असामयिक मृत्यु
असामयिक मृत्यु

असामयिक मृत्यु  

व्यूस : 8843 | फ़रवरी 2009
असामयिक मृत्यु विक्रम मावी ब ह्मांड में विचरण करने वाले विभिन्न ग्रह जातक के अन्य पक्षों के अलावा आयु पक्ष को भी प्रभावित करते हैं। इन्हीं के प्रभाववश वह विभिन्न रोगों, दुर्घटनाओं का शिकार होता है, उसकी हत्या या असामयिक मृत्यु होती है या फिर वह आत्महत्या करता है। ज्योतिष के सिद्धांतों का सूक्ष्मता से विश्लेषण कर आसानी से पता लगाया जा सकता है कि कोई जातक किस ग्रह से दुष्प्रभावित हो सकता है। किसी व्यक्ति की आयु दीर्घ होगी अथवा अल्प, इस पर विचार करने से पूर्व उसके आयु चक्र पर विचार करना चाहिए। तदुपरांत कुंडली में लग्नेश और भाग्येश के बलाबल तथा सप्तमेश, अष्टमेश व द्वितीयेश की स्थिति और शुभाशुभ प्रभाव का सूक्ष्मता से अवलोकन करना चाहिए। लग्नानुसार कारक-अकारक ग्रहों की कुंडली में स्थिति का विश्लेषण परमावश्यक है। तात्पर्य यह है कि केवल आयु चक्र के अनुसार यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि जातक अल्पायु, मध्यायु या दीर्घायु होगा। कभी-कभी व्यक्ति के जीवन में कुछ घटनाएं समय पूर्व घट जाती हैं। उदाहरण के लिए स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की कुंडली में आयु चक्र के अनुसार दीर्घायु योग है। लग्नेश चंद्र मकर में और अष्टमेश शनि कर्क में है। उक्त दोनों ही राशियां चर हैं। यह एक दीर्घायु योग है, परंतु 100 वर्ष की आयु श्रीमती गांधी नहीं भोग पाईं। श्रीमती गांधी का लग्न कर्क है। बुध, शुक्र व शनि अकारक ग्रह हैं। कुंडली में सप्तमस्थ (मारक भावस्थ) लग्नेश चंद्र स्वयं सप्तमेश और अष्टमेश से पीड़ित है। शनि की दृष्टि पराक्रम, सप्तम व दशम भावों पर अशुभ प्रभाव डाल रही है। एकादश भाव में शत्रु राशि में भाग्येश बृहस्पति की स्थिति व षष्ठ भाव में गुरु की राशि में सुखेश शुक्र की स्थिति होना तथा राहु से उसका पीड़ित होना- ये सारे योग विशेष शुभप्रद नहीं कहे जा सकते। द्वितीय व द्वादश भाव जन्म काल से ही शनि के प्रभाव (साढ़ेसाती का प्रभाव) में थे। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि द्वितीय भाव सप्तम से अष्टम है। द्वितीय भावस्थ मंगल के कारण उनकी वाणी में उग्रता थी और कोई निर्णय लेने में वह जल्दबाजी करती थीं। भाग्येश की निर्बल स्थिति, उग्र मंगल का भाग्य भाव पर प्रभाव तथा अष्टम भाव पर (शत्रु भाव) दृष्टि, भाग्य भाव पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव न होना इन सारे योगों के कारण स्व. श्रीमती गांधी के शत्रुओं को बल मिला। पंचम भाव में व्ययेश बुध के साथ स्थित सूर्य संतान के लिए कष्टकारक रहा। इस प्रकार, कुछ महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत संदर्भ में निम्नानुसार उभर कर सामने आते हैं। सप्तमेश-अष्टमेश शनि लग्नानुसार अकारक लग्न में स्थित है। लग्न, पराक्रम, कर्म भावों पर शनि का स्पष्ट दुष्प्रभाव है। स्वयं लग्नेश सप्तम (मारक) भावस्थ होकर शनि से पीड़ित है। एकादश भाव (स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भाव) में शत्रु राशिस्थ षष्ठेश-भाग्येश गुरु द्वादशेश अकारक बुध से दृष्ट है। भाग्येश की स्थिति अन्य मामलों में उŸाम, परंतु स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ नहीं है। गोचरीय स्थिति (जन्मकालीन) के अनुसार मिथुन व सिंह राशियों पर शनि का प्रभाव था। इस तरह मंगल और शनि का मिश्रित प्रभाव उथल-पुथल कारक रहा। द्वितीयेश मंगल अग्नि तत्व ग्रह और राशि में है तथा शनि लौहकारक है, अतः बदूंक से निकली धातु (गोली) घातक साबित हुई। लग्नानुसार अकारक ग्रह की राशि मिथुन में स्थित केतु अकारक शुक्र से दृष्ट है। नेपाल के दिवंगत नरेश की कुंडली में लग्न में शत्रु ग्रह बृहस्पति स्थित है। अकारक सूर्य एकादश पर कुप्रभाव डाल रहा है। स्वराशिस्थ मारक मंगल दशम,लग्न एवं द्वितीय भावों पर कुप्रभाव डाल रहा है। शनि और मंगल की संयुक्त दृष्टि क्रमशः शत्रु राशि, नीच राशि और दशम भाव पर है। इस तरह नरेश की हत्या में शनि और मंगल की भूमिका अहम रही। स्व. इंदिरा गांधी की कुंडली की तरह ही उनकी कुंडली में भी शनि की कर्क में स्थिति, युति तथा शत्रु राशि पर मंगल की दृष्टि अरिष्टकारक रही। इन ग्रह योगों के अतिरिक्त षष्ठ भावस्थ राहु लग्न के शत्रु ग्रह की राशि में और केतु द्वादश भाव में स्थित है। राशि पर दृष्टि डालना, अष्टम भावस्थ कर्मेश चंद्र और दशम भाव पर जन्मकालिन साढ़ेसाती का प्रभाव है। मंगल और शनि की एक दूसरे पर दृष्टि भी अरिष्टकारक रही। सर्वज्ञात है कि अंतिम क्षणों में प्रभु ईसा को सलीब पर टांग कर उनके हाथों और पैरों में कीलें (लौह तत्व) ठुकवा दी गई थीं। ऊपर वर्णित तीनों कुंडलियों के जातकों की हत्या हुई। मंगल रक्तवर्ण, रक्त और शस्त्र का कारक (क्रूर ग्रह) है। आंशिक कुप्रभाव लिए मंगल और शनि का आपसी टकराव, लग्न पर लग्नानुसार अरिष्टकारक ग्रहों की स्थिति-दृष्टि, लग्नेश की बलहीनता ये सारे योग असामयिक मृत्यु के कारण बने। ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वर्णित तीनों कुंडलियों पर शनि का कुप्रभाव है। तात्पर्य यह है कि यदि मंगल और शनि जैसे ग्रह लग्न, तृतीय भाव अथवा भावेश को अकारक बन कर पीड़ित करें तो जातक, सहोदर, मित्र आदि की असामायिक मृत्यु के कारण बनते हैं। प्रायः ऐसे जातक शस्त्राघात से पीड़ित होते हैं। लग्न से अष्टम भाव आयु का भाव होता है। आयु भाव से द्वादश अर्थात् सप्तम भाव आयु का व्यय भाव कराता है। तदुपरांत अष्टम से अष्टम अर्थात् तृतीय भाव भी आयु का भाव होता है। तृतीय से द्वादश अर्थात् द्वितीय भाव भी तृतीय का व्यय भाव हुआ। इस प्रकार द्वितीय व सप्तम भाव मृत्यु के भाव हुए। इसीलिए इन दोनों भावों के स्वामी मारकेश होते हैं। कुंडली क्रमांक 1 में स्थितिवश मारक बने मंगल पर शनि का प्रभाव है। मारकेश का प्रभाव स्पष्ट है। तृतीय भाव पर भी मारक ग्रह का प्रभाव है। स्वयं तृतीय मारक ग्रह द्वितीयेश सूर्य के कुप्रभाव में है। अकारक राहु की नवम दृष्टि मंगल के अकारकत्व को बढ़ा रही है। अन्य कुंडलियों में भी इसी प्रकार के आंशिक योग हैं। मारकेश यदि मारक भाव में ही हो तो प्रबल मारकेश हो सकता है। कुंडली 2 में सप्तम भावस्थ मारकेश (सप्तमेश) मंगल दशम भाव नीच राशि, लग्न और द्वितीय भाव पर क्रूर दृष्टि डाल रहा है। पराक्रमेश, भाग्येश, कर्मेश, एकादशेश सभी ग्रह मंगल की क्रूरता के शिकार हैं। पुनः राहु (अकारक) की पंचम-नवम दृष्टि भी प्रभावी है। राहु गुप्त षड्यंत्र का कारक साबित हो रहा है। गुरु व शुक्र केंद्र के स्वामी होकर द्वितीय अथवा सप्तम भावस्थ हों तो प्रबल मारकेश हो सकते हैं। ज्योतिष के सिद्धांतानुसार मारकेश गणना में गुरु, शुक्र और बुध विशिष्ट स्थितियों में प्रबल क्रमशः मारकेश हो सकते हैं। सूर्य और चंद्र इस श्रेणी में नहीं आते, परंतु मारकेश को शुभता प्रदान करने में सक्षम होते हैं या पूर्णतः निर्दोष होते हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यदि शनि मारकेश हो अर्थात् द्वितीय अथवा सप्तम का स्वामी हो तो प्रबल है। कुंडली 1 में पुनः यह तथ्य उजागर होता है। लग्नेश द्वितीयेश शनि सप्तमस्थ है और लग्न पर दृष्टिपात कर रहा है। सप्तमेश चंद्र अष्टमस्थ है। द्वितीयेश शनि का चतुर्थ भाव (नीच राशि) पर ही प्रभाव है। इसी शनि पर द्वादशस्थ मंगल का कुप्रभाव (नीच राशि) स्पष्ट है। पुनः षष्ठ, सप्तम और अष्टम भावों पर शनि की साढ़ेसाती है। लग्नानुसार चंद्र, मंगल, बुध और गुरु अकारक तथा सूर्य तटस्थ है। दशम भाव में गुरु की स्थिति तथा राहु स्थित पंचम भाव पर षष्ठेश व अष्टमेश की दृष्टि है। पुनः लग्न तथा पराक्रम भाव पर कोई शुभ प्रभाव नहीं है। स्वयं चंद्र द्वितीय भाव को बल प्रदान कर रहा है। सर्वज्ञात है कि स्वर्गीय श्री संजय गांधी की मृत्यु एक वायुयान दुर्घटना में हुई थी। पुनः धातु व अग्नि का प्रकोप मंगल का शनि पर कुप्रभाव स्पष्ट करता है। वायु तत्व राशि तुला में बैठ कर द्वादशेश गुरु ने द्वितीय भाव पर कुप्रभाव को बढ़ा दिया। दूसरी तरफ, राष्ट्रपति महात्मा गांधी की कुंडली में सप्तमेश मंगल शत्रु राशि में लग्नस्थ है। शनि का प्रभाव मंगल की राशि चतुर्थ भाव अष्टम तथा एकादश पर है। द्वितीय भावस्थ शनि कुछ अशुभता लिए हुए है। तृतीयेश मारकेश के प्रभाव में है। शुक्र की स्थिति श्रेष्ठ है, परंतु द्वादशेश की स्थिति अच्छी नहीं थी। शत्रुक्षेत्री मंगल (पापी) के प्रभाववश बांधवों के कारण बापू को कष्ट उठाना पड़ा और आग्नेयास्त्र मृत्यु का कारण बना। ज्योतिष के सिद्धांतानुसार शुक्र लग्नेश होने के क ा र ण् ा अष्टमेश दोष से मुक्त होता है। लग्नेश की निर्बल स्थिति आयु के लिए घातक हो सकती है। शुक्र अथवा लग्न (तुला) मंगल अथवा केतु के दुष्प्रभाव में हो तो गोली लगने अथवा आग से मृत्यु होने की संभावना रहती है। उपरोक्त कुंडली में ऐसा स्पष्ट योग मंगल के फलस्वरूप दिखाई पड़ रहा है। षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादशेश अकारक होते हंै। दुर्भाग्य से यदि मारकेश की तीसरी, पांचवीं अथवा सातवीं दशा हो तो विशेष प्राण घातक साबित हो सकती है। यदि महादशा, अंतर्दशा तथा प्रत्यंतर दशा तीनों ही मारक और क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हों, अनिष्ट निवारक ग्रह निर्बल हांे, अंतर्दशानाथ शुभ, परंतु प्रत्यंतर दशानाथ अनिष्टकारक ग्रह हो तो अनिष्ट की संभावना प्रबल होती है। नक्षत्र ज्योतिष के अनुसार विपत, प्रत्यरि और वध नक्षत्रों के स्वामियों की अंर्तदशा कष्टदायक हो सकती है, जन्म नक्षत्र से पांचवां, तीसरा व सातवां नक्षत्र क्रमशः प्रत्यरि, विपत तथा वध नक्षत्र होता है। अष्टमेश भाव 6, 8 या 12 में हो तो संभव है, उसकी दशा अनिष्टकारक हो। इस प्रकार उपरोक्त स्थितियां असमायिक मृत्यु का कारण बनती हैं।



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