कालसर्प योग: कारण एवं निदान डाॅ. पुनीत शर्मा भारतीय ज्योतिष के अनुसार कालसर्प योग एक महत्वपूर्ण योग है, इस अर्थ में कि यदि यह शुभ हो तो जातक का जीवन सुखमय होता है और यदि अशुभ हो तो उसे जीवनपर्यंत संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इस योग के प्रमुख आधार राहु और केतु हैं। अतः कालसर्प योग को समझने के लिए इन दोनों ग्रहों को समझना जरूरी है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह की कल्पना की गई है जिनमें सात ग्रह सपिंड हैं और उन्हें देखा जा सकता है, किंतु राहु और केतु दिखाई नहीं देते, इसलिए इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। ये दोनों संपातिक बिंदु हैं। दोनों एक-दूसरे से समसप्तक हैं तथा 1800 पर रहते हैं। अंग्रेजीे में इन्हें ड्रैगन का सिर व ड्रैगन का धड़ कहते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय एक राक्षस ने छल से अमृत चख लिया था। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड़ से अलग कर दिया, किंतु इसके पहले चूंकि उसने अमृत चख लिया था, इसलिए वह अमर हो गया। सुदर्शन चक्र से कटकर अलग हुए उसके कटि से ऊपर के भाग को राहु और नीचे के भाग को केतु की संज्ञा दी गई। इन दोनों छाया ग्रहों के कारण ही ग्रहण होता है। इसीलिए इन्हें पापी ग्रह की संज्ञा दी गयी है। दोनों अत्यधिक बलशाली हैं और दोनों को अर्धकाय कहा जाता है। दोनों की विपरीत ग्रह की राशियों में स्थिति उस ग्रह के फल को बिगाड़ती है। राहु का फल शनि के समान और केतु का मंगल के समान माना जाता है। कहा भी गया है- शनिवत् राहु कुजवत् केतु। ये दोनों ही वक्र गति से चलते हैं तथा 1 राशि में लगभग डेढ़ वर्ष भ्रमण करते हैं। राहु का दशाकाल 18 वर्ष व केतु का 7 वर्ष माना गया है। प्रकार: कालसर्प योग को मुख्यतः तीन वर्गों में बांटा गया है - 1. पूर्ण या आंशिक 2. वास्तविक या विपरीत 3. स्थान अनुसार। 1. पूर्ण या आंशिक: जातक के जन्म के समय राहु और केतु के बीच एक ओर अन्य सभी ग्रहों की स्थिति को पूर्ण कालसर्प योग कहते हैं, किंतु इनमें से यदि कोई ग्रह घेरे से बाहर तो इस स्थिति को आंशिक कालसर्प योग कहा जाता है। आंशिक कालसर्प योग पूरी तरह प्रभावी नहीं होता। 2. वास्तविक या विपरीत: यदि समस्त ग्रह राहु के अग्र भाग से परिधि में आएं, तो इसे वास्तविक कालसर्प योग कहते हैं। इसके विपरीत यदि समस्त ग्रह राहु के पुच्छ भाग से परिधि में आएं तो इसे विपरीत योग कहते हैं। वास्तविक योग का प्रभाव अधिक जबकि विपरीत योग का अपेक्षाकृत कुछ कम होता है, किंतु शांति दोनों प्रकार के योगों की करवानी चाहिए। 3. स्थानानुसार: स्थानानुसार का तात्पर्य है कि कालसर्प योग किस स्थान से शुरू है अर्थात् राहु किस भाव में है। अलग-अलग भावों में राहु की स्थिति के अनुसार इसके 12 प्रकार हैं। राहु के प्रथम भाव में होने पर अनंत कालसर्प योग, दूसरे में कुलिक, तीसरे में वासुकि, चैथे में शंखपाल, पांचवें में पद्म, छठे में महापद्म, सातवें में तक्षक, आठवें मंे कर्कोटक, नौवें में शंखचूड़, दसवें में घातक, ग्यारहवें में विषधर तथा बारहवें में होने पर शेषनाग कालसर्प योग होता है। कालसर्प योग के लक्षण एवं प्रभाव इस योग से प्रभावित जातक को स्वप्न में अक्सर सर्प दिखाई देते हैं। उसे सर्प से भय लगता है। जातक को कड़े परिश्रम के बावजूद आशातीत सफलता नहीं मिलती। वह करना बहुत कुछ चाहता है, किंतु कर नहीं पाता। अक्सर मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। महापद्म योग की स्थिति में उसका स्वास्थ्य भी अक्सर खराब रहता है। अकारण ही लोगों से शत्रुता भी हो जाती है। कभी-कभी (दशा अंतर्दशानुसार) कानूनी उलझनों का सामना भी करना पड़ता है। तक्षक योग होने पर विवाह आदि में परेशानी होती है और कुछ लोग थक-हार कर भाग्य के भरोसे बैठ जाते हैं। कुछ लोगों को निराशा घेर लेती है। कुछ राहु और केतु के कोप को ही जीवन की नियति मान लेते हैं। उपाय: कालसर्प योग के दोष से मुक्ति हेतु नागों और सांपों के नाथ प्रभु शिव की आराधना करना अति उत्तम उपाय है। भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मर्दन किया था अतः इस योग के दोष से बचाव के लिए भगवान श्री कृष्ण की भक्ति भी करनी चाहिए। भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता हैं, अतः इस योग के दोष से मुक्ति हेतु उनकी पूजा आराधना भी करनी चाहिए। हनुमान जी राहु और केतु की पीड़ा के मुक्ति दिलाते हैं, अतः उनकी आराधना भी अत्यंत करनी चाहिए। भगवान बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है। राहु और केतु के मंत्र का जप भी करना चाहिए। इन सब आराधना उपासनाओं के अतिरिक्त काल सर्प दोष निवारण के कुछ विशिष्ट एवं सरल उपाय यहां प्रस्तुत हैं। निम्नलिखित मंत्रों का यथासंभव जप करें । (कम से कम 5 बार) ¬ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं पफट। ¬ हीं बटुकाय आपदुदारणाय कुरु कुरु बटुकाय हीं। ¬ देवदत्त धनंजयाय नमः। ¬ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवै नमः। ¬ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवै नमः’। अंत में ‘हे प्रभु! मेरे कालसर्प योग के दुष्प्रभावों को समाप्त करो’ ऐसी प्रार्थना अवश्य करें। साथ ही कालसर्प योग निवारक यंत्र स्थापित कर उसे नियमित रूप से दीपक दिखाएं तथा चंदन का तिलक यंत्र को भी लगाएं और स्वयं भी करें। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित मंत्रों का जप भी कर सकते हैं। अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम्। सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहु प्रणमाम्यहम्।। पलाश पुष्प संकाशं तारकाग्र मस्तकम्। रौद्र रौद्रात्मकम् घोरं तं केतु प्रणमाम्यहम्।। ¬ नमः शिवाय। कुछ अन्य उपाय हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करें। प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग का जलाभिषेक करें। प्रत्येक ग्रहण में सतनाजा या सप्तधान्य दान दें। 7 शनिवार शाम को सिर से 7 बार नारियल उतारकर बहते जल में प्रवाहित करें। अपने वजन के बराबर कोयला तीन भाग में बांट लें तथा तीन शनिवार लगातार जल में प्रवाहित करें। हर नाग पंचमी के दिन शिवार्चन कर चांदी का एक जोड़ा सर्प चढ़ाएं तथा एक जोड़ा चांदी का सर्प बहते जल में प्रवाहित करें। प्रभाव गंभीर होने पर किसी योग्य ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराना चाहिए। साथ ही राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए। अतः अन्य योगों की भांति कालसर्प योग के दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए भी किसी विद्वान ज्योतिषी से परामर्श लेकर उपाय करने चाहिए।