निउरी नवमी पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी श्रावण शुक्ल नवमी के आने पर प्रातःकाल नित्यनैमिŸिाक क्रिया- कलापों से निवृŸा होकर निउरी नवमी व्रत व नेवलों के पूजनार्थ विधिवत् संकल्प लें कि आज मैं निराहार रहते हुए अपने बच्चों को सांपों के भय से मुक्ति हेतु नेवलों का पूजन करुंगा/ करुंगी। इस व्रत का पालन विशेष रूप से पुत्रवती (संतानवती) स्त्रियां बड़े ही मनोयोग से करती हैं। दिन में प्रातःकाल या किसी भी समय व्रत रहते हुए गणेश गोर्यादि, कलश- स्थापन, नवग्रहादि, शिव, पार्वती पूजनोपरांत नेवलों का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें। इसमें गुड़, घी का विशेष महत्व है। भोग के लिए विशेष पक्वान्न तथा उड़द व चने की दाल की पीठी भरकर कचैड़ियां बनाईं जाती हैं और भोग लगाकर संभव हो, तो ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन कराकर, दान-दक्षिणादि देकर विदा करें और स्वयं भगवत् प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के उपरांत निम्न कथा का श्रवण करें- कथा: प्राचीन काल में भारतवर्ष के एक ग्राम में एक किसान अपनी धर्म पत्नी के साथ सानन्द निवास किया करता था। वह किसान मानवोचित गुणों से युक्त था। उसकी पत्नी भी बड़ी संुदर व सुशीला थी। समयानुसार किसान के यहां एक संुदर बालक का जन्म हुआ, परंतु दैव व शात् सांप के डसने से वह बालक मृत्यु को प्राप्त हो गया। इस प्रकार जन्म के समय ही सर्पदंश से बालक मृत्यु को प्राप्त हो जाते। उस घर में पति-पत्नी दोनों अत्यधिक परेशान रहने लगे, कोई समाधान समझ में नहीं आता था। परंतु भगवत् कृपा से एक संुदर विचार पति-पत्नी के मस्तिष्क में आया और उन्होंने घर में एक नेवला पाल लिया। नेवले के कारण सांप का भय न रहा। एक दिन जब किसान की पत्नी पति का भोजन लेकर खेत पर गयी तो बालक को अकेला देखकर सर्प बच्चे को खाने श्रावण शुक्ल नवमी को नाग देवताओं के आक्रमण से बचने के लिए नेवलों की पूजा करने का विधान है। नाग पंचमी की पूजा के बाद इस पूजा की भी विशेष मान्यता है। यदि विचार कर देखा जाए तो मानव के लिए हर जीव रक्षक व बहुउपयोगी ही प्रतीत होता है, जो मानव-रक्षा से लेकर उसके विभिन्न कार्यों के संचालन, आदि से संबंधित हैं और इस प्रकार मानव से उसका अटूट संबंध है। यदि देव जगत् में दृष्टिपात किया जाए तो बहुत से जीव वाहनों, आभूषणों आदि के रूप में स्थित हैं। आया, तब नेवले ने उस सांप के टुकड़े-टुकड़े कर उसे मार दिया तथा अपनी बहादुरी मालकिन को जताने के लिए खून से सना मुंह लेकर द्वार पर बैठ गया। किसान की पत्नी आयी और नेवले का खून से सना मुंह देख, उसने सोचा- यही मेरे पुत्र को खाकर यहां आ बैठा है तो उसने हाथ के बर्तन ही नेवले पर जोर से दे मारे। प्रहार इतना तेज था कि नेवले ने उसी समय तड़फ-तड़फ कर प्राण त्याग दिए। किसान की पत्नी व्याकुल अवस्था में अंदर गयी तो वहां बच्चे को खेलते हुए और उसके समीप ही सांप को मृत अवस्था में पाया। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तथा वह शोक समुद्र में डूब-सी गयी और उसे किसी भी प्रकार शांति नहीं मिली। तभी अचानक एक दिन स्वप्न में नेवले ने उससे कहा कि जो हो गया, उसे भूल जाओ और प्रायश्चित स्वरूप मेरा चित्र बनाकर आज के दिन पूजा करो, तो तुम्हारी संतान की रक्षा होगी और जो माताएं संतान की रक्षार्थ श्रावण शुक्ल नवमी को मेरी पूजा करेंगी तो सांपों से उनकी संतान की भी रक्षा होगी। तभी से नेवले की पूजा का शुभारंभ हुआ। जिन घरों में बार-बार सर्प निकलते हैं या जिन्हें बार-बार सर्प दिखायी देते हैं या जिन पर स्वप्नावस्था में सांपों का आक्रमण होता रहता है, ऐसे जातकों के लिए नेवले का पूजन अवश्य ही करना चाहिए। स्वर्ण, चांदी या किसी भी धातु में नेवले की मूर्ति बनवाकर पूजनोपरांत उसे अपने पूजा-स्थल में रखने से विशेष लाभ होता है। नेवला भगवान् नारायण का स्वरूप है, अतः पुरुष सूक्त या नारायण मंत्र ‘‘ऊँ नमो नारायणाय’’ या नेवलाय नमः’’ से पूजन करें। नेवले का पूजन सुख-समृद्धि प्रदाता, कुल-परंपरा का विस्तार करने वाला तथा संपूर्ण अनिष्टों को मिटाने वाला है।