पित्ताशय की पथरी आचार्य अविनाश सिंह पित्ताशय की पथरी की उपस्थिति अधेड़ावस्था में पेट दर्द और उदर विकार का एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी के कारण उठने वाला दर्द न केवल बर्दाश्त से बाहर होता है, बल्कि अपनी चरम सीमा पर कई प्रकार की जटिलताएं भी उत्पन्न कर सकता है। यह रोग उन लोगों में अधिकतर पाया जाता है, जो आराम से बैठकर काम करते हैं या जिनको दिल की या मधुमेह की बीमारी होती है। यकृत के निचले भाग में दाहिनी ओर नाशपाती की आकार का पित्ताशय होता है। इसमें एक ओर यकृत से आने वाली पित्तवाहिका खुलती है, दूसरी ओर इसमें जमा पित्त महीन नलिकाओं द्वारा ग्रहणी तक पहुंच जाता है और वहां से पित्त छोटी आंत में मौजूद अन्न की पाचन क्रिया को तेज करने में सहायक होता है। पित्ताशय का मुख्य कार्य है- पित्त को जमा करना और उसे गाढ़ा बनाना। इसके अतिरिक्त पित्ताशय एक चिपचिपे पदार्थ का स्राव करता है, जो पित्तवाहिका को चिकनाहट प्रदान कर पित्त के निकास में सहायक सिद्ध होता है। यह पित्त हरे रंग का होता है और स्वाद में कसैला होता है जिसका मुख्य कार्य है आंत के भीतर जमा होने वाली वसा का पाचन करना एवं उसे सोखकर खून में पहुंचाना। यही प्रक्रिया कैल्शियम, कोलेस्ट्रोल एवं विटामिनों के साथ होती है। पित्ताशय में पित्त के घटकों की जब किन्हीं कारणों से विकृति हो जाती है, तो इन्हीं घटकों का रूप पथरी में बदल जाता है, जिसके कारण पित्ताशय को क्षति पहुंचती है तथा यकृत और अन्य पाचन अंगों में पित्ताशय की पथरी की उपस्थिति अधेड़ावस्था में पेट दर्द और उदर विकार का एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी के कारण उठने वाला दर्द न केवल बर्दाश्त से बाहर होता है, बल्कि अपनी चरम सीमा पर कई प्रकार की जटिलताएं भी उत्पन्न कर सकता है। यह रोग उन लोगों में अधिकतर पाया जाता है, जो आराम से बैठकर काम करते हैं या जिनको दिल की या मधुमेह की बीमारी होती है। विकार उत्पन्न होता है। पित्ताशय की पथरी के कारण पित्ताशय में पथरी होने के कई कारण हैं जिन में मुख्य कारण आहार है। यदि आहार मद्य से युक्त, मांसाहारी, अनियमित और असंतुलित है तो परिणामस्वरूप पाचन क्रिया मंद हो जाने के कारण पित्ताशय में कोलेस्ट्रोल नहीं घुल पाता तो संचित होकर, दूषित द्रव्यों के संयोग से पथरी का रूप धारण कर लेता है जिसे पथरी या पित्ताशय की पथरी कहते हैं। दूसरा कारण मोटापा होता है। जो व्यक्ति मोटे होते हैं उनके खून में कोलेस्ट्रोल की अधिकता के कारण वे पित्ताशय की पथरी के शिकार होते हैं। तीसरा कारण आनुवंशिकता, अर्थात् पीढ़ी-दर-पीढ़ी देखने में आता है। इस दशा में उम्र या शारीरिक वजन का लिहाज न करते हुए किसी भी उम्र का व्यक्ति इसका रोगी बन सकता है। पित्ताशय का विकार भी पथरी को जन्म दे सकता है। विकृति से पित्ताशय अपना लचीलापन खो बैठता है जिसके कारण प्रसारण और संकुचन की क्षमता घट जाती है और भीतर से पित्त की निकासी पूर्ण नहीं हो पाती जो गाढ़ा होकर पथरी में बदल जाता है। स्त्रियों में लंबे समय से गर्भ निरोधक गोलियों के उपयोग से भी पथरी होने की संभावना दुगुनी होती है। अन्य कारणों में पित्ताशय का कैंसर, छोटी आंत का कुछ हिस्सा निकलना या लंबे समय तक दवाइयों का उपयोग रक्त कोशिका संबंधी विकार पित्ताशय की पथरी उत्पन्न कर सकते हैं। पित्ताशय की पथरी के लक्षण इसका मुख्य लक्षण पित्ताशय में मरोड़ उठना है जो पित्ताशय का मुख अवरूद्ध हो जाने से होता है। दर्द की शुरूआत पेट के दाहिनी ओर ऊपरी हिस्से में होती है। दर्द अचानक उठता है और धीरे-धीरे कम होता है। यह दौरा कुछ मिनटों से घंटों तक एक-सा रहता है। दर्द की मात्रा पूरे शरीर में एक समान होती है और अक्सर भोजन के पश्चात दर्द उठता है। पथरी के पित्त की थैली में अटक जाने से कई बार सिर में चक्कर और तेज बुखार भी आ जाता है। उपचार आधुनिक युग में बहुत सी ऐसी दवाइयां उपलब्ध हैं जिनके सेवन से पथरी घुलकर बाहर निकल जाती है। यह सब रोग की अवस्था पर निर्भर करता है। यदि समय रहते उपचार हो जाये तो दवाईयों से काम चल जाता है अन्यथा शल्य-क्रिया जरूरी हो जाती है। लेकिन यदि व्यक्ति अपना खान-पान सुधार कर ऋतु के अनुसार आयुर्वेदिक तरीके से विरेचन आदि षट्कर्म से शरीर का शोधन करें तो पथरी होने का डर नहीं रहता। पित्त पथरी के पथ्यापथ्य: पित्त की पथरी में पथ्यापथ्य का पालन करने का विशेष महत्व है। पथ्य - जौ, मूंग की छिलके वाली दाल, चावल, परवल, तुरई, लौकी, करेला, मौसमी, अनार, आंवला, मुनक्का ग्वारपाठा, जैतून का तेल आदि। भोजन सादा बिना घी-तेल वाला तथा आसानी से पचने वाला करें और योगाभ्यास करें। अपथ्य मांसाहार शराब, आदि नशीले पदार्थों का सेवन, उड़द, गेहूं, पनीर, दूध की मिठाईयां नमकीन, तीखे-मसालेदार तले हुए, खट्टे, खमीर उठाकर बनाएं गये खाद्य पदार्थ जैसे इडली-डोसा ढोकला आदि। अधिक चर्बी, मसाले एवं प्रोटीन के सेवन से यकृत व प्लीहा के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है और फलस्वरूप रक्त की शुद्धि नहीं हो पाती। अतः पाचन में भारी, खासकर तली हुई और अम्ल बढ़ाने वाली चीजों सतावर का रस और दूध, बराबर मात्रा में मिलाकर प्रातःकाल पीने से बहुत दिन की पथरी भी नष्ट होकर निकल जाती है। इसका उपयोग 30 दिन तक करें। अदरक, जवाखार, हरड़ और दारू हल्दी चूर्ण को बराबर मात्रा में पीस लें फिर इसे दही या लस्सी के साथ पिएं। इससे भयंकर पथरी भी नष्ट हो जाती है। पेठें के रस में हींग और 5 ग्राम अजवाइन मिलाकर पीने से पथरी रोग नष्ट होता है। आमले के नरम पत्ते के 10 ग्राम स्वरस में 10 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से भयंकर पथरी रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी की जड़ में मिलाकर तुषोदक के साथ पीने से बहुत पुरानी शर्करा पथरी नष्ट हो जाती है। दो तोला अंगूर के पत्ते को 250 ग्राम पानी में उबाले। जब पानी आधा रह जाए, तो उसमें दो तोले मिश्री मिलाकर पिए। पथरी और मूत्र के सभी रोग नष्ट हो जाएंगे। 20 ग्राम प्याज के रस में मिश्री 15 दिन तक सुबह पीने से पथरी निकल जाती है। 20 ग्राम मूली के रस में 1 ग्राम जवाखार मिला कर सुबह-शाम पीने से पथरी नष्ट हो जाती है। चैलाई का साग खाने से पथरी नष्ट होती है। पथरी के रोगियों को नियमित रूप से कुछ अधिक पानी पीना चाहिए। विशेषकर गर्मियों के मौसम में कम से कम 4 लीटर पानी प्रतिदिन पीने से पथरी में लाभ होता है। के सेवन से परहेज रखें और भूख के बिना भोजन न करें तो पथरी से होने का डर नहीं रहता।