मन्त्रों द्वारा रोग मुक्ति के उपाय
मन्त्रों द्वारा रोग मुक्ति के उपाय

मन्त्रों द्वारा रोग मुक्ति के उपाय  

व्यूस : 19691 | अकतूबर 2012
मंत्रों द्वारा रोग मुक्ति के उपाय नूर चैधरी हमारी संस्कृति में मंत्रों का बहुत अधिक महत्व रहा है। इतना अधिक कि कभी तो इनकी शक्ति पर विश्वास कर पाना कठिन हो जाता है। पुराने जमाने में हमारे ऋषि-मुनि बहुत मंत्रों का जाप करके कठिन तप करते थे और अपनी इच्छा का फल प्राप्त करते थे और उनमें से बहुत से ऐसे मंत्र हंै जिन मंत्रों के जाप से व्यक्ति अपने रोगों को दूर करके स्वस्थ रह सकता है। मैं यहां कुछ ऐसे मंत्रों का उल्लेख कर रही हूं जिनके प्रयोग से विभिन्न रोगों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। ये मंत्र बहुत प्रभावी हैं। रक्तचाप: रक्तचाप नामक रोग में जब किसी का रक्त सामान्य गति को छोड़कर तेज अथवा मंद गति से शिरा के माध्यम से मस्तिष्क में जाये तो रक्तचाप नामक रोग होगा। ज्योतिष में रक्त का प्रतिनिधि मंगल को माना गया है। जब कुंडली में मंगल अशुभ या पीड़ित अवस्था में हो और चंद्र भी पीड़ित हो, तो जातक को रक्तचाप होगा। अगर कंुडली में मंगल पापी ग्रह के साथ अकारक होगा अथवा अग्नि तत्व राशि में अग्नि ग्रह के साथ होगा तो जातक को उच्च रक्तचाप का रोग होगा। यदि मंगल पीड़ित अथवा निर्बल होकर चंद्र के साथ हो या अन्य किसी जल राशि में हो, तो निम्न रक्तचाप होगा। इसके अलावा मंगल के अशुभ होने अथवा अशुभ भाव में होने से रक्त विकार भी हो सकता है। अगर किसी स्त्री की कुंडली में यह स्थिति हो, तो उसे रक्तचाप के साथ मासिक धर्म की समस्या भी होगी। मंगल मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी है जो कालपुरुष के गुप्तांगों का प्रतिनिधित्व करती है। इस बीमारी को दूर करने के लिए आपको संकल्प लेना होगा। रोग मुक्ति तक आप इतने मंत्र जाप अवश्य करेंगे तथा रोग मुक्त होने पर आप श्री मंगल देव तथा श्री हनुमान जी के नाम पर यह करेंगे तथा रोग मुक्त होने पर कुछ चढ़ावा चढ़ा देंगे। इसके बाद शुक्लपक्ष के पहले मंगलवार से लाल चंदन की माला से मंगल गायत्री ‘‘ऊँ अंगारकाय विद्महे शक्तिहरताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्’’ का जाप आरंभ करें। जप के बाद नित्य लाल गाय को चारा, गुड़, चने का भोग लगाकर बच्चों में प्रसाद बांटें। शनिवार को सुंदर कांड का भी पाठ करें। मंत्र पूर्ण होने पर दशांश हवन कर किसी युवा स्त्री को भोजन कराकर लाल वस्त्र तथा दक्षिणा के साथ सवा किलो गुड़ व लाल मसूर भी दान करें। अगर आपका रोग विकराल हो, तो आप मंगल यंत्र भी धारण कर सकते हैं। इस साधनाकाल में आप हर प्रकार के संयम का पालन अवश्य करें। कुछ ही समय में आप चमत्कारिक लाभ महसूस करेंगे। सवा लाख मंत्र होने तक आप पूर्णतः रोग मुक्त हो जायेंगे। हृदय रोग: यह रोग भी बहुत ही घातक होता है। आजकल बहुत से लोग इससे पीड़ित हैं। मेरा स्वयं का अनुभव है और मैंने स्वयं अपने कई लोगों और मित्रों को मंत्र साधना के माध्यम से इस रोग से मुक्ति दिलाई थी। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति चाहे ब्लोकेड हो तो भी आप मंत्र जाप से इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं। वैसे भी विज्ञान में इसका कोई स्थाई उपचार नहीं है। ज्योतिष में हृदय रोग का मुख्य कारक सिंह राशि, सूर्य तथा चतुर्थ भाव को माना गया है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह सब दूषित तथा पीड़ित हो, तो उसको हृदय रोग अवश्य ही होता है। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार के अस्थि रोग की संभावना भी होती है। अतः इस रोग से बचने के लिए व्यक्ति को सूर्य के मंत्र का जाप ‘‘ऊँ घृणि सूर्य आदित्य ऊँ’’ का जाप करना चाहिए। अवश्य लाभ मिलेगा। इसके लिए वह संकल्प लेकर किसी रविपुष्य योग से सूर्य यंत्र के सामने लाल आसन पर बैठकर चंदन की माला से सवा लाख मंत्र का जाप करें और अगर इस साधनाकाल में नित्य आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ के साथ सूर्य यंत्र भी धारण करें तथा नित्य लाल गाय अथवा लाल बैल को गुड़ का भोग दें तो कुछ ही समय में उसे प्रभाव दिखाई देगा। नित्य जाप आरंभ करने से पहले सूर्य देव को जल में गुड़ मिलाकर अघ्र्य अवश्य दें। मंत्र जाप तथा आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें तो फिर उसे कभी भी यह रोग नहीं होगा, हमारा विश्वास है। मधुमेह: इस रोग में व्यक्ति अपने स्वाद की कोई मिठाई भी नहीं खा सकते हैं। ज्योतिष में मधुमेह (शुगर) के लिए रोग भाव अर्थात छठे भाव में शनि की उपस्थिति तथा शुक्र के निष्प्रभावी होने के साथ गुरु भी थोड़ी भूमिका निभाते हैं। इसमें यदि सिर्फ शुक्र बलहीन हो, तो मधुमेह होता है और मंगल भी पापी अथवा अकारक हो, तो (ब्लड शुगर) होता है। ज्योतिष में शुक्र को गुप्तांग तथा वीर्य का मुख्य कारक माना जाता है। मधुमेह के रोगी को भविष्य में गुप्त रोग की संभावना भी होती है। अतः इस रोग से निवृŸिा के लिए मुख्यतः शुक्र का प्रभाव अधिक है इसलिए शुक्र मंत्र जप करना लाभप्रद रहता है। यदि ब्लडशुगर हो, तो मंगल की शांति आवश्यक है। इसके लिए आप किसी शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से संकल्प लेकर सांध्यकाल में मां लक्ष्मी की तस्वीर के सामने सफेद आसन पर बैठकर स्फटिक की माला से शुक्र गायत्री ‘‘ऊँ भृगु जातायविद्महे दित्यदेवाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्’’ का जाप करें। जाप के बाद नित्य नौ वर्ष से कम आयु की कन्याओं को मिश्री के साथ अन्य कोई भी सफेद प्रसाद दें। पीपल में दूध गुड़ मिश्रित मीठा जल व सरसों के तेल का दीपक तथा केले के वृक्ष में सादा जल व शुद्ध घी का दीपक जलाएं। गाय को आटे की दो लोई, गुड़ व चने की गीली दाल का भोग दें। शुक्र का रत्न हीरा अथवा उपरत्न जर्किन चांदी में अंगूठी में जड़वा कर धारण करें। मंत्र साधना के अंतिम दिन किसी वृद्ध ब्राह्मण को खीर व मिश्री का भोजन कराएं। आपका यह नियम पूर्ण मंत्र साधना में चलेगा। साधना समाप्त होने के बाद शुक्र का मंत्र जाप, सिर्फ शुक्रवार को पीपल में जल अर्पण, शनिवार को केले के वृक्ष में जल अर्पण व गुरुवार को गाय को भोग देना है। यदि आपको ब्लडशुगर भी है, तो शुक्र मंत्र के जाप के साथ मंगल का मंत्र जाप भी करना है। यह आप रक्तचाप रोग के संदर्भ में बताई गई विधि से भी कर सकते हैं, अवश्य फल मिलता है। स्नायुरोग: जो व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हो उससे जानें, कि रोग कितना कष्टकारी होगा। यदि यह कम रूप में भी हो, तो भी अत्यंत पीड़ाकारक होता है। व्यक्ति हाथ-पैरों में होने वाली पीड़ा से छटपटाता रहता है। ज्योतिष में स्नायुरोग के लिए मुख्यतः शनिदेव को जिम्मेदार माना गया है। क्योंकि शनि कालपुरुष में दुःख के साथ स्नायुरोग का भी कारक है। किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि यदि अकारक अथवा पीड़ित है तो व्यक्ति के कमर से नीचे के हिस्से में अवश्य ही दर्द होगा इसलिए यदि किसी को यह रोग हो अथवा कमर दर्द रहता हो, तो वह शनिदेव की मंत्र साधना से इस रोग से पूर्णतः मुक्ति पा सकते हैं। यदि किसी प्रकार से व्यक्ति यह साधना किसी पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर सांध्यकाल में करे, तो उसे बहुत ही शीघ्र लाभ प्राप्त होगा। इसके लिए सर्वप्रथम किसी पीपल के वृक्ष को देखें। वैसे आपको पीपल का वृक्ष आपके पास वाले मंदिर में ही मिल जायेगा। फिर जिस दिन आपको मंत्र-साधना आरंभ करनी है उस दिन अंधेरा होने पर किसी पात्र में गुड़, दूध व शहद मिश्रित मीठा जल, आटे के दीपक में सरसों के तेल के साथ एक कोई भी कील, तिलक के लिए रोली, चावल, भोग के लिए कोई भी प्रसाद, काली धूप, अगरबŸाी, काला आसन, काले हकीक की माला तथा सादा सूत का धागा जो काले रंग से रंगा हो, लेकर जायें। सर्वप्रथम पीपल पर काले रंग के सूत को निम्न मंत्र, जो आपको जपना है मानसिक रूप से जपते हुए सात बार लपेंटे। फिर पीपल को रोली से तिलक बिंदी कर धूप, अगरबŸाी, दीपक व शनिदेव से अपने रोग की मुक्ति की प्रार्थना कर संकल्प लेकर काले हकीक की माला से निम्न मंत्रों में से कोई एक मंत्र का जाप आरंभ कर दें। शनि गायत्री - ‘‘ऊँ भगभवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात्’’ अथवा शनि वैदिक महामंत्र - ‘‘ऊँ शन्नो देवीरभिष्टऽयापो भवन्तुपीतये। शंष्योरिभस्त्रवन्तुनः’’।। अब जिस प्रकार से आपने नित्य जितने मंत्र जपने का संकल्प लिया है उतने मंत्र जाप के बाद मीठा जल पीपल की जड़ में अर्पित कर बायें हाथ से आठ बार पीपल की जड़ को स्पर्श कर अपने माथे से लगायें। अगले दिन पुनः मंत्र जाप करने के लिए आने का निवेदन करंे, उसके बाद अपने घर वापस आ जायें। घर में प्रवेश से पहले आप हाथ-पैर अवश्य धोयें। आप प्रयास कर संकल्प इस प्रकार लें, कि जिस पुष्य नक्षत्र से आपने साधना आरंभ की थी, उसके बाद एक नक्षत्र निकलने के बाद अगले आने वाले पुष्य नक्षत्र पर आपकी साधना समाप्त हो जाये अर्थात जिस पुष्य नक्षत्र को साधना समाप्त हो, आप किसी विकलांग भिखारी को भोजन अवश्य कराएं। साधना के पहले दिन ही आप किसी भी पीपल की थोड़ी सूखी लकड़ी तथा पीपल की जड़ को काले कपड़े में लपेटकर अपने सिरहाने लगाने वाले तकिये में रखें। साधना के कुछ ही दिन बाद आप चमत्कार महसूस करेंगे। यह साधना आप यदि किसी भी कारण से किसी पीपल के नीचे नहीं कर पायें, तो अपने घर में भी कर सकते हैं। स्नायुविकार के अतिरिक्त आप शनिकृत कष्टों से भी मुक्ति के लिए भी यह साधना कर सकते हैं। इससे आपको बहुत लाभ होगा।



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