पराशर जी ने आयु के सात प्रकार बताए हैं
- बालारिष्ट, योगारिष्ट, अल्प, मध्य, दीर्घ, दिव्य व अमितायु ये सात प्रकार की आयु होती है। अब इनकी अवधि के बारे में विचार करते हैं। आयु प्रकार अवधि बालारिष्ट 8 वर्ष योगारिष्ट 20 वर्ष अल्पायु 32 वर्ष मध्यायु 64 वर्ष दीर्घायु 120 वर्ष दिव्य आयु 1000 वर्ष अमितायु सबसे अधिक अमितायु योग: जब चंद्र व गुरु लग्न में, बुध व शुक्र केंद्र में तथा शेष पाप ग्रह 1, 3, 6, 11 भाव में हो तो अमितायु होती है।
दिव्य आयु योग: जब सभी ग्रह केंद्र त्रिकोण में तथा सभी पाप ग्रह 3, 6, 11 में हो तथा अष्टम में शुभ ग्रह की राशि हो तो दिव्य आयु योग होता है। आयु का निर्णय जैमिनीय पद्धति द्वारा भी किया जाता है जिसका उल्लेख इस प्रकार हैं: पहले हम इन्हें तीन भागों में बांटेंगे लग्नेश $ अष्टमेश चंद्रमा $ शनि होरा लग्न $ लग्न ये तीनों किस राशि में स्थित हैं
जैसे: चर, स्थिर या द्विस्वभाव राशि। उदाहरण: अगर लग्नेश शनि 9वीं राशि में स्थित हैं तो वो द्विस्वभाव राशि हुई।
विशेष: तुला लग्न व मेष लग्न की कुंडली में लग्न और अष्टम भाव की राशि एक होती है ऐसे में हम अष्टमेश से अष्टमेश भी लेते हैं। जैसे - मेष लग्न की कुंडली में अष्टमेश मंगल व तृतीयेश बुध किन राशि में है और तुला लग्न की कुंडली में अष्टमेश शुक्र व तृतीयेश गुरु किन राशि में इनकी स्थिति का भी पता लगाएंगे।
तीनों योगों पर विचार इस प्रकार है:
- जब चर $ चर होगी या द्विस्वभाव $ स्थिर होगी तो दीर्घ आयु योग होगा।
- द्विस्वभाव $ द्विस्वभाव राशि या चर $ स्थिर होगी तो मध्य आयु योग होगा।
- स्थिर $ स्थिर राशि या चर $ द्विस्वभाव राशि होगी तो अल्प आयु योग होगा। विश्ेाष: जो आयु दो प्रकार या तीनों प्रकार से आए, उसे ही मानेंगे। यदि तीनों प्रकार से भिन्न आयु मिले तब लग्न $ होरा लग्न से अंतिम निर्णय करें या अगर चंद्र लग्न में हैं या सप्तम भाव में स्थित हैं तो चंद्र $ शनि से निर्णय करेंगे कि ये किस राशि में स्थित हैं और कौन सी आयु दर्शाते हैं।
- यदि तीनों तरह से दीर्घायु हो तो 120 वर्ष, दो तरह से 108 वर्ष तथा एक तरह से 96 वर्ष आयु हैं। - यदि इसी तरह से मध्यायु हो तो क्रमशः 80, 72, 64 ये वर्ष हैं। - अल्पायु यदि तीनों तरह से आए तो 32 वर्ष, दो तरह से आए तो 40 वर्ष समझें। चलिए इसे पराशरोक्त आयु चक्र के द्वारा समझिए। युग्न/तीसरा अल्प मध्य दीर्घ अल्प 32 64 96 मध्य 36 72 108 दीर्घ 40 80 120 जैसे: किसी व्यक्ति की आयु दो प्रकार से दीर्घ व एक प्रकार से मध्य आए तो उसकी आयु 64 से 96 के बीच या 80 से 96 के बीच कह सकते हैं।
विशेष: केवल अनेक प्रकार के आयु योगों से हम सही आयु निर्णय नहीं कर सकते इसलिए मारक भावों, मारक ग्रहों व दशांतर्दशा का भी निर्णय करें। मारक लक्षण:- 2, 7 भावों के मालिक - 2, 7 भावों में स्थित पापी ग्रह - द्वितीयेश व सप्तमेश के साथ रहने वाले पाप ग्रह ये सब मारक ग्रह कहलाते हैं। मारक दशा का निर्णय: मारक ग्रहों की दशा में मनुष्यों की मृत्यु संभव होने पर होती है संभव होने से तात्पर्य है यदि वह अल्पायु हो तो 32-64 के मध्य आने वाली मारक ग्रहों की दशाओं का निर्णय करें। यदि दीर्घायु हो तो 64-100 के मध्य आने वाली मारक ग्रहों की दशाओं का निर्णय करें। यदि उत्तमायु हो तो 100 वर्ष के बाद में आने वाली उक्त मारक दशाओं से मृत्यु का निर्णय करें।
विशेष: बालारिष्ट और योगारिष्ट में प्रायः 20 वर्ष तक निश्चित गणितगत आयु व मारक का विचार विशेष सही नहीं होता क्योंकि इस उम्र तक बालकों की मृत्यु उनके माता, पिता व उसके अपने पूर्व जन्मों के क्रमों से मृत्यु हो सकती हैं ऐसे में अगर किसी की 20 वर्ष की आयु तक अशुभ ग्रहों की दशा आ रही हो तो उसे अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहना चाहिए। अन्य मारक ग्रह: - यदि द्वितीयेश या सप्तमेश या इनके साथ बैठे पाप ग्रहों या इन भावों में स्थित पाप ग्रहों की दशा खंडानुसार आती न दिखे तब लग्न से द्वादशेश तथा सप्तम से षष्ठेश का विचार करना चाहिए।
विशेष: 6, 12 भावों का विचार पूर्वोक्त मारक दशाओं की संभावना न होने पर ही होगा। - मृत्युखंड में कभी-2 शुभ दशा अर्थात लग्नेश, त्रिकोण व केंद्र के स्वामियों की दशा में भी मृत्यु संभव है। - अष्टमेश की दशा का विचार भी करें। - यदि ये सब दशाओं में भी किसी कारण से मारक प्रतीत न हो तो पाप ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, राहु) की दशा में मृत्यु का निश्चय करें। - जिस राशि में अधिक पाप ग्रह स्थित हो उस राशि की दशा में मृत्यु संभव है। - पापी शनि अर्थात पाप फलदायी होने पर यदि मारक ग्रहों के साथ संबंध बनाएगा तो वो सबको पीछे हटाकर स्वयं को मारक बन जाता है। - यदि मारक ग्रह की महादशा में शनि की अंतरदशा आ जाए तो भी आकस्मिक मृत्यु संभव होती है।
- यदि मारक ग्रह छिद्र ग्रह हो या छिद्र ग्रह की दशा चल रही हो तो भी मृत्यु का निश्चय करें। - चंद्र राशि से 2, 12 भावेश भी यदि पापी हो तो मारक हो सकता है। यदि शुभ हो तो रोगप्रद होते हैं। - यदि किसी भी प्रकार से मारक दशा का निर्णय होता न दिखे तो 6, 8, 12 भावेशों में से जो सबसे बली हो वही मारक होता है। - 10 या 12 भाव में राहु पाप दृष्ट हो तो अपनी दशांतर्दशा में प्रबल मारक हैं। विशेष: - यदि मारक ग्रहों की दशा हो और उसे गुरु देख रहा हो तो मृत्यु आसानी से नहीं होगी। - यदि आत्मकारक ग्रह मारक ग्रह को देखता हो तो भी मृत्यु आसानी से नहीं होती है।