तंत्र शास्त्र : प्रक्रित्यानुरूप उपासना एवं प्राप्तियां
तंत्र शास्त्र : प्रक्रित्यानुरूप उपासना एवं प्राप्तियां

तंत्र शास्त्र : प्रक्रित्यानुरूप उपासना एवं प्राप्तियां  

व्यूस : 6617 | अकतूबर 2012
तंत्र शास्त्र के सभी गं्रथों का मुख्य उद्देश्य सिद्धि लाभ तथा महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की अनुग्रह प्राप्ति ही है। इसीलिये शक्ति की उपासना की जाती है। आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति उसे मांस-मद्य आदि से पूजते हैं। उससे उन्हें उसी प्रकार की मारण, उच्चाटन आदि आसुरी सिद्धियां ही प्राप्त होती हैं। दैवी प्रकृति यानी सात्विक भाव वाले व्यक्ति उसकी पंचोपचार उपासना गंध-पुष्प आदि पदार्थों तथा जप, ध्यानादि निर्मल साधनों से करते हैं जिससे उन्हें दिव्य सिद्धियां (अष्ट सिद्धियां अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, इशिता, वशिता तथा प्राकाम्या) प्राप्त हो जाती हैं जो साधक की सभी बाधाओं का निराकरण तंत्र शास्त्र: प्रकृत्यानुरूप उपासना एवं प्राप्तियां करके उसे अंत में जीवन्मुक्ति प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त जहां तक राजसी भाव का प्रश्न है, ऐसे भाव की प्रधानता वाले साधकों की साधना-यात्रा केवल इस प्रत्यक्ष लोक अर्थात् पृथ्वी और उसकी परिधि में आने वाले क्षेत्रों में स्थित सीमित एवं क्षीयमान व नाशवान अनित्य आधिभौतिक सुखों की प्राप्ति और निरंतर उपलब्धि तक सीमित रहती है। इसीलिये वे अपनी संपूर्ण मनः शक्ति का प्रयोग षोड़शोपचारयुक्त राजसी वैभवपूर्ण आडम्बरों से परिपूर्ण यज्ञ पूजनादि उपासना का आश्रय लेते हैं और इस लोक का सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं परंतु दिव्य प्राप्तियों से सर्वदा दूर ही रहते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.