विज्ञान से अधिक जानता है ज्योतिष विज्ञान
विज्ञान से अधिक जानता है ज्योतिष विज्ञान

विज्ञान से अधिक जानता है ज्योतिष विज्ञान  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 3621 | अप्रैल 2006

द्रमा पर मानव के चरण पड़ चुके हैं, किंतु अभी उसे यह जानने में बहुत समय लगेगा कि विश्व का वातावरण बनाने में चंद्र की क्या भूमिका है। सौर और चंद्र वातावरण के संपर्क-संघर्ष से कौन सी शक्ति उत्पन्न होती है, जो हम पृथ्वीवासियों के लिए उपादेय बन जाती है? किस प्रकार वह मानव को प्रभावित करती है, पेड़-पौधों और जड़-जंगम में रस संचार करने में सहायक होती है, तेज और तिमिर के समन्वय से स्नायुओं को प्रभावित करती है? कैसे रक्त की तरलता में सहायक होती है, ओजस् को ऊर्जा देती है, ज्वार-भाटे को नियंत्रित करती है? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनका समाधान होना बाकी है

हम पृथ्वीवासी तो प्रत्यक्ष ही चंद्र की कला, प्रकाश और उदयास्त की स्थिति से प्रभावित हैं। हमारे वृक्ष, वनौषधियां भी कम प्रभावित नहीं हैं। प्रत्येक वृक्ष, लता, वल्लरी में रस संचार चंद्र से ही माना जाता है। हमारा प्रत्येक कृषिजीवी यह जानता है कि मृगशिरा का जल अमृत उत्पन्न करता है। वहीं वह यह भी जानता है कि किस नक्षत्र में होने वाली वर्षा फसल को रोगग्रस्त बना देती है, नष्ट कर देती हैं। शरद का चंद अमृत वर्षा करता है, तो हस्त के नक्षत्र में वर्षा होने से सर्प विष प्रभाव बढ़ता है।

हम अनुभव से प्रत्यक्ष देखते हैं कि जितने दूध वाले वृक्ष हैं वे, जब तक चंद्र का प्रभाव रहे, सूर्य की किरणें तीव्र न बनें, तभी तक दुग्ध स्रवित करते हैं। सूर्य का तेज बढ़ने पर दुग्ध देना बंद कर देते हैं और उस दुग्ध का रंग भी रक्तिम बनने लगता है। इससे स्पष्ट है कि चंद्र का प्रभाव मानव पर ही नहीं, वृक्ष, जल, पेड़, आदि सभी पर पड़ता है। आज का अंतरिक्ष विज्ञान चंद्र पर विषाक्त कीटाणुओं की कल्पना भले ही न करे, किंतु चंद्र-पृष्ठ की धूसरित धूलि और उसकी स्थिति की कल्पना दिव्यद्रष्टा ज्योतिर्विदों ने की है। इन मान्यताओं से प्रतीत होता है कि वर्षा का चंद्र से गहरा संबंध है।

चंद्र पर सोमरस के 3 सरोवर होने का अनुमान है। (ऋग्वेद 4-29-7)। इसी प्रकार सोम को विपृष्ठ (8-7-10) कहा गया है इसे समुद्रों का राजा भी माना गया है। परमाणु बिंदु धु्रवलोक से और अंतरिक्ष से पृथ्वी के छह शिखर पर पड़ते हैं। (9-2-9)। इन मान्यताओं से प्रतीत होता है कि वर्षा का चंद्र से गहरा संबंध है। वेद में सोम को सूर्य के रथ पर सवार होकर चलने वाला तथा ध्रुवलोक और पृथ्वी को अपनी रश्मियों से भर देने वाला बताया गया है। उसे शक्ति और उत्साह भरने वाला कामोत्पीड़क माना गया है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


उसमें रोग शामक शक्ति है। वह रस-रूप का सारे देह में संचार करता है। यह उल्लेख भी मिलता है कि सोम के बिंदुओं को शुद्ध करके वह ध्रुवलोक से अंतरिक्ष मार्ग से पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुंचा जाता है। ऐसी अनेक चर्चाएं शतपथ, ऐतरेय ब्राह्मण, छांदोग्य आदि में भरी पड़ी हैं। ऋग्वेद का नवम मंडल तो चंद्र चर्चा से ही ओत-प्रोत है। इन सभी बिंदुओं पर गंभीरतापूर्वक वैज्ञानिक संदर्भ में विचार किया जाए, तो बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सामने आ सकती हैं, अनेक रहस्य उद्घाटित हो सकते हैं। चंद्र को अमृत माना गया है।

इस अमृतरस का विवेचन वेदों में जिस ढंग से हुआ है, उसका विश्लेषण भी महत्वपूर्ण हो सकता है। अवेस्ता के ‘‘हओम’’ और वैदिक सोम की अवधारणाएं प्रायः समान हैं । दोनों में उसे वनस्पतियों का राजा कहा गया है। वनस्पतियों से चंद्र का गहरा संबंध है। ऐसी अवस्था में उसका वनस्पति विहीन होना विचारणीय है। चंद्र की एक प्रदक्षिणा सभी नक्षत्रों पर होने में 27 दिन और 19 घड़ी का समय लगता है।

घड़ी कभी कम भी लगती है तो कभी अधिक। एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र पर जाने में जो समय लगता है, उसे नक्षत्र-भाग कहा जाता है। इसी प्रकार 27 नक्षत्रों पर चंद्र का भ्रमण भी दक्षिण की ओर से (कभी उत्तर की ओर से) होता है और कुछ नक्षत्रों पर वह आच्छादन भी करता है। रोहिणी नक्षत्र विशेष तेजस्वी है, इसलिए उसके पास जाता हुआ चंद्र उसके बहुत निकट दिखाई देता है। इसलिए रोहिणी को चंद्र की प्रिय पत्नी कहा जाता है। तैत्तिरीय संहिता (2-3-5) में भी इस पर एक कथा आती है, इस कथा से भी कुछ रहस्य उद्घाटित हो सकते हैं। चंद्र पृथ्वी के आसपास चक्कर लगाता है।

वह पृथ्वी का उपग्रह है। चंद्र के स्याह तथा सफेद भागों को लेकर भी कई मान्यताएं हैं। वस्तुतः चंद्र का चमकता हुआ भाग पर्वत शृंगों, ज्वलनशील पर्वतों के अग्रभाग से संबधित है। काला भाग दलदलों का है पर आज का विज्ञान मानता है कि चंद्र-पृष्ठ अत्यंत उष्ण है, वहां समुद्र की संभावना नहीं हो सकती। मानव पृथ्वी से ढाई लाख मील पार कर पृथ्वी के आकर्षण केंद्र से निकलकर चंद्र के आकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट हो चंद्र पृष्ठ पर पहुंचा। वह चंद्र मंडल के सभी रहस्यों से सीमित क्षेत्र में रहकर परिचित नहीं हो सकता। चंद्र का व्यास ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार 2190 मील का है।

अर्थात पृथ्वी के व्यास के चैथाई भाग से थोड़ा अधिक है। पृथ्वी के पृष्ठ का क्षेत्रफल चंद्र के मुकाबले 13 गुना अधिक है। चंद्र के आकार से पृथ्वी 49 गुना बड़ी है और चंद्र से पृथ्वी का वजन 81 गुना अधिक है। चंद्र का घनत्व भी कम है। चंद्र पर कुछ पहाड़ों की शृंखला है, कुछ शांत ज्वालामुखी हैं और कुछ प्रदेश मैदानी भी है। वह काला और चमकीला इसलिए दिखाई देता है कि उसके अनेक तत्व विभिन्न रंगों के है। चंद्र के पृष्ठ-भाग की जमीन, उसके स्वरूप आदि के विषय में भी ज्योतिर्विज्ञान ने विवरण प्रस्तुत किए हैं।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


उसकी गतिविधि की कम, पृथ्वी से दूरी की पर्याप्त चर्चा हुई है। यह सब विवरण किस प्रकार किन साधनों से किस युग में सुलभ किया गया, इसकी कल्पना भी कठिन है। जो गणना सहस्र शताब्दियों पूर्व की गई, गतिविधि का गणित द्वारा जो लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है और उपलब्ध है वह अत्यंत विस्मयोत्पादक एवं महत्वपूर्ण है।

आज का विज्ञान भी उसी गणना को आधार मानकर आगे बढ़ रहा है। मनीषियों ने करोड़ों तारों में से विशिष्ट ग्रह नक्षत्रों को खोजकर सृष्टि के नाश-निर्माण में प्रभाव डालने वाले उनके रूप, रंग, आकार, प्रकार, दूरी, गतिविधि, परिभ्रमण तथा परस्पर आकर्षण-विकर्षण एवं वातावरण की गणना कर जो सही तथ्य संग्रह किए हैं, उनमें आज तक कोई भी प्रगतिशील विज्ञान परिवर्तन नहीं कर सका है। चंद्र-लोक की वह यात्रा भी उनका खंडन करने की बजाय कदाचित उनका मंडन ही करेगी।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.