नवग्रह यंत्र व् रोग निवारक तेल
नवग्रह यंत्र व् रोग निवारक तेल

नवग्रह यंत्र व् रोग निवारक तेल  

व्यूस : 12565 | जुलाई 2012
नवग्रह यंत्र व रोग निवारक तेल जय इंदर मलिक प्रत्येक यंत्र हर समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उसका पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए जातक की जन्मकुंडली में निर्बल योग कारक ग्रह की खोज करके यदि संबंधित यंत्र का प्रयोग करें तो अवश्य ही यथेष्ट लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख में सभी ग्रहों से संबंधित पृथक-पृथक यंत्र और रोग निवारक तेल बनाने की विधि के बारे में बताया गया है। कुंडली में लग्न और चंद्रमा की स्थिति से उपायों की जानकारी मिलती है। ग्रह यदि अग्नि तत्व राशि में है तो यज्ञ, व्रत आदि से लाभ मिलता है। यदि ग्रह पृथ्वी तत्व राशि (2, 6, 10) राशि में है तो रत्न, यंत्र आदि से लाभ मिलता है। ग्रह यदि वायु तत्व (3, 7, 11) राशि में है तो मंत्र जाप करने से लाभ मिलता है और ग्रह यदि जल तत्व (4, 8, 12) राशि में है तो वस्तुओं को पानी में बहाने से लाभ मिलता है। योग कारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो यंत्र-धातु से उपचार करें, अशुभ और मारक ग्रहों का उपाय पूजा-पाठ-दान ग्रह की वस्तु को बहाकर करना चाहिए। यंत्र एक प्रकार से सुरक्षा कवच है और यह सही नक्षत्र और तिथि में कागज पर, भोजपत्र पर या तांबे पर बनाया जाता है जो ग्रह मारक या बाधक हो उस ग्रह की पूजा यंत्र द्वारा करें। युद्ध दशा-अंतर्दशा प्रत्यंतर्दशा में यंत्र लाभदायक होते हैं। यंत्र को मंत्र का रूप माना जाता है। यंत्र-रचना मात्र रेखांकन नहीं है बल्कि उसमें वैज्ञानिक तथ्य भी है। कुछ यंत्र रेखा प्रधान होते हैं, कुछ आकृति प्रधान और कुछ संख्या प्रधान होते है। कुछ यंत्रों में बीजाक्षरों का प्रयोग होता है। बीजाक्षर एक संपूर्ण यंत्र होता है। हर ग्रह का यंत्र अलग होता है। यह यंत्र केवल दीपावली, होली या ग्रहणकाल में ही बनाकर सिद्ध किया जा सकता है यदि स्वयं निर्माण कर सकते हैं तो ठीक, नहीं तो किसी विद्वान से इन्हें बनवा सकते हैं। सूर्य यंत्र: यह सूर्य भगवान का एक सरल यंत्र है। शुभ मुहूर्त में विधि अनुसार इस यंत्र का पूजन करने से बाधाओं से दूर यशस्वी जीवन जीने का मार्ग खुल जाता है। रविवार को जब कृŸिाका नक्षत्र हो और सूर्य जब सिंह राशि अर्थात 16 अगस्त से 16 सितंबर में गोचर कर रहा हो, तो श्रेष्ठ फल मिलता है। व्यवसाय की उन्नति हेतु भी इस यंत्र का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त औषधि के रूप में इस का तेल बनाकर लगाने से हृदय-रोग, रक्तचाप की पीड़ा हो, तो इस तेल को नहाने से पहले पूरे शरीर में लगायंे पूर्णरूप से लाभ मिलता है। सूर्य तेल बनाने की विधि: सूरजमुखी और तिल का तेल आधा-आधा लीटर लेकर उसमें 5 ग्राम लौंग का तेल और 10 ग्राम केसर मिलाएं। एक कांच के बर्तन में तेल का मिश्रण सात दिन तक सूर्य के प्रकाश में रखें। आठवें दिन एक कांच की बोतल में ढक्कन लगाकर रखें, फिर नहाने के बाद सिर में भी लगा सकते हैं। इससे सूर्य की अनिष्टता दूर होती है। चंद्रमा यंत्र: शुक्ल पक्ष के सोमवार को जिस दिन रोहिणी नक्षत्र हो, इस यंत्र का सोमवार को चंद्रमा की होरा में निर्माण करें। इसको धारण करने से विघ्न बाधाएं दूर होती हैं यशस्वी जीवन व्यतीत होता है। चंद्रमा के तेल बनाने की विधि: सफेद तिलों का तेल एक लीटर लेकर उसमें 100 ग्राम चंदन का तेल एवं 50 ग्राम कपूर डालकर कांच के बर्तन में मिश्रण कर सात दिन तक चंद्रमा के प्रकाश में रखें। आठवें दिन कांच की बोतल में ढक्कन लगाकर रखें। फिर नहाने से पहले पूरे शरीर में लगा लें। इससे पेट के रोग, सिर के रोग तथा अन्य शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। मंगल यंत्र: शुक्लपक्ष के मंगलवार मृगशिरा, धनिष्ठा व चित्रा नक्षत्र में से कोई एक नक्षत्र हो तो सूर्योदय में मंगल की होरा में यंत्र बनायंे। इस यंत्र को धारण करने से मंगल पीड़ा नहीं होती, शक्ति-उन्नति तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है। इसके तेल बनाने की विधि कठिन है। इसलिए इसे विद्वान या जानकार से बनवा सकते हैं। इस तेल के लगाने से मिर्गी, हिस्टीरिया, रक्त विकार जैसे रोगों में अतिशीघ्र लाभ होता है। बुध यंत्र: इसे किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष में बुधवार के दिन अश्लेषा, ज्येष्ठा या रेवती नक्षत्रों में कोई एक हो तो सूर्योदय के बाद या बुध की होरा में, यह यंत्र बनाएं। इसे धारण करने से विद्या, बुद्धि, वाणी तथा हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। बुध का तेल बनाने की विधि: एक लीटर तिल का तेल लेकर उसमें ब्राह्मी एवं खस डालकर उबाल लें, ठंडा होने पर छान ले,ं छानने के बाद 5 ग्राम लौंग का तेल डालें और हरे रंग की कांच की बोतल में भर लें। बोतल को बंद करके जहां प्रकाश न हो ऐसे अंधेरे स्थान में सात दिन तक रखें। आठवें दिन इस तेल से मालिश करें आधे घंटे बाद नहायें, इससे त्वचा विकार नहीं होता है। बृहस्पति यंत्र: इसे भी किसी भी महीने शुक्लपक्ष में पुनर्वसु, विशाखा और पू. भाद्रपद के कोई एक नक्षत्र हो या गुरु-पुष्य के दिन अथवा सूर्योदय के एक घंटे के भीतर बृहस्पति की होरा में यंत्र बनाना चाहिए। इसे धारण करने से गुरु की पीड़ा का निवारण होता है और विद्या, विवेक, बुद्धि और धन-संपŸिा में वृद्धि होती है। बृहस्पति का तेल: एक लीटर या आधा लीटर नारियल के तेल में 5 ग्राम हल्दी और 5 ग्राम खस डालें और अच्छी तरह उबाल लें। वस्त्र से छानकर 10 ग्राम चंदन का तेल मिलायें। इसे कांच की बोतल में भर लंे। स्नान से पहले 10 ग्राम चंदन का तेल लेकर नींबू के रस की दो बूंद डालकर बालों में लगायें। ऐसा करने से सांस की बीमारियां या दमा का रोग इससे दूर हो जाता है। चेहरे पर रौनक आती है। शुक्र यंत्र: इसे भी किसी भी महीने शुक्र का तेल बनाने की विधि: आधा-आधा लीटर नारियल और तिल का तेल लें। 5 ग्राम चंदन, 2 ग्राम चमेली का तेल मिलाकर सफेद कांच की बोतल में भरकर, तीन दिन धूप में रखें और चैथे दिन नहाने से पहले पूरे शरीर में लगाएं और शुक्र की अनिष्टता से बचें। शनि यंत्र: इसे किसी मास के शुक्ल पक्ष में शनिवार को यदि अनुराधा, पुष्य, उŸार भाद्रपद में से कोई एक नक्षत्र हो, तो रात्रि के दूसरे प्रहर में इस यंत्र को बनायें। यदि होली, दीपावली में न बना सकें, तो किसी दूसरे दिन उपर्युक्त नक्षत्र में बना सकते हैं। इसे धारण करने से सुख-समृद्धि, मान-सम्मान मिलता है। इस यंत्र का तेल भी बनाकर नहाने से शनि पीड़ा का निवारण होता है। एक लीटर तिल का तेल लें, भृंगराज, जायफल, कस्तूरी या केसर पांच-पांच ग्राम पानी में भिगोकर पीस लें और फिर तिल के तेल में मिलाकर अच्छी तरह इस मिश्रण को उबाल लें। ठंडा होने पर कपड़े से छान लें और पंाच ग्राम लौंग का तेल मिला लें। इस तेल को कांच की बोतल में भरकर सात दिन तक अंधेरी कोठी में रखें दें। बाद में नहाने से पहले पूरे शरीर में मालिश करें और 15 मिनट के बाद नहायें। इससे वात् रोग, हड्डियों से संबंधित रोग दूर होते हैं। इसे बालों में लगाने से बाल काले रहते हैं। राहु यंत्र: इसे किसी भी मास के शुक्ल पक्ष में शनिवार के दिन यदि आद्र्रा, स्वाति, शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो, तो उस रात दूसरे प्रहर में यह राहु यंत्र बनायें। बनाते समय राहु यंत्र खुदा हुआ अपने सामने रखें। इसे धारण करने से सभी प्रकार की राहु की अनिष्टता दूर होती है। मान-सम्मान, पराक्रम, सुख-समृद्धि मिलती है। इसे दीपावली और होली की रात में भी बना सकते हैं। इसका तेल बनाने की विधि शनि के तेल जैसी है। केवल इसके तेल को ऊंचाई पर सात दिन पश्चिम दिशा में रखें। फिर आठवें दिन इसका प्रयोग करें सफेद बाल भी काले होने लगते हैं और राहु की अनिष्टता से बचें। केतु यंत्र: इसे किसी भी महीने में अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में से कोई एक नक्षत्र मंगलवार हो या बुधवार हो, तो रात को दूसरे प्रहर में केतु की प्रतिमा के सामने इस यंत्र को बनायें। गणेश जी की पूजा-अर्चना करें। फिर इसे काले धागे में बांधकर धारण करें। इससे केतु की अनिष्टिता दूर होगी और यश, सुख-समृद्धि मिलेगी। केतु का तेल: एक लीटर तिल या सरसों के तेल में लोध मिलाकर धीमी आग पर उबालें। ठंडा होने पर 5 ग्राम लौंग का तेल मिलायें। फिर कांच की काले रंग की शीशी में तेल भरकर सात दिन मकान की पश्चिम दिशा में ऊंचाई पर रखें। आठवें दिन इस तेल को नहाने में प्रयोग करें और केतु के कुप्रभाव से बचें। इन यंत्रों के अतिरिक्त और अनेक यंत्र हैं उनका लाभ अलग-अलग है जैसे कुबेर यंत्र- धन वृद्धि के लिए, संतान गोपाल- संतान प्राप्ति के लिए, बगलामुखी- स्वास्थ्य के लिए, महामृत्युंजय यंत्र- मृत्यु तुल्य कष्ट निवारण के लिए और वास्तु यंत्र- वास्तु देव की प्रसन्नता के लिए आदि।



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