तंत्र में प्रयुक्त शब्दों की धारक-म6 ाअरगस्कत शक्ति तंत्र के छः प्रयोगों - मारण, वशीकरण उच्चाटन आदि छः कार्मिक प्रयोगों में कुछ मनोवृत्तिसूचक सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ये शब्द हैं - नमः, स्वाहा, वषट् वौषट्, हुम् और फट्। अंतः करण की शांत अवस्था में नमः शब्द का प्रयोग किया जाता है। वस्तुतः सारी भीषण, घातक और अपकारी शक्तियां विनय के सामने नत्मस्तक हो जाती हैं। इस मनोवृत्ति से साधक अपने शत्रुओं की सारी विरोधी भावनाओं को हटाकर उनपर अपना अधिकार जमाकर उनका नियंत्रक बन जाता है। ‘स्वाहा’ शब्द व्यक्ति की यथा शक्ति दूसरे के परोपकार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अपने सभी लौकिक व आध्यात्मिक साधनों को लगा देने अर्थात् उसके लिये अपना सबकुछ झोंक देने की भावना को व्यक्त करता है। वस्तुतः यही सही शिव भाव है। बषट्: शब्द से अन्तःकरण की जो वृत्ति परिलक्षित होती है उसमें अपने शत्रुओं के संबंधियों का अनिष्ट साधन करने अर्थात् उन का प्राण हरण कर लेने तक की भावना रहती है। जबकि वौषट् शब्द अपने शत्रुओं के हृदयांे में एक दूसरे के प्रति द्वेष उत्पन्न करके, उन्हें उनके अनिष्टकारी कार्यों में संयुक्त प्रयास से हटाकर उन्हें व्यक्ति के स्तर पर एकाकी छोड़ देने के भाव को व्यक्त करता है। इससे शत्रुओं की एकजुट होकर कार्य करने वाली शक्ति छिन्न-भिन्न होकर निष्फल हो जाती है। ‘हुम’् शब्द उस क्रोध को अभिव्यक्त करता है जो व्यक्ति के सर्वविध बल के प्रयोग द्वारा अपने शत्रुओं को उनके स्थान अर्थात् अपने लक्ष्य से हटा देने के भाव से उत्पन्न होता है। यह भाव महाकाली के शस्त्रधारी संहारकारी स्वरूप को भी प्रगट करता है। ‘फट्’ शब्द स्वयं सक्रिय शस्त्र प्रयोग द्वारा शत्रु का समूल विनाश कर देने वाले भाव का परिचायक है जो साक्षात् रुद्र की उस विनाशकारी शक्ति का प्रतीक है जिसका प्रयोजन नव-निर्माण के लिये, अप्रासंगिक और प्रयोजन विहीन खंडहरों का समूल उच्छेदन करके, नये धरातल की व्यवस्था करना है। इन छह शब्दों में ब्रह्मा, विष्णु व महेश की महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली नामक शक्तियों का समावेश है जो साधक के मन के स्तर पर उतर कर उसे अपने लक्ष्य के लिये संपूर्ण एकाग्र भाव से परिपूरित कर देती है तथा साध्य प्राप्ति के क्षण तक उसे चैन से बैठने नहीं देती।