अष्टकूट मिलान मानक अष्टकूट मिलान में आठ मानकों के आधार पर मिलान की व्यवस्था है यथा- वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह-मैत्री, गण, भकूट एवं नाड़ी। इनके अंक इस प्रकार निर्धारित किये गये हैं। वर्ण - 1, वश्य - 2, तारा - 3, योनि - 4, ग्रहमैत्री - 5, गण - 6, भकूट - 7, नाड़ी - 8 उपरोक्त अंकों का योग 36 है।
इनमें से तारा, योनि, गण एवं नाड़ी का आधार जन्म नक्षत्र है तो वश्य, वर्ण, ग्रहमैत्री एवं भकूट का आधार जन्म राशि है। अगर वर और वधू के अष्टकूट मिलान का हरिश्चंद्र प्रसाद आर्य, पटना गुणांक 18 से 20 तक आता है तो साधारण, 20 से अध् िाक और 25 तक गुणांक आने पर मध्यम, 25 से अधिक गुणांक आने पर उत्तम माना जाता है।
अब प्रश्न है कि क्या मात्र अष्टकूट गुणांक के आधार पर वैवाहिक सुख मिलने की उद्घोषणा की जा सकती है? शास्त्रों के अनुसार ज्योतिषीय आधार पर जातक/ जातिका के एकल कुंडली के आधार पर भी वैवाहिक सुख मिलने की विवेचना की जानी चाहिए अन्यथा अष्टकूट मिलान के बाद भी वैवाहिक सुख की प्राप्ति मृगतृष्णा ही रहेगी। कुंडली के कुछ योग ऐसे हैं जो वैवाहिक सुख को प्रभावित करते हैं।
कुंडली में विद्यमान संतानहीनता का योग, अल्पायु योग, वैधुर्य या विधवा होने का योग, गंभीर बीमारी से पीड़ित रहने का योग, दरिद्र योग, व्यभिचार योग आदि कुछ ऐसे योग हैं जो वैवाहिक सुख को प्रभावहीन बना देंगे और वर-वधू के जीवन को विवाहोपरांत उनके जीवन में नैराश्य एवं अंधेरा ला देंगे। यहां कुछ ऐसे योगों की चर्चा की गई हंै: अल्पायु योग शास्त्रों ने 20 वर्ष से 32 वर्ष तक की आयु को अल्पायु माना है।
अगर इतने अल्प समय ही वर या वधू का जीवन हो तो एक की मृत्यु दूसरे के लिए विधुर या विधवा होने की स्थिति होगी। फिर दाम्पत्य सुख का नाश होगा और अष्टकूट मिलान से फायदा ही क्या? अल्पायु योग:
अष्टमेश केतु के साथ लग्न में हो।
अष्टमेश लग्न में हो तथा लग्नेश बलहीन हो।
लग्न और चंद्र लग्न दोनों ही द्विस्वभाव राशि में हो।
मंगल पंचम में, केतु लग्न में तथा शनि अष्टम में हो। दरिद्र योग भरण-पोषण के लिए उचित साधनों अर्थात पर्याप्त आमदनी का न होना दम्पत्ति के लिए कष्टकारी होगा और वैवाहिक सुख तिरोहित हो जायेंगे। कभी-कभी पत्नी के ग्रह योगों के कारण भी परिवार में दरिद्रता आ जाती है।
ज्योतिषीय योग
चंद्रमा और केतु लग्न में हो।
लग्नेश अष्टम भाव में, द्वितीयेश या सप्तमेश के साथ हो या इनसे दृष्ट हो।
लाभेश नीच का होकर अस्त हो।
धनेश द्वादश भाव में द्वादशेश के साथ हो।
द्वितीयेश त्रिक भाव में हो।
पाप ग्रह द्वितीय भाव में हो। संतानहीनता संतान प्राप्ति वैवाहिक जीवन का एक मुख्य उद्देश्य है और दंपत्ति को आपस में स्नेह बंधन में बांधे रहता है। दाम्पत्य जीवन नष्ट होने में इसकी एक बड़ी भूमिका होती है। संतानहीनता के अन्य योगों के अतिरिक्त संतान अप्राप्ति का कारण पूर्वजन्मकृत कुछ शापों को भी माना गया है जैसे- सर्प शाप से संतानहीनता, पितृ एवं मातृशाप से संतानहीनता।
कुछ अन्य योग इस प्रकार हैं-
मंगल, शुक्र और शनि तीनों सप्तम भाव में हो।
गुरु पंचम भाव में हो तथा गुरु से पंचम भाव में पाप ग्रह हो।
गुरु पंचमेश होकर पापदृष्ट एवं पापयुत हो।
पंचम भाव में मान्दी हो और पंचमेश पंचम या सप्तम भाव में हो।
शनि और मंगल पंचम भाव में सिंह राशि में और पंचमेश सूर्य षष्ठ भाव में हो। नपुंसत्व वर की कुंडली में उसके नपुंसत्व होने का संकेत मिलते हों तो भी ऐसे वर से वधू का विवाह वैवाहिक जीवन में तनाव, असंतोष और तलाक को ही जन्म देता है। कु
योग-
शुक्र और शनि परस्पर षष्ठाष्टम हों।
लग्न, चंद्रमा तथा शुक्र तीनों विषम राशि तथा विषम नवांश में हों।
शुक्र और शनि दोनों अष्टम भाव में हो और उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हों।
चंद्रमा और सूर्य, शनि और बुध, मंगल और बुध इन तीन ग्रह युग्मों में से एक ग्रह सम में तथा दूसरा ग्रह विषम में बैठ कर एक दूसरे को देखते हों तो जातक नपुंसक होता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त भी अन्य कई ऐसे योग हैं जिनके कारण वैवाहिक जीवन नीरस, तनावपूर्ण, दुःखी रहता है एवं तलाक या अलगाव की स्थिति आ जाती है। ये योग हैं-व्यभिचारी होने के योग, उन्माद या पागल होने का योग, गंभीर बीमारी जैसे कैन्सर, कुष्ठ रोग, क्षय रोग, आदि होने का योग। अतः वर-वधू का शादी से पहले अष्टकूट मिलान के साथ इन योगों पर भी सम्यक विचार विद्वान ज्योतिषी से करवाकर वैवाहिक जीवन को अधिक सुखमय बनाया जा सकता है।