भवन और वास्तु
भवन और वास्तु

भवन और वास्तु  

बालकिशन भारद्वाज
व्यूस : 9134 | दिसम्बर 2014

वास्तु का प्रचलन सदियों, युगों पहले से है या यूं कहें कि सतयुग के आरंभ से ही था तो भी इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि विश्वकर्मा जी ने अलग-अलग युग में सोने की लंका, इंद्रप्रस्थ व द्वारिका का भी भव्य निर्माण वास्तु सम्मत ही किया था। आज देखने में आता है कि अच्छा खासा भवन होने के बावजूद भी घर में सुख, शांति, औलाद, पैसा नहीं होता, वजह साफ है घर वास्तु सम्मत नहीं है इसलिए घर में इन सभी का अभाव है। घर किस दिशा में है? मुख्य द्वार किस दिशा में है? घर के सामने क्या है? घर के पीछे क्या है? पानी का स्रोत किस दिशा में है? मंदिर किस दिशा में है? रसोई किस दिशा में है? शयन कक्ष किस दिशा में है? ब्रह्म स्थान कहां है? मर्म स्थान कहां है? इन सबका सही विधिवत होना अति महत्वपूर्ण है।

सिर्फ घर बना लेना काफी नहीं उसको वास्तु सम्मत बनवाना अति आवश्यक है। आज करोड़ों अरबों के मकान में वारिस नहीं हैं.. सुख नहीं है... शांति नहीं है.... धन नहीं रूकता। इन सबका एक ही समाधान है और वो है वास्तु और केवल वास्तु। हमारे देश की बड़ी-बड़ी धरोहर भी वास्तु सम्मत हैं। इसका वैज्ञानिक कारण भी है कि घर में हमेशा शुद्ध ऊर्जा रहे, नकारात्मक ऊर्जा का वास न हो। शुद्ध ऊर्जा यानि खुशहाली। वास्तु में भवन के केंद्र स्थान को ब्रह्म स्थान कहते हैं। इसे यदि कच्चा छोड़ा जाये तो अति उत्तम होता है।

इसे वास्तु पुरुष की नाभि कहा गया है और ऊर्जा का स्रोत कहा गया है। इस स्थान पर किसी भी प्रकार का निर्माण वर्जित है, इसे खुला व हल्का रखें अर्थात यहां किसी भारी वजन का सामान न रखें। ब्रह्म स्थान के बीच के क्षेत्र को मर्म स्थान भी कहते हैं। यहां पांच स्थान अतिमर्म स्थान की श्रेणी में आते हैं। इन स्थानों पर निर्माण किसी वास्तुविद् की ही देख-रेख में करना चाहिए। अब कुछ सामान्य जानकारी प्रस्तुत है जिनसे आपको अपने घर का वास्तु सुधारने में मदद मिलेगी और आप इसका लाभ उठा सकेंगे: - कभी भी दक्षिण दिशा के मुख्य द्वार वाला भवन न लें और यदि लेना भी पड़े तो भवन के बाहर मुख्य द्वार के ऊपर पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा स्थापित करें। इससे भवन का दोष खत्म होगा व विपत्ति से छुटकारा मिलेगा।

पश्चिम, पूर्व व उत्तर दिशा मुख वाले भवन को प्राथमिकता दें।

- ध्यान रखें भवन के सामने कोई भी भारी वृक्ष न हो, अन्यथा घर का मुखिया युवावस्था में ही अकस्मात् मृत्यु को प्राप्त होगा। पीपल व बरगद के वृक्ष कष्ट नहीं देते वो देव वृक्ष कहलाते हैं परंतु मकान के सामने बाधा अवश्य उत्पन्न करते हैं।

- घर के पास किसी वृक्ष की छाया अगर भवन पर पड़ती है तो उस पेड़ को प्रतिदिन जल से सींचना चाहिए।

- घर में कभी भी अनार का पेड़ नहीं लगाना चाहिए और न ही कांटे वाले पौधे लगाने चाहिए अन्यथा आपके दुश्मन अकारण बढ़ जायेंगे।

- घर के ब्रह्म स्थान में हमेशा तुलसी का पौधा लगायें व नित्य उसकी पूजा करें, ज्योत जलायें।

- घर के बाहर व ऊपर हरे बड़े पत्ते वाले पौधे रखें, खुशहाली आएगी।

- घर में हमेशा गणेश जी की प्रतिमा को इस प्रकार लगायें कि उनका मुख घर के अंदर व उनकी पीठ घर के बाहर की तरफ हो।

- घर में कभी भी रक्तरंजित चित्र, युद्ध वाले चित्र, संहारक देवी देवता के चित्र, तस्वीर, रक्तपात वाले चित्र, उग्र रूप धारण किये चित्र नहीं लगाना चाहिए। हमेशा शांत भाव, प्रसन्न मुद्रा वाले व स्थिर चित्र, तस्वीर ही लगायें। इससे घर में शांति बनी रहेगी।

- घर की दीवारों पर कभी भी लाल रंग, रक्त रंग न करायें। हमेशा हल्के रंग का प्रयोग करें, जैसे नीला, पीला, क्रीम आदि।

- घर में समस्या ज्यादा है तो फिश बाॅक्स, एक्वेरियम का प्रयोग करें, प्रतिदिन मछलियों को भोजन दें।

- घर की छत पर कभी भी उल्टे मटके, बर्तन इत्यादि न रखें।

- घर में सीढ़ियों के नीचे कोई निर्माण न करें और न ही वहां कुछ सामान रखें।

- घर में कभी भी बीम, पिलर या देहली के नीचे न सोयें।

- पानी का स्रोत हमेशा उत्तर दिशा में रखें।

- रसोई में कभी भी सिंक और गैस सिलंडर एक साथ न रखें।

- घर मं मंदिर हमेशा पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में ही स्थापित करें।

- घर में सभी भारी चीजें, विद्युत उपकरण, अलमीरा आदि दक्षिण दिशा में रखें।

- घर के पूर्व भाग को हमेशा नीचा, खुला व पश्चिम भाग को ऊंचा रखें।

- घर के मुख्य द्वार पर हमेशा क या ‘ऊँ’ का प्रयोग करें।

- घर में सीढ़ियां हमेशा दक्षिण - पश्चिम, पश्चिम, दक्षिण में ही बनायें।

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