वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते हैं। आपको विस्मय होना स्वाभाविक है कि जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर कभी समाप्त नहीं होते बल्कि केवल दवाइयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देते रहते हैं। वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर ऊर्जा का केन्द्र होता है। जहां भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ की वस्तुओं की ऊर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है।
यदि उस भवन/ स्थान की ऊर्जा उस व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है, शरीर स्वस्थ रहता है, सही निर्णय लेने में समर्थ होते हैं, सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढ़ता है, धन की वृद्धि होती है जिससे समृद्धि बढ़ती है। यदि वास्तु दोष हो एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं हो तो अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती।
वह व्यक्ति अनेक व्याधियों व रोगों से दुखी होने लगता है, अपयश तथा हानि उठानी पड़ती है। भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास् त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में हंै। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास् त्र में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।
वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्ध ांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टप्रद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व् यक्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास् त्र का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं।
मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारण् ाा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास् त्र संप ूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश् वर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है। वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त् वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त् व जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश हैं। भवन निर्माण में इन तत्त् वों का उचित अनुपात ही उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन् न एवं समृद्धिदायक बनाता है।
भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यप्रद रश्मियों का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धि दायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें।
जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुद्ध बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है। यथा- शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम् चतुर्वर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम् शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत् परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम् शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम् शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः।।
विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।
क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व रचित अघम शरीरा। मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुद्धि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर है जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे। (कुछ प्रमुख वास्तुदोष जिनके कारण मधुमेह/शुगर या डायबिटीज का रोग हो सकता है)....
1 दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ, जल, बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढ़ाता है।
2 दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली, बगीचा या छोटे-छोटे पौधे भी शुगर का कारण हैं।
3 घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बढ ़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।
4 यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड़ा हुआ भी है तो समझें मधुमेह का द्वार खुल गया।
5 दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है तो मधुमेह बढे़गी, इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखंे।
6 दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देता है।
7 ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से सीढ़ियां ऊपर की ओर जा रही हो तो समझ लें कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा है अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेंगे। मधुमेह/शुगर या डायबिटीज के उपचार के लिए वास्तु नियम-
8 अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नहीं होना चाहिए, अपने घर की उत्तर-प ूर्व दिशा में नीले फ ूल वाला पौधा लगायें।
9 अपने बेडरूम में कभी भूल कर भी खाना न खाए ं।
10 अपने बेडरूम में ज ूते-चप्पल नए या पुराने बिल्कुल भी न रखें।
11 मिट्टी के घड ़े का पानी इस्तेमाल करें तथा घडे़ में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करें।
12 दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाएं।
13 अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दंे।
14 प्रत्येक म ंगलवार को अपने मित्रों को मिष्टान्न जरूर दें।
15 हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते हैं।
16 रविवार को भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड़ खिलायें तो आप स्वयं अनुभव करेंगे कि मधुमेह/शुगर कितनी जल्दी जा रही है।
17 ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुएं हटा लंे। इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है। डायबिटीज का ज्योतिषीय उपचार- मधुमेह (डायबिटीज) एक वंशानुगत रोग भी है। शरीर में जब इंसुलिन की कमी हो जाती है, तो यह रोग होता है।
दवाओं से इसको काबू किया जा सकता है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार जलीय राशि कर्क, वृश्चिक या मीन एवं शुक्र की राशि तुला में दो अथवा अधिक पापी ग्रह हों तो इस रोग की आशंका होती है। शुक्र के साथ ही बृहस्पति या चंद्रमा के दूषित होने, त्रिक भाव में होने तथा शत्रु राशि या क्रूर ग्रहों (राहु, शनि, सूर्य व म ंगल) से दृष्ट होने से भी यह रोग होता है।
अनुभूत ग्रह स्थितियां:- कई बार ऐसे जातक भी देखने में आए हैं जिनकी कुंडली में लग्न पर शनि-केतु की पाप दृष्टि होती है। चतुर्थ स्थान में वृश्चिक राशि में शुक्र-शनि की युति, मीन पर सूर्य व म ंगल की दृष्टि और तुला राशि पर राहु स्थित होकर चंद्रमा पर दृष्टि रखे, ऐसे में जातक प्रतिष्ठित, लेकिन डायबिटीज से भी पीड़ित होता है।
प्रमुख कारणः- ज्योतिष के अनुसार यदि मीन राशि में बुध पर सूर्य की दृष्टि हो या बृहस्पति लग्नेश के साथ छठे भाव में हो या फिर दशम भाव में मंगल-शनि की युति या मंगल दशम स्थान पर शनि से दृष्ट हो, तो यह रोग होता है। इसके अतिरिक्त लग्नेश शत्रु राशि में, नीच का या लग्न व लग्नेश पाप ग्रहों से दृष्ट हो व शुक्र अष्टम में विद्यमान हो। कुछ मामलों में चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि में शनि-शुक्र की युति भी डायबिटीज का कारण होती है।
ज्योतिषीय उपायः- मधुमेह होने पर शुक्रवार को सफेद कपड़े में श्रद्धानुसार सफेद चावल का सोलह शुक्रवार तक दान करना चाहिए। यह दान किसी मंदिर या जरूरतमंद व्यक्ति को करना चाहिए साथ ही ऊँ शुं शुक्राय नमः मंत्र की एक माला निरंतर करनी चाहिए।
इसी प्रकार बृहस्पति व च ंद्रमा की वस्तुओं का दान किया जाना चाहिए। शाम को या रात्रि में महामृत्युंजय मंत्र की 1 माला जाप करनी चाहिए। पुष्य नक्षत्र में संग्रह किए गए जामुन का सेवन करने व करेले का पाउडर सुबह द ूध के साथ लेने से लाभ होता है।
शुभ नक्षत्रों में औषधि सेवन और हवनः- नवीन औषधि का आरंभ अश्विनी, पुष्य, हस्त और अभिजीत नक्षत्रों में करना शुभ है। गोचरीय ग्रहों की अशुभता को शुभ करने के लिए औषधीय स्नान करना चाहिए। ग्रहों के दूषित होने पर हवन करवाना शुभ है। सूर्य की शांति के लिए समिधा, आक या मंदार की डाली ग्रहण करनी चाहिए।
चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खदिर या खैर, बुध के लिए अपामार्ग या चिचिढ़ा, गुरु के लिए पीपल, शुक्र के लिए उदुम्बर या गूलर, शनि के लिए खेजड़ी या शमी, राहु के लिए दूर्वा तथा केतु के लिए कुशा की समिधा, सरल, स्निग्ध डाली हवन के लिए ग्रहण करनी चाहिए और ग्रहों के मंत्रों के साथ यज्ञाहुतियां देनी चाहिए।
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