को गर्त कहते हैं। स जब कंपनी का शेयर संतुलित रहता है तो वह उसकी सामान्य स्थिति होती है। इस स्थिति में मूल्य शेयर का वास्तविक मूल्य होता है। इन स्थितियों के अनुसार शेयर जब निम्न स्तर पर हो तो खरीदना और जब उच्च स्तर पर हो तो बेचना चाहिए। शेयर उस कंपनी का ही खरीदना या बेचना चाहिए जिसकी आर्थिक स्थिति और भावी योजनाएं सुदृढ़ हों तथा उत्पादित माल की बाजार में मांग हो। शेयर हमेशा लिस्टेड कंपनी का ही खरीदना या बेचना चाहिए और हमेशा सक्रिय शेयर का ही चुनाव करना चाहिए। ग्रह और शेयर शेयर बाजार पर ग्रहों का भी प्रभाव होता है। ज्योतिष के जानकार शेयर बाजार तथा वायदा व्यापार में अधिक धन कमाते देखे गये हैं। ज्योतिषियों का मुख्य कार्य पूर्वानुमान लगाना है। वे ग्रह, राशि और भाव के आधार पर ही पूर्वानुमान लगाते हैं। सूर्य: यह ब्रह्मांड का राजा ग्रह है। इसे स्टाॅक एक्सचेंज का कारक भी मानते हैं। जब कभी कोई ग्रह सूर्य के कारण अस्त होता है तो शेयर बाजार का रुख बदल जाता है। यदि बाजार तेजी की ओर चल रहा हो तो मंदी की ओर और यदि मंदी की ओर चल रहा हो तो तेजी की ओर चलने लगता है। अग्नि तत्व राशियों (1, 5, 9) तथा वायु तत्व राशियों (3, 7, 11) में सूर्य बाजार में तेजी लाता है। सूर्य पर जब अशुभ ग्रह मंगल, शनि और राहु का प्रभाव होता है, या वह शत्रु राशि में होता है तो बाजार का रुख तेजी की ओर होता है। इसलिए सूर्य संक्रांति की ग्रह स्थिति को देख कर ज्योतिषी महीने भर के लिए बाजार के रुख का पूर्वानुमान लगाते हैं। सूर्य का किस राशि में गोचर या दृष्टि उस राशि की कारक वस्तुओं में तेजी लाती है। सूर्य का राहु, केतु, हर्षल, नेप्च्यून, प्लूटो, शनि या मंगल के साथ संबंध बाजार के रुख में परिवर्तन लाता है। चंद्रमा: यह पृथ्वी के सबसे निकट तथा शीघ्रगामी ग्रह है। इसलिए इसका प्रभाव भी सबसे अधिक होता है। दैनिक तेजी-मंदी का विचार चंद्रमा से किया जाता है। चंद्रमा का बल उसके पक्ष के अनुसार होता है। चंद्रमा शुक्ल पक्ष एकादशी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक पूर्ण बली तथा शुभ रहता है और कृष्ण पक्ष षष्ठी से अमावस्या तक निर्बल होता जाता है तथा अशुभ कहलाता है। शुक्ल प्रतिपदा से वह बल प्राप्त करना आंरभ करता है और इस पक्ष की पंचमी से दशमी तक मध्यम बली कहलाता है। शुभ चंद्रमा मंदी कारक और अशुभ तेजी कारक होता है। अशुभ चंद्रमा का पाप ग्रहों से संबंध अधिक तेजी लाता है। चंद्रमा के शुक्ल पक्ष में प्रवेश की कुंडली बना कर तेजी-मंदी का अनुमान लगाया जाता है। अग्नि तत्व राशियांे में चंद्रमा का गोचर तेजी का कारक होता है। पीड़ित, शत्रुराशिस्थ तथा पाप मध्य चंद्रमा तेजी कारक होता है। चंद्रमा का सर्वाधिक प्रभाव तरल पदार्थों पर होता है। भरणी, कृत्तिका, आद्र्रा, आश्लेषा तथा मघा नक्षत्रों पर उदय सर्वाधिक तेजी लाता है। मंगल: मंगल अग्नि तत्व ग्रह है, इसलिए तेजी कारक है। जब मंगल अग्नि तत्व या वायु तत्व राशियों में गोचर करता है तो तेजी लाता है। जल तत्व राशियों में अचानक तेजी या मंदी लाता है। उस पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव तेजी लाता है। मंगल जब वक्री होता है तो तेजी लाता है, मार्गी तथा शुभ ग्रहों के प्रभाव में होने पर मंदी लाता है। यदि मंगल उच्च राशि मकर में वक्री हो तो अधिक तेजी लाता है और नीच राशि कर्क में वक्री हो तो अचानक तेजी या मंदी लाता है। बुध: बुध व्यापार, बुद्धि, वाणी और शेयर बाजार का कारक ग्रह है। इसमें तेजी और मंदी दोनों का फल मिलता है। यह शीघ्रगति ग्रह है तथा हमेशा अन्य ग्रहों का प्रभाव देता है। इसलिए शेयर बाजार की जानकारी के लिए बुध का अध्ययन करना अति आवश्यक है। बुध के वक्री होने पर तेजी आती है। यदि वक्री बुध पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो तेजी अधिक होती है। उच्च का बुध वक्री होने पर मंदी कारक और नीच का वक्री होने पर तेजी कारक होता है। बुध के उदय होने पर शेयर बाजार में पहले तेजी फिर मंदी आती है। गुरु: यह एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है, इसलिए मंदी कारक है। इसकी गति मंद होने के कारण यह एक वर्ष के लिए तेजी या मंदी लाता है। अशुभ प्रभाव में बृहस्पति तेजी का कारक बन जाता है। बृहस्पति के वक्री होने पर स्थायी मंदी आती है। सिंह राशि में वक्री होने पर यह तेजी कारक होता है। मित्र राशि, स्वराशि और उच्च राशि में स्थित हो तो लंबे समय तक मंदी लाता है। उच्च का गुरु वक्री होने पर यदि अशुभ प्रभाव में हो तो तेजी कारक अन्यथा मंदी कारक होता है। नीच का गुरु वक्री हो तो तेजी लाता है। शुक्र: शुक्र नैसर्गिक शुभ ग्रह है, इसलिए मंदी कारक है। भोग का कारक ग्रह होने के कारण जातक को शारीरिक सुख-सुविधा का भोग करवाता है अर्थात् इसका शेयर बाजार पर विशेष प्रभाव नहीं देखा गया है। शुक्र किसी भी राशि में अकेला स्थित हो तो मंदी कारक होता है। बुध की राशियों मिथुन और कन्या में स्थित शुक्र तेजी लाता है। इसके वक्री होने पर सामान्यतः मंदी आती है। यह यदि मिथुन या कन्या राशि में वक्री हो तो तेजी आती है। वृष, सिंह, तुला या वृश्चिक राशि में शुक्र मार्गी हो तो तेजी आती है। शुक्र के अस्त होने पर बाजार में तेजी आती है। शनि: शनि नैसर्गिक पापी ग्रह है, इसलिए तेजी कारक है। शनि की गति मंद होने के कारण तेजी या मंदी अधिक समय तक रहती है। शनि का संबंध यदि सूर्य के साथ मेष राशि में हो तो मंदी कारक होता है। सिंह, कन्या, मकर और तुला राशियों में शनि का गोचर तेजी कारक होता है। शनि का वक्री होना तेजी कारक होता है। उच्च का शनि वक्री हो तो चित्रा नक्षत्र में तेजी कारक, स्वाति नक्षत्र में मंदी कारक तथा विशाखा नक्षत्र में पुनः तेजी कारक होता है। शनि का प्रभाव नक्षत्र स्वामी के अनुसार बदलता रहता है। राहु-केतु: राहु-केतु की वक्री गति सामान्य गति मानी जाती है। नैसर्गिक पापी ग्रह होने के कारण ये तेजी कारक ग्रह हैं। इन दोनों का संबंध जब भी पापी ग्रहों के साथ हो तो अधिक तेजी आती है। राहु-केतु की अपनी कोई भी राशि नहीं है। हालांकि कुछ विद्वानों ने राहु की स्वराशि कन्या व उच्च राशि मिथुन तथा केतु की स्वराशि मीन व उच्च राशि धनु मानते हैं। ंतेल और तिलहन की तेजी-मंदीः अन्य ग्रहों का जब चंद्र पर प्रभाव नहीं पड़ता है तब चंद्र के आधार पर रोजाना तेजी मंदी का विचार किया जाता है। चंद्र जब-जब मेष, मिथुन, कर्क, तुला, मकर अथवा कुंभ राशि में भ्रमण करता है, तब-तब तेल बाजार में तेजी आती है और अन्य राशियों में चंद्र के भ्रमण से मंदी आती है। तिलहन में तेजी-मंदी जानने के कुछ उपयोगी सूत्र: स जब अमावस्या वृष, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु अथवा मीन राशि में हो, तब तिलहन बाजार में एक महीना मंदी रहती है। स मेष राशि में चंद्र और मंगल की युति हो अथवा चंद्र से सप्तम भाव में मेष राशि का मंगल हो तब तेजी आती है। स मकर राशि में मंगल उच्चांश में स्थित हो और मेष में चंद्र का भ्रमण हो अथवा चंद्र मंगल की अंशात्मक युति मकर राशि में हो तो तेजी आती है। स चंद्र और मंगल की युति तुला अथवा वृश्चिक राशि में हो, अथवा तुला या वृश्चिक राशि स्थित चंद्र पर मंगल की दृष्टि हो तो बाजार मंदा चलता है। स कुंभ अथवा मीन राशि में चंद्र और मंगल की युति अथवा कुंभ या मकर राशि स्थित चंद्र पर मंगल की दृष्टि होने पर बाजार में मंदी आती है। स कन्या राशि स्थित बुध के साथ चंद्र की युति या दृष्टि होने पर बाजार में मंदी आती है। स कर्क राशि स्थित बुध के साथ चंद्र की युति से बाजार में तेजी आती है। स मेष राशि के बुध से चंद्र की युति होने पर बाजार में तेजी होती है। स किसी भी राशि में गुरु और चंद्र की युति अथवा गुरु पर चंद्र की दृष्टि हमेशा मंदी लाती र्है। स गुरु वृष, वृश्चिक या मीन राशि में हो और चंद्र का भ्रमण धनु या मीन राशि में हो तो बाजार में मंदी आती है। स शुक्र की राशि वृष या तुला में चंद्र-शुक्र की युति होने पर तेजी आती है। स तुला, मकर या कुंभ का शुक्र हो और चंद्र का भ्रमण तुला में हो तब भी बाजार में तेजी आती है। स कर्क राशि में चंद्र-शुक्र की युति होने पर बाजार में भारी तेजी आती है। स किसी भी अग्नि तत्व की राशि में चंद्र-शुक्र की युति होने पर बाजार तेज होता है। स स्वराशि के शनि पर गोचर के चंद्र का भ्रमण बाजार में तेजी लाता है। स शनि और चंद्र का संबंध बाजार में सदा तेजी लाता है। स तिलहन बाजार में शुक्र को तेजी कारक और गुरु को मंदी कारक समझना चाहिए यानी शुक्र के बलवान होने पर तेजी और गुरु के बलवान होने पर मंदी होती है। स शनि का भ्रमण गुरु की राशि में होने पर बाजार तेज होता है। स गोचर में शुक्र का भ्रमण मंगल की तरफ होने पर बाजार में मंदी होती है और यह मंदी शुक्र और मंगल की युति होने तक रहती है। स कन्या अथवा धनु राशि में स्थित मंगल बाजार में तेजी लाता है। स जब-जब गुरु निर्बल होता है तब-तब बाजार में मंदी नहीं आती है। स सूर्य का पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में भ्रमण, बाजार में तेजी और मघा नक्षत्र में मंदी लाता है। स तिलहन बाजार में अरंडी का विशेष स्थान है। स तिलहन यानी तिल, सरसों, अरंडी, मूंगफली, सोया, सूरजमुखी आदि का अधिपति शनि को समझना चाहिए, लेकिन सूर्य का भी तिलहन बाजार में महत्व कम नहीं है। स जब-जब सूर्य अश्विनी, मघा, मूल, कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, रोहिणी, हस्त, श्रवण, पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्र, आश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्र में भ्रमण करेगा तब-तब तिलहन बाजार तेज होगा। इसके विपरीत जब-जब सूर्य का भ्रमण भरणी, पू. फा. पू. आ., मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, आद्रा, स्वाति, शतभिषा, अनुराधा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में होगा, तब-तब बाजार में मंदी आएगी। स शनिवार का चंद्र ग्रहण हो तो तिलहन बाजार में तेजी होगी। स सूर्य-शनि की युति होने पर तिलहन बाजार मंदा होता है। स गुरु और शुक्र की युति से बाजार में अफरा-तफरी होती है। स शनिवार को सूर्य ग्रहण होने पर अरंडी की खरीद करना उत्तम रहेगा क्योंकि ग्रहण से छः महीने पश्चात बाजार में तेजी आती है। स गुरुवार को सूर्य ग्रहण होने पर तिलहन बाजार तेज होगा। रोजाना जरूरत की वस्तुएं एवं राशियां मेष: लोहा, सोना, पीतल, तांबा, मसूर, गेहूं, लाल मिर्च, हर प्रकार के खनिज तेल। वृष: रूई, जूट, सभी प्रकार के तैयार वस्त्र, शेयर, चावल, गेहूं, सभी प्रकार के सूखे मेवे। मिथुन: कपास, ज्वार, मक्का, बाजरा, कागज, घी, सौंफ, जीरा, जायफल, अजवायन आदि। कर्क: चांदी, सेंधा नमक, फिटकरी, हरी सब्जियां, चाय, नारियल, केले, तंबाकू, जायफल, दालचीनी। सिंह: सोना, चावल, चना, चमड़ा, गुड़, चीनी, केसर, अदरक, सोंठ, आलू। कन्या: कुलथी, मटर, ज्वार, सरसों, गेहूं, मूंग, चावल, साधारण फल, कत्था, धनिया, पिस्ता। तुला: उड़द, मटर, सरसों, हर प्रकार के रंगीन वस्त्र, रूई, रेशम, हल्दी, साबूदाना, कोपरा। वृश्चिक: गुड़, शक्कर, लोहा, मैदा, रसायन, चमड़ा, लाख, ऊन, अलसी, मूंगफली, कांगनी, कत्था, पारा, तेजाब, सुपारी। धनु: तेल, लवण, हाथी, घोड़ा, जानवर, हाथी दांत, शेयर, रबर, हल्दी, अस्त्र-शस्त्र, हींग, जावित्री, गंधक, बादाम। मकर: मजीठा, जिमीकंद, सोना, तांबा, कोयला, शीशा, जस्ता, गन्ना, काला तिल, काली सरसों, काली मिर्च, काला नमक, लौंग, दालचीनी, किशमिश, पीपर। कुंभ: कस्तूरी, चिलगोजा, बिजली का सामान, लकड़ी का सामान, अरंडी, मूंगफली, रत्न, सुगंधित पुष्प। मीन: मछली, सीप, मोमबत्ती, सुगंधित द्रव्य, हीरा, मोती, औषधि।



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