भविष्य कथन की पद्धतियां प्रश्न: किसी भी व्यक्ति के बारे में भविष्य फलकथन करने की कौन-कौन सी पद्धतियां हैं, उनकी विस्तृत जानकारी दें, जहां आवश्यक हो चित्र भी संलग्न करें। भविष्य कथन की अनेक पद्धतियां हैं। जिनमें से मुख्य रूप से निम्न है। 1. ज्योतिष विज्ञान (शास्त्र) अर्थात् जन्मकुंडली या पत्री द्वारा भविष्य कथन: इस जगत की उत्पत्ति का आधार ‘‘वेद’ हैं। वस्तुतः ज्योतिष सबसे अलग एवं अद्वितीय ज्ञान पद्ध ति है। जिसमें संबंधित जातक/ जातिका के जन्म दिनांक, जन्म समय एवं जन्म स्थान के अनुरूप तत्कालिक ग्रह स्थिति तथा ग्रहों की दशा अंतर्दशा व गोचर के आधार पर फल कथन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुख्यतः 2 अंग हैं। (1) गणित, (2) फलित/होरा 2. सामुद्रिक शास्त्र अर्थात् हस्त रेखा शास्त्र द्वारा भविष्य कथन ः हस्त रेखा द्वारा व्यक्ति के भविष्य कथन की यह पद्धति अत्यंत प्रमाणिक एवं वैज्ञानिक है। मनुष्य (बालक) जब जन्म लेता है तो उसके हाथ में केवल कुछ ही रेखा अर्थात तीन रेखायें, मुख्यतः जीवन (आयु) रेखा, मस्तिष्क रेखा तथा हृदय रेखा होती है। किसी-किसी के हाथ में चैथी रेखा भाग्य रेखा के रूप में होती है। ये तीनों या चारों रेखायें हल्की, बारीक एव महीन होती हैं तथा पूर्ण या अपूर्ण दोनों ही तरह की होती है। व्यक्ति (बालक) जैसे-जैसे कर्म करता है, उम्र के हिसाब से ये रेखायें गहरी व मोटी होती जाती हैं। कुछ रेखायें समय बीतने पर अर्थात् बच्चे के बड़े होने पर कार्यों के अनुसार परिवर्तित होती है अर्थात बनती भी है और बिगड़ती भी हैं। मनुष्य के जन्म के समय उसकी जन्मकुंडली (पत्री) में जैसे ग्रह (शुभ या अशुभ) स्थित होते हैं, व्यक्ति के विचार व मानसिकता भी ठीक वैसी ही होती हैं तथा व्यक्ति के विचार जैसे होंगे, ठीक वैसे ही कर्म भी होंगे तथा कर्मों के अनुसार ही हस्त रेखाओं में परिवर्तन अर्थात् रेखाओं का बनना एवं बिगड़ना चलता रहता है। ज्योतिष (कुंडली) एवं सामुद्रिक (हस्तरेखा) शास्त्र एक दूसरे के पूरक हैं। परंतु हस्त रेखा शास्त्र, ज्योतिष पर आधारित विज्ञान है। 3. अंक ज्योतिष द्वारा भविष्य कथन: अंक ज्योतिष में अंकों का विशेष महत्व होता है। ये अंक मूल रूप में 1 से 9 तक होते हैं जो सौरमंडल के 9 ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जैसे-1-सूर्य, 2-चंद्र, 3-गुरु, 4- राहु, 5 बुध, 6-शुक्र, 7, केतु, 8 शनि, 9 - मंगल। प्रत्येक अंक, ग्रह से संबंधित होने से अपना विशेष प्रभाव देता हैं। इस तरह से यह विज्ञान भी ज्योतिष आधारित ही है। अंक ज्योतिष द्वारा भविष्य-कथन में 3 तरह के अंक का विशेष महत्व है- (1) मूलांक (2) नामांक (3) भाग्यांक। (1) जातक की जन्मतारीख ही उसका मूलांक होती है। मूलांक सदैव एक अंक में ही होता है। यदि किसी की जन्मतारीख 30 है तो इसे मूलांक में बदलने के लिये एक अंक = 3$0 =3 में बदलते हैं। तब इस जन्मतारीख का मूलांक 3 होता है। अतः संसार के सभी जातकों का मूलांक इन्हीं 9 अंकों में से कोई एक होता है। (2) भाग्यांक: किसी भी जातक का भाग्यांक ज्ञात करने के लिये जातक की जन्मतारीख के सभी अंकों का योग कर, योगफल (एक अंक) में ज्ञात करते हैं। वही भाग्यांक कहलाता है। मूलांक एवं भाग्यांक सदैव जन्मतिथि के आधार पर निकाले जाते हैं। (3) नामांक: जातक का नामांक ज्ञात करने के लिये नाम के अंगे्रजी अक्षरों को आधार माना जाता है। प्रत्येक अंग्रेजी अक्षर के लिए एक अंक निश्चित होता है और नाम के इन्हीं अंकों का योगकर जातक के नामांक का निर्धारण किया जाता है। चूंकि अंकों में भी शत्रुता एवं मित्रता होती है अतः किसी जातक का मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक, उसके नाम से मेल न खाता हो तो वह नाम उस जातक के लिये भाग्यशाली नहीं होता है। अतः भाग्योदय या भाग्यवृद्धि के लिये व्यक्ति को अपना नाम, नामांक, मूलांक व भाग्यांक के आधार पर ही रखना चाहिये। नाम पहले से ही रखा हो तो उसमंे कुछ परिवर्तन कर अर्थात् अक्षरो को जोड़कर या तोड़कर नाम को भाग्यशाली बना सकते हैं। इस पद्धति की सहायता से व्यक्तिगत नाम के अलावा जातक व्यवसायिक क्षेत्रों में भी मनपसंद नाम रखकर जीवन में तरक्की कर सकता है। भविष्य-कथन की इस पद्धति द्वारा हम कम श्रम, कम समय एवं कम खर्च में ही अधिक उपयोगी एवं सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 4. हिंदू वास्तुशास्त्र एवं चीनी ज्योतिष (वास्तु शास्त्र) अर्थात् फेंगशुई द्वारा भविष्य कथन: कहते हैं कि चीनी ज्योतिष फेंग शुई भी हिंदू वास्तु शास्त्र की देन है। जो प्रकृति के पांचों तत्व अर्थात अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश के संतुलन पर आधारित है। ये ही पांचों तत्व चीनी ज्योतिष का भी आधार है। इसके अलावा चीनी ज्योतिष में 12 वर्षों का एक चक्र होता है। इस मतानुसार जातक का एक सांकेतिक चिन्ह होता है। इसी चिन्ह को आधार मानकर घर के उन हिस्सों का पता लगाया जाता है जिनका प्रभाव जातक सहित परिवार के किसी भी सदस्य पर रहता है। उनके संतुलन का उपाय करके हम लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 5. टैरो कार्ड पद्धति द्वारा भविष्य कथन: टैरो पद्धति में 78 कार्डों का डेक होता है। ये कार्ड व्यक्ति के भविष्य कथन के रहस्य को उजागर कर सकते हैं। यह पद्धति भी ज्योतिष (ग्रहों, राशियां आदि) पर आधारित है। कार्डों को खोलने पर यदि मेजर/ प्रधान कार्ड अधिक आते हैं तो यह स्थिति बहुत ही शुभ, अच्छी मानी जाती है। इस पद्धति द्वारा एक समय में केवल एक ही प्रश्न का उत्तर सही मिल सकता है। अतः एक समय में एक ही प्रश्न करना ज्यादा शुभ रहता है। 6. ताश के पत्तों द्वारा भविष्य कथन: यह एक रहस्यमयी पद्ध ति है। इसमें ताश के 52 पत्तों की एक गड्डी होती है तथा इनमें चारों रंग- 1. हुकुम (काला), 2. पान लाल, 3. ईंट (लाल), 4. चिड़ी के पत्ते (काले होते हैं। इसमें प्रत्येक वर्ग में 13-13 पत्ते होते हैं। इन चारो रंगों के अर्थ अलग-अलग होते हैं। 13 पत्तों के प्रत्येक समूह में इक्का, बादशाह, बेगम, गुलाम तथा 2 से 10 तक 9 पत्ते अर्थात 13 पत्ते होते हैं। ये सभी पत्ते कुछ रहस्यात्मक संदेश देते हैं। इस गड्डी को तीन बार फेंटकर उन्हें तीन बराबर समूहों में बांटकर तीन पत्तों के समूह द्व ारा भविष्य-कथन किया जाता है जो किसी भी प्रश्न से संबंधित हो सकता है। 7. लाल किताब द्वारा भविष्य कथन ः यह माना जाता है कि यह पद्धति इस्लाम की देन है। इस पद्धति का महत्व या उपयोगिता, इसके उपायों के सरल होने के कारण है। इसके उपाय बड़े कारगर एवं प्रभावशाली भी हैं। इस पद्धति में भावों को ‘खानों’ का नाम दिया जाता है तथा 1 से 12 तक के खाना नंबर लिखे जाते हैं। इनमे राशियों का कोई महत्व नहीं होता है। लग्न चक्र बनाकर राशि के अंकों को मिटाकर उनकी जगह लग्न से प्रारंभ करते हुये एक से बारह तक के खाना नंबर लिखे जाते हैं। जिससे यह पता चलता है कि कौन सा-ग्रह कौन से खाने में हैं। फिर खानों के हिसाब से ग्रहों की स्थिति के अनुसार फलादेश किया जाता है। इस पद्धति में अशुभ ग्रहों की भांति एवं शुभ ग्रहों के शुभत्व में वृद्धि के लिये जो भी ‘‘उपाय’’ करते हैं उन्हें ‘‘टोटके’’ कहा जाता है। ये उपाय लगातार 43 दिनों तक करने होते हैं। सरल एवं सस्ते होने के कारण इन टोटको (उपायो) का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। लाल किताब की इस पद्धति में ‘‘वर्षकुंडली’’ बनाने का विशेष महत्व होता है। परंतु इसकी बनाने की प्रक्रिया अलग है। इसमें पिछले वर्ष के अनुसार ग्रहों को एक खाने से दूसरे खाने में दर्शाया जाता है। वर्ष कुंडली के शुभाशुभ ग्रह, वर्ष विशेष में असर डालते हैं। इस पद्धति में टोटकों के साथ उत्तम चरित्र, सत्यता, सात्विक आहार तथा शुद्धता पर अधिक बल दिया जाता है। 8. प्रश्न शास्त्र द्वारा भविष्य कथन ः इसका महत्व उन लोगों के लिए अधिक होता है जिनके पास या तो जन्मपत्री नहीं है अथवा जन्मतारीख एवं समय का पता नहीं होता है। ऐसे लोगों के प्रश्नों का उत्तर ‘प्रश्न शास्त्र’ पद्धति द्वारा सटीकता से दिया जा सकता है। इसमें प्रश्न पूछने के लिये ‘‘समय’’ का विशेष महत्व है। इसके आधार पर ‘प्रश्न लग्न’ बनाया जाता है तथा विभिन्न विषयों से संबंधित प्रश्नों के उत्तर के रूप में भविष्य कथन किया जा सकता है। इसके लिए मात्र थोड़े समय की ही आवश्यकता होती हैं। इस पद्धति के अंतर्गत ‘‘केरलीय विधि’’ की प्रश्नोत्तरी शामिल है। केपी. प्रश्नोत्तरी पद्धति द्वारा भी भविष्य कथन किया जा सकता है। इसके अलावा श्रीसांई, श्रीहनुमान आदि प्रश्नोत्तरी द्वारा भी भविष्य-कथन किया जा सकता है। 9. रमल शास्त्र द्वारा भविष्य कथन: यह विद्या मूलरूप से भारत की ही देन है क्योंकि ‘‘रमल रहस्य’’ पुस्तक, जिसके रचनाकार- श्री भव्य भंजन शर्मा के अनुसार, माता पार्वती के द्वारा प्रश्न शास्त्र के ज्ञान के बारे में प्रश्न पूछे जाने पर भगवान शिव के मस्तक पर स्थित चंद्र से अमृत की चार बूंदे गिरी, जो क्रमशः प्रकृति के चारो तत्वों- अग्नि, वायु, जल एवं पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन्हीं बिंदुओं के आधार पर रस ‘‘रमल शास्त्र’’ में 16 ‘‘शक्लों’’ के रूपक बने। प्राचीन ज्योतिष शास्त्र की भांति ही इसमें भी 16 शक्लों में प्रथम 12 शक्लें 12 ज्योतिषीय भावों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलावा 13 से 16 तक शक्लें ‘‘साक्षी’’ भावों को दर्शाती हैं। इस प्रकार ‘‘16 शक्लें’’ रमल शास्त्र का आधार हैं। इस पद्धति द्वारा भी जीवन से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है। 10. लोशू चक्र द्वारा भविष्य कथन ः इस विद्या का संबंध चीन देश तथा कछुए से हैं। इस विद्या का संबंध भी कहीं न कही भारत देश से ही है। अर्थात् लोशु चक्र की विद्या का मूल तत्व या जनक भगवान श्री हरि का कूर्म रूप है। हिंदुओं की ही भांति चीन मंे भी कछुएं एवं उससे जुड़ी चीजों को शुभ माना जाता है। वे लोग भी यह मानते हैं कि कछुए के कवच में परमात्मा का वास होता है। अतः इसका मिलना शुभ शकुन समझा जाता है। लगभग 4000 वर्ष पूर्व इसिवार वू नामक चीनी राजा एवं उसके मंत्रियों ने कछुए के कवच के ऊपर अंकित बिंदुओं का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया तथा 33 अंक का एक पूर्ण वर्ग बनाकर उसे ‘‘लोशू चक्र’’ नाम दिया। यह लोशू चक्र इस विशेषता पर टिका था कि इसकी कोई भी रेखा चाहे वह क्षैतिज हो या ऊध्र्वाकार हो, अथवा विकर्णीय हो, उसके तीनों अंकों का योग 15 ही होता था तथा मध्य में अंक 5 था, जिसे चीनी लोग बहुत ही शुभ मानते थे। इस लोशु चक्र में 1 से 9 तक के प्रत्येक अंक के लिये एक स्थान निश्चित होता है। लोशु चक्र द्वारा भविष्य कथन करने के लिये प्रश्नकर्ता की जन्मतिथि महत्वपूर्ण होती है। प्रश्नकर्ता की जन्मतिथि के अंकों को लोशू चक्र्र में उसी स्थान पर रखना होता है। चाहे किसी अंक की पुनरावृत्ति क्यों न हो। 1 से 9 अंक, ज्योतिष के ग्रहों से जुड़े हैं। डाउजिंग से भविष्य कथन: इस पद्धति द्वारा भविष्य का नहीं बल्कि निकट भविष्य का फल कथन किया जा सकता है। इसके लिये विशेष प्रकार से रचित प्रश्नों और कार्डों का उपयोग किया जाता हैं । 12. नंदी नाड़ी ज्योतिष द्वारा भविष्य कथन: इस शास्त्र की उत्पत्ति के संबंध में यह कहा जा सकता है कि जब माता पार्वती जी मनुष्य के भविष्य कथन को जानने के हठ में आ गयी तो भगवान शिव रात्रिकालीन सुनसान वेला में इसका वृतांत सुना रहे थे तब इनके प्रहरी नंदी ने इसे सुनकर महर्षियों को बता दिया तथा इन्होंने इसे ताड़पत्र पर लिपिबद्ध कर लिया। इसलिये इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष कहते हैं। 13. श्री राम शलाका एवं अन्य प्रश्नोत्तरी पद्धतियों द्वारा भविष्य कथन: भारत के ऋषियों, मुनियों द्वारा अपनी दिव्य शक्तियों के बल पर विभिन्न प्रश्नोत्तरी पद्धतियों जैसे - श्री रामशलाका, श्री बत्तीसा यंत्र, नक्षत्र प्रश्नावली, श्री भैरव, श्री गर्भिणी प्रश्नावलियों, श्री साई, श्री हनुमान एवं केरलीय मूक प्रश्नोत्तरियों की खोज की गयी जिनके आधार पर किसी भी व्यक्ति का भविष्य-कथन किया जा सकता है। ये सारी प्रश्नोत्तरी पद्धतियां प्रश्न शास्त्र विद्या के अंतर्गत ही आती हैं। 14. गुप्त विद्या पद्धति (भावी ज्ञान) द्वारा भविष्य कथन: इस पद्धति द्वारा भविष्य कथन करने के लिये नीचे बताया गया ‘‘तीसा यंत्र’’ होता है। इसके द्वारा कुल 38 प्रश्नों का भविष्य कथन किया जाता है। इसके द्वारा प्रश्न करने की विधि यह है कि प्रश्न करने वाला एकाग्रचित मन से अपने इष्ट का स्मरण कर उच्चारण कर सकता है। फिर ऊँ कोष्ठक को छोड़कर अपनी अंगुली चित्रानुसार किसी भी कोष्ठक में रख सकता है। यही कोष्ठक वाली अंगुली के अंकों में अपना भाग्यांक जोड़कर प्राप्त संख्या उस जुड़े प्रश्न का उत्तर होगी। 15. स्वप्न ज्योतिष पद्धति द्वारा भविष्य कथन: हमारे प्राचीन ग्रंथों में इस पद्धति का काफी महत्व है क्योंकि स्वप्न, परमात्मा द्व ारा भविष्य में होने वाली घटनाओं के पूर्व संकेत हैं। स्वप्न का संबंध भी हमारी जन्मपत्री में मौजूद शुभ या अशुभ ग्रहों से होता है। मनुष्य का वर्तमान में जैसा समय चल रहा है, स्वप्न भी ठीक वैसे ही आते हैं। खराब समय अर्थात् नीच, शत्रु राशि के ग्रहों की दशादि में स्वप्न भी डरावने, बुरे, स्वास्थ्य खराब करने वाले तथा अति अशुभ आते हैं तथा अच्छे समय में यानि उच्च, स्वगृही या मित्र ग्रहों की दशा में स्वप्न शुभ और अच्छे आते हैं । 16. क्रिस्टल बाल द्वारा भविष्य कथन: हिंदी भाषा में इसे ‘‘स्फटिक कहते हैं। यह विधि प्राचीन काल की देन है। क्रिस्टल एक प्राकृतिक ठोस धातु है जिसके चारो ओर एक गोल समतल सतह होती है। इसमें लौह तत्व पाये जाते हैं जिसमें चुंबकीय शक्ति होती है। क्रिस्टल बाल पर एकाग्रचित होकर ध्यान ‘‘केन्द्रित’’ करने से मस्तिष्क में सभी प्रकार की घटनाओं के चित्र स्पष्ट होने लगते हैं। इस आधार पर भूत, वर्तमान व भविष्य के फल-कथन किये जा सकते हैं। 17. शुभाशुभ पद्धति द्वारा भविष्य कथन: लोक जीवन में शुभ एवं अशुभ अनेक मान्यताये जैसे- शकुन, अपशकुन, अंग-स्फुरण, स्वप्न, शंका, अंधविश्वास व वहम आदि होते हैं। इसके अलावा शरीर के विभिन्न स्थानों पर स्थित तिल, मस्से या अन्य संकेत चिन्ह होते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों पर छिपकली आदि के गिरने के अलावा यात्रा, परीक्षा या अन्य महत्वपूर्ण कार्य करते समय भी शुभ-अशुभ शकुन आदि का विचार किया जाता है। ये सारी स्थितियां भविष्य में होने वाली सही घटनाओं की सूचना देती है। 18. स्वर-ज्योतिष द्वारा भविष्य कथन: यह भविष्य कथन की अति महत्वपूर्ण प्राकृतिक विद्या है जो प्रश्न के समय प्रश्नकर्ता तथा प्रश्न के उत्तरदाता व्यक्ति के दावें, बायें तथा मिश्रित स्वर पर आधारित है। इसमें किसी भी बाह्य स्रोत एवं मदद की आवश्यकता नहीं होती। इसमें बस स्वरों के आधार पर मासिक भविष्य-कथन किया जाता हैं। इसमें जन्मकुंडली या जन्म के डाटा जैसे-तारीख, समय, स्थान न भी हो तो भी भविष्य कथन कर सकते हैं। इस पद्धति द्वारा भविष्य कथन से प्रायः सभी प्रश्नों के उत्तर नासिका में जो भी स्वर चल रहा है, उसके आधार पर किया जाता है। साहसिक कार्य सदैव दाये स्वर में तथा विनम्रता के कार्य सदैव बायें स्वर में करने पर लाभ प्राप्त होता है। इस भविष्य कथन में कई प्रश्न जैसे पुत्र संतान, चोरी वस्तु मिलेगी या नही, विवाह होगा या नहीं, परीक्षा परिणाम कैसा होगा, आदि मनुष्य-जीवन के सारे प्रश्नों के बारे में भविष्यकथन सटीकता से किया जा सकता है। 19. जैमिनी पद्धति द्वारा भविष्य कथन: जैमिनी पद्धति के जनक महर्षि जैमिनी थे, जिनके नाम पर यह पद्धति पड़ी। महर्षि जैमिनी, महर्षि पराशर के समय के ही ऋषि हैं क्योंकि पराशर ने अपने ग्रंथ में जैमिनी विद्या का भी विवचेन किया है। दोनों पद्धतियों में अंतर है। दक्षिणी भारत में इस पद्धति द्वारा भविष्य कथन किया जाता है। इनके नियमों का उपयोग फलित ज्योतिष में भी किया जा सकता है। 20 भृगु संहिता द्वारा भविष्य कथन: इस संहिता की उत्पत्ति श्रीविष्णु के कारण हुई। यह एक ‘‘ आर्ष ग्रंथ’’ है तथा इसमें संसार के सभी व्यक्तियों की जन्मपत्री मौजूद है। अतः इसके आधार पर भविष्य कथन करना बहुत ही आसान है। 21. मेदिनीय विद्या द्वारा भविष्य कथन: वर्तमान में इसका उपयोग सरकार की आयु की गणना आदि कार्यों में किया जाता है। यह नक्षत्र आधारित ज्योतिष विद्या है जिससे भविष्य-कथन किया जाता हैं। इसमें सभी 27 नक्षत्रों को तीन चक्रों से निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है। 1. अश्वपति चक्र 2. नरपतिचक्र, 3. गजपति चक्र। इस विद्या द्वारा प्राचीन काल में वर्तमान समय की भांति राजाओं के राज्य, शासन की आयु आदि की गणना आदि की जाती थी। 22. मृत आत्मा के आह्वान द्वारा भविष्य कथन: यह विद्या प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं को युद्ध में विजयी करने के लिये गयी थी, जो आजकल जनकल्याण के उद्देश्य से प्रत्येक मनुष्य के दैनिक जीवन के कार्यों हेतु भी उपयोग में लायी जाती है। इससे प्रश्न ज्योतिष तथा मुहूर्त ज्योतिष का कार्य भी किया जा सकता है। 23. हस्त लिपि, भाषा एवं लेखन शैली द्वारा भविष्य कथन: इसका विवेचन करने के लिये तृतीय, एकादश भाव तथा इनके स्वामियों पर विचार किया जाता है। इसके साथ ही पंचम भाव भी महत्वपूर्ण है तथा पंचमेश पर भी विचार करना आवश्यक है क्योंकि तृतीय भाव, दायां हाथ तथा एकादश भाव, बायां हाथ का प्रतिनिधित्व करता है जिससे हस्तलिपि एवं लेखन शैली का पता चलता है। पंचम भाव विद्या का भाव होने से भाषा का विचार किया जाता है। इनके स्वामियों के बलवान होने पर हस्तलिपि, लेखन एवं भाषा शैली सुंदर व आकर्षक होती है तथा भविष्य कथन अच्छा शुभ होता है। इसके विपरीत, निर्बल होने पर परिणाम, नकारात्मक आते हैं। अतः विभिन्न लग्नों, राशियों के ग्रहों के कारण उपरोक्त में अलग-अलग अच्छे बुरे परिणाम आते हैंे जिसके आधार पर भविष्य कथन किया जाता है। इसके अलावा जातक जिस स्याही का प्रयोग करता है, भविष्य कथन में उसका भी प्रभाव रहता है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के हस्ताक्षर भी आ जाते हैं जिसके आधार पर भी भविष्य कथन किये जा सकते हैं। 25. कुंडली के ‘सर्वाष्टक वर्ग’ द्वारा भविष्य कथन: यह पद्धति भी जन्मपत्री पर आधारित है। इसमें राहु, केतु दो छायाग्रहों को छोड़कर बाकी सभी 7 ग्रहों का अष्टक वर्ग बनाकर, इन्हीं सभी का योगकर इसका परिणाम ‘सर्वाष्टक वर्ग’ कहलाता है जो 12 भावों से संबंधित हैं जिसके आधार पर व्यक्ति का भविष्य-कथन किया जाता है। इसमें 12 भावों का ठीक वैसा ही फलादेश होता है, जैसा जन्मपत्री मं फलित ज्योतिष का है। इसमें प्रत्येक भाव में कुछ 50 या अधिकतम शुभ/अशुभ बिंदु होते हैं जिसमें से कुछ शुभ बिंदु (या रेखायें) तथा कुछ अशुभ बिंदु (या रेखायें) होती हैं। सर्वाष्टक वर्ग में जो भी बिंदु प्राप्त होते हैं वे शुभ बिंदु कहलाते हैं। 25 बिंदु होने पर फलादेश 50 प्रतिशत उत्तम अच्छा कहा जाता है। 50 प्रतिशत अर्थात 25 बिंदु से जितने कम बिंदु सर्वाष्टक वर्ग के संबंधित भाव में होते हैं, वह भाव उतना ही बुरा परिणाम देता है तथा उनका भविष्य कथन जातक के लिये अशुभ रहता है।