श्रीयंत्र का अंतर्निहित रहस्य
श्रीयंत्र का अंतर्निहित रहस्य

श्रीयंत्र का अंतर्निहित रहस्य  

व्यूस : 7826 | जुलाई 2012
श्रीयंत्र का अन्तर्निहित रहस्य यंत्रराज श्रीयंत्र साक्षात् शिव-शक्ति स्वरूप माना जाता है जिसके दर्शनमात्र से सुफलों की प्राप्ति अनायास ही हो जाती है क्योंकि इसकी विभिन्न ज्यामितीय आकृतियांे का प्रत्येक भाग अपना एक सुनिश्चित रहस्य और प्रभाव रखता है। इस लेख में उन्हीं आकृतियों के रहस्यों की योगशास्त्रीय व्याख्या की गई है। यंत्र संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘हथियार या औजार’। जिसका प्रयोग किसी भी प्रकार की विशिष्ट क्रिया की पूर्णता हेतु अतिआवश्यक है। जिस प्रकार किसी भी कार्य का सफल एवं पूर्ण निष्पादन उससे संबंधित यंत्रों का प्रयोग किये बिना संभव नहीं है, उसी प्रकार दैवीय शक्तियों की प्राप्ति भी यंत्रोपासना के बिना संभव नहीं है। अर्थात् यंत्र- ‘‘दैवी शक्तियों के उच्चतम् शिखर पर आरुढ़ होने एवं असीम अनंत तथा दिव्य शक्तियां प्राप्त करने का अद्वितीय सोपान है।’’ ‘‘शिवशक्ति’’ का शरीर यंत्र कहलाता है। जिस प्रकार मंत्रोच्चारण के द्वारा हम परमसŸाा की अनुभूति करते हैं, वैसी ही विभिन्न यंत्रों की विधिवत् पूजा, अर्चना एवं नियमित दर्शन ईश्वर का सामुज्य प्राप्त करने में सहायक होते हैं। यंत्रों को शिवशक्ति का निवास और संयोग माना गया है। यंत्र को शास्त्रों में चक्र भी कहा गया है। जो यंत्रित करे, वही यंत्र है। यंत्र को भगवान के बैठने का आसन भी कहा गया है। विभिन्न प्रकार के यंत्र अनेकानेक देवी-देवताओं को समर्पित माने गये हैं। चक्र अथवा यंत्र, शक्ति एवं शक्तिमान का निवास-स्थान है। यंत्र का मूल स्वरूप अकलनीय, अवर्णनीय एवं महिमामय है। यदि हम स्थूल रूप से इसकी व्याख्या करें तो कह सकते हैं कि ‘‘यंत्र अनंत सृष्टि’’ चक्र का रेखात्म एवं संक्षिप्त मानचित्र है। यंत्रों में महाशक्ति परमब्रह्म रूप में विद्यमान रहती है। यंत्रों में ‘श्रीयंत्र’ को ‘यंत्रराज’ की संज्ञा दी गई है। धार्मिक दृष्टि से इसे कामेश्वर और कामेश्वरी का स्वरूप माना जाता है जिसके दर्शन मात्र से शुभ फलों की प्राप्ति अनायास ही हो जाती है। श्री यंत्र के दर्शन मात्र से 100 यज्ञ करने का फल, महाषोडश दान करने का फल, साढ़े तीन करोड़ तीर्थों के स्नान का फल, निर्धनता, शत्रु, क्रोध एवं रोगों का समूल नाश, अशुभ समय एवं अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त होकर सभी प्रकार के शुभ फलों में वृद्धि होती है। - पिण्ड (शरीर) एवं श्रीचक्र का संबंध अतः स्पष्ट है कि मानव शरीर के विभिन्न अवयवों में उपवर्णित चक्रों का वास होता है। श्रीयंत्र की संक्षिप्त व्याख्या - श्रीयंत्र में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय एवं गणितीय आकृतियों का समावेश होता है जिनका अर्थ एवं स्वरूप इस प्रकार से है- महाबिंदु - श्रीयंत्र का केंद्रस्थ त्रिकोण ‘महाबिंदु’ कहलाता है, जिसे ‘पाराचक्र’ भी कहते हैं। इसे ‘तुरीय बिंदु’ भी कहा जाता है। इसी महाबिंदु में अनादिकाल से शिवशक्ति स्वरूप दम्पति (परम-पुरुष-परा-प्रकृति) का विलास चलता रहता है। बिंदु - केंद्रस्थ त्रिकोण के अंदर स्थित बिंदु। इसे ‘सर्वआनंदमयी’ चक्र की संज्ञा दी गयी है जिसका संबंध पूर्ण आनंद से माना गया है। इसमें सम्पूर्ण ब्रह्मांड का बीजत्व निहित है। त्रिकोण - श्रीयंत्र में अवस्थित त्रिकोण ‘प्रणव’ का स्वरूप है। यह केंद्रस्थ त्रिकोण में समाहित बिंदु है जिसे ‘सर्वसिद्धिप्रद’ चक्र कहते हैं। अष्टकोण - यह त्रिकोण के भीतर आठ त्रिकोणों का समूह है, जिसे ‘सर्वरोग हर’ चक्र कहा गया है। इस कोण पर ध्यानावस्थित करने से सभी रोगों का शमन होता है। अंतर्दशार - यह दस अंर्तत्रिकोणों का समूह है, जो मानव जीवन के लिए रक्षा-कवच का कार्य करता है। अतः इसे ‘‘सर्वरक्षाकर चक्र’’ कहा जाता है। बहिर्दशार- यह दस बाह्य त्रिकोणों का समूह है, जिसे ‘सर्वअर्थसाधक चक्र’ की संज्ञा दी गई है। यह आर्थिक समृद्धि का प्रदाता कहा गया है। चतुर्दशार- इसे ‘सर्व सौभाग्यदायक चक्र’ कहते हैं। यह चैदह त्रिकोणों का समूह है, जो सभी प्रकार के शुभ फल प्रदान कर जातक के सौभाग्य में श्री-वृद्धि करता है। अष्टदल- इसे सर्व शंख शोभन चक्र की संज्ञा दी गई है। यह कमल की आठ पंखुड़ियों के समूह से निर्मित वृŸा है, जिसे सौन्दर्य, प्रसन्नता एवं समृद्धि प्रदायक माना गया है। षोडशदल- श्रीयंत्र में षोडशदल कमल की 16 पंखुड़ियों का पूर्ण वृŸा है। चूंकि यह षोडशदल व्यक्ति की सभी इच्छाओं, आशाओं एवं मनोकामनाओं की पूर्ति करता है, अतः इसे ‘आशा पूरक चक्र’ कहते हैं। भूपुर- श्रीयंत्र में चार द्वारों (पूर्व, पश्चिम, उŸार, दक्षिण) से निर्मित चैकोर आकृति की व्याख्या करें तो भूप-उर अर्थात् राजा या वरमाला का हृदय भू-पुर अर्थात् पृथ्वी लोक। अर्थात् यदि हम भूपुर शब्द की विशद् विवेचना करें तो पायंेगे कि श्रीयंत्र के चारों ओर निर्मित यह चैकोर आकृति ईश्वर के हृदय में प्रवेश करने तथा ‘भूलोक पर सुख समृद्धि प्राप्त करने का दिव्य ‘प्रवेश द्वार’ है। भूपुर को ‘त्रैलोक मोहन चक्र’ भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस चक्र में दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों को शांत करने की अद्भुत शक्ति होती है। इसमें त्रिशक्ति तथा अष्टसिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, ईशिता, वशिता, प्राप्ति तथा प्राकाम्य स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती हैं। अर्थात् ‘भूपुर’ के शरीर में अवस्थित सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणुओं को प्रकाशमान करने, शरीर को शांत रखने एवं दैवत्व में विलीन करने, शांति प्रदान करने, इच्छाशक्ति, आकर्षण, वांछित की प्राप्ति, इच्छाओं तथा सोच को साकार रूप देने की योग्यता एवं धन, सुख, समृद्धि को उपभोग करने की क्षमता प्रदान करने की अद्भुत और अलौकिक शक्ति प्रदान करता है। यदि साधक के हृदय में किसी भी यंत्र विशेषकर श्रीयंत्र के प्रति सच्ची श्रद्धा, अटूट आस्था एवं पूर्ण विश्वास है तो वह श्रीयंत्र की विधिवत् पूजा एवं नियमित दर्शन के द्वारा श्रीयंत्र के अनेकानेक एवं अनंत कोटि शुभ फलों को निश्चित रूप से प्राप्त कर सकेगा। कलियुग में श्रीयंत्र को ‘यंत्रराज’ कहना पूर्णतया सार्थक है, जिसकी उपासना पूर्णतया धन, सुख, समृद्धि, प्रसन्नता एवं सफलताप्रदायक है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.