आशा भागोती व्रत
आशा भागोती व्रत

आशा भागोती व्रत  

व्यूस : 11041 | अकतूबर 2012
आशा भागोती (भगवती) व्रत पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी आशा भागोती (भोगती) का व्रत आश्विन मास की कृष्णाष्टमी से अमावस्या तक करने का विधान है। आशा भागोती जगत् जननी माँ का ही एक कल्याणकारी स्वरूप है जो सभी की इच्छाओं (कामनाओं) को पूर्ण करने वाला है। व्रत वाले दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही ब्रह्म मुहूर्त में जागकर नित्य नैमिŸिाक क्रियाओं से निवृŸा होकर शुद्ध भाव से संकल्प करें कि आज से मैं पूर्ण आचार-विचार से युक्त हो, आशा भागोती व्रत का पालन करुंगी। संकल्पोपरांत देशानुसार कहीं-कहीं आठ कोने का चैका लगाने का विधान है। चैका लगाकर कलश स्थापन गणेश- गौर्यादि पूजन की आठ पुते हुए कोनों पर एक-एक कर- जल, दूध, वस्त्र, रोली, मेंहदी, कलावा, सुहाली (मठरी, बायना) व दक्षिणा अर्पण करें। धूप व दीपक पूर्व में ही जलाकर रख लें। उपरोक्त कार्यों को पूर्णकर पूर्ण श्रद्धा भाव से कहानी सुनें। इस प्रकार प्रतिदिन करें। आठ पुते कोने अष्टभुजा माँ भगवती का ही जगत्वन्दनीय स्वरूप है। आठवें दिन व्रत का भी पालन करें और आठवें दिन उपरोक्त वस्तुओं के साथ फल व सुहाग पिटारी (सुहाग की चीजों से परिपूर्ण सुहाग पिटारी) होती है जिसमें सुहाली भी हो, उसे आठों कोनों पर चढ़ावें और उसे सुहागिन ब्राह्मणियों को यथाशक्ति भोजनादि पदार्थों से तृप्तकर द्रव्य, दक्षिणादि व सुहाग पिटारी देकर विदा करें व एक समय आठ सुहाली का ही प्रसाद पावें। क्षेत्रानुसार एक सुहाग पिटारी सासू माँ के पैरों पड़कर भी दें। सभी का मंगलमय आशीर्वाद प्राप्त करें। जी की बारात आई तो राजा ने कुछ भी नहीं दिया और कन्यादान कर दिया। शिवजी पार्वती जी को लेकर कैलाश पर्वत पर चले गये। जब पार्वती जी जाने लगीं तो वे जहां पर पांव रखतीं, वहीं से दूब जल जाती। शिवजी ने पण्डितों को बुलाकर पूछा कि क्या दोष है कि पार्वती जी जहां भी पांव रखती हैं वहीं से दूब जल जाती है। इस पर पण्डित बोले कि पार्वती जी की भाभियां आशा भागोती का व्रत करती थीं तो उन्होंने तो अपने पीहर में जाकर उद्यापन कर दिया। अब ये भी अपने पीहर जाकर उद्यापन करेंगी, तब इनका दोष मिटेगा। शिवजी बोले-हम वहां चलकर धूमधाम से व्रत का उद्यापन करेंगे। नहीं तो उनको कैसे पता चलेगा कि पार्वती जी इतनी सुखी हैं। वह वहां से खूब गहने-कपड़े पहनकर चले गये। रास्ते में एक राजा की रानी को बच्चा होने वाला था। वह बहुत परेशान थी और भीड़ भी इकट्ठी हो रही थी। पार्वती जी ने पूछा-इतनी भीड़ क्यों हो रही है? लोगों ने उन्हें सब बात बता दी। शिवजी ने भी बहुत मना किया परंतु उन्होंने जिद पकड़ ली। शिवजी बोले कि औरत की हठ बहुत खराब होती है। शिवजी ने उनकी कोख बांध दी। गौरा अपनी ससुराल में बहुत दुःखी थी। पार्वती जी जब अपने पीहर आईं तब उन्हें कोई पहचान ही नहीं पाया। जब पार्वती जी ने अपना नाम बताया तब सभी लोग काफी प्रसन्न हुए। उसके पिता ने पूछा, तू किसके भाग का खाती है? तब पार्वती जी फिर से बोलीं, मैं अपने भाग का खाती हूं तभी तो इतनी खुश हूं। वहां उसकी भाभियां आशा भागोती का उद्यापन कर रहीं थीं। तब पार्वती जी पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी इस प्रकार व्रत का पालन आठ वर्ष तक नियमानुसार करें। नवें वर्ष में इस व्रत का उद्यापन करें। उद्यापन में सुहाग की सभी वस्तुएं, स्वर्ण, चांदी के आभूषण यथाशक्ति व आठ-आठ सुहाली व सुहागिन ब्राह्मणियों को मिष्ठानादि से पूर्ण तृप्त कर द्रव्य-दक्षिणा सहित सुहाग पिटारियों को चरण स्पर्श कर ब्राह्मणियों को देकर मंगल गीत गाते हुए विदा करें। सासू माँ को भी एक सुहाग पिटारी चरण वंदन के बाद अवश्य ही अर्पित करें, तो निश्चय ही बिगड़े हुए कार्य पूर्ण होते हैं, जीवन उज्ज्वल बनता है, संसार में प्रसिद्धि-मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति व मनोभिलाषा पूर्ण होती है। इसकी कहानी इस प्रकार है- कहानी-आशा भागोती प्राचीन समय में हिमाचल में एक राजा रहता था जिसकी दो पुत्रियां थीं। एक का नाम था गौरा और दूसरी का पार्वती। एक दिन राजा ने अपनी दोनों लड़कियों को बुलाकर पूछा कि तुम किसके भाग का खाती हो। तब पार्वती बोली, मैं तो अपने भाग का खाती हूं और गौरा बोली- मैं तुम्हारे भाग का खाती हूं। राजा ने ब्राह्मण को बुलाकर कहा कि पार्वती के लिए भिखारी वर ढूंढ़ना और गौरा के लिए राज वर ढूंढ़ना। तब ब्राह्मण ने गौरा को संुदर राजकुमार और पार्वती को बूढ़ा भिखारी लाकर दिया। भिखारी का रूप धारण करके शिवजी ही बैठे थे। राजा ने पार्वती जी की शादी के लिए कुछ भी तैयारी नहीं की और गौरा के लिए विवाह की बहुत-सी तैयारी कीं। जब गौरा की बारात आई तो बारात की बहुत खातिर की गई और शादी बड़े ही धूमधाम से संपन्न हुई। परंतु जब पार्वतेी बोलीं कि मेरे उद्यापन की तैयारी नहीं है। नहीं तो मैं भी उद्यापन कर देती। इस पर भाभियों ने कहा- तुम्हारे पास किस चीज की कमी है। शिवजी तो अपने आप ही सारी तैयारी कर देंगे। भाभियां दासी से बोलीं, शिवजी कुंए के पास बैठे हैं, उनको जाकर कह कि वे पार्वती जी के आशा भागोती के व्रत के उद्यापन की तैयारी कर दें। दासी ने शिवजी से ऐसा ही कहा। शिवजी ने दासी को अंगूठी दी और कहा कि इससे जो मांगंेगे वह सब मिल जायेगा। दासी ने अंगूठी ले जाकर पार्वती जी को देकर शिवजी का संदेश सुना दिया। पार्वती जी ने ठीक प्रकार से तैयारी कर ली। 8 सुहाग पिटारी मंगवाई, 8 तिल, 8 गहने, 8 पोली, 8 नथ, सुहाली, चूड़ा, नाल, डाली, रोली, मेहंदी, सिंदूर, काजल, टीका, शीशा और सुहाग की सभी चीजें डाल दीं। एक सुहाग-पिटारी सासूजी को देने के लिए अलग से तैयार कर ली। यह देखकर भाभियां बोलीं, हम तो 8 महीने से तैयारी कर रहे हैं तब भी इतनी तैयारी नहीं हुई और इसने थोड़ी-सी देर में ही ढेर सारी तैयारी कर ली। शिवजी ने पार्वतीजी से कहा- ‘‘अब घर चलो।’’ तब ससुर ने शिवजी को जीमने के लिए बुलाया तो शिवजी खूब गहने पहनकर और छोटा-सा रूप बनाकर बड़ी धूमधाम से जीमने गये। तब लोग बोले कि पार्वतीजी को भिखारी ढूंढ़कर दिया परंतु पार्वती अपने भाग से खूब राज कर रही हैं। शिवजी जीमने लगे तो सारा खाना खत्म कर दिया। पार्वती जी जीमने लगीं तो वहां कुछ भी नहीं बचा था। सिर्फ एक सब्जी उबली हुई पड़ी थी तो पार्वतीजी वही साग खाकर ठंडा पानी पीकर वहां से चलने लगीं। रास्ते में खूब गर्मी थी। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। तब शिवजी ने पूछा कि तुम क्या खाकर आई हो, तब पार्वती जी बोलीं- ‘‘जो तुमने खाया, वही मैंने खाया।’’ परंतु शिवजी सब जानते थे। शिवजी हंसने लगे और बोले- ‘‘तुम तो सब्जी और पानी पीकर आई हो।’’ पार्वती जी बोलीं कि आपने तो मेरा परदा खोल दिया लेकिन किसी और का परदा मत खोलना। बाद में आगे गये तो जो दूब सूख गई थी वह हरी हो गई। शिवजी ने सोचा कि दोष तो मिट गये। पार्वतीजी बोलीं कि महाराज अब मेरी कोख खोल दो। शिवजी बोले अब कैसे खोलूं। मैंने तो पहले ही मना कर दिया था। वहां से आ गये तो वही रानी कूंआ पूजने जा रही थी। पार्वती जी ने पूछा- महाराज, यह क्या हो रहा है? इस पर शिवजी बोले- कि यह वही रानी है जो दुःख पा रही थी। अब इसके लड़का हो गया, इसीलिए कुंआ पूजने जा रही है। पार्वतीजी बोलीं- ‘‘महाराज! मेरी तो कोख खोलो।’’ तब शिवजी बोले- ‘‘मैंने तो तुमसे पहले ही मना किया था कि कोख मत बंधवाओं लेकिन तुमने जिद की थी।’’ तब जादू से सारी चीजें निकालकर गणेश जी बनाये तो पार्वतीजी ने बहुत सारे नेग-चार किये और कुंआ-पूजन किया। पार्वतीजी बोलीं- मैं सुहाग बांटूगी तो सारे देश में शोर मचेगा कि पार्वतीजी सुहाग बांट रहीं हैं, जिसको लेना हो ले ले। साधारण मनुष्य तो दौड़कर सुहाग ले गये परंतु ब्राह्मणी और वैश्य स्त्रियां सुहाग लेने देर से पहुंची। तब पार्वती जी बोलीं- मैंने तो सारा सुहाग बांट दिया। शिवजी बोले- इनको तो सुहाग देना पड़ेगा। पार्वती जीे ने नाखूनों में से मेहंदी निकाली, मांग में से सिंदूर, बिंदी में से रोली, आंखों में से काजल और चिचली अंगुली से छींटा दे दिया और उन्हें सुहाग मिल गया व सारी नगरी मं े जय-जयकार हो उठी कि पार्वतीजी ने सबको सुहाग दिया है।



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