यंत्र: एक विश्लेषण यंत्र विशिष्ट देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली ऐसी आकृतियां होती हैं जो आकृति, क्रिया तथा शक्ति नामक तीन सिद्धांतों के आधार पर संयुक्त रूप से कार्य करती है। परंतु इन यंत्रों की आकृति निष्ठापूर्वक और विधि-विधान से की गई पूजा एवं प्राण प्रतिष्ठा से ही जागृत होती है। बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर भी नहीं रखा जाता है क्योंकि ऐसा करने से सकारात्मक प्रभाव के स्थान पर नकारात्मक प्रभाव होने लगते हैं। शास्त्रों में यंत्रों को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है। जब यंत्रों का निर्माण और प्राण-प्रतिष्ठा शास्त्रोक्त विधि द्वारा की गई हो और साधक पूर्ण विश्वास तथा श्रद्धा के साथ उनकी आराधना करता हो तो यंत्र-साधना करने वालों को सुख-ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यंत्र क्या है? इसमें कितनी दिव्य शक्ति विद्यमान है? भिन्न प्रकार के यंत्रों की रेखाएं, बीजाक्षर और बीजांक दिव्य शक्तियों से प्रभावित होते हैं। रेखाओं की आकृति, क्रम व अंकों और अक्षरों के आधार पर ही यंत्र को कोई विशिष्ट नाम दिया जाता है। इसमें अंकित अंक और अक्षर देवता से संबंधित बीजांक शक्ति का प्रतीक होते हैं। यंत्र व मंत्र एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों ही अलौकिक हैं। अलौकिक शक्ति से परिपूर्ण होने की वजह से ये इंसान की इच्छा-पूर्ति करने में समर्थ है। यंत्र-साधना में विश्वास और श्रद्धा के साथ-साथ साधना का सर्वांगीण ज्ञान भी आवश्यक है। तभी दिव्य यंत्रों का चमत्कार हम पा सकते हैं। जिस प्रकार मंत्रों में ध्वनि तरंगों की आकृति का महत्व है, उसी प्रकार यंत्रों में बिंदु, रेखा, त्रिकोण, वृत्त, चतुर्भुज इत्यादि का विशिष्ट महत्व होता है। तांत्रिक साधनाओं में यंत्र-साधना का बड़ा महत्व है। साधारण भाषा में यंत्र का तात्पर्य मशीन से होता है। जिस तरह देवी-देवताओं की मूर्ति पूजा की जाती है और उन मूर्तियों से लोगों की आस्था और श्रद्धा जुड़ी होती है, उसी तरह यंत्र भी किसी देवी या देवता के प्रतीक होते हैं। इनकी रचना ज्यामितीय होती है। यंत्र में सारी दैवीय शक्तियां सूक्ष्म रूप से विद्यमान होती है। यंत्र आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विभिन्न देवी-देवताओं के रंग-रूप के रहस्य होते हैं। इसीलिए साधनाओं के माध्यम से इनमें जितनी शक्ति उत्पन्न की जाती है, यंत्र उतने ही चमत्कारी होते हैं। यंत्र किस सिद्धांत पर कार्य करते हैं? यंत्र देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करने के लिए यंत्र-साधना को सबसे सरल विधि माना जाता है। तंत्र के अनुसार यंत्र मंे चमत्कारिक दिव्य शक्तियों का निवास होता है। यंत्र सामान्यतः ताम्रपत्र पर बनाए जाते हैं। इसके अलावा यंत्रों को तांबे, चांदी, सोने और स्फटिक में भी बनाया जाता है। ये चारों ही पदार्थ कास्मिक तरंगे उत्पन्न करने और ग्रहण करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं। कुछ यंत्र भोज-पत्र पर भी बनाए जाते हैं। यंत्र मुख्यतः तीन सिद्धांतों का संयुक्त रूप हैं- आकृति रूप, क्रिया रूप, शक्ति रूप ऐसी मान्यता है कि वे ब्रह्मांड के आंतरिक धरातल पर उपस्थित आकार व आकृति का प्रतिरूप हैं। जैसा कि सभी पदार्थों का बाहरी स्वरूप कैसा भी हो, उसका मूल अणुओं का परस्पर संयुक्त रूप ही हैं। इस प्रकार यंत्र में, विश्व की समस्त रचनाएं समाहित हैं। यंत्र को विश्व-विशेष को दर्शाने वाली आकृति कहा जा सता हैं। ये सामान्य आकृतियां ब्रह्ममांड से नक्षत्र का अपनी एक विशेष आकृति रूप-यंत्र होता हैं। यंत्रों की प्रारंभिक आकृतियां मनोवैज्ञानिक चिन्ह हैं जो मानव की आंतरिक स्थिति के अनुरूप उसे अच्छे बुरे का ज्ञान, उसमें वृद्धि या नियंत्रण को संभव बनाती हैं। इसी कारण यंत्र क्रिया रूप हैं। ‘‘यंत्र’’ की निरंतर निष्ठापूर्वक पूजा करने से ‘आंतरिक सुषुप्तावस्था समाप्त होकर आत्मशक्ति जाग्रत होती हैं और आकृति और क्रिया से आगे जाकर ‘‘शक्ति रूप उत्पन्न होता हैं। जिससे स्वतः उत्पन्न आंतरिक परिवर्तन का मानसिक अनुभव होने लगता हैं। इस स्थिति पर आकर सभी रहस्य खुल जाते हैं। यद्यपि यंत्र का स्थूल अर्थ समझना सरल हैं। परंतु इसका आंतरिक अर्थ समझना सरल नहीं, क्योंकि मूलतः श्रद्धापूर्वक किये गए प्रयासों के आत्मिक अनुभव से ही इसे जाना जा सकता हैं। यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा पंचगव्य, पंचामृत एवं गंगाजल से पवित्र करके संबंधित मंत्र से की जाती हैं। बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर नहीं रखा जाता। ऐसा करने से नकारात्मक किरणों के प्रभाव से हानि होने की संभावना रहती हैं। पूजा हेतु मार्गदर्शन, अनेक प्रकार के यंत्रों को एक बार प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् नियमित पूजा की आवश्यकता नहीं होती और वे जीवन पर्यंत रखे जा सकते हैं। यंत्रों पर आधारित कुछ विशेष मंदिर यंत्रों की अदभुत महिमा को देखते हुए, यहां प्राचीन काल से ही यंत्रों पर आधारित मंदिरों का निर्माण किया जाता रहा हैं। यह भी मान्यता रही है कि जो मंदिर यंत्र आधारित होते हैं, वे अपना विशेष धार्मिक महत्व रखते हैं। ऐसे ही कुछ मंदिरों की संक्षिप्त जानकारी यहां दी जा रही हैं। 1. आयल का मेंढक मंदिर भारत का एकमात्र मेंढक मंदिर हैं। यह मंदिर उत्तरप्रदेश में लखनऊ के आॅयल कस्बे में हैं। मेंढक मंदिर देश में अपने ढंग का अकेला और अनोखा मंदिर हैं। इसका निर्माण राज्य को सूखे व बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाने के उद्देश्य से किया गया था। मंडूक यंत्र पर आधारित यह मंदिर ग्यारहवीं शती के शासकों के द्वारा किया गया था। इसकी रचना तंत्रवाद पर आधारित हैं। इसकी परिकल्पना एक प्रसिद्ध तांत्रिक ने की थी। 2. श्री यंत्र मंदिर: श्री यंत्र मंदिर हरिद्वार के कनखल नामक स्थान का विशेष मंदिर हैं। यह मंदिर अपने आप में अदभुत कला का आदर्श नमूना हैं। इस मंदिर में विशेष रूप से त्रिपुर सुंदरी की पूजा की जाती हैं। यंत्रों की उपयोगिता यंत्र देवशक्तियों के प्रतिक हैं। जो व्यक्ति मंत्रों का उच्चारण नहीं कर सकते, उनके लिए पूजा में यंत्र रखने से ही मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। प्रत्येक यंत्र का अपना अलग महत्व है। कई यंत्र हमें सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। प्राचीन काल से ही, भारतीय संस्कृति में सुख-समृद्धि, दीर्घजीवन, एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए, यंत्र, तंत्र-मंत्र का महत्वपूर्ण स्थान रहा हैं। विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक महत्व की आकृतियों यंत्र के रूप में, सोने, चांदी, तांबा, अष्टधातु अथवा भोज पत्र पर विभिन्न शक्तियों को जाग्रत करने के लिए बनाई जाती हैं।