दशमहाविद्या यंत्र एवं संपूर्ण महाविद्या यंत्र रेखा कल्पदेव दस महाविद्याओं की उपासना विभिन्न शक्ति विग्रहों के रूप में की जाती है। जबकि पराशक्ति जो नित्य तत्व है और हमेशा वर्तमान स्थिति में रहकर विश्व का संचालन करती है उसकी उपासना यंत्र रूप में करने पर सर्वश्रेष्ठ फल देती है। इन दस महाविद्याओं में विभिन्न विद्याओं से जुड़े हुए यंत्र और संपूर्ण महाविद्या यंत्र की उपासना से क्या प्रत्यक्ष लाभ होता है इसकी जानकारी दी गयी है, इस लेख में। ब्रह्ममांड बिंदु-आकार में स्पंदन कर रहा है। उसके विभिन्न स्तरों पर भांति-भांति के विश्व विराजमान हैं। हर स्तर का अपना एक निश्चित स्पंदन और चेतना है। इस महाविशाल बिंदु के शिखर पर दश महाविद्याएं रहती हैं जो ब्रह्ममांड का सृजन, व्यवस्था और अवशोषण करती हैं। ये परम ब्रह्ममांडीय मां के व्यक्तित्व के ही दस पहलू हैं। बिंदु रूप ब्रह्म वामाशक्ति है क्योंकि वही विश्व का वमन (यानी उत्पन्न) करती है- ब्रह्म बिंदुर् महेशानि वामा शक्तिर्निगते विश्वं वमति यस्मात्तद्वामेयम् प्रकीर्तिता (ज्ञानार्णव तंत्र, प्रथम पटल-14) पराशक्ति नित्य तत्व है जो हमेशा वर्तमान स्थिति में रहती और विश्व का संचालन करती है। वही शक्ति आद्या यानी ब्रह्म की जन्मदात्री है। वही जगत का मूल कारण, निमित्त और उपादान भी है। शक्ति साधना क्रम में दस महाविद्याओं की उपासना की प्रधानता है। ये महाविद्याएं ज्ञान और शक्ति का प्रतीक हैं। दश महाविद्याओं की यंत्र रूप में उपासना करना सर्वश्रेष्ठ फल देता हैं। सिद्ध महाकाली यंत्र सिद्ध महाकाली यंत्र एक दुर्लभ यंत्र है जो कि अत्यन्त ही प्रभावशाली है, शक्तिशाली है, चमत्कारी है। इसे आप घर में, दुकान में, फैक्ट्री में, आॅफिस में रख भी सकते हैं और दबा भी सकते हैं। महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस रेखा कल्पदेव यंत्र के नित्य पूजन से अरिष्ट बाधाओं का स्वतः ही नाश होकर शत्रुओं का पराभव होता है। महाकाली यंत्र शत्रु नाश, मोहन, मारण, उच्चाटन आदि कार्यों में प्रयुक्त होता है। देवी तारा यंत्र: तारा शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य, रूप और ऐश्वर्य की देवी हैं। इसकी उपासना से आर्थिक उन्नति, भोग, दान और मोक्ष प्राप्ति होती हैं। देवी तारा यंत्र की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्व सिद्धि कारक माना गया हैं। तारा महाविद्या के फलस्वरूप व्यक्ति इस संसार में व्यापार, रोजगार और ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण विख्यात यश वाला प्राणी बन सकता हैं। इनके यंत्र की पूजा करना अत्यंत लाभकारी हैं। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी यंत्र जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ वशीकरण, आरोग्य-सिद्धि के लिए षोडशी त्रिपुर सुंदरी महाविद्या यंत्र की आराधना की जाती है। कमल पुष्पों से होम करने से धन, सम्पदा की प्राप्ति होती है। मनोवांछित वर प्राप्ति या कन्या का विवाह होता है। वांछित सिद्धि और मनोभिलाषा पूर्ति सहित व्यक्ति दुख से रहित और सर्वत्रपूज्य होता है। माता भुवनेश्वरी यंत्र आदि शक्ति भुवनेश्वरी भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं। मां का स्वरूप सौम्य एवं अंगकांति अरूण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। माता भुवनेश्वरी यंत्र आराधना से जहां साधक के अंदर सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है, वहीं वह संसार का सम्राट भी बन सकता है। माता भुवनेश्वरी यंत्र अभिमंत्रित करने से लक्ष्मी वर्षा होती है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं। छिन्नमस्ता यंत्र माता का स्वरूप अत्यंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता यंत्र की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। इससे लेखन और कवित्व शक्ति की वृद्धि होती है। शरीर रोग मुक्त होता है। शत्रु परास्त होते हैं। इस की उपासना से योग ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक को संसार में ख्याति मिलती है। छिन्नमस्ता यंत्र की साधना को दसो महाविधाओं में सबसे श्रेष्ठ माना गया हैं क्योंकि एक तो ये शीघ्र फल देने वाली है दूसरा अपने साधकों की सभी कामनाओं को पूर्ण करती हैं। माता भैरवी यंत्र सोलह अक्षरों के मंत्र वाली माता की अंग-कांति उदीयमान सूर्य मंडल की आभा की भांति है। इन की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। षोडशी को श्री विद्या भी माना जाता है। यह माता भैरवी यंत्र साधक को भक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। माता भैरवी यंत्र साधना से षोडश कला निपुण संतान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। माता भैरवी यंत्र उपासना से आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानी सर्वाधिक धनी व्यक्ति बनकर सुख-भोग करता है। धूमावती यंत्र मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। इनका स्वामी नहीं है। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। धूमावती महाविद्या यंत्र के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम-संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला, लोभ-लालच से रहित हो। इस यंत्र के फल से देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग, अरिष्ट और शत्रुओं को नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है। बगलामुखी यंत्र व्यक्ति रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला मुखी है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। दसमहाविद्याओं में बगलामुखी सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली महाविद्या है, जिसकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिककाल में समय-समय पर की है। बगलामुखी यंत्र की साधना से साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है। मातंगी यंत्र मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह श्याम वर्ण और चंद्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही मूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं। मातंगी यंत्र की नित्य उपासना से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तंभन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी यंत्र महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीडा-कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह यंत्र कारगर सिद्ध हुआ है। कमला यंत्र स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति, नारी-पुत्रादि के लिए कमला यंत्र की साधना की जाती है। इस प्रकार दस महामाताएं गति, विस्तार, भरण-पोषण, जन्म-मरण, बंधन और मोक्ष की प्रतीक हैं। कमला यंत्र की पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसार भर में प्रचारित हो जाता है। संपूर्ण महाविद्या यंत्र दशमहा विद्या महा यंत्र, समस्त इच्छाओं की पूर्ति, शक्तिमान व भूमिवान बनाने के अतिरिक्त समस्त सिद्धियों को सुलभ करवाता हैं तथा धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए इसका प्रयोग किया जाता हैं। श्रीयंत्र के चारों ओर भगवती दुर्गा के दशावतारों काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, बगलामुखी के आशीर्वाद से जीवन को अधिक से अधिक सार्थक व सफल बनाया जा सकता है।