भाग्यवृद्धि में वास्तु शास्त्र की प्रबल भूमिका
भाग्यवृद्धि में वास्तु शास्त्र की प्रबल भूमिका

भाग्यवृद्धि में वास्तु शास्त्र की प्रबल भूमिका  

व्यूस : 5346 | फ़रवरी 2009
भाग्य वृद्धि में वास्तु शास्त्र की प्रबल भूमिका प्रश्न : किसी जातक को भाग्यवृद्धि हेतु उपाय वास्तु के अनुसार करने चाहिए या ज्योतिष के आधार पर? आप जो उपाय अधिक कारगर समझते हैं, उसके पक्ष में उचित साक्ष्य एवं कारणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। जीवन में प्रगति एवं भाग्य सुधार के लिए मुखयतः दो विधाओं का सहारा लिया जाता है - ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र। दोनों विधाएं भाग्य में वृद्धि तो कर सकती हैं, उसे बदल नहीं सकतीं। भाग्य को बदलने की शक्ति तो केवल अखिल ब्रह्मांड नायक प्रभु को है। वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र भाग्य को सुधारने में केवल सहायता करते हैं। भारतीय दर्शन एवं ज्योतिष शास्त्र के मत से पूर्व जन्म के कर्म ही वर्तमान जीवन में भाग्य का निर्धारण करते हैं। कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है। उपचार उस कर्म के फल को न्यून या अधिक करता है। उदाहरणार्थ शीत काल में ठंड पड़ती है, लेकिन उससे बचाव के लिए हम गर्म कपड़े एवं रूई की रजाई बनाते हैं। वैसे ही, वास्तु शास्त्र मनुष्य को उन्नति, सुख आदि की प्राप्ति का रास्ता दिखाता है, किंतु इसके लिए प्रकृति के नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। मानव के जीवन में दोनों का प्रभाव रहता है। दोनों के अनुकूल होने पर जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। दोनों प्रतिकूल हों, तो जीवन कष्टमय होता है। ऐसे में एक कष्ट समाप्त होता है तो दूसरा उभरकर सामने आ जाता है। एक अनुकूल और दूसरा प्रतिकूल हो तो भी जीवन संघर्षमय ही बना रहता है। वास्तु शास्त्र उच्चकोटि का विज्ञान है जो प्रकृति के नियमों पर आधारित है। यह जल, वायु, अग्नि, आकाश एवं भूमि में संतुलन रखने का आदेश देता है। वास्तु शास्त्र प्रत्यक्ष शास्त्र है जिसके सिद्धांतों का पालन करने पर लाभ मिलने की संभावना प्रबल रहती है। ज्योतिष शास्त्र परोक्ष शास्त्र है, जिसके अनुसार फलकथन करने के लिए गणना की सहायता ली जाती है। ज्योतिष शास्त्र एक जटिल शास्त्र है। इसके अनुसार फलकथन करने के लिए 27 नक्षत्रों, बारह राशियों, बारह लग्नों, षष्ठ वर्ग, अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म दशा आदि का ज्ञान आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त इसमें गोचर का ध्यान रखना पड़ता है। साथ ही अनुभव एवं देव शक्ति का संबल लेना पड़ता है। उसके बाद उपचार करना पड़ता है। उपचार के विभिन्न साधन हैं यथा यंत्र, मंत्र, तंत्र, रत्न आदि। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव से गुरुत्वाकर्षण शक्ति प्राप्त होती है जो मानव मस्तिष्क को जाग्रत रखने में सहायता करती है। पूर्व दिशा से सौर ऊर्जा का आगमन होता है जो मनुष्य को शक्तिमान बनाती है। पूर्व-उत्तर दिशा से खगोलीय ऊर्जा अर्थात् प्राण ऊर्जा प्राप्त होती है जिसके कारण मानव स्वयं को क्रियाशील अनुभव करता है। वास्तु शास्त्र के नियमों को अपनाना ज्योतिष शास्त्र की तुलना में सरल है। लेकिन वास्तु नियमों को भी विभिन्न चरणों में अपनाना पड़ता है जैसे भूमि का चयन, गृह निर्माण का मुहूर्त, गृह प्रवेश का मुहूर्त, मुखय द्वार की शुभता और अशुभता, दिशाओं की विशेषताएं आदि। इनके अतिरिक्त इन बातों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पूजा घर, शयन कक्ष, स्नान गृह, शौचालय आदि कहां हों, सीढ़ियां किस दिशा में हों, किस तरफ घुमाव हो, भवन में रंगों की व्यवस्था कैसी हो आदि। यह निर्विवाद है कि ज्योतिष और वास्तु का संबंध गहरा है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तथ्य यहां प्रस्तुत कुछ उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है। श्री सरयू शरण मिश्र (कुंडली नं. 1) एक साधारण व्यक्ति हैं। उनका लग्न वृश्चिक है। लग्न में शनि और सूर्य हैं। द्वितीय भाव में बुध, तृतीय में शुक्र, पंचम में चंद्र, षष्ठ में केतु और द्वादश में मंगल, गुरु एवं राहु हैं। श्री शर्मा सूर्य की महादशा में बुध-केतु-शुक्र की अंतर्दशा से परेशान हैं। बच्चों की बीमारी के कारण कर्ज में आ गए। इनके घर में भी दोष था। एक दरवाजा उत्तर की ओर था जो साधारण था। दूसरा दरवाजा र्नैत्य कोण तथा शौचालय ईशान कोण में था। एक ज्योतिषी की सलाह से उन्होंने मोती तथा पुखराज धारण किए जिससे आय बढ़ गई, लेकिन रोग एवं ऋण की शिकायत बनी रही। पुनः उन्होंने वास्तु शास्त्री से संपर्क किया। उनकी राय से उन्होंने र्नैत्य कोण वाला दरवाजा बंद कर दिया एवं शौचालय वायव्य कोण में ले गए। अब उन्हें ऋण से बहुत हद तक मुक्ति मिल चुकी है और बच्चों के स्वास्थ्य में भी काफी सुधार हुआ है। श्री सीताराम अग्रवाल (कुंडली नं. 2) पटना के निवासी हैं। उनकी कुंडली वृष लग्न की है। लग्न में सूर्य, चंद्र एवं बुध हैं। पंचम भाव में गुरु एवं केतु हैं। सप्तम में स्वगृही मंगल, एकादश में राहु एवं व्यय भाव में शनि और शुक्र हैं। सूर्य की महादशा में गृह निर्माण कर गृह प्रवेश किया। किराए के घर में सुख-शांति से रह रहे थे, लेकिन अपने घर में आने पर अशांति एवं परेशानी का अनुभव किया। इनके दरवाजे के सामने शीशम का वृक्ष था। सीढ़ियों के नीचे स्टोर रूम बना रखा था। एक वास्तुशास्त्री से राय लेकर उक्त वृक्ष को कटवा दिया। साथ ही स्टोर रूम को दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थानांतरित कर दिया। परिवर्तन करने के बाद स्थिति समान्य हो गई। वास्तु शास्त्र के नियमों के पालन से तत्काल लाभ मिला और सारे परिवार को शांति मिली। एक और उदाहरण उड़ीसा के एक जमींदार व्यक्ति का है। इनका घर शहर में है। घर वास्तु शास्त्र के अनुसार बना था। ईशान कोण में कुआं एवं हनुमान जी का स्थान था। मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण दिशा में है। स्टोर दक्षिण-पश्चिम कोण में था अतिथि कक्ष वायव्य कोण में स्थित था। घर की लंबाई चौड़ाई-बराबर थी। सामान्यतः परिवार के लोगों का समय सुखपूर्वक बीतता रहा, पर इधर कुछ वर्षों से परेशानी आन पड़ी। जातक ने वास्तु शास्त्री से परामर्श किया। उन्होंने कहा कि घर की आयु समाप्त हो गई है, इसे दैविक अनुष्ठान से पुनः जीवित किया जाए। गृह स्वामी ने वैसा ही किया, फिर भी शांति नहीं मिली। ज्योतिषी से संपर्क किया। अपने परिवार के सदस्यों की कुंडलियां दिखाईं तो पता चला कि प्रायः हर सदस्य पर षष्ठेश एवं सप्तमेश की दशा और अंतर्दशा चल रही है। इसके लिए सामूहिक शांति कराई गई। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वास्तु की स्थिति अच्छी होने पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव पर पड़ता है। मुंबई में एक व्यक्ति चंद्रशेखर शर्मा हैं। तेजतर्रार व्यक्ति हैं। इन्होंने जमीन खरीदकर वास्तुसम्मत घर बनाया। नए घर में आए तो अशांति बढ़ने लगी जबकि किराए के घर में स्थिति अच्छी थी। वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष के जानकारों से सलाह की, पर कारण पता नहीं चला। बहुत सोचने-समझने के बाद जातक भूस्वामी के पास गया। जमीन का इतिहास पूछा तो पता चला कि उक्त स्थान पर पहले श्मशान था। बाद में जमीन को खोदा गया और नीचे से मानव तथा पशु की हडि्डयां निकाली गईं। फिर वास्तु शांति कराई गई, तब जाकर सुख-शांति लौटी। एक विशेष उदाहरण फ्यूचर समाचार गत वर्ष के जुलाई अंक में प्रकाशित आरुषि हत्याकांड से संबद्ध है। स्तंभ लेखिका श्रीमती आभा बंसल जी ने आरुषि, नूपुर और राजेश तलवार की जन्मपत्रियों में प्रतिकूल दशा और प्रतिकूल गोचर के कारण परिवार को हुई भारी क्षति का विश्लेषण किया था। तीनों जन्मकुंडलियों में गुरु की स्थिति भी अत्यंत कमजोर थी। श्री कुलदीप सलूजा ने भी उक्त पत्रिका के गत वर्ष के सितंबर अंक में राजेश तलवार के घर के वास्तु विश्लेषण में र्नैत्य कोण के दोषपूर्ण होने की बात कही थी। साथ ही अन्य दोषों का विवरण भी दिया था। कहने का अर्थ यह है कि समय रहते ज्योतिषीय एवं वास्तु सम्मत उपाय किए जाते तो संभव था कि तलवार परिवार का संकट टल जाता। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ज्योतिष के अनुरूप भाग्यवृद्धि के उपाय करने में ज्योतिष के नियमों की जटिलता आड़े आती है, लेकिन वास्तुसम्मत उपाय शीघ्र प्रभावी होते हैं। किंतु उचित यह है कि अधिक जटिल समस्याओं के समाधान के प्रभावशाली उपाय के लिए दोनों ही विधाओं का सहारा लेना चाहिए।



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