वैज्ञानिक दृष्टि से वास्तु ऊर्जा
वैज्ञानिक दृष्टि से वास्तु ऊर्जा

वैज्ञानिक दृष्टि से वास्तु ऊर्जा  

व्यूस : 5802 | मई 2012
वैज्ञानिक दृष्टि से वास्तु ऊर्जा गीता मैन्नम हमने पिछले अंक में आपको वास्तु में पंचतत्व, रेखागणित, अंकगण् िात व रंगों का क्या महत्व है इसके बारे में बताया था और अब वास्तु में और किन-किन बातों को ध्यान रखना चाहिए तथा हम क्या कर सकते हैं की जानकारी देंगे- हमने आपको अप्रैल माह के अंक में जियोपैथिक स्ट्रैस के बारे में जानकारी दी थी। मानव शरीर के साथ-साथ यह घर व स्थान के लिए भी बहुत हानिकारक नकारात्मक ऊर्जा है। इस ऊर्जा का केंद्र बिंदु घर के जिस क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली होता है उस स्थान से संबंधित परेशानियां उस घर के सदस्यों में बनी रहती हैं। कंेद्र बिन्दु का अर्थ है जहां पूर्व से पश्चिम व उŸार से दक्षिण जाने वाली लाइनें एक-दूसरे को काटती हैं। पिछले अंक में बताया गया था कि जियोपैथिक स्ट्रैस क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों में लाइलाज बीमारियां पायी जाती हैं तथा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यदि जियोपैथिक स्ट्रैस का केंद्र-बिंदु आपके घर के ईशान कोण (उŸार-पूर्व) में है तो उस घर के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, अर्थव्यवस्था ठीक नहीं रहती है तथा पारिवरिक क्लेश होता है। यदि इस ऊर्जा का केंद्र-बिंदु नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में है तो उस घर के मालिक व उसकी पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तथा उनका एक-दूसरे के साथ संबंध ठीक नहीं रहता है, लगातार लड़ाई- झगड़े होते रहते हैं। यदि इस ऊर्जा का केंद्र-बिंदु वायव्य कोण (उŸार-पश्चिम) में होता है तो उस घर के बच्चों के साथ समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे बच्चों का स्वास्थ्य ठीक न रहना, पढ़ाई ठीक से न करना, लड़का और लड़की को नौकरी मिलने में परेशानी व उनकीं शादियों में अड़चन आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि इस ऊर्जा का केंद्र बिंदु आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में होता है तो घर में स्त्रियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है और उस घर की विŸाीय व्यवस्था भी डगमगा जाती है तथा धीरे-धीरे जमापूंजी भी खत्म होने लगती है। यदि इस ऊर्जा का केंद्र-बिंदु घर के ब्रह्मस्थान अर्थात् बीच में होता है तो उस घर में हर प्रकार की परेशानी अर्थात स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था परिवार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यूनीवर्सल थर्मो-स्कैनर की सहायता से शरीर के साथ-साथ घर की ऊर्जा का भी पता लगाया जा सकता है कि घर में कितनी सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है। स्कैनर की सहायता से जियोपैथिक स्ट्रेंस की लाइनें तथा उसके केंद्र-बिंदु का भी पता लगाया जाता है तथा उस केंद्र-बिंदु का क्षेत्र कितना बड़ा है यह भी बताते हैं। इसके साथ केतु (निगेटिव अल्ट्रा वायलेट) और राहु (निगेटिव इन्फ्रा रैड) आदि नकारात्मक तरंगों का भी पता लगा सकते हैं। यूनीवर्सल थर्मो-स्कैनर की सहायता से ऐसी नकारात्मक ऊर्जा के बारे में भी बताया जाता है जो आपकी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा को खत्म कर रही है। अर्थशास्त्र वास्तु का अर्थ में केवल पंचतत्व पर आधारित या आकारीय वास्तु बताया है तथा आजकल वास्तु करने वाले केवल घर में किचन कहां है, शौचालय कहां होना चाहिए, इसके द्वारा वास्तु विवेचन करते हैं जो कि 20 प्रतिशत लोगों को हानि पंहुचाती हैं। नकारात्मक ऊर्जाएं 80 प्रतिशत तक हानि पहुंचाती हैं इसलिए जब भी आप अपने घर का वास्तु दिखायें तो इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए वास्तु करवायें तथा वास्तु में यंत्र आदि का प्रयोग कैसे करना चाहिए, इसकी जानकारी होना भी बहुत आवश्यक है। फेंगशुई: आजकल वास्तु में फेंगशुई का महत्व बहुत बढ़ गया है। फेंगशुई में हम किसी निश्चित जगह पर ऊर्जा से संबंधित वस्तु रखकर वहां की ऊर्जा को बढ़ाते हैं। प्रत्येक वस्तु का अपना एक ऊर्जा क्षेत्र होता है और जिस तरह की ऊर्जा उस वस्तु से निकलती है वह उसी तरह की ऊर्जा को अपनी तरह आकर्षित करती है। इसलिए फेंगशुई में पति-पत्नी के संबंध को अच्छा बनाने के लिए लव बर्ड को रिलेशनशिप कार्नर में रखा जाता है। यह लव बर्ड उसी तरह की ऊर्जा एक-दूसरे पर बिखेरती है इसलिए पति-पत्नी के विचारों की ऊर्जा भी उसी तरह की हो जाती है जिससे उनके आपसी रिश्ते में सुधार होने लगता है। इसलिए फेंगशुई में बेल आदि को घर मंे लगाने के लिए मना किया गया है क्योंकि इसे अपने आपको बढ़ाने के लिए किसी सहारे की आवश्यकता होती है जिससे इस घर में रहने वाले मनुष्यों में भी इसी प्रकार ऊर्जा का परिवर्तन होने लगता है और वे अपने आपको कमजोर समझकर कर, आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा ढूढ़ने लगते हैं। हमें घरों में सीधे खड़े रहने वाले पौधों का ही प्रयोग करना चाहिए जैसे बैम्वू जिससे मनुष्य उसकी ऊर्जा से प्रभावित होकर अपने सामथ्र्य के अनुसार जीवन की कामयाबी को हासिल कर सकें, बोन्जाई भी हमें अपने घरों के अंदर नहीं रखने चाहिए क्योंकि इनकी बढ़ने की क्षमता को घटा दिया जाता है इसलिए यह इसी प्रकार की ऊर्जा को निकालते हैं और मनुष्य की ऊर्जा भी इससे प्रभावित होती है। इसी प्रकार आजकल हम अपने घरों में तलवार व चाकू आदि शो-पीस की तरह रखते हैं। ये वस्तुएं भी नकारात्मक ऊर्जा एकत्रित करती हैं तथा इस ऊर्जा के प्रभाव से घर में लड़ाईयां आदि होने की संभावना रहती है, आजकल रेडियेशन ज्यादा होने कारण धातु (मेटल) और चमड़ा (लेदर) आभूषण की वस्तुएं जो हम पहनते हैं या शो-पीस की तरह घर में रखी रहती हैं, नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने लगती हैं तथा जब यह 100 प्रतिशत नकारात्मक हो जाती हैं तो वह हमारे शरीर व हमारे घर की सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने लगती हैं, उससे सावधान रहना बहुत ही आवश्यक है। इसलिए आपको अपने घर की ऊर्जा का परीक्षण 6-6 महीने में करवा लेना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि जिस ऊर्जा की आपको जरूरत नहीं है उस ऊर्जा की अधिकता भी समस्या उत्पन्न करती है। विशेष तौर पर फेंगेशुई की वस्तुओं का प्रयोग करते समय आपको यह सावधानी रखनी चाहिए। उदाहरण के लिए यदि आपस में पति-पत्नी का संबंध ठीक चल रहा है और रिलेशनशिप ऊर्जा को आपने और बढ़ा लिया है तो भी आपको समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि आप अपनी सामथ्र्य के अनुसार ही खाना खा सकते हैं और यदि आपने ज्यादा खाना खा लिया है तो आपको समस्या का सामना करना पड़ता है। इसलिए ऊर्जाओं का संतुलन सही मात्रा में बँटा होना चाहिए। हमें अपने घरों में आइनों का प्रयोग भी बहुत सावधानी के साथ करना चाहिए अन्यथा बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पिरामिड: आजकल वास्तु करते समय पिरामिड का भी बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। पिरामिड का अपना एक महत्व होता है। हमारे सभी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे व गिरिजाघरों की छतें एक पिरामिड के रूप में बनी होती हैं तथा इनकी पिरामिड की ऊंचाई जितनी अधिक होती है उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा इनके अंदर होती है तथा पिरामिड के सबसे ऊंचे स्थान पर धातु (मेटल) का प्रयोग करते हैं जैसे मंदिर में त्रिशूल या कलश, मस्जिद में चांद तथा गिरिजाघरों में क्राॅस का प्रयोग करते हैं जिसका मुख्य कारण होता है कि वह मंदिर, मस्जिद के अंदर जितनी नकारात्मक ऊर्जा हो, उसे उनके ऊपर ब्रह्मांड में भेज दें क्योंकि धातु से एक अच्छा ऊर्जा संचालन होता है। मंदिर, मस्जिद आदि में हर कोई अपनी पीड़ा लेकर आता है और नकारात्मक ऊर्जा को मंदिर में छोड़कर जाता है। उस नकारात्मक ऊर्जा को पिरामिड ब्रह्मांड में भेज देता है। पिरामिड के अंदर जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है पिरामिड के ऊपर उतनी ही नकारात्मक ऊर्जा रहती है इसलिए प्राचीन समय में मंदिर, मस्जिद से नीचे के स्तर पर घर बनाये जाते थे। मिस्र के पिरामिड की ऊंचाई भी बहुत ज्यादा है तथा इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर धातु का प्रयोग किया गया है, इसीलिए मंदिर, मस्जिद के अंदर इतनी सकारात्मक ऊर्जा का आभास होता है तथा मानसिक शांति का अनुभव होता है। वास्तु में पिरामिड का प्रयोग करने पर हमें तुरंत ही अच्छा परिणाम मिल जाता है परंतु पिरामिड के ऊपर नकारात्मक ऊर्जा इकट्ठी होने पर लगभग एक या दो महीने में ही आपको ऊर्जाओं के असंतुलन का आभास होने लगेगा। पिरामिड का प्रयोग घर के अंदर नहीं करना चाहिए। आजकल हर जगह पिरामिड लगाने को कहा है प्लास्टिक के पिरामिड, रंग बिरंगे पिरामिड तथा पिरामिड के अंदर पिरामिड का भी प्रयोग किया जाता है जो हमें फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि पिरामिड को कहां और किस तरह लगाना चाहिए। वास्तु के अंतर्गत यंत्रों का भी अपना महत्व है। यंत्र रेखागणित से संबंधित होते हैं क्योंकि यंत्र बनाते समय अधिकतर त्रिकोण या गोलाकार चिह्नों का प्रयोग करते हैं जो कि अग्नि और पानी की कंपन-शक्ति है। विभिन्न प्रकार के गोलाकार और त्रिकोण का संयोजन बनाकर ये यंत्र तैयार किये जाते हैं जो कि विभिन्न प्रकार की कंपन शक्ति या ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। जैसे कि गणपति यंत्र विघ्न बाधाओं को दूर करने के लिए लगाया जाता है क्योंकि इस यंत्र की कंपन शक्ति इस प्रकार की होती है कि वह विघ्नता उत्पन्न करने वाली ऊर्जा या कंपन शक्ति को समाप्त करती है। इसी प्रकार घर में लक्ष्मी-यंत्र का प्रयोग हम इसी प्रकार की ऊर्जा को बढ़ाने के लिए करते हैं। जिस प्रकार हमने फेंगशुई में बताया है कि आपको जिस प्रकार की कंपन शक्ति को घर में उत्पन्न करना है, उसी प्रकार की कंपन-शक्ति उत्पन्न करने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए जिससे उस प्रकार की कंपन शक्ति आपके शरीर और आपके घर के अंदर अधिक प्रवाह करेगी। हम अपने घरों में कई प्रकार के यंत्र रख देते हैं जैसे किसी गुरु जी ने दिया है या आपको कहीं से मिला है। हम उसको ले जाकर अपने पूजा स्थल पर रख देते हैं। जो कंपन शक्ति उस यंत्र या पूजा की अन्य चीजों से उत्पन्न हो रही है वह एक-दूसरे की ऊर्जा के साथ सामाहित कर कभी-कभी नकारात्मक भी हो जाती है तथा कभी-कभी आवश्यकता से अधिक सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है जो दोनों ही स्थिति में हानिकारक है। पहले समय में यंत्र तांबे से बनाते थे तथा उनकी सही तरीके से देखभाल व सफाई रखी जाती थी। तांबे की धातु जब हरी-हरी होने लगती है तो उसमें बने यंत्र रूपी आकार की ऊर्जा खंडित हो जाती है और वह ऊर्जा या कंपन-शक्ति का संचार नहीं कर पाती है। इसी प्रकार धातु से एक अच्छा संचालन होने के कारण वह नकारात्मक ऊर्जा ही अपने अंदर इकट्ठा कर लेता है तथा 100 प्रतिशत नकारात्मक होने पर वह सकारात्मक ऊर्जा का शोषण करने लगता है, इसलिए जहां तक संभव हो सके, हमें धातु से बने यंत्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए तथा हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए कि कौनसा यंत्र किस दिशा और किस स्थान पर लगाने पर अधिक से अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है। पढ़ा लिखा होने के कारण हमें पता होना चाहिए और अच्छी तरह समझना चाहिए कि ऐसी नकारात्मक ऊर्जाएं कहां से आ रही हैं और इनका क्या कारण हो सकता है यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर ऊर्जा को पहचानता है इसलिए इसके द्वारा हम यह पता लगा सकते हैं कि हमें फेंगशुई की वस्तु कहां रखनी है तथा पिरामिड और यंत्र कहां पर लगाने हैं। क्रमश...



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