नवरात्र में करें माता बगलामुखी की साधना पं. प्रवीण जोशी दश महाविद्याओं में बगलामुखी एक मात्र ऐसी देवी है जिसकी साधना शत्रु दमन तथा रोग एवं दुखदारिद्रय तथा कलह से मुक्ति प्राप्त करने के विशेष उद्देश्य से की जाती है। इस साधना का नैष्ठित विधि से किस प्रकार और कब अनुष्ठान किया जाय इसकी विस्तृत जानकारी दी गयी है इस लेख म नवरात्र का समय देवी अनुष्ठान, तंत्रक्रिया एवं सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ है। मूलतः यह साधना तंत्र से संबंधित है, तांत्रिक षट्कर्मों में विशेषकर स्तंभन के लिए रामबाण है। साधना विशेशकर सुख-समृद्धि, राजनैतिक लाभ, वाक् सिद्धि, संतान प्राप्ति, तंत्र-सिद्धि, गृह-शांति, शत्रुनाश, वशीकरण, उच्चाटन, रोग, दरिद्रता, मुकदमा एवं जेल से मुक्ति जैसे असाध्य कष्टों के निवारण के लिए की जाती है। साधना शुक्ल पक्ष में गुरु एवं रवि-पुष्य योग में आरंभ की जानी चाहिए। यह असंभव तो नहीं पर कठिन अवश्य है, अतः किसी योग्य अनुभवी व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही की जानी चाहिए। इसमें चूक होने या परपीड़ा के लिए इसका उपयोग करने पर साधक विक्षीप्त तक हो सकता है। साधना काल में श्रद्धा, विश्वास, आत्मसंयम एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है। यदि इस समय अलौकिक अनुभूति हो तो विचलित नहीं होना चाहिए। साधना रात्रि के समय देवी के मंदिर, पर्वत, पवित्र नदी के तट पर या किसी सिद्ध स्थल पर एकांत में की जानी चाहिए। माता के प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर दतिया, नलखेड़ा, खरगौन, वाराणसी एवं हिमाचल प्रदेश में वनखेड़ी, कोटला, गंगरेट में स्थित हैं। ये स्थान तंत्र-साधना के प्रमुख शक्ति स्थल है। साधना के लिए चैकी पर पीला वस्त्र बिछाकर माता को चित्र, बगलामुखी यंत्र, कलश एवं अखंड दीपक स्थापित करें। माता बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। अतः साधना के आरंभ में महामृत्युंजय की एक माला एवं बगला कवच का पाठ करना चाहिए। साधक पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन एवं हरिद्रा (हल्दी) की माला, पीले रंग की पूजन सामग्री, प्रसाद आदि ले। उपासक अपनी मनोकामना/कष्ट निवारण के लिए संकल्प लेकर माता का ध्यान कर पूजन आरंभ करना चाहिए। अनुष्ठान के लिए दस हजार से लेकर एक लाख तक जप करने का विधान है साधक को अपनी क्षमता एवं संकल्प शक्ति के अनुसार जप का निर्धारण कर प्रतिदिन समान संख्या में निम्न मंत्र का जप करना चाहिए। ‘‘ऊँ ह्रीं बगलामुखि सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय हृीं ऊँ स्वाहा।।’’ यह मंत्र बगलामुखी साधना का मूल आधार है। दरिद्रता दूर करने के लिए माता के विशेष मदार मंत्र ‘‘श्री हृीं ऐं भगवती बगले मे श्रियं देहि-देहि स्वाहा।।’’ इस मंत्र के प्रयोग से साधक कभी दरिद्र नहीं होता। जपानुष्ठान के पश्चात् दशांश हवन करने का विधान है। साधक को अपनी कामनानुसार हवन करना चाहिए। संतान प्राप्ति के लिए: अशोक के पत्ते, कनेर के पुष्प, तिल व दुग्ध मिश्रित चावल से, धन के लिए चंपा के पुष्प से, देव-स्तवन एवं तंत्र-सिद्धि के लिए नमक, शक्कर, घी से, आकर्षण के लिए सरसों से, वशीकरण,-उच्चाटन के लिए गिद्ध एवं कौए के पंख, तेल, राई, शहद, शक्कर से, शत्रु नाश के लिए शहद, घी, दुर्वा से, रोग नाश के लिए गुग्गल, घी से, राजवश्यता के लिए गुग्गल व तिल से, जेल से मुक्ति व गृह-शांति के लिए पीली सरसों, काले तिल, घी, लोभान, गुग्गल, कपूर, नमक, काली मिर्च, नीम की छाल से हवन करना चाहिए। माता बगलामुखी की साधना जिस घर में होती है वह शत्रु, रोग, दुख-दारिद्रय, कलह आदि से मुक्त रहता है।