उच्च चिकित्सा शिक्षा
उच्च चिकित्सा शिक्षा

उच्च चिकित्सा शिक्षा  

अशोक सक्सेना
व्यूस : 8972 | अप्रैल 2009

आज के युग में आजीविका प्राप्त करने में अत्यंत प्रतियोगिता है। क्योंकि नौकरियां कम है और बेरोजगार अत्याधिक है। यहां भी अर्थशास्त्र की मांग और पूंजी का नियम लागू होता है। साधारण शिक्षा जैसे एम.ए., एम.काॅम, एम.एस-सी, के क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम है तथा धन भी कम मिलता है। यह लोग केवल मेहनत से आई.ए.एस./आई.पी.एस./आई.एफ.एस./बैंकों आदि की परीक्षायें देकर नौकरी पा सकते हैं जो अत्याधिक कठिन अध्ययन है। अतः हर अभिभावक अपने बच्चों को तकनीकी शिक्षा पढ़ाना चाहता है जैसे डाॅक्टरी, इंजीनियरिंग, फार्मेसी आदि। ताकि पढ़ाई पूर्ण होने पर जाॅव मिल सके। चिकित्सा के क्षेत्र में सुयोग्य डाॅक्टरों की बहुत कमी है। कस्बो में तो नीम-हकीम ही डाॅक्टरी इलाज कर रहे हैं। जिसके पास प्रमाणिक डिग्री नहीं है हर युवक/युवती डाॅक्टर या इंजीनियर बनना चाहते है परंतु बन नहीं पाते, क्योंकि उनकी कुंडली में इसका योग है या नहीं, उसी के अनुसार शिक्षा होती है।

फिर डाॅक्टर की शिक्षा की भर्ती काफी ऊंचे अंकों के प्रतिशत पर होती है। 90 से 98 प्रतिशत पर जो सबके बस की बात नहीं है। अतः युवक युवतियों को इन क्षेत्रों में भेजने से पूर्व अपनी जन्म-पत्रिका की विवेचना किसी विद्वान ज्योतिषी से करा लेना चाहिए। अतः अब हम डाॅक्टर बनने के योगों के बारे में विवेचना करेंगे।

Û यदि मेष, वृष, तुला, मकर या कुंभ राशि की लग्न और उसमें मंगल शनि या चंद्र शनि या बुध-शनि की युति हो या फिर सूर्य-चंद्र के साथ अलग-अलग तीन ग्रहों की युति हो तो जातक के चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर डाॅक्टर बनने की प्रबल संभावना रहती है।

Û चाहे कोई भी लग्न या राशि हो और केंद्र में सूर्य-शनि या सूर्य-मंगल-शनि या चंद्र-शनि या चंद्र-मंगल-शनि या बुध-शनि या बुध-मंगल-शनि या सूर्य-बुध-शनि या चंद्र-बुध-शनि की युति में से किसी भी की युति हो व उनमें कोई दो ग्रह केंद्र में हो या केंद्रधिपति हो और युतिकारक ग्रहों में से कोई भी ग्रह अस्त न हो तो जातक के डाॅक्टर बनने की प्रबल संभावना होती है।

Û यदि लग्न में मंगल स्वराशि हो या उच्च राशि का होकर बैठा हो तो भी जातक को सर्जरी में निपुण होता है। मंगल क्योंकि साहस एवं रक्त का कारक है और सर्जन के लिए रक्त एवं साहस दोनों से संबंध होता है।

Û यदि कुंडली में कर्क राशि एवं मंगल बलवान हो तथा लग्न एवं दशम से मंगल एवं राहु का किसी भी रूप में संबंध हो तो जातक को डाॅक्टर बनाता है।

Û डाॅक्टर की जन्मपत्रिका में केतु हमेशा बली होता है। साथ में सूर्य-मंगल एवं गुरु भी ताकतवर होना चाहिए। कारण सूर्य आत्मा का कारक है तथा गुरु बहुत बड़ा मरीज को ठीक करने वाला होता है।

Û वृश्चिक राशि दवाईयों का प्रतिनिधित्व करती है अतः इसका स्वामी मंगल भी बली होना चाहिए।

Û षष्ठ भाव एवं उसका स्वामी यदि 10 भाव (दशम भाव कम) से संबंध करे तो भी जातक को डाॅक्टर बनाने में सहायक होता है।

Û यदि मंगल एवं केतु कुंडली में बली होकर दशवे भाव या दशमेश से संबंध बनाए तो जातक सर्जरी में डाॅक्टर हो सकता है।

Û मीन एवं मिथुन राशि गुप्त रोगियों से संबंधित दवाओं के डाॅक्टर बनाने में सहायक होती है।

Û यदि पंचमेश 08 भाव में हो तो भी डाॅक्टर बनने की संभावना होती है।

Û जिन जातकों की कुंडली में गुरु एवं चंद्र का बली संबंध होता है वे भी सफल डाॅक्टर होते देखे गये हैं।

Û यदि कुंडली का आत्मकारक ग्रह अपने मूल त्रिकोण का लग्न में, पंचमेश से युक्ति कर रहा हो तो जातक प्रसिद्ध चिकित्सक होता है।

Û यदि सूर्य एवं मंगल की पंचम भाव में युति हो और शनि अथवा राहु 06 भाव में हो तो जातक सर्जन हो सकता है।

Û यदि सम राशि में बुध हो और लग्न में विषम राशि हो तथा धनेश मार्गी हो तथा अच्छे स्थान में हो, मंगल व चंद्र भी अच्छी स्थिति में हो तो जातक को विख्यात चिकित्साशास्त्री बना सकता है।

Û यदि कर्क लग्न हो और कुंडली के छठे भाव में गुरु और केतु बैठे हो तो जातक होम्योपैथिक डाॅक्टर बन सकता है।

Û सिंह लग्न की कुंडली के दशम भाव में लग्नेश सूर्य हो और दशमेश शुक्र नवमस्थ हो तथा योगकारक मंगल शुभ स्थान में बली हो तो डाॅक्टर बनाता है।

Û कुंडली में यदि मंगल लाभ भाव में हो तथा तृतीयेश भाव 05 में बैठे एवं शुक्र चंद्र व सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो जातक का स्त्री एवं बाल रोग विशेषज्ञ बनने की संभावना होती है।

Û यदि कुंडली में लाभेश और रोगेश की युति लाभ भाव में हो तथा मंगल सूर्य और चंद्र भी शुभ होकर अच्छी स्थिति में हो तो जातक का चिकित्सक क्षेत्र में जुड़ने की संभावना होती है। उपरोक्त कुछ योग अनुभव के आधार पर सटीक पाए गए हैं। इनमें जितने अधिक से अधिक योग जातक की कुंडली में होंगे उतनी ही प्रबल संभावना डाॅक्टर बनने की होगी। अब हम कुछ सफल चिकित्सकों की कुंडलियों का विवेचन करेंगे। कुंडली 1 स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक की है।

इस कुंडली में रोग भाव में (छठे भाव) चिकित्सा का कारक मंगल होकर लग्नेश गुरु से दृष्ट है। रोगेश शुक्र पर राहु की दृष्टि एवं राहु चंद्र पर मंगल की दृष्टि पंचमेश बुध पर केतु की दृष्टि एवं कर्मेश शनि की सूर्य पर परस्पर दृष्टि आदि जातिका को चिकित्सा क्षेत्र की शिक्षा दिला कर काम करने की ओर इंगित कर रहा है। स्त्री कारक चंद्र नवांश में शनि के साथ एवं दूसरा स्त्रीकारक शुक्र नवांश में उच्च के मंगल से दृष्ट है। शुक्र के नवांश में गुरु होकर बुध पर दृष्टि है। इन्हीं कारणों से जातिका उच्च स्तर पर स्त्री रोग विशेषज्ञ का कार्य कर रही है। कुंडली 2 एम.बी.बीएस. एवं पी.जी. किये डाॅक्टर की है। कुंडली में लग्नेश मित्र गृही होकर भाव नं. 9 में भाग्येश रोगेश एवं दशमेश को तीसरी दृष्टि से प्रभावित कर रहा है। साथ ही चिकित्सा क्षेत्र के कारक चंद्र, मंगल एवं शुक्र जैसे गृह बलशाली है। चंद्र स्वग्रही मंगल, गुरु, राहु के साथ आयु स्थान में मित्र राशि में होकर बलवान है, साथ ही कारक मंगल की रोगेश बुध पर चतुर्थ दृष्टि है। मेष नवांश का मंगल कन्या नवांश का चंद्र एवं वर्गोत्तम शुक्र भी चिकित्सा क्षेत्र की ओर संकेत कर रहे हैं।

चंद्र कुंडली से भी मंगल रोगेश व भाग्येश गुरु के साथ धन स्थान में हैं। सूर्य दशम स्थान पर उच्च की दृष्टि दे रहा है चंद्र राशिश होकर चंद्र लग्न में अच्छी स्थिति में हैं। मंगल द्वितीयस्थ केतु के नक्षत्र में व चंद्र लग्नेश शनि के नक्षत्र में है, जो जातक को बहुत गहराई से धैर्यपूर्वक कार्य करने का रूझान देता है। गुरु के नक्षत्र का सूर्य एवं चंद्र लग्नेश शनि के नक्षत्र में तथा राहु मघा नक्षत्र में होने से पुनः जातक को रोग निदान कार्य करने की क्षमता प्रदान कर रहे हैं। रोगेश बुध एवं पंचमेश शुक्र की युति भी जातक को रोग से संबंधित शिक्षा देने में सहायक हो रहे हैं। कुंडली 3 ई. एन. टी. विशेषज्ञ डाॅक्टर की है। इसमें लग्नेश एवं कारक मंगल अति बलवान उच्च का होकर दशम भाव में गुरु से दृष्ट है।

गलाकारक बुध चिकित्सा से संबंधित सूर्य एवं दशमेश शनि के साथ केंद्र में होकर गले व हड्डी से संबंधित चिकित्सा व्यवसाय देने का प्रयास कर रहा है। इन पर केतु की दृष्टि सूक्ष्म विश्लेषण की ओर संकेत कर रही है। दशम का कारक मंगल स्वयं दशम भाव में एक स्वतंत्र व्यवसाय दे रहा है और उसका विस्तार गुरु की दृष्टि के कारण हो रहा है। चंद्र कुंडली से चंद्र लग्न में ही लाभेश सूर्य भाग्येश बुध योग कारक शनि कर्मेश चंद्र की युति होकर प्रबल राज योग बना रहे हैं। राशि शुक्र धनभाव में धनेश मंगल का उच्च होकर केंद्र में होना लाभेश सूर्य का चंद्र राशि में होना पुनः प्रबल धन योग भी दे रहे हैं। चंद्र लग्न से गुरु का उच्च का दशम भाव में होना एवं उच्च के मंगल का चतुर्थ भाव में होना एवं आपस में गुरु व मंगल दृष्टि संबंध राजयोग निर्माण कर रहे हैं। नवमांश में भी स्व नवमांश का मंगल अति बलशाली है एवं चंद्र गुरु नवांश में होकर बलि है जातक एक सफल कान, नाक एवं गले का एक स्वतंत्र क्लीनिक चला रहा है एवं धनवान हो रहा है। कुंडली 4 एक दंत चिकित्सक की है।

प्रस्तुत कुंडली में चंद्र एवं शुक्र की परस्पर दृष्टि संबंध एवं योगकारक मंगल की केंद्र में स्थिति व षटबल का मंगल का अतिबलशाली स्थिति जातक को डाॅक्टरी पेशे से धनार्जन हेतु सहायक हो रहे हैं। लग्नेश भाग्य भाव में है एवं मुख भाव का स्वामी सूर्य स्वयं मित्र राशि का होकर बुध के साथ बुध आदित्य योग बनाकर लग्न में है। जिसके कारण जातक मुख संे संबंधित रोग निदान का कार्य एवं रोगेश गुरु का रोग भाव व पंचमेश मंगल का देखने से भी जातक का डाॅक्टरी पेशे में आना दर्शित हो रहा है। सूर्य हड्डियों का कारक भी होता है एवं मुख भाव का स्वामी होकर मुख के अंदर की हड्डियां अर्थात दंत रोगों से संबंधित डाॅक्टर बनाता है। चंद्र कुंडली से भी मुख भाव का स्वामी मंगल का अष्टम में बैठकर स्वयं मुख भाव को देखना व सूर्य का रोगेश होकर विद्या के पंचम भाव में होना तथा दशमेश व लग्नेश गुरु का चतुर्थ भाव में बैठकर दशम भाव पर सप्तम दृष्टि देना आदि सब गृह योग के कारण वर्तमान में जातक उच्च कोटि का दंत रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन है।



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