वैशाख मास माहात्म्य एवं व्रत पं. ब्रजकिशोर भारद्वाज ‘ब्रजवासी भारतीय संस्कृति में वैशाख मास की प्रसिद्धि माहात्म्य एवं व्रत दोनों ही रूपों में जगत् में व्याप्त है। न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।। वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। अपने कतिपय वैशिष्ट्य के कारण वैशाख उत्तम मास है। कथा है कि नारद जी ने राजा अम्बरीष से कहा कि वैशाख मास को ब्रह्माजी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। यह माता की भांति सब जीवों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करता है। धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्या का सार है। यह मास संपूर्ण देवताओं द्वारा पूजित है। जैसे विद्याओं में वेद-विद्या, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, प्रिय वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगाजी, तेजों में सूर्य, अस्त्र-शस्त्रों में चक्र, धातुओं में स्वर्ण, वैष्णवों में शिव तथा रत्नों में कौस्तुभमणि उत्तम है, उसी प्रकार धर्म के साधनभूत महीनों में वैशाखमास सबसे उत्तम है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला इसके समान दूसरा कोई मास नहीं है। जो वैशाखमास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है, उससे भगवान विष्णु निरंतर प्रीति करते हैं। पाप तभी तक गर्जते हैं, जब तक मनुष्य वैशाख मास में प्रातःकाल जल में स्नान नहीं करता। राजन्! वैशाख के महीने में सब तीर्थ, देवता आदि (तीर्थ के अतिरिक्त) बाहर के जल में भी सदैव स्थित रहते हैं। भगवान विष्णु की आज्ञा से मनुष्यों का कल्याण करने के लिए वे सूर्योदय से लेकर छह दंड के भीतर वहां उपस्थित रहते हैं। वैशाख सर्वश्रेष्ठ मास है और शेषशायी भगवान विष्णु को सदा प्रिय है। जो पुण्य सब दानों से होता है और जो फल सब तीर्थों के दर्शन से मिलता है, उसी पुण्य और फल की प्राप्ति वैशाखमास में केवल जलदान करने से हो जाती है। जो जलदान में असमर्थ है, ऐसे ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले पुरुष को उचित है कि वह दूसरे को प्रबोध करे, दूसरे को जलदान का महत्व समझाए। यह सब दानों से बढ़कर हितकारी है। जो मनुष्य वैशाख मास में मार्ग पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। नृपश्रेष्ठ ! प्रपादान (पौसला या प्याऊ) देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यंत प्रिय है। जो प्याऊ लगाकर थके-मांदे पथिकों की प्यास बुझाता है, उस पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवतागण प्रसन्न होते हैं। राजन् ! वैशाख मास में जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना चाहिए। राजेन्द्र ! जो पीड़ित महात्माओं को प्यार से शीतल जल प्रदान करता है, उसे उतनी ही मात्र से दस हजार राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। धूप और परिश्रम से पीड़ित ब्राह्मण को जो पंखा डुलाकर शीतलता प्रदान करता है, वह निष्पाप होकर भगवान् का पार्षद हो जाता है। जो मार्ग में थके हुए श्रेष्ठ द्विज को वस्त्र से भी हवा करता है, वह भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है। जो शुद्ध चित्त से ताड़ का पंखा देता है, उसके सारे पापों का शमन हो जाता है और वह ब्रह्मलोक को जाता है। जो विष्णुप्रिय वैशाखमास में पादुका दान करता है, वह विष्णुलोक को जाता है। जो मार्ग में अनाथों के ठहरने के लिए विश्रामशाला बनवाता है, उसके पुण्य-फलका वर्णन नहीं किया जा सकता। मध्याह्न में आए हुए ब्राह्मण अतिथि को यदि कोई भोजन दे तो उसे अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। वैशाख में तेल लगाना, दिन में सोना, कांस्यपात्र में भोजन करना, खाट पर सोना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना दोबारा भोजन करना तथा रात में खाना - इन आठ बातों का त्याग करना चाहिए- तैलाभ्यघ्गं दिवास्वापं तथा वै कांस्यभोजनम्। खट्वानिद्रां गृहे स्नानं निषि(स्य च भक्षणम्।। वैशाखे वर्जयेदष्टौ द्विभुक्तं नक्तभोजनम्।। वैशाख में व्रत का पालन करने वाला जो पुरुष पद्म पत्ते पर भोजन करता है, वह सब पापों से मुक्त हो विष्णुलोक जाता है। जो विष्णुभक्त वैशाखमास में नदी-स्नान करता है, वह तीन जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। जो सूर्योदय के समय किसी समुद्रगामिनी नदी में वैशाख-स्नान करता है, वह सात जन्मों के पापों से तत्काल मुक्त जाता है। सूर्यदेव के मेष राशि में आने पर भगवान विष्णु का वरदान प्राप्त करने के उद्देश्य से वैशाख मास-स्नान का व्रत लेना चाहिए। स्नान के अनंतर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि महीरथ नामक एक विलासी और अजितंेद्रिय राजा वैशाख-स्नान मात्र से वैकुंठधाम को प्राप्त हुआ। वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। उनसे इस प्रकार की प्रार्थना करनी चाहिए- मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रातःस्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव।। ‘हे मधुसूदन ! हे देवेश्वर माधव ! मैं सूर्य के मेष राशि में स्थित होने पर वैशाख मास में प्रातः स्नान करूंगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिए।’ तत्पश्चात् निम्न मंत्र से अघ्र्य प्रदान करें- वैशाखे मेषगे भानौ प्रातः स्नानपरायणः। अघ्र्यं तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।। वैशाख मास में मनुष्य संकल्पादि कार्य में यदि पुष्परेणु तक का परित्याग करके गोदान करता है, तो उसे अपार सुख की प्राप्ति होती है। एक मास तक व्रत रखकर गोदान करने वाला इस भीमव्रत के प्रभाव से श्री हरिस्वरूप हो जाता है। यह मास अति उत्तम व पवित्र है। इसमें ऊपर वर्णित नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति इहलोक के सुखों को भोग करता हुआ धर्म-अर्थ -काम-मोक्ष चारों पुरुषार्थों को भी प्राप्त कर लेता है। अतः सभी को वैशाख मास के सदाचार, नियमों और धर्मों का पालन करना चाहिए।