क्या नरेंद्र मोदी बनेंगे प्रधानमंत्री रवि जैन व्यक्ति-विशेष का जन्मांग और भाग्य कितना भी प्रबल क्यों न हो, वह अपने देश के प्रधानमंत्री पद को तब तक सुशोभित नहीं कर पाता जब तक कि उस देश के सितारे उसकी अपनी ग्रह दशा के क्रम तथा चुनाव के समय के गोचर से पूर्णतः अनुरूपता प्राप्त नहीं करते। आइये, करते हैं, इसी दृष्टि से भारत एवं मोदी के जन्मांग व गोचर का सटीक ज्योतिषीय विश्लेषण। भारत और मोदी की कुंडलियों के आईये, ज्योतिष विद्या के सिंद्धातानुसार श्री नरेन्द्र मोदी के जन्मांग का ज्योतिषीय विश्लेषण कर यह जानने का प्रयास करते हंै कि क्या मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं ? तकनीकी संचार माध्यम से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक श्री मोदी का जन्म गुजरात प्रदेश के वदनगर में 17 सितम्बर 1950 को दोपहर 12.21 बजे अनुराधा नक्षत्र द्वितीय चरण में 19 अंश पर वृश्चिक लग्न में हुआ। लग्न में स्वगृही मंगल एवं चंद्र ग्रह की युति से लक्ष्मी योग, मंगल से रूचक योग, उच्च बुध के साथ सूर्य की युति से बुधादित्य योग बना है। इसके अलावा प्रजासुख के कारक ग्रह शनि एवं शुक्र के केन्द्र में होने से जातक पराक्रमी, साहसी, तर्क के साथ शीध्र निर्णय लेने की क्षमता, शत्रुओं एवं विरोधियो पर काबू पाने वाला बडे व्यक्तियों व साधु-संतों का आदर करने वाला एवं प्रशासन का सफल संचालन करने की क्षमता के साथ जनता को खुश करने व सेना नायक के रूप में अपनी छवि बनाने वाला होता है। इन गुणों को श्री मोदी के स्वभाव में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। आइए, जानते हैं श्री मोदी के जन्मांग एवं ग्रह नक्षत्रों के योग-संयोग क्या बताते हैं? श्री मोदी की जन्मपत्रिका में सूर्य 00. 39 अंश एवं शनि 29.40 अंश पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में है जिसका स्वामी सूर्य है। दोनो ग्रहों के अंश बाल एवं मृत्य अवस्था में होने से ग्रहों का क्रूर प्रभाव निर्बल बन गया है जिससे दोनो के मध्य शत्रुता भाव कम हुआ है। दशम भाव में शनि के साथ शुक्र की युति है और शनि -गुरु का आपस में दृष्टि-संबध होने से जनता में स्वच्छ छवि के साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश एवं सुप्रशासन चलाने में श्री मोदी सक्षम रहे हैं। एकादश भाव में उच्च के वक्री बुध एवं केतू सूर्य ग्रह के नक्षत्र में हैं। इन दोनों ग्रहों की युति सूर्य के साथ होने से गुजरात राज्य में देश एवं विदेश के आर्थिक निवेश को लाने में श्री मोदी प्रशासनिक, राजनीति एवं कूटनीति से अन्य प्रदेश की तुलना में अधिक सफल हुए। वहीं लग्न में स्थित भाग्य भाव का स्वामी नीच चंद्र व स्वग्रही मंगल की पूर्ण दृष्टि संगठन भाव पर होने से श्री मोदी की विचारधारा से कभी-कभी संगठन के साथ वैचारिक मतभेद होते रहते हैं। वे अपनी अहं छवि के कारण भी देश-विदेश में विवादित हो जाते है। लेकिन अंततः मोदी का ही पक्ष मजबूत होता है। श्री मोदी गुजरात राज्य में पहली बार अक्तूबर 2001 से दिसम्बर 2002 तक शुक्र-बुध-शुक्र की दशांतर में तथा दिसंबर 2002 से दिसंबर 2007 के मध्य दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। मोदी की कुंडली में शुक्र प्रजाकारक ग्रह शनि के साथ दशम भाव में है और एकादश भाव में उच्च के बुध की प्रत्यंतर दशा में मोदी को मुख्यमंत्री पद दिलाया। इसी प्रकार तीसरी बार दिसंबर 2007 में सूर्य में शनि की अंतर्दशा चल रही थी। सिंह राशि मे शनि दशम भाव में है तथा उच्च के बुध के साथ सूर्य ने बुधादित्य योग का निर्माण किया है। सूर्य-शनि की प्राकृतिक शत्रुता होते हुए भी इस योग ने श्री मोदी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। कुंडली में सूर्य, शनि दोनो ही कम अंशों के साथ सूर्य के नक्षत्र में होने से सूर्य बलशाली रहा है। गुरु-शनि की आपस में पूर्ण दृष्टि एवं पंचम भाव में राहू और उस पर सूर्य बुध तथा केतू की दृष्टि होने के कारण मोदी विवादों में होकर न्यायालय के चक्कर भी लगाते रहे हैं। लग्न एवं षष्टम भाव के स्वामी मंगल का स्वग्रही होकर लग्न में होना साहसी, पराक्रमी, निर्णय क्षमता में वृद्धि करता है जिसके कारण श्री मोदी को शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती रही। ‘‘ इसका ताजा उदाहरण हाल ही में भाजपा की राष्टीयकार्यकारिणी की बैठक मुंबई में श्री मोदी ने अपनी सभी शर्तों को भाजपा के आलाकमान से मनवाकर अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल हुए हैं। दूसरी ओर स्वतंत्र भारत की वृषभ लग्न की पत्रिका के तृतीय भाव की कर्क राशि में पांच ग्रहों (सूर्य, बुध, शुक्र, शनि, चंद्र ) की युति है। देश में अभी तक मंगल, शुक्र, सूर्य एवं शनि ग्रहों वाले व्यक्ति ही प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए हैं। इनमें से मंगल एवं शुक्र राशि का वर्चस्व प्रधानमंत्री के लिए अधिक रहा है। ग्रहों के मान से सन् 1947 से 2012 वर्तमान समय तक भारत मंे चैदह प्रधानमंत्री हुए है। इनमें ग्रहों का प्रभाव इस प्रकार रहा है। मंगल ग्रह -सर्वश्री लालबहादूर शास्त्री , चरणसिंह , चंद्रशेखर , अटलबिहारी वाजपेयी , (4) शुक्र ग्रह - श्रीमती इंदिरा गांधी , राजीव गंाधी , विश्वनाथप्रतापसिंह , इंद्रकुमार गुजराल (4) शनि ग्रह - श्री जवाहरलाल नेहरू, गुलजारीलाल नंदा (2) सूर्य ग्रह - श्री मोरारजी देसाई , मनमोहनसिंह (2) बुध ग्रह - पी.वी. नरसिंहराव (1) भारत के लोकसभा चुनाव 2014 में होने हंै लेकिन अचानक राजनैतिक घटनाक्रम बदलने पर चुनाव जनवरी 2013 में होने की स्थिति में आकाशीय ग्रहों की स्थिति के मान से सूर्य मकर मंे, शनि तुला में, वृषभ में गुरु, मकर राशि में मंगल तथा राहू तुला में और केतु मेंष में गोचर करेगें। जनवरी में भारत की कुडंली के मान से सूर्य में शनि की अंतर्दशा रहेगी। श्री मोदी को उस समय भाग्य भाव की राशि कर्क के स्वामी चंद्र में राहू में केतू की दशांतर रहेगी। तुला राशि में राहू और शनि द्वादश भाव में गोचर करेगें। द्वितीय एवं पंचम भाव की राशि का स्वामी गुरु मारक स्थान सप्तम भाव में, दशम भाव की राशि
ंिसंह का स्वामी सूर्य अपनी राशि से षष्टम होकर तृतीय भाव में गोचर करेगा जो मोदी को प्रधान मंत्री बनने में बाधक बन सकते हैं। वर्तमान लोकसभा की नियत अवधि पूर्ण हो जाने पर नवंबर 2014 में चुनाव होने के समय भारत की कुंडली में सूर्य में शुक्र में सूर्य की दशांतर होगी। वहीं श्री मोदी के लिए चंद्र में गुरु में चंद्र अथवा मंगल का दशांतर गोचर मंे रहेगा। गोचर ग्रहों के मान से सूर्य शनि एवं शुक्र वृश्चिक में, गुरु कर्क में, मंगल धनु में व राहू कन्या में, रहेगें। श्री मोदी की कुंडली के मान से लग्न में दशम भाव का स्वामी सूर्य, तृतीय भाव एवं चतुर्थ भाव के स्वामी शनि एवं सप्तम व द्वादश भाव के स्वामी शुक्र की युति रहेगी। लग्न तथा षष्टम भाव का स्वामी मंगल अपनी राशि से द्वितीय एवं नवम होकर द्वितीय भाव में गोचर करेगा। गुरु उच्च का होकर भाग्य भाव में होगा। उस वक्त श्री मोदी को लग्न, पंचम एवं भाग्य भाव की दंशातर रहेगी और भारत के मान से तृतीय भाव में कर्क राशि में गुरु की भाग्य भाव पर पूर्ण दृष्टि होगी। सूर्य, शनि, शुक्र की सप्तम भाव में युति होगी तथा उस समय भारत की सूर्य एवं शुक्र की दंशातर होगी। भारत और मोदी की कुंडलियों के ग्रहों की चाल के मान से श्री नरेन्द्र मोदी के भारत के आगामी प्रधानमंत्री बनने के प्रबल योग बनते हैं। लेकिन मोदी के लिए बाधक ग्रह, भाग्य भाव की राशि कर्क का स्वामी चंद्रमा होता है जो लग्न में नीच का होकर मंगल के साथ है। मंगल एवं चंद्र की पूर्ण दृष्टि संगठन भाव सप्तम पर पूर्ण होने के कारण मोदी एवं संगठन के मध्य आपसी मतभेद उभर सकते हंै जिससे श्री मोदी को निपटना होगा।