आरोग्यदाता है सूर्य पं. सुनील जोशी जुन्नरकर सूर्य की किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों की आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं। स्वर्ग सुराष्च गन्धर्वाः पाताले पन्नगादयः। मृत्युलोके मनुष्याष्च सर्वे ध्यायन्ति भास्करम्।। अर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में रहने वाले देवता, गंधर्व, मनुष्य और सर्प आदि सभी सूर्य का ध्यान करते हैं। सूर्य सभी ग्रहों में प्रधान है, इसीलिए सूर्य को ‘ग्रहाधिराज’ की संज्ञा दी गई है। सूर्य अपने प्रकाश से प्रकाशित है। इससे अन्य सभी ग्रहों को ऊर्जा एवं प्रकाश मिलता है। सौर परिवार के सभी सदस्य इसकी परिक्रमा करते हैं। इन कारणों से सूर्य सर्वाधिक प्रकाशवान नक्षत्र सिद्ध होता है। खगोल वैज्ञानिक भी सूर्य को ‘स्टार’ ही मानते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- ‘‘जगत को प्रकाशित करने वाली ज्योतियों में जो किरणों वाला (आदित्यगण) ’सूर्य’ है, वह मैं हूं।’’ यह उक्ति सूर्य नारायण की महिमा का ही प्रतीक है। सूर्य किरणें समस्त चराचर जगत में प्राणों का संचार करती हैं जिससे मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि जीवनी शक्ति प्राप्त करके पुष्ट होते हैं। सूर्य नारायण ही देवता, मनुष्य, सरीसृप और समस्त जीव समूहों कीे आत्मा एवं नेत्रों के अधिष्ठाता हैं। सूर्यदेव वैद्य शिरोमणि हैं। जब हम प्रकृति के विपरीत चलते हैं तो बीमार हो जाते हैं और जब प्रकृति के अनुकूल चलते हैं, प्रकृति के सान्निध्य में होते हैं, तब स्वस्थ रहते हैं। अतः हमें सूर्य आधारित ऋतुओं के अनुसार पथ्य-कुपथ्य का ध्यान रखकर उचित एवं संतुलित आहार लेना चाहिए, यही स्वस्थ एवं सुखी जीवन का राज है। प्राकृतिक चिकित्सा (नैचुरोपैथी) में सूर्य का स्थान सर्वोपरि है। सूर्य स्नान से चर्मरोग, उदर रोग, कुष्ठ रोग, नेत्र रोग दूर हो जाते हैं। रंग चिकित्सा विज्ञान (क्रोमोपैथी) के अनुसार सूर्य की रश्मियों से प्राप्त सात रंग (लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी) मानव शरीर की रासायनिक प्रक्रिया में अत्यंत उपयोगी होते हैं। लाल रंग के कांच के गिलास में दूध भरकर उदित होते सूर्य के सामने 1 घंटे तक रखें, और फिर इसका सेवन करें, पीलिया अथवा हृदय रोग से बचाव होगा। सूर्योदय के समय सुखासन में बैठकर, बिना पलक झपकाए दो मिनट तक सूर्य को देखने से नेत्रों की रोशनी एवं आकर्षण बढ़ता है तथा संकल्प शक्ति दृढ़ होती है। योगशास्त्र में इस क्रिया को सूर्यत्राटक कहते हैं। सूर्य की किरणों से हमें विटामिन-डी की प्राप्ति होती है। सर्दियों में धूप में शिशु की मालिश करने से हड्डियां विकसित एवं मजबूत होती हैं। महानारायण तेल को धूप से गरम करके धूप में बैठकर मालिश करने से जोड़ों के दर्द और वात रोग आदि ठीक हो जाते हैं। सूर्य के इस महत्व के कारण ही वैदिककाल से सूर्य की उपासना पर बल दिया गया है। वैद्य तो रोगी को स्वस्थ करने हेतु औषधियों का प्रयोग करते हैं, किंतु सूर्य अपनी दृष्टिमात्र से ही रोगी व्यक्ति को निरोगी बनाने में समर्थ है। आरोग्यं भास्करादमिच्छेद अर्थात् आरोग्य की कामना हमें सूर्य से करनी चाहिए, क्योंकि सूर्य ही आरोग्य के अधिष्ठित देवता हैं। पद्मपुराण का कथन है, ‘सूर्यः सर्वरोगात् समुच्यते’ अर्थात सूर्य सब रोगों से मुक्ति दिलाता है। मानव शरीर को स्वस्थ, क्रियाशील, ऊर्जावान एवं निरोगी बनाना सूर्य का ही कार्य है। ऋग्वेद (10/37/4) में सूर्य की प्रार्थना इस प्रकार की गई है- ‘‘हे सूर्यदेव! आप अपनी जिन ज्योतियों से अंधेरे को दूर करते हैं, उन्हीं ज्योतियों से हमारे पापों को दूर करें, रोगों और क्लेशों को नष्ट करें तथा दरिद्रता को मिटाएं।’’ से संबंधित रोग, जोड़ों में दर्द, चर्मरोग आदि होते हैं। कर्क राशि में सूर्य और चंद्र की युति हो अथवा कर्क राशि में सूर्य और सिंह राशि में चंद्र हो तो व्यक्ति को तपेदिक होता है। यदि सूर्य द्वादश स्थान में हो तो नेत्ररोग होता है। सूर्य के पाप ग्रहों से युत या दृष्ट होने पर नेत्ररोग और अधिक कष्टप्रद होता है। कर्क राशि में सूर्य बैठा हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तो जातक को श्वास रोग होता है। सूर्य उपासना से रोगों का शमन ‘साक्षात् देवो दिवाकरः’ - भगवान सूर्य ही प्रत्यक्ष देवता हैं, वह कलियुग में शीघ्र सिद्धि प्रदाता हैं। सूर्योपासना से कर्ज से मुक्ति मिलती है और दरिद्रता दूर होती है। हृदय रोग, नेत्र रोग, रक्तविकार, कुष्ठ आदि सूर्य की उपासना से दूर हो जाते हैं। ‘¬ घृणि सूर्याय नमः श्री सूर्यनारायण इति अघ्र्यं समर्पयामि दŸान्नमम्’ मंत्र से सूर्य देव को प्रतिदिन प्रातःकाल अघ्र्य प्रदान करें। सूर्य की प्रसन्नता एवं रोगों के शमन के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। नेत्र रोगों को दूर करने के लिए भी सूर्य की उपासना करें। ------------------------------- सूर्य सभी प्राणियों के कर्मों का साक्षी है। यह मनुष्य के पापकर्मों का फल उन्हें रोग-व्याधि आदि के रूप में देता है, इसीलिए ‘कर्मविपाक संहिता’ में सूर्य को ‘आधिव्याध्योष्चकर्ता’ कहा गया है। जन्मांग चक्र में सूर्य अशुभ या निर्बल हो तो व्यक्ति को प्रायः पिŸा विकार, नेत्ररोग, अस्थि ज्वर, अस्थिभंग, कर्णरोग, हृदय रोग, मस्तिष्क विकार एवं शारीरिक दौर्बल्य देता है। ऐसा जातक अग्नि, शस्त्र, काष्ठ आदि की चोट से भी पीड़ित होता है। विश्ववंद्य सूर्यदेव को ज्योतिषशास्त्र में पाप ग्रह माना गया है। महर्षि पराशर ने सूर्य को क्रूर ग्रह कहा है। विभिन्न लग्नों के जातकों को सूर्य की विभिन्न स्थितियों का निम्न फल मिलता है। मिथुन लग्न के लिए तृतीयेश, मीन लग्न के लिए षष्ठेश और तुला लग्न के लिए एकादशेश होने के कारण सूर्य पापी होकर अशुभ फल देता है। मकर लग्न के लिए सूर्य अष्टमेश होता है, किंतु अष्टमेश सूर्य का दोष नहीं होता है। इस स्थिति में सूर्य सामान्य फल देता है। लग्न से तृतीय, षष्ठ, दशम या एकादश भाव में सूर्य की स्थिति शुभ और चतुर्थ या अष्टम भाव में अशुभ होती है। सूर्य जनित रोगकारक योग लग्न या षष्ठेश के साथ यदि सूर्य स्थित हो तो जातक को बार-बार बुखार (ज्वर) आता है। यदि जन्मांग में सूर्य पापी ग्रहों या अशुभ भावेशों से दूषित हो या निर्बल हो तो जातक को मंदाग्नि, जलन, ज्वर वृद्धि, नेत्र विकार एवं हड्डियों से संबंधित रोग, जोड़ों में दर्द, चर्मरोग आदि होते हैं। कर्क राशि में सूर्य और चंद्र की युति हो अथवा कर्क राशि में सूर्य और सिंह राशि में चंद्र हो तो व्यक्ति को तपेदिक होता है। यदि सूर्य द्वादश स्थान में हो तो नेत्ररोग होता है। सूर्य के पाप ग्रहों से युत या दृष्ट होने पर नेत्ररोग और अधिक कष्टप्रद होता है। कर्क राशि में सूर्य बैठा हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तो जातक को श्वास रोग होता है। सूर्य उपासना से रोगों का शमन ‘साक्षात् देवो दिवाकरः’ - भगवान सूर्य ही प्रत्यक्ष देवता हैं, वह कलियुग में शीघ्र सिद्धि प्रदाता हैं। सूर्योपासना से कर्ज से मुक्ति मिलती है और दरिद्रता दूर होती है। हृदय रोग, नेत्र रोग, रक्तविकार, कुष्ठ आदि सूर्य की उपासना से दूर हो जाते हैं। ‘¬ घृणि सूर्याय नमः श्री सूर्यनारायण इति अघ्र्यं समर्पयामि दŸान्नमम्’ मंत्र से सूर्य देव को प्रतिदिन प्रातःकाल अघ्र्य प्रदान करें। सूर्य की प्रसन्नता एवं रोगों के शमन के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। नेत्र रोगों को दूर करने के लिए भी सूर्य की उपासना करें।