यंत्र संबंधी अनिवार्यताएं यंत्र में देवताओं का निवास होता है यंत्र में देवता का वास न होने पर वह मात्र धातु का एक टुकड़ा या निर्जीव पदार्थ ही बनकर रह जाता है। यदि यंत्र की आकृति गलत हो अथवा उसमें अन्य किसी प्रकार की त्रुटि हो तो अधिकतम निवेदन करने पर भी देवता उस यंत्र से प्रसन्न नहीं होते जिस कारण उस यंत्र में चमत्कारी शक्ति का प्रवेश नहीं हो पाता। यंत्रों का लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें उर्जान्वित करना अतिआवश्यक होता है। केवल ऊर्जायुक्त यंत्र ही जीवन को सफल और समृद्ध बना सकता है और उसके लिए कुछ दिशा निर्देशों का पालन करना बाध्यकारी होता है। यंत्रों का प्रयोग करने की सरल विधि: जब हम यंत्र की पूजा करते हैं, हम अपनी इच्छाओं, अभीष्ट व आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु दैवी सहायता मांगते हैं। परम आस्था, श्रद्धा एवं पूर्ण विश्वास से की गई यंत्र पूजा ही, बाधाएं दूर करके हमें स्वास्थ्य, सुखी व समृद्ध जीवन तथा मार्गदर्शन देती है। यंत्र की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा एवं उसे हितकारी बनाने संबंधी दिशापूर्ण निर्देश इस प्रकार हैं- Û सर्वप्रथम अपना शरीर पवित्र करें व चितवृŸिा को सकारात्मक बनाएं। पूर्व अथवा उŸार की ओर मुख करके आसन पर विराजमान हों। पूजा की चैकी पर नया कोरा लाल वस्त्र बिछाएं। यंत्र खोलें व उसे चैकी पर रखें। साथ ही प्रसादी भी रखें। सुगंध अथवा दीपक जलाएं। उसके सामने ताजे फूल रखें। तांबे अथवा मिट्टी का कलश लें, आम के ताजे पŸो उसके मुख पर चारों ओर लगाकर बीच में नारियल रखें। नारियल के चारों ओर मौली बांधें। एक ताजे पŸो में जल लेकर अपने ऊपर व पूजा की चैकी के चारों ओर छिड़कें। अपनी कलाई पर मौली (कलावा) बांधें तथा माथे पर रोली व चावल का तिलक लगाएं। अपनी आंखें बंदकर यंत्र पर एकाग्र चिŸा से ध्यान लगाएं, अपनी इच्छापूर्ति हेतु, आशीर्वाद हेतु आशीर्वाद मांगें, यंत्र से संबंधित मंत्रोच्चारण करें अथवा 108 बार गुरु मंत्र का जप करें। कुछ समय पश्चात आपको लगेगा कि आपकी मनः स्थिति एक उन्न्ात धरातल पर है क्योंकि यंत्र की दिव्य शक्ति आपके जीवन को दिशा देने हेतु एक प्रकाश स्तम्भ बन चुकी है।