गुर्दों के रोग: अशुद्ध रक्त का संकट आचार्य अविनाश सिंह गर्दे रोगी होने पर रक्त का शोधन नहीं कर पाते, जिससे विषाक्त पदार्थ रक्त द्वारा सारे शरीर में फैल जाते हंै और मानव की कार्यक्षमता कम हो जाती है। फिर मानव रोगी हो जाता है। गुर्दा रोग के लक्षण: गुर्दा रोग का एक मुख्य कारण मधुमेह है। मधुमेह के रोगी को नियमित रूप से इनसुलिन की आवश्यकता होती है। जब रोगी को स्वस्थ हो जाने का अहसास होने लगता है, तो वह इनसुलिन की मात्रा कम कर देता है, या उसका उपयोग बिलकुल समाप्त कर देता है, तो इसका प्रमुख कारण है कि रोगी को गुर्दा रोग ही हो गया है। जब रोगी में शर्करा का स्तर कम होने लगता है, तो उसे लगता है कि वह ठीक हो रहा है। दरअसल यह गुर्दे के रोग की शुरुआत है। आम लोगों की अपेक्षा रोगी को पेशाब में जलन, मवाद आना, या पेशाब बार-बार आना ज्यादा होते हंै। रागे ी क े गुर्दांे म ंे खनू के प्रवाह में कमी होना भी मधुमेह के प्रभावों में से एक है। गुर्दे की यह खास बीमारी केवल मधुमेह के रोगी को ही प्रभावित करती है। लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि यह बीमारी प्रत्येक मधुमेह रोगी को हो। इस रोग के मुख्य लक्षणों में पैरों में सूजन, पेशाब में प्रोटीन या अल्बुमिन का जाना, इनसुलिन की आवश्यकता कम हो जाना आदि हैं। गुर्दा काम न करने के अन्य लक्षण हैं भूख न लगना, उल्टी आना, पीलापन, पेशाब का कम होना। गुर्दे जब पूरी तरह काम नहीं करते, तो यूरिया तथा नाइट्रोजन जैसे नशीले पदार्थ रक्त में इकट्ठे होने लगते हैं। खून में इनकी बढ़ती हुई मात्रा ही रोग की अंतिम अवस्था का संकेत है। उपचार: प्रारंभिक अवस्था में रोग पर नियंत्रण पाने के लिए दवाओं का सेवन किया जाता है। लेकिन रोग के अंतिम चरण में चिकित्सक के पास केवल दो ही विकल्प रहते हैंः गुर्दा प्रत्यारोपण: अर्थात गुर्दे का बदलवाया जाना। इसमें किसी रिश्तेदार, संबंधी का गुर्दा, दान के रूप में ले कर, रोगी में लगा दिया जाता है। यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। डायलिसिस: इस प्रक्रिया में मशीन से कृत्रिम गुर्दे द्वारा रक्त का शोधन किया जाता है। सप्ताह में दो-तीन बार अस्पताल जा कर यह प्रक्रिया करवानी पड़ती है। सावधनियां: रोग पर नियंत्रण पाने के लिए जल्द ही खून की जांच करवायी जाए। मधुमेह है, तो इस पर नियंत्रण कर के गुर्दे पर होने वाले बुरे प्रभावों को रोका जा सकता है। उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रण में रखें। धूम्रपान न करें तथा मदिरा भी न लें। गुर्दे के रोगों में गुर्दे का दर्द,गुर्दे की पथरी आदि हैं। इन पर नियंत्रण पाने के लिए आयुर्वेद में कई औषधियां हैं, जिनमें कुछ घरेलू नुस्खे इस प्रकार हंैः- मौसमी फल तरबूज का रस रोजाना पीने से गुर्दे की पथरी घुल कर निकल जाती है । तरबूज के बीजों की गिरी को पानी में घोल कर पीने से भी गुर्दे की पथरी घुल जाती है। गोखरन के बीजों को पीस कर बकरी के दूध में मिला कर सेवन करने से पथरी निकल जाती है। कलौंजी को पानी में पीस कर, शहद मिला कर लेने से गुर्दे की पथरी में आराम होता है। सूखी तुलसी की पत्तियां, अजवायन, सेंधा नमक तीनों को पीस कर, चूर्ण बना कर, सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से गुर्दे के दर्द में फौरन आराम मिलता है। रेडी के बीज छील कर भून लें। सुबह-शाम एक-एक बीज कच्चे दूध के साथ खाने पर गुर्दे का दर्द दूर होता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोणः ज्योतिष की दृष्टि से काल पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव गुर्दों का स्थान है। सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र होता है। इसलिए शुक्र सप्तमांश, सप्तम भाव का दुष्प्रभावों में रहने के कारण गुर्दे का रोग होता है। इसके साथ अगर लग्नेश भी दुष्प्रभावों में हो, तो गुर्दों के रोग के कारण जातक की मृत्यु भी हो जाती है। ग्रह गोचर,, दशा-अंतर्दशा के अनुसार रोग का समय एवं उसकी अवधि निर्धारित किये जाते हैं। विभिन्न लग्नों में गुर्दा रोग के कारण: मेष लग्न: शुक्र बुध के साथ ग्यारहवें भाव में हो और मंगल सप्तम भाव में शनि से दृष्ट, चंद्र या सूर्य राहु-केतू के प्रभाव में हो, तो जातक को गुर्दे का रोग होता है। वृष लग्न: गुरु-मंगल लग्न में, शुक्र अष्टम भाव में, शनि पंचम में, सूर्य और चंद्र पर राहु या केतु की दृष्टि हो, तो गुर्दा रोग के कारण जातक की मृत्यु होती है। मिथुन लग्न: सप्तम भाव में मंगल, शुक्र, शनि, दशम भाव में बुध, नवम भाव में सूर्य, राहु अष्टम में हो, तो जातक को गुर्दा रोग होता है। कर्क लग्न: शुक्र-बुध सप्तम भाव में, शनि द्वितीय भाव में, राहु सप्तम भाव में, सूर्य अष्टम भाव में हो, तो गुर्दा रोग होता है। सिंह लग्न: शनि-शुक्र अष्टम भाव में, गुरु-बुध सप्तम भाव में, सूर्य षष्ठ भाव में, राहु दशम भाव में चंद्र के साथ हो, तो जातक को गुर्दे का रोग होता है। कन्या लग्न: मंगल लग्न में, चंद्र, शुक्र, शनि सप्तम भाव में, बुध अष्टम भाव में, सूर्य नवम में राहु से दृष्ट हो, तो जातक को गुर्दे का रोग होता है। तुला लग्न: गुरु लग्न में, शुक्र अष्टम में मंगल के साथ हो, चंद्र लग्न में राहु से दृष्ट हो, तो जातक को गुर्दे का रोग होता है। वृश्चिक लग्न: षष्ठेश, शुक्र बुध लग्न में हों, सूर्य द्वादश में राहु से दृष्ट हो, तो गुर्दा रोग होता है। धनु लग्न: शुक्र, बुध ग्यारहवें भाव में, सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि हो, सूर्य तथा चंद्र राहु-केतु से पीड़ित हों और लग्नेश पाप ग्रह के साथ हा,े तो जातक को गुर्दा रोग होता है। मकर लग्न: गुरु सप्तम भाव में, चंद्र ग्यारहवें भाव में राहु से युक्त हो, शुक्र पंचम भाव में, शनि, बुध षष्ठ भाव में हांे, तो जातक को गुर्दे का रोग होता है। कुंभ लग्न: शनि-शुक्र दशम भाव में, चंद्र सप्त भाव में, बुध के साथ सूर्य अष्टम भाव में राहु से दृष्ट हो, तो जातक को गुर्दों का रोग होता है। मीन लग्न: शनि सप्तम भाव में, सूर्य लग्न में, शुक्र-बुध द्वादश भाव में, गुरु अष्टम भाव में और राहु पंचम में हों, तो जातक को गुर्दा रोग होता है। उपर्युक्त सभी योग जातक की चलित कुंडली के आधार पर हैं। संबंधित गोचर ग्रह एवं दशा-अंतर्दशा से ही जातक के रोग का समय बताया जाएगा। यहां दी गयी दो उदाहरण कुंडलियां दो स्त्रियों की हैं, जिनका जीवन गुर्दा रोग के कारण समाप्त हुआ यहां ज्योतिषीय दृष्टि से इन उदाहरण कुंडलियों की ग्रह स्थितियों पर एक नजर। उदाहरण कुंडली 1: यह कुंडली एक स्त्री की है, जो गुर्दे के रोग से पीड़ित थी और गुर्दा प्रत्यारोपण के बावजूद बच नहीं पायी। कुंडली की ग्रह स्थिति के अनुसार इनके जन्म समय धनु लग्न उदित हो रहा था। लग्नेश गुरु, पाप ग्रह मंगल के साथ, नवम् भाव में पीड़ित है, क्योंकि मंगल द्वादश भाव का भी स्वामी है। सप्तमेश बुध षष्ठेश एवं एकादशेश शुक्र से प्रभावित है। शुक्र, जो सप्तम का कारक ग्रह भी है, सप्तमेश को बुरी तरह प्रभावित कर रोग को बढ़ा रहा है। बुध-शुक्र पर शनि की पूर्ण दृष्टि है। शनि तृतीयेश एवं द्वितीयेश हो कर शुभकारी नहीं है। इनको पहले मधुमेह रोग हुआ। उसके बाद बुध की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा में गुर्दे खराब हुए और रोग धीरे-धीरे बढ़ता रहा। बुध में गुरु के अंतर के दौरान उनका गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ, जिससे इस स्त्री की मृत्यु हो गयी। उदाहरण कुंडली 2: यह कुंडली भी एक स्त्री की है, जिसे गुर्दे के रोग ने जीवित नहीं छोड़ा। इनके जन्म समय धनु लग्न उदित हो रहा था। सप्तम भाव में राहु सप्तम भाव संबंधित रोग उत्पन्न करता है। सप्तमेश बुध षष्ठेश एवं एकादशेश शुक्र और द्वादशेश से पीड़ित है और सप्तम् भाव संबंधित रोग उत्पन्न करता स्वस्थ रीर को स्वस्थ रखने के लिए अंगूर एक अत्यंत महत्वपूर्ण फल है। अंगूर बहुत ही पोषक हैं और आसानी से पच जाते हैं। कुदरत की इस बेमिसाल देन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। अंगूर दो रंगों में पाये जाते हैं- हल्के हरे और काले। अंगूर किसी भी रंग का हो, लेकिन अपने औषधीय गुणों के कारण महत्वपूर्ण फल है, जो तपेदिक, कैंसर, मसूडों से खून आना, गुर्र्दों की खराबी, रक्त विकार, आमाशय में घाव, गांठें, बच्चों को सूखा रोग इत्यादि को दूर करने में सहायक होता है। अंगूरों द्वारा रोग निवारण: गुर्दा विकार: अंगूर के सेवन से मूत्र अधिक आता है, जिसके कारण गुर्दों की अच्छी सफाई हो जाती है।गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी की पीड़ा से आराम मिलता है और पथरी घुल कर निकल जाती है। कैंसर: रोगी को उपवास करवा कर प्रतिदिन एक किलो अंगूर खिलाएं। अन्य कुछ न खाने को दें। इससे कुछ दिनों में कैंसर ठीक होने लगता है। दमा: रोगी को प्रतिदिन अंगूर का सेवन करवाएं। दमा ठीक हो जाएगा। वैद्यों और हकीमों का मानना है कि अंगूर के बाग़ में जा कर रोगी अगर लंबे-लंबे सांस ले, तो दमा रोग जल्दी ठीक होता है। हृदय रोग: हृदय रोग में भी अंगूर विशेष लाभकारी है। इसे रामबाण औषधि की संज्ञा भी दी गयी है। दिल का दर्द, उसकी धड़कन तथा अन्य हृदय रोगों में अंगूर विशेष लाभकारी है। यकृत विकार: अंगूरों में मौजूद ग्लूकोज यकृत की कार्यप्रणाली को ठीक करता हैं। रक्त का शोधन भी करता है। पाचन शक्ति: अंगूरों के सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है, क्योंकि फल में मौजूद ग्लूकोज और अम्ल पाचन विकार को दूर कर, भूख और पाचन शक्ति बढ़ाते हंै। शराब छुड़ाना: शराब पीने वाला व्यक्ति अगर भोजन के साथ नियमित अंगूर खाने लगे, तो शराब से उसे, अपने आप ही, घृणा होने लगती है। ध्यान देंः अंगूर बहुत जल्द खराब हो जाते हैं। इसलिए अंगूरों को अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए। अतः ताजे, मीठे और पके हुए अंगूर खाना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। अंतर्दशा में गुर्दे खराब हुए और रोग धीरे-धीरे बढ़ता रहा। बुध में गुरु के अंतर के दौरान उनका गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ, जिससे इस स्त्री की मृत्यु हो गयी। उदाहरण कुंडली 2: यह कुंडली भी एक स्त्री की है, जिसे गुर्दे के रोग ने जीवित नहीं छोड़ा। इनके जन्म समय धनु लग्न उदित हो रहा था। सप्तम भाव में राहु सप्तम भाव संबंधित रोग उत्पन्न करता है। सप्तमेश बुध षष्ठेश एवं एकादशेश शुक्र और द्वादशेश से पीड़ित है और सप्तम् भाव संबंधित रोग उत्पन्न करता कर सप्तम भाव संबंधी रोग को बढ़ाता है। इसी कारण राहु की महादशा में, चंद्र की अंतर्दशा में और गुरु के प्रत्यंतर में उन्हें गुर्दा संबंधित रोग हुआ, जो इतना बढ़ गया कि गुर्दा प्रत्यारोपण करवाना पड़ा। राहु की दशा, मंगल की अंतर्दशा में गुर्दा प्रत्यारोपण करवाया गया। गुरु की दशा, गुरु के अंतर्दशा एवं राहु की प्रत्यंतर दशा में बदला हुआ गुर्दा भी खराब हो गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।