कन्याकुमारी के समुद्र तट से... डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव दक्षिण भारत का कन्याकुमारी धाम एक महान पावन स्थल है। देश की सभी नदियों की पवित्र जल राशियों को अपने में समाहित करने वाले समुद्र तट पर अवस्थित यह स्थल लोगों के आकर्षण का केंद्र है। कन्याकुमारी का नाम आते ही भारत के एक महान संत का नाम स्मरण हो आता है, जिन्होंने अपने देश की गौरव गरिमा की पताका समस्त भ्ूामंडल पर फहराते हुए उसे विश्व के धर्मगुरु की उपाधि से विभूषित कराया। वह संत थे विवेकानंद लोग श्रद्धा से जिन्हें स्वामी कहते हैं। पौराणिक प्रसंग: देवी पार्वती के अनेक अवतार माने गए हैं। हिमालय कन्या के रूप में जब वे अवतरित हुईं तब कन्याकुमारी कहलाईं। पर्वत तनया ने अपने आराध्य देव शिव शंकर को प्राप्त करने हेतु जिस स्थान पर तपस्या की थी, वहीं स्थित है कन्याकुमारी का प्राचीन पावन मंदिर जिसका उल्लेख विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। मंदिर में षोडशी देवी कुमारी की हाथ Û डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव में जयमाल लिए पाषाणयुगीन प्रतिमा स्थापित है। यह भी एक संयोग ही है कि देश के सुदूर उŸार मंे प्रहरी के रूप में स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिवशंकर का वास है और देश के सुदूर दक्षिण में उन्हीं भगवान महेश्वर की साध लिए कन्याकुमारी ध्यान साधना में लीन हैं। दक्षिण और उŸार के पार्थक्य को मिटाकर देश को एकात्मता और अखंडता की अनुभूति कराने वाला यह पावन स्थल अति प्रेरणादायी है। त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी तक का रास्ता वास्तव में स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है। रास्ते में हरे-भरे घने जंगल हैं। सड़क के दोनों ओर पहाड़ों की लंबी-लंबी कतारें हैं। कहीं-कहीं समतल मैदान भी नजर आते हैं। सड़क ढलान के रूप में है जिस पर जगह-जगह लंबे-लंबे पुल हैं। पहाड़ों पर हरे-भरे वातावरण में नारियल के लंबे घने वृक्ष हैं जिनके बोझ के कारण ये पहाड़ झुके हुए प्रतीत होते हैं। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी में यहां का वातावरण पर्यटकों और भक्तों का मन मोह लेता है। जब बादलों का घना समूह सूर्य देव को अपने में छुपा लेता है तब वातावरण और भी आकर्षक हो उठता है। कन्याकुमारी में समुद्र के किनारे पानी में कुछ चट्टानें हैं, जिनसे टकराकर समुद्र की तीव्र तूफानी लहरें कुछ शिथिल पड़ जाती हैं। यह स्थान स्नान के लिए उपयुक्त है जहां ज्वार भाटे का अधिक खतरा नहीं है। इसके एक ओर स्टीमर और जहाज दूर-दूर तक तैरते नजर आते हैं और दूसरी ओर पानी के अंदर एक बड़ी चट्टान पर स्वामी विवेकानंद जी का स्मारक है। इसी चट्टान पर कन्याकुमारी का विशाल मंदिर स्थित है, जहां कन्याकुमारी के एक चरण पर स्थिर मूर्ति विराजमान है। इसी स्थान पर एक चरण पर खड़ी होकर तप करने पर भगवती को भगवान शिव से वरदान मिला था। यही वह स्थान है जहां हिन्द महासागर का पवित्र जल भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी के चरणों को पखार रहा है। चट्टान के मध्य में स्वामी विवेकानंद जी का भव्य स्मारक स्थापित है, जहां उन्होंने भारतवासियों को जीने के लिए संघर्ष करने का संदेश दिया था। कमजोर इच्छाशक्ति के लोगों के लिए यहां कोई स्थान नहीं है। मंदिर के मध्य स्वामी विवेकानंद के स्मारक पर मोटे अक्षरों में लिखा है - भारत वर्ष का पुनरुत्थान होगा, शारीरिक शक्ति से नहीं वरन् आत्मा की शक्ति के द्वारा। यह उत्थान विनाश की ध्वजा से नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा। चट्टान पर मंदिर के चारों ओर लंबी चैड़ी गैलरी बनी हुई है, जहां से दूर-दूर तक फैले हिंद महासागर के नीले जल और उसमें तैरते जहाजों को देखा जा सकता है। वर्तमान युग की एक महत्वपूर्ण घटना तो कन्याकुमारी के इस प्रतीकात्मक महत्व को और भी बढ़ा देती है। देवी कन्याकुमारी के पश्चात् स्वामी विवेकानंद दूसरे दिव्य व्यक्ति हुए जिन्होंने उस स्थल को अपनी साधना के लिए चुना था उसी साधना समाधि में उन्हें अपने जीवन कार्य का बोध हुआ और ‘मानव सेवा ही भगवत पूजा का श्रेष्ठ रूप है’, इस सनातन सत्य को प्रसारित करने की दिव्य प्रेरणा लेकर वह वहां से चल पड़े। सन् 1892 ई. की इस घटना की स्मृति में यहां एक भव्य स्मारक स्थापित है जो राष्ट्र व समाज की एकात्मता तथा सामूहिक इच्छाशक्ति की अनुपम अभिव्यक्ति है। यहां एक बड़ा संग्रहालय भी है, जहां देश-विदेश के महान् विचारकों की पुस्तकंे व साहित्य उपलब्ध हैं। हमारे देश की दक्षिणी सीमा कन्याकुमारी में ही समाप्त होती है। इससे आगे अंतर्राष्ट्रीय जल मार्ग आरंभ हो जाता है। प्रभात वेला में उगते सूर्य की स्वर्णिम रश्मियां इसे स्वर्णरंजित कर देती हैं। यहां आकर लोगों के मन में अपने देश, अपने धर्म और अपनी जाति के प्रति गर्व का भाव जाग्रत होता है, आत्मज्ञान बढ़ता है और विश्वास तथा संकल्प की भावना पनपने लगती है और मनुष्य भयमुक्त हो जाता है क्योंकि इस स्थान पर स्वामी विवेकानंद जी द्वारा कहे गए वे शब्द आज भी स्पष्ट गूंजते प्रतीत होते हैं - वीर भोग्या वसुंधरा। यह वचन सर्वथा सत्य है। सर्वदा कहो अभीः अभीः - मैं भयमुक्त हूं, मैं भयमुक्त हूं। दूसरों से भी कहो, ‘भय न करो, भय न करो। भय ही मृत्यु है, भय ही पाप है, भय ही नर्क है, भय ही अधर्म तथा भय ही व्यभिचार है।’ कैसे जाएं ? कन्याकुमारी वायु, रेल और सड़क तीनों मार्गों से देष के सभी प्रमुख भागों से संबद्ध है। इसका नजदीकी हवाई अड्डा 80 किमी दूर त्रिवेंद्रम में है जहां से बंगलोर, मुंबई, कोचीन, दिल्ली, गोवा और चेन्नई के लिए नियमित सीधी हवाई सेवाएं हैं। तिरुअनंतपुरम, दिल्ली और मुंबई से रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। देष के उत्तरी भाग के जम्मू, दिल्ली जैसे शहरों से यहां तक आने के लिए सुपरफास्ट ट्रेनों की सुविधा है। यहां से लगभग 80 किमी दूर तिरुनेलवेल्ली इसका एक और नजदीकी रेलवे जंक्शन है। तिरुअनंतपुरम, नागरकोली, तिरुनेलवेल्ली, तिरुचेंदूर, ट्यूटिकोरीन, रामेश्वरम, कोर्टल्लम, मदुरै, तेक्काडि, कोदइकनाल, पलानी, ऊटकमंड, कोचीन और कोयंबतूर से कन्याकुमारी तक पहुंचने के लिए बसों की सेवाएं भी उपलब्ध हैं। स्थानीय यातायात के लिए टूरिस्ट गाड़ियों और इंटरसिटी ट्रेनों की व्यवस्था भी है जो उसे प्रायः सभी दक्षिणी शहरों से जोड़ती हैं।