शेयर बाजार में लाभ-हानि का आकलन (प्रश्न-विचार) श्री मोहन सा रे संसार की गतिविधि नक्षत्रों और ग्रहों के अधीन है। जीवन, मृत्यु, लाभ, हानि आदि सब पर ग्रहों का नियंत्रण है, सब उनसे प्रभावित हैं। ज्योतिष की विभिन्न विधाओं में एक है प्रश्नकुंडली जिसके द्वारा लाभ, हानि एवं शेयर बाजार से जुड़े विभिन्न प्रश्नों का सही उत्तर जाना जा सकता है। लग्नेश, कार्येश तथा चंद्र का विचार करके सामान्य शुभ योगों की स्थिति देखकर ऐसे प्रश्नों का फलादेश किया जा सकता है। लाभ या हानि जानने के लिए पंचम, अष्टम, दशम तथा एकादश भावों का विश्लेषण अवश्य करना चाहिए। उक्त भावों में पक्षबली चंद्र, शुक्र और बुध पर पाप ग्रह की दृष्टि लाभ के संकेत देती है। इन पर शुभ ग्रह गुरु की दृष्टि विशेष लाभदायक नहीं होती है। लाभ होगा या नहीं यह जानने के लिए लग्नेश तथा लाभेश की स्थिति का विश्लेषण करना चाहिाए। दोनों का संबंध और योग लाभ का सूचक होता है। बाजार के ग्राफ को उठाने का तात्कालिक कारक द्वितीयेश होता है, अतः शेयर के क्रय-विक्रय में लाभ होगा या नहीं यह जानने के लिए द्वितीयेश की स्थिति का विचार करना चाहिए। द्वितीयेश व लग्नेश का संबंध व चंद्र का प्रभाव या चंद्र का लग्नेश के साथ अथवा द्वितीय भाव में होना लाभदायक होता है। घाटे की स्थिति का विचार करने के लिए अष्टम और द्वादश भावों तथा अष्टमेश व द्वादशेश की स्थिति का विश्लेषण आवश्यक होता है। अष्टम व द्वादश भाव हानि के भाव हैं। अष्टम या द्वादश भाव में शुभ ग्रह अथवा अष्टमेश व द्वादशेश हों या उनमें स्थान परिवर्तन हो तो हानि का योग होता है। क्षति पूर्ति के योग में चंद्र की भूमिका निर्णायक होती है। कुंडली में चंद्र की लग्नेश व कार्येश से जितनी निकटता होगी, क्षतिपूर्ति उतनी अधिक मात्रा में होगी। किसी तरह का अचानक लाभ मिलने में नवम भाव की भूमिका अहम होती है। अतः इस पर विचार करने के लिए उक्त भाव का विश्लेषण करना चाहिए, क्योंकि अचानक लाभ में भाग्य का बराबर का हाथ होता है। नवम भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि व शुभ योग नवम (भाग्य) भाव को बल प्रदान करते हैं। लग्न में बलवान बुध पर चंद्र या कोई पाप ग्रह दृष्टि डाले तो अचानक लाभ होता है। लग्न के साथ-साथ नवम भाव पर भी शुभ प्रभाव हो, तो अच्छा लाभ मिलता है। यदि लग्न या लग्नेश पर पाप दृष्टि हो तो लाभ तो होगा, पर शारीरिक कष्ट भी हो सकता है। डूबा धन मिलेगा या नहीं, यह जानने के लिए लग्नेश, धनेश व चंद्र की स्थिति का अध्ययन करना चाहिए। तीनों का शुभ योग धन मिलने की संभावना को बढ़ाता है। चतुर्थ भाव से आगे चंद्र व सूर्य हों तो धन कठिनता से वापस मिलता है। उक्त योगों के साथ-साथ शुभ मुहूर्त व नक्षत्रों का विश्लेषण भी करना चाहिए। मंगलवार को दिया गया ऋण शीघ्रता से वापस नहीं आता है। क्रय-विक्रय में तीनों पूर्वा, विशाखा, कृत्तिका, आश्लेषा और भरणी (कुंभ लग्न, रिक्ता तिथि, मंगलवार) वर्जित हैं। अतः क्रय-विक्रय हमेशा शुभ चंद्र के योग में करना चाहिए।