पिरामिड एक अनोखा यंत्र डाॅ. टीपू सुल्तान पिरामिडों का निर्माण अष्टधातु जैसे चैतन्य पदार्थों से किया जाता है क्योंकि कागज़ और प्लास्टिक आदि अन्य निर्जीव पदार्थों में चैतन्य शक्ति का अभाव होने के कारण उनसे सकारात्मक ऊर्जा का सृजन नहीं होता। आज के समय में भी इन यंत्राकृत पिरामिडों से ग्रहों के दृष्ट प्रभावों का निराकरण करके अन्य व्यावसायिक लाभ भी उठाये जा रहे हैं। विस्तृत जानकारी के लिए इस लेख का पारायण आपके लिए भी लाभप्रद सिद्ध होगा। पिरामिड की आकृति की खोज, मनुष्य के पुरातन ज्ञान-विज्ञान की एक अनोखी मिसाल है, जिसकी विश्वसनीयता आज भी मंदिरों, मस्जिदों, बौद्ध मठों, गुरुद्व ारों आदि की त्रिभुजाकार व वर्तुलाकार मीनारों की परंपरागत रूपरेखाओं व मिस्र के पिरामिडीय मकबरों के अंदर पांच हजार वर्ष पूर्व से आज भी जीवंत हैं। पिरामिड शब्ब्द की प्राचीनता: पिरामिड पायरा (अग्नि) व मिड (मध्य) शब्द से मिलकर बना एक यूनानी नाम है जिसके अनुसार वह आकृति या संरचना है जिसके मध्य अग्नि अर्थात सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। कुछ भारतीय विशेषज्ञों के दृष्टिकोण से यह नाम संस्कृत के दो शब्दों प्रिय$अमृत =प्रियामृत से मिलकर बना है। जिसके अनुसार वह आकार या अवयव जो अमरत्व प्रिय हो, देवत्व को प्राप्त व सुंदर हो। कुछ प्राचीन भारतीय शास्त्रों में पिरामिड को ‘‘मेरू’’ से भी संबोधित किया गया है। मिस्र की भाषा में पिरामिड को ‘फिरामिद’ रूसी में’’ फिराभिद’’ तथा आधुनिक अरबी में ‘‘बिरामिद’’ नामों से भी उच्चारित किया जाता है। पिरामिड की वैज्ञानिकता: ज्यामितीय विधियों द्वारा निर्मित त्रिकोणात्मक शक्ति, संपन्नता व ऊर्जाओं के कारक पिरामिड की सरं चनाआ ंे म ंे चार समद्विबाह ु त्रिभजु ाकार आकृति के चारो कोण चारों दिशाओं, ध्रुवों, गुरुत्व-शक्ति व वायु तत्वों की संतुलित क्रियात्मकताओं तथा ऊपरी दिशा की ओर खड़ा पांचवा कोण ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं का प्रतीक माना गया है। वस्तुतः यह आकृति पृथ्वी पर पड़ने वाले नकारात्मक रेडियेशनों को परावर्तित करती है, जिस कारण गृहीत धनात्मक प्रभावों का गुणात्मक विस्तार होता है। विख्यात शोधकर्ता डाॅ. फलेनगन के अनुसार पिरामिड के ज्यामितीय आकार के पांचो कोणांे में एक विशेष किरणोत्सर्ग ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है जो गुण व्यापी शक्ति में परिवर्तित होकर ‘‘फोकल ज्वाइंट’’ के रूप में आंतरिक सतह अर्थात ‘‘किंग्स चैंबर’’ में इकट्ठी हो जाती है। ये समझ लें, इस यंत्र रूपी आकार के अंतरंग में अणु व परमाणुओं की उपस्थितियों से एक ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसके माध्यम से अणु अपनी कक्षा को छोड़कर बाहर निकलता है तथा शीघ्र ही दूसरी अदृश्य परमाणुवीय ऊर्जाएं विकसित होने लगती हैं। इसीलिए पिरामिड को एनर्जी जेनरेटर की संज्ञा भी दी जाती है। पिरामिड की प्राकृतिक, ज्योतिषीय व यांत्रिकीय अवधारणाएं: यदि प्राकृतिक अवधारणाओं पर दृष्टि डाली जाए तो पिरामिडीय स्वरूप पंचमहाभूत अर्थात आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी तत्वों का सूचक या उन तत्वों की सकारात्मक व गुणात्मक ऊर्जाओं के स्रोतों को सक्रिय रखने का एक माध्यम है। इसीलिए ध्यान क्रिया या आध्यात्मिक साधनाओं के हेतु पिरामिडीय कक्ष या उस आकृति में निर्मित गृह को अधिक उपुर्यक्त माना जाता है। ज्योतिषीय फलादेश व गणनाओं के सशक्त माध्यम जन्मकुंडली में प्रथम, पंचम व नवम भाव अर्थात त्रिकोणात्मक प्रकृति अर्थात उसके कक्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यदि इन शुभ भावों में कोई भी कारक ग्रह स्वगृही अथवा उच्च का होकर स्थित हो तो उसे पंचमहापुरुष योगों अर्थात हंस, भद्र, मालव्य, शश व रूचक योगों की संज्ञा दी जाती है। तंत्र शास्त्र में त्रिकोण को ‘‘योनि’’ का प्रतीक माना गया है। योनि संपूर्ण सृष्टि के निर्माण चक्र व प्रजनन अर्थात उत्पत्ति का सूचक है। इसलिए मुख्य शक्ति प्रधान यंत्रों के निर्माण में त्रिकोणात्मक आकृतियां अधिक प्रयुक्त की जाती हैं। ऐसी अन्य पद्धतियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थों या वस्तुओं से निर्मित पिरामिडों का प्रयोग होता रहा है, परंतु यंत्र शास्त्र में स्वर्ण, रजत, ताम्र, कांसा, पीतल या पांच अथवा अष्ट धातअु ा ंे आदि क े मिश्रणांे व पत्थरों को मुख्य रूप से श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि कागज, प्लास्टिक व अन्य निर्जीव पदार्थों में चैतन्य शक्ति की नगण्यता के कारण उन्हें प्राण-प्रतिष्ठा के योग्य नहीं समझा जाता। पिरामिड की यांत्रिकीय उपयोगिता: मिस्र के प्राचीन सम्राट फराहो के पार्थिव शरीर को पिरामिड के अंदर दफनायें जाने या उनके मकबरों की त्रिकोणात्मक कक्ष के रूप में निर्माण की प्रक्रिया व उनसे संबंधित लोक-परलोक व स्वर्ग की परिकल्पनाओं की ऐतिहासिकताओं के अतिरिक्त भारतीय शोधकर्ताओं ने जीवन में सुख-समृद्धि व उससे संबंधित वस्तु-विशेष की सकारात्मकता व नवीनताओं हेतु इन संरचनाओं में छुपे रहस्यमय यांत्रिकीय गुणों व उपयोगिताओं को भी सिद्ध किया है जिसे प्रयोग में लाकर बड़ी ही सरलता से व्यवहारिक जीवन केा लाभान्वित किया जा सकता है। ग्रहों के दुष्ट प्रभावों का निराकरण: ग्रहों से संबंधित वस्तु या धातुओं के पात्रों में जल रखकर उसके ऊपर उस ग्रह से संबंधित रंग के पिरामिड को रखकर सूर्य के प्रकाश में कुछ घंटों तक रख दें तथा बाद में फिर इस जल को ग्रहण करें। इस प्रक्रिया को विधिवत् लंबे समय तक दोहराएं। अवश्य ही उस ग्रह से संबंधित दोष चमत्कारी रूप से समाप्त होने लगेंगे। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रहों से संबंधित रंगों के पदार्थों या वस्तुओं से निर्मित पिरामिड की टोपी को सिर पर रखकर किसी विद्युतीय कुचालक वस्तु अर्थात लकड़ी या प्लास्टिक के सतह पर खड़े हों या बैठ जाएं तथा फिर बंद आंखों से नव उदित सूर्य का ध्यान करें। इस प्रक्रिया को नित्य कुछ दिनों तक दोहराएं तो उस ग्रह से संबंधित दोष शीघ्र ही समाप्त होने लगेंगे। प्रयोग की सार्थकता हेतु कार्य विधि को प्रारंभ करते समय ग्रहों से संबंधित वार, नक्षत्रों, होरा आदि जैसे शुभ मुहूर्तों का अवश्य ध्यान रखें। ग्रहों से संबंधित रंग, धातु व वस्तुओं का प्रयोग भी लाभप्रद माना गया है। छाया ग्रह राहु व केतु के वार, रंग व धातुओं से संबद्ध कोई निश्चित आधारभूत ज्योतिषीय सिद्धांत न होने के कारण इन ग्रहों के दोषों के उपचार के समय इनके मित्रभावी ग्रहों के वार, रंग व धातुओं के चयन को अधिक हितकर कहा गया है। पिरामिड की अन्य उपयोगिताएं पिरामिडीय भंडार-गृह में यदि अनाज को रखा जाए तो उसमें कीड़े नहीं पड़ते। रूस व अन्य विकसित देशों में अनाज-गृह अधिकांश रूप से पिरामिडीय आकृति के हुआ करते हैं। पिरामिड के रूप में निर्मित टोपी को यदि कुछ समय तक सिर पर रखलें तो सिरदर्द अथवा मानसिक तनाव शीध्र ही समाप्त हो जाते हैं। फल, सब्जियों, अंकुरित अनाज या खाने-पीने की किसी भी अन्य सामग्री आदि को पिरामिड के अंदर रख दें तो जल्दी खराब नहीं होते तथा उसके स्वाद व पौष्टिकता में अत्यंत बृद्धि हो जाती है। क्रिस्टल में निर्मित पिरामिडीय लाॅकेट को गले में धारण करने से स्वयं की आकर्षण व सम्मोहन शक्ति बढ़ जाती है। पिरामिडीय कक्ष में बैठकर यदि विद्यार्थी अध्ययन करें तो उनकी ध्यान शक्ति में सकारात्मकता व आत्मविश्वास का अधिक विकास होता है। रोगी का उपचार यदि पिरामिडीय कक्ष के अंदर रखकर किया जाए तो वह चमत्कारी रूप से शीध्र ही स्वस्थ होने लगता है। पिरामिडीय कक्ष के अंदर प्रतिदिन पांच-दस मिनट तक बैठने से इच्छा-शक्ति में दृढ़ता आती है तथा मन में सुरक्षा, एकाग्रता व आनंद की अनुभूति होती है। पानी या किसी अन्य तरल पदार्थ को पिरामिड के अंदर रखने से उसमें मौजूदा दूषित तत्व नष्ट हो जाते हैं। धन त्रयोदशी या शुक्ल पक्षीय त्रयोदशी या गुरु-पुष्य योग के दिन पिरामिडीय यंत्र को कुबेर मंत्रों से अभिमंत्रित करके आॅफिस, दुकान या व्यवसाय स्थल के उत्तरी स्थान पर स्थापित कर दें। व्यवसाय व धन-धान्य में अवश्य वृद्धि होगी। किसी शुभ योग में दुर्गासप्तशती मंत्र से पिरामिड को अभिमंत्रित करके घर के दक्षिणी स्थान पर स्थापित कर दें, घर में रहने वाले सभी सदस्य बुरी आत्मा व नकारात्मक तत्वों के किसी भी प्रकार के दुष्ट प्रभावों से सुरक्षित रहेंगे।