रसोई घर यानि भारतीय गृहिणी का हृदय, क्योंकि भारतीय गृहिणी का सबसे ज्यादा समय जिस स्थान पर व्यतीत होता है वह है उसका रसोई घर। उसकी दिनचर्या रसोईघर से ही प्रारंभ और रसोईघर में ही समाप्त होती है। अतः एक तरह से रसोईघर पूरे घर का हृदय होता है।
वास्तु शास्त्र सुविधा, आराम, अग्नि, गर्मी, बिजली के झटके से सुरक्षा, कीड़ों, कीटनाशक दवाओं से सुरक्षा, धुआं निकास, गर्मी, प्रदूषण, प्रकाश, आर-पार वायु संचालन इन सभी की सूक्ष्म और सावधानी पूर्वक सोच-विचार की आवश्यकता है, और रसोई घर में इनका पूर्ण रूप से प्रावधान होना चाहिए।
रसोई के लिए सर्वोत्तम स्थान दक्षिण-पूर्व है जिसपर अग्नि का प्रभुत्व है, जो अग्नि और ताप का देव है। हम सब जानते हैं कि आग और ताप के बिना कुछ भी पकाया, सेंका या गर्म नहीं किया जा सकता। दूसरा विकल्प रसोई घर को उत्तर-पश्चिम कोने में रखने का है। रसोईघर उत्तर-पूर्व, मध्य-उत्तर, मध्य-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, मध्य-दक्षिण या केंद्र में स्थित नहीं होना चाहिए।
इसी प्रकार से यह शयन कक्ष, पूजा घर या शौचालय के नीचे या ऊपर नहीं होना चाहिए। यदि किसी कारणवश रसोईघर दक्षिण-पूर्व या पश्चिम में छोड़कर और कहीं बन गया है तो उसके लिए हम कुछ उपाय करके उसके दोषों को पूर्णतया तो समाप्त नहीं कर सकते हैं लेकिन काफी हद तक इसे कम किया जा सकता है।
उपाय: जिस भी दिशा में रसोई घर गलत बन गया है, उस रसोईघर में स्लैब को उत्तर-पूर्व को छोड़कर पूर्व साईड में ही लगाना चाहिए तथा चूल्हे की पोजिशन उस कक्ष के पूर्व-दक्षिण साईड में ही करनी चाहिए तथा खाना पूर्व की तरफ मुंह करके ही बनाना चाहिए। भवन की पूर्व-दक्षिण दिशा में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जितनी देर तक चूल्हा जले जलाकर रखना चाहिए। कांच के रिफ्लेक्शन से यदि रसोई दक्षिण-पूर्व साईड में दिखे तो कांच लगाना चाहिए।
जिस गलत दिशा में रसेाई बनी है उस दिशा का यंत्र उस दिशा की दीवार पर लगाना चाहिए तथा तीन पिरामिड रसोई घर में लगाना चाहिए। रसोई के दरवाजे के बाहर और अंदर एक दूसरे के पीछे विघ्न-विनायक गणपति की स्थापना करनी चाहिए। रसोई के अगल-बगल में तुलसी के पौधे लगायें तथा इसके साथ ही वास्तु देव की पूजा, दोषपूर्ण दिशा के अधिदेव की पूजा, मंत्र जाप, तथा वास्तु-शांति एवं हवन के द्वारा गलत दिशा में बने रसोई के वास्तु दोषों से छुटकारा पाया जा सकता है।
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