श्राद्ध पक्ष-पितर ऋण मुक्ति मार्ग
श्राद्ध पक्ष-पितर  ऋण मुक्ति मार्ग

श्राद्ध पक्ष-पितर ऋण मुक्ति मार्ग  

व्यूस : 10427 | अकतूबर 2012
श्राद्ध पक्ष- पितर ऋण मुक्ति मार्ग रेखा कल्पदेव कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति। आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।। पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्। देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।। देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।। -गरुड़ पुराण ‘‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।’’ श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है जो श्राद्ध का प्रथम अनिवार्य तत्व है अर्थात पितरों के प्रति श्रद्धा तो होनी ही चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महालय पक्ष कहलाता है। इस अवधि के सोलह दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से निर्धारित किये गए हैं। यही अवधि पितृ पक्ष के नाम से जानी जाती है। पितृ पक्ष में किये गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है तथा कर्ता को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण गीता में उपदेशित करते हैं। आत्मा जब तक अपने परम$आत्मा से संयोग नहीं कर लेती, तब तक विभिन्न योनियों में भटकती रहती है। और इस दौरान उसे श्राद्ध कर्म में संतुष्टि मिलती है। शास्त्रों में देवताओं से पहले पितरो को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी कहा गया है। यही कारण है कि देवपूजन से पूर्व पितर पूजन किये जाने का विधान हैं। श्राद्धकर्म में कुछ विेशेष बातों का इस वर्ष श्राद्ध पक्ष की शुरूआत 29 सितंबर 2012 से हो रही है। श्राद्ध तिथि विवरण निम्न है। पूर्णिमा तिथि-श्राद्ध 29 सितंबर महालयारम्भ प्रतिपदा तिथि श्राद्ध 30 सितंबर (नाना-नानी का श्राद्ध) द्वितीया तिथि श्राद्ध 1 अक्तूबर तृतीया तिथि श्राद्ध 2 अक्तूबर चतुर्थी तिथि श्राद्ध 4 अक्तूबर पंचमी तिथि श्राद्ध 5 अक्तूबर षष्ठी तिथि श्राद्ध 6 अक्तूबर सप्तमी तिथि श्राद्ध 7 अक्तूबर अष्टमी तिथि श्राद्ध 8 अक्तूबर नवमी तिथि श्राद्ध 9 अक्तूबर- सौभाग्यवती श्राद्ध (माता के श्राद्ध) दशमी तिथि श्राद्ध 10 अक्तूबर एकादशी तिथि श्राद्ध 11 अक्तूबर द्वादशी तिथि श्राद्ध 12 अक्तूबर सन्यासियों का श्राद्ध त्रयोदशी तिथि श्राद्ध 13 अक्तूबर चतुर्दशी तिथि श्राद्ध 14 अक्तूबर - शस्त्र-जल अग्नि-विषादि से मृतकों का श्राद्ध। अमावस्या 15 अक्तूबर चतुर्दशी तिथि में लोक छोड़ने वालों का श्राद्ध (सर्वपितृ श्राद्ध) ध्यान रखा जाता है, जैसे:- जिन व्यक्तियांे की सामान्य मृत्यु चतुर्दशी तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध केवल पितृपक्ष की त्रयोदशी अथवा अमावस्या को किया जाता है। जिन व्यक्तियों की अकाल-मृत्यु (दुर्घटना, सर्पदंश, हत्या, आत्महत्या आदि) हुई हो, उनका श्राद्ध केवल चतुर्दशी तिथि को ही किया जाता है। सुहागिन स्त्रियों का श्राद्ध केवल नवमी को ही किया जाता है। नवमी तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम है। संन्यासी पितृगणों का श्राद्ध केवल द्वादशी को किया जाता है। पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त व्यक्ति का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। नाना-नानी का श्राद्ध केवल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। पितृ दोष के कारण: परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से, उनके निर्मित वार्षिक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएं होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि पितृ दोष का कारण हो सकता है। पितृ दोष कुंडली योग: यदि किसी जातक की कुंडली में पितृदोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां, हानियां उठानी पड़ती है। घर में कलह, अशांति रहती है। रोग-पीड़ाएं पीछा नहीं छोड़ती है। घर में आपसी मतभेद बने रहते हैं। कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती है। अकाल मृत्यु का भय बना रहता है। संकट, अनहोनियां, अमंगल की आशंका बनी रहती है। संतान की प्राप्ति में विलंब होता है। घर में धन का अभाव भी रहता है। अनेक प्रकार के महादुखों का सामना करना पड़ता है। पितृदोष के लक्षण - घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है। घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर मे झगडे होते रहते हैं। अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता। संतान के विवाह में काफी परेशानियां और विलंब होता है। शुभ तथा मांगलिक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पड़ती है। अथक परिश्रम के बाद भी थोड़ा-बहुत फल मिलता है। बने-बनाए काम को बिगड़ते देर नहीं लगती। श्राद्ध प्रकार: नित्य - यह श्राद्ध के दिनों में मृतक के निधन की तिथि पर किया जाता है। नैमित्तिक- किसी विशेष पारिवारिक उत्सव, जैसे-पुत्र जन्म पर मृतक को याद कर किया जाता है। काम्य-यह श्राद्ध किसी विशेष मनौती के लिए कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है। श्राद्ध के अधिकारी: पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं। पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध व्यक्ति तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो। पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है। गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है। श्राद्ध में महत्वपूर्ण बातें - अपरान्ह का समय, कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और ब्राह्मण की उपस्थिति। श्राद्ध के लिए उचित बातें - श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं - तिल, चावल, जौं, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और फल। तीन चीजें शुद्धिकारक हैं- पुत्री का पुत्र, तिल और नेपाली कम्बल। तीन बातें प्रशंसनीय हैं- सफाई, क्रोधहीनता और चैन (हड़बड़ी व जल्दबाजी) का न होना। श्राद्ध के लिए अनुचित बातें - कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में प्रयुक्त नहीं होते-मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्रजल से बना नमक। भैंस, हिरणी, ऊँटनी, भेड़ और एक खुरवाले पशु का दूध भी वर्जित है, पर भैंस का घी वर्जित नहीं है। श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध विधि: सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें। घर आंगन में रंगोली बनाएं। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं। पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें और गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें। पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं, और घर, परिवार व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।



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