नाम का निर्धारण कैसे करें? प्रश्न: नाम किस आधार पर रखना चाहिए? ज्योतिश के आधार पर, अंक विज्ञान के आधार पर या किसी अन्य पर? नाम की षुभता को बढ़ाने के लिए क्या कोई टोटका या उपाय किया जा सकता है? विस्तार से वर्णन करें। नाम वह पुकार है जो हमें नींद से भी जगा देता है। कहीं भी हों, कितने भी लोग हों जब हमारा नाम पुकारा जाता है तो हम उस आवाज की ओर अपना ध्यान देते हैं। मुख्यतः नाम का आधार ज्योतिष ही होना चाहिए, जिसे हम अंक विज्ञान का आधार देकर और शुभता प्रदान कर सकते हैं। जैसे मान लें कि सिंह राशि मघा नक्षत्र के चतुर्थ चरण मंे जन्मे जातक के नाम का प्रथम अक्षर होगा मे ( डंल) और उसकी जन्म तारीख अगर 27-28/09/1970 हो तो अंक शास्त्र के आधार पर मूलांक जन्मांक बनेंगे ‘1’ और ‘9’। हम ज्योतिष के साथ-साथ अंक शास्त्र का भी सहारा लें तो इसमें शुभता और आ सकती है। जैसे अंक-1 और 9 अंक और मित्र अंक 1,4,8,9 अंक और शत्रु अंक 3,5,6 है तो नाम ऐसा रखें जिसका योग 1,4,8,9 हो। जैसे ड।प्ैप् ड = 4, । = 1, प् = 1, ै = 3, प् = 1 अर्थात् 4 $ 1 $ 1 $ 3 $ 1 = 10 = 1 अब इस नाम में ज्योतिष और अंक शास्त्र दोनों का ही समावेश हो गया इसमें शुभता बढ़ा गई। अगर हम वैसे भी देखें तो सिंह राशि का स्वामी भी सूर्य है और ‘1’ अंक का स्वामी भी सूर्य है। ‘9’ अंक का स्वामी मंगल है जिसकी सूर्य के साथ मित्रता है और सिंह राशि के लिए मंगल ही सबसे ज्यादा योगाकारक ग्रह होता है। इसी तरह ‘2’ अंक का स्वामी चंद्रमा, ‘3’ का गुरु, ‘4’ का राहु, ‘5’ का बुध, ‘6’ का शुक्र ‘7’ का राहु ‘8’ शनि और ‘9’ का मंगल है। हमने एक उदाहरण दिया जिसमें हम ने अंक शास्त्र और ज्योतिष का प्रयोग किया। इसी तरह नाम की शुभता बढ़ाने के लिए अपने अनुकूल शहर का चुनाव अंक शास्त्र और ज्योतिष के आधार पर किया जा सकता है जैसे स्नकीपंदं के नामाक्षर जोड़ें तो योग 3$6$4$5$1$1$5$1 = 26 = 8 होगा। इस जातक के लिए स्नकीपंदं अच्छा रहेगा, क्योंकि इसकी उपर्युक्त जातक के जन्मांक नामांक से मित्रता है। इसी तरह, घर का अंक, गाड़ी का रंग, गाड़ी का नबंर, पत्नी का नाम, बच्चों का नाम, कार्य स्थल का नाम सबका चयन अपने अनुकूल किया जा सकता है। नाम रखने के मुख्य रूप से प्रचलित निम्न आधार हैं- भारतीय पद्धति (नक्षत्रों के आधार पर यह सामान्यतः राशि आधारित नाम के रूप में जाना जाता है)। पाश्चात्य पद्धति (सूर्य राशि के आधार पर) अंक विज्ञान के आधार पर दक्षिण भारतीय प्रथा सनातन ज्योतिष की यह मान्यता रही है कि जन्माक्षर द्वारा व्यक्ति के स्वभाव व गुण को जाना जाता है। वर्तमान में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि राशि के स्वामी ग्रह से व्यक्ति का व्यवहार व स्वभाव प्रभावित होता है, जबकि कुछ विद्वानों का यह मानना है कि राशि वर्ण के आधार पर ही व्यक्ति के स्वभाव व गुण आदि होते हैं। पाश्चात्य पद्धति में सूर्य जन्म के समय जिस राशि में गोचर करते हैं, वही राशि मानी जाती है व उसी आधार नाम रखा जाता है। पाश्चात्य पद्धति में सूर्य का गोचर निम्न प्रकार रहता है - अंक ज्योतिष में प्रत्येक अक्षर व प्रत्येक राशि को गणितीय अंक दिए गए हैं। उनके आपसी संबंध को देखा जाता है। दक्षिण भारतीय पद्धति में विशेषरूप से गुजरात, महाराष्ट्र व कर्नाक में व्यक्ति के नाम के आगे पिता का नाम भी लिखने की परंपरा है। कुछ दक्षिण भारतीय प्रान्तों में अपने आराध्य देव के आधार पर नामों का निर्धारण होता है, परंतु ज्यादातर दक्षिण भारतीय प्रांतों में सनातन ज्योतिष के आधार पर ही व्यक्ति के नाम का निर्धारण स्थानीय परंपराओं के अनुसार होता है। कुछ दक्षिण भारतीय प्रांतों के स्वयं का नाम, पिता का नाम, गांव का नाम आदि का समावेश नाम किया जाता है। कुछ दक्षिण भारतीय प्रांतों में विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में यह मान्यता है कि दादा अपने पोते के रूप में पुनः परिवार में आते हैं। ऐसी स्थिति में परंपरा के अनुसार तीन पीढ़ी के नाम ही बार-बार रखे जाते हैं। नाम की शुभता बढ़ाने के लिए मुख्यतः निम्न उपाय किए जाते हैं। जन्म का नाम अलग व पुकार का नाम अलग रखा जाता है। पुकार का नाम प्रायः तीन आधार पर रखे जाते हैं। ;पद्ध लग्न से मैत्री के आधार पर- यह नाम घर में पुकारने के लिए होता है। ;पपद्ध दशम भाव से मैत्री के आधार पर- यह शिक्षा व कार्य क्षेत्र में प्रयोग होता है। ;पपपद्ध सप्तम भाव से मैत्री के आधार पर- यह नाम मुख्यतः दांपत्य जीवन को सुखद बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। पश्चिमी ज्योतिष के आधार कई बार शुभता के लिए शिक्षा आरंभ के समय ही जन्म तारीख बदल दी जाती है व तद्नुसार नाम बदल दिया जाता है। वर्तमान समय में विद्यारंभ के समय आजकल हाॅस्पिटल का जन्म प्रमाण पत्र मांगा जाने लगा है, इसलिए अब जन्म तारीख नहीं बदलते, पर नाम बदलते हैं। मुख्य रूप से भारत में नक्षत्र आधारित नाम रखने की प्रथा है।