शिशिर ऋतु और बसंत पंचमी पं. सुनील जोशी जुन्नरकर 14 जनवरी, मकर संक्रांति के बाद शिशिर ऋतु के रहते 31 जनवरी, माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी पूरे भारत में श्रद्धापूर्वक मनाई जाएगी। प्रश्न यह उठता है कि बसंत ऋतु के दो माह पूर्व ही बसंत पंचमी क्यों मना ली जाती है? यह कैसी विसंगति है? लेकिन वास्तव में यह विसंगति नहीं है। माघ का कृष्णपक्ष परम शीतकाल होता है, किंतु माघ अमावस्या के बाद सर्दी कुछ कम हो जाती है और बासंती बयार चलने लगती है। ऋतुराज बसंत के संबंध में महर्षि घेरंड ने घेरंड संहिता में लिखा है - अनुभावं प्रवक्ष्यामि ऋतुनां च मयोदिताम्। माघादि माघवान्तेषु वसन्तानुभवस्तथा॥ माघ से वैशाख तक बसंत का अनुभव होता है। इसे मधुमास कहते हैं और इसका वातावरण मोदमय रहता है। बहुत पहले सूर्य की मकर राशि में होने पर कड़ाके की ठंड पड़ा करती थी, इसलिए इस समय को पंचांगों में परमशीत काल लिखा जाता था, किंतु अब प्रकृति ने अपना रूप बदल लिया है। महर्षि घेरंड ने इसे पहले ही भांप लिया था। वैज्ञानिक कहते हैं कि ओजोन परत में छेद हो जाने के कारण तापमान में वृद्धि हुई है। अब माघ माह में मकर संक्रांति के बाद शीत का प्रकोप कम रहता है और बसंत का खुशनुमा मौसम महसूस होने लगता है। इसे हम बोलचाल की भाषा में गुलाबी सर्दी कहते हैं। यह समय ऋतुराज बसंत के आगमन की पूर्व सूचना देता है, इसलिए माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाना असंगत नहीं, पूर्ण युक्तिसंगत है। वागीश्वरी का आविर्भाव बसंत पंचमी श्री सरस्वती जयंती के रूप में मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती जी का आविर्भाव हुआ था। उनके जन्म की कथा कुछ इस प्रकार है। भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी सृष्टि रचना करके जब पृथ्वी पर आए, तो उन्हें चारों ओर उदासी सी दिखाई दी। इस नीरवता को दूर करने के लिए प्रजापति ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल लेकर चारों ओर छिड़क दिया। उन जलकणों के वृक्षों पर पड़ते ही एक देवी प्रकट हुई। यह चतुर्भुजा देवी दो हाथों से वीणा पकड़े हुई थी तथा शेष दो हाथों में वेद और अक्षमाला धारण किए थी। ब्रह्माजी ने उस देवी से वीणा बजाकर उदासी दूर करने को कहा। उसने वीणा बजाकर सब जीवों को वाणी प्रदान की। सप्त स्वरों को झंकृत करने वाली इस देवी का नाम उन्होंने सरस्वती रखा। जगत को वाणी प्रदान करने के कारण वह वागीश्वरी कहलाईं। श्री सरस्वती ध्यान स्वरूप जो विद्या की देवी कुंद के फूल, शरद पूर्णिमा के चंद्र, हिमकणों और मोतियों के हार की तरह धवल वर्ण की हैं, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथों में वीणा शोभायमान है, जिनका आसन श्वेत कमल है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य देवतागण जिनकी सदैव वंदना करते हैं और जो जड़ता तथा अज्ञान का शमन करती हैं, वह भगवती सरस्वती हमारी रक्षा करें। सरस्वती वंदना इस प्रकार करें- शुक्ल वर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त, आदि शक्ति परब्रह्म के विषय में किए जाने वाले विचार एवं चिंतन के सार रूप, परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली, शुभ बुद्धि प्रदान करने वाली, पद्मासन पर विराजमान सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत भगवती शारदा की मैं वंदना करता हूं, वह हमें सात्विक बुद्धि से संपन्न करें। अध्ययन प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त माघस्य शुक्लपंचमी विद्यारंभ दिनेऽपि च। पूर्वेऽहि संयम कृत्वा तत्राहि संयतः शुचिः॥ प्राचीन काल में बसंत पंचमी से वेदाध्ययन प्रारंभ किया जाता था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी विद्यारंभ करने का दिन है। बसंत पंचमी के दिन बालक का उपनयन संस्कार करके सरस्वती पूजन के पश्चात् अक्षरांरभ कराना चाहिए। भगवती सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए विद्यार्थियों को उनका व्रत एवं पूजन अवश्य ही करना चाहिए। विद्यार्थी, शिक्षक, कलाकार, साहित्यकार, ज्योतिषी आदि सभी उनकी कृपा के अभिलाषी रहते हैं। महर्षि वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, शौनक आदि ऋषि-मुनि माता सरस्वती की कृपा से ही यशस्वी हुए हैं। शास्त्रों में देवी सरस्वती का द्वादश नाम स्तोत्र प्रसिद्ध है। उनकी स्तुति इन नामों से नित्य करनी चाहिए - भारती, सरस्वती, शारदा, हंसवाहिनी, जगतखयाति, वागीश्वरी, कुमुदी, ब्रह्मचारिणी, बुद्धिदात्री, वरदायिनी, चंद्रकांता और भुवनेश्वरी। इन बारह नामों की स्तुति के साथ जो संध्यावंदन करता है, ब्रह्मस्वरूपा सरस्वती उसकी जिह्ना पर विराजमान हो जाती हैं। मां सरस्वती का पूजन पीले या केसरिया वस्त्र पहनकर किया जाता है। केसर, पलाश या सरसों के फूलों से उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की जाती है और मीठे केसरिया भात (चावल) का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। सरस्वती नदियों में श्रेष्ठ है तथा तीनों देवियों में भी सरस्वती श्रेष्ठ हैं। सरस्वती नदी पापहारिणी पवित्रकारिणी है और रसस्वती देवी विद्या-विवेक की दात्री हैं। वह हमें ज्ञान का प्रकाश और धन-संपत्ति प्रदान करती हैं।