कालसर्प दोष निवारण के सरल उपाय निर्मल कोठारी यह निर्विवाद सत्य है कि कालसर्प योग का निर्माण मनुष्य के पूर्व जन्म के प्रारब्धों का परिणामस्वरूप होता है। इसका संबंध सीधे पितृ लोक से होता है। जातक यदि राहु और केतु के अनिष्ट निवारण हेतु उपाय करता रहे, तो इस योग के बुरे प्रभावों से रक्षा होगी और उसका जीवन सुखमय रहेगा। यहां कालसर्प योग जन्य दोषों से मुक्ति के कुछ उपायों और तज्जन्य विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। हवन रूप में ये उपाय वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य करने चाहिए। उपाय के लिए नाग पंचमी या किसी भी कृष्णपक्ष की पंचमी का दिन सर्वाधिक उपयुक्त होता है। आवश्यक सामग्री - साधक के धारण हेतु बिना धुले श्वेत वस्त्र। पूजन हेतु नाग-नागिन का चांदी का जोड़ा, रजत पत्र पर अंकित राहु-केतु यंत्र। चांदी के अभाव में नदी से लाई गई मिट्टी से भी नाग-नागिन का जोड़ा बनाया जा सकता है। शिव एवं नाग पूजा में लगने वाली समस्त सामग्री। हवन हेतु सरसों का तेल, काले तिल, देवदार, हल्दी, लोध, बला, फूट, लजा, मूसली, नागर मोथा, कस्तूरी, लोचान, सरपंख आदि। विधि सर्वप्रथम पूजा स्थल को गोबर से लीपकर उस पर वेदी का निर्माण करें। फिर स्वास्तिक आदि निर्मित कर राहु-केतु यंत्र स्थापित करें और उसके समीप जल का कलश एवं नाग-नागिन का जोड़ा स्थापित कर विधवत् आमंत्रण पूजन करें। पूजन के दौरान शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा उसे अंतिम समय तक जलने दें। तत्पश्चात् हाथ जोड़कर पहले राहु का और फिर केतु का ध्यान करें। फिर सर्प का ध्यान करें और तब राहु, केतु और नाग स्तोत्रों का पाठ करें। इसके बाद राहु और केतु कवच का पाठ करें। फिर काल और सर्प की प्रार्थना करें। यह सब करने के बाद मनसा देवी नाग प्रार्थना करें। ध्यान प्रार्थना के पश्चात् हवन की अग्नि प्रज्वलित करें तथा अग्नि देव का आवाहन एवं पूजन कर नीचे उल्लिखित मंत्रों की बताए गए नियम के अनुसार आहुतियां दें। ¬ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे स्वाहा (108 आहुति) ¬ प्रां प्रीं प्रौं सः केतवे स्वाहा (108 आहुति) ¬ हीं तत्कारिणी विषहारिणी विषरुपणी विषं हन इंद्रस्य व न्रेण नमः स्वाहा। (108 आहुति) ¬ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो अहिरव भोगैः स्वाहाः (108 आहुति) अथवा ¬ भुजगेशाय विद्यमहे सर्पराजाय धीमहि तन्नो नागः प्रचोदयात्। महामृत्युंजय मंत्र (108 आहुति) इसके पश्चात् पूर्णाहुति कर अपने प्रारब्ध कर्मों के समस्त अशुभफलों से मुक्ति एवं सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करें। तदुपरांत कलश के जल से धोकर नाग-नागिन का जोड़ा आवश्यक दक्षिणा सहित दान करंें। कलश का कुछ जल अपने ऊपर छिड़कर शेष जल तुलसी को अर्पित करें। हवन के पश्चात व्यवहृत हवन सामग्री को बहते जल में विसर्जित करें। यह प्रक्रिया कम समय और कम धन में संपन्न होने वाली पूर्णफलदायी प्रक्रिया है। इसे जातक स्वयं भी बिना किसी विशेष मार्गदर्शन के संपन्न कर सकता है। अन्य सरल विधि सवा किलो आटे का हलुआ बनवाएं। उसे कांसे की थाली में ढेरनुमा रखें। इस ढेरी के मध्य में थाली के तल तक गड्ढा बनाएं। इसमें नाग-नागिन का चांदी का जोड़ा रखें और विधिवत् पूजन करें। तत्पश्चात् उस गड्ढे को सरसांे के तेल से भर दें और उसमें अपना चेहरा देखें। फिर नाग-नागिन के दर्शन करें। उक्त प्रक्रिया के पश्चात् नाग-नागिन सहित पूरी थाली मंदिर में दान कर दें। जो लोग हलुआ बनाकर उक्त प्रक्रिया नहीं कर सकते हैं, वे नारियल नाग मंदिर में अर्पित कर फोड़ें और फिर उसका आधा भाग प्रसाद रूप में वितरित कर दें और आधे भाग में नाग-नागिन का जोड़ा रखकर पूजन आदि कर ऊपर वर्णित क्रिया करें। महाल्या के दिनों में प्रतिदिन पांच रोटियां बनवाएं और उनमें से पहली रोटी को खीर अथवा गुड़ और घी के साथ 11 आहुति के रूप में अग्नि को अर्पित करें, दूसरी रोटी 11 कौर के रूप में छत पर कौवों को खिलाएं, तीसरी गाय को, चैथी कुŸो को और पांचवीं रोटी भिखारी को दें।