तन्त्र - मंत्र : अभिन्न सम्बन्ध
तन्त्र - मंत्र : अभिन्न सम्बन्ध

तन्त्र - मंत्र : अभिन्न सम्बन्ध  

व्यूस : 11268 | अकतूबर 2012
तंत्र-मंत्र: अभिन्न संबंध शिव-शक्ति की तरह तंत्र-मंत्र भी एक दूसरे से जुड़े शरीर और प्राण के समान है जिसमें एक जटिल साधन है तो दूसरा उसकी सर्वव्याप्त संचालिका शक्ति। वस्तुतः मंत्र ही तंत्र का प्राण है जो उसे जीवंत रूप देता है। प्रत्येक क्रिया के अलग-अलग मंत्र होते हैं। बिना मंत्र के तंत्र की कोई क्रिया नहीं होती। वस्तुतः क्रिया के स्वरूप के अनुसार ही मंत्र का स्वरूप निर्धारित किया जाता है। इसीलिये मंत्र कई प्रकार के होते हैं। कुछ मंत्र योग-साधन के लिये उपयोगी होते हैं जबकि कुछ मंत्रों का प्रयोजन रोग की शांति होता है। इसके साथ ही कुछ मंत्र ऐसे भी होते हैं जिनका उपयोग संसार के कार्यों में होता है। उड्डीश तंत्र में ऐसे कई मंत्र हैं। ऐसा ही एक मंत्र है, उड्डीश तंत्र का चैरानवे वां ‘मंत्र महामृत्युंजय मंत्र’ जिसे रुद्र मंत्र भी कहते हैं। इस का प्रयोजन शरीर के सड़ने को अर्थात् मृत्यु के चिन्हों को हटा देना है। इसके द्वारा हम उन शिव की अथवा उस रूद्र रूप की पूजा-उपासना करते हैं जो प्राण-शक्ति के कम होने पर शरीर में उत्पन्न होने वाली दुर्गन्ध को दूर करके शरीर में प्राण शक्ति का संचार करता है तथा शरीर को सौन्दर्ययुक्त करके उसे ऊर्जावान् ओजपूर्ण बना कर सभी प्रकार के रोगों का हरण करके मृत्यु को इस प्रकार दूर भगा देता है जैसे सांप अपनी पुरानी केंचुली के जर्जर आवरण को अपने शरीर से दूर कर देता है। उड्डीश तंत्र में दिये गये मंत्र अनेक प्रकार के लौकिक कार्यों का साधन करते हैं। इस तंत्र मे आपत शांति, क्रोध शांति, लोक वशीकरण, निद्रास्तंमन, अग्नि स्तंमन, शस्त्र स्तंमन, सैन्य स्तंभन तथा भूत-प्रेत बाधा जैसे कठिन क्लेशादि का निवारण करने वाले अनेकानेक मंत्रों का विवरण तथा प्रयोग-विधान है। गौतमीय तथा महानिर्वाण तंत्र के मंत्रों में दशाक्षर मंत्र, मुक्ति मंत्र, पीठ मंत्र, अष्टादशाणों मंत्र, ब्रह्म मंत्र, आराधन मंत्र, गायत्री मंत्र, आद्या मंत्र, अघ्र्य मंत्र, मुद्राशोधन मंत्र, प्राण प्रतिष्ठा मंत्र, आत्म समर्पण मंत्र जैसे मंत्र पुरूषार्थ चतुष्ट्य जैसे आध्यात्मिक लक्ष्यों की उपलब्धि के उद्देश्य को प्रमुखता देते हैं। गौतमीय तंत्र तो पूरी तरह ईश्वर-प्रेम को जाग्रत करने के प्रति समर्पित है। मंत्र तथा तंत्र के गहन तथा व्यापक संबंध को हृदयंगम करने के लिये मंत्रमहोदधि नामक ग्रंथ समुचित संदर्भ-ग्रंथ है जिसमें अनेकानेक मंत्रों का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। वस्तुतः मंत्रों के सिद्धांत केवल तंत्र शास्त्र में न होकर, अन्यान्य ग्रंथों में भी उनका उल्लेख एवं उपयोगिता निरूपण मिलेगा।



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