कैंसर रोग एवं ज्योतिष
कैंसर रोग एवं ज्योतिष

कैंसर रोग एवं ज्योतिष  

व्यूस : 19072 | अप्रैल 2008
कैंसर रोग एवं ज्योतिष प्रश्न: जन्मकुंडली से कैसे जानें कि व्यक्ति को कैंसर की संभावना है तथा कैंसर शरीर के किस अंग को प्रभावित करेगा? कैंसर होने का संभावित समय कैसे जानें? इससे बचने के लिए पूजा, अनुष्ठान एवं उपायों का विस्तृत वर्णन करें। आधुुिनिक विज्ञान औरैर कैंैंसंसर कैंसर आधुनिक समय में मानव समाज के लिए सबसे खतरनाक एवं चिंताजनक समस्या है। वर्तमान समय में विज्ञान काफी प्रगति कर चुका है और कर रहा है। फिर भी आधुनिक मेडिकल साइंस कैंसर के मामले में अपने हाथ खड़े कर देती है। कैंसर के कुछ मामले प्रारंभिक अवस्था में आपरेशन या रेडियेशन के द्वारा ठीक हो जाते हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में डाॅक्टर का भी कहना होता है, “होगा वही जो राम रचि राखा”। अतः आधुनिक ज्योतिषियों का कर्तव्य बनता है कि इस खतरनाक व चुनौती पूर्ण समस्या पर गहराई से विचार व चिंतन कर मानव सेवार्थ मिलकर कार्य करें। विश्व में आज लगभग तीन करोड़ से ज्यादा लोग इस रोग की चपेट में हैं। डाॅ. एलिस वारकर के अनुसार इनमें से 50 प्रतिशत से ज्यादा रोगी अमेरिका और इंग्लैंड में हैं। अपने देश में मुंह, गले, जीभ आदि अंगों में कैंसर के मरीज ज्यादा पाए जाते हैं। मुंह कैंसर के रोगियों का प्रतिशत लगभग 70 है। 22 प्रतिशत रोगी फेफड़े, पेट और छाती के कैंसर से ग्रस्त हैं। अन्य अंगों में पाए जाने वाले कैंसर का प्रतिशत 8 है। रोगियों में दो तिहाई पुरुष और लगभग एक तिहाई महिलाएं हैं। एक प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री डाॅकेनेथ वाकर ने कहा है कि “लोग जो भोजन किया करते हैं उसमें से आधे भोजन से उनका पेट भरता है और आधे से डाॅक्टरों की जेबें भरती हैं।” कैंसर के लक्षण किसी घाव का न भरना असाधारण और बार-बार रक्तस्राव का होना या अन्य स्राव का निकलना। विशेषकर स्त्रियों में मासिक बंद हो जाने के बाद प्रायः ऐसा होता है। गले की खराबी या गले का रोग जो ठीक होने तथा भरने का नाम न ले। कोई असाधारण गांठ होना या शरीर के किसी भी भाग का बढ़ जाना - विशेषकर स्त्रियों के स्तन में गांठ पड़ जाना। किसी भी अल्सर का इलाज के बाद भी ठीक न होना। मस्सों एवं तिल के रंग व आकार में अचानक परिवर्तन। मल तथा मूत्र त्याग की आदतों में परिवर्तन। कैंसर रोग के ज्योतिषीय कारण यदि बृहस्पति या शुक्र षष्ठेश होकर लग्न में क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो तो के मुख में व्रण या घाव होता है। कुंडली में मीन, कर्क या वृश्चिक राशि में सारे क्रूर ग्रह हों, अर्थात् ये तीनों राशियां पापाक्रांत हों तो व्यक्ति को दीर्घकालीन रोग होता है। मंगल और शनि यदि षष्ठ या द्वादश स्थान में स्थित हों, तो जातक को कैंसर रोग होता है। द्वितीय भाव में शनि, चतुर्थ भाव में चंद्र और दशम भाव में मंगल स्थित हो तो व्रण से मृत्यु भय होता है। षष्ठ या अष्टम भाव में शनि या मंगल की युति केतु या राहु के साथ हो, तो जातक को कैंसर रोग की संभावना रहती है। मेष लग्न में व मंगल के ऊपर शनि, राहु व षष्ठेश का प्रभाव फेफड़ांे का कैंसर उत्पन्न करता है। रक्त कारक चंद्र, मंगल एवं लग्नेश पर मलिन ग्रहों के प्रभाव से कैंसर होने की संभावना रहती है। यदि षष्ठेश नैसर्गिक पापी ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम भाव में स्थित हो और भाव व भावाधिपति षडबल में कमजोर हांे तो कैंसर या व्रण की संभावना रहती है। लग्न अथवा चंद्र लग्न व स्वामियों पर मंगल व शनि की दृष्टि या युति एवं निर्बल चंद्र त्रिक भाव में अशुभ राशि में हो, तो जातक को कैंसर होता है। यदि जातक की जन्मकंुडली में मलिन ग्रह शनि व राहु एवं व्रण कारक ग्रह मंगल, केतु व अशुभता लिए तथा सूर्य प्रबल हो और शुभ ग्रह कमजोर हां,े तो जातक का े कसंै र होता ह।ै मकर के नवांश में लग्नेश, षष्ठेश या चंद्र स्थित हो और लग्न व स्वामी पर पाप प्रभाव हो, तो कैंसर से पीड़ित होने के योग बनते हैं। षष्ठ अथवा द्वादश भाव में मंगल और शनि की युति हो और मंगल व शनि पर अशुभ प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दृष्टि में हो, तो जातक को गले में व्रण होता है। पंचम भाव में मेष का मंगल और नीच का शनि हो या उस पर केतु व चंद्र का प्रभाव हो, तो जातक के सिर में गांठ हो सकती हैं। शरीर के जिस अंग से संबंधित भाव, भाव स्वामी, कारक, उस संख्या की राशि व राशीश की अशुभ ग्रहों से युति या दृष्टि से होगी व शुभ प्रभाव की कमी होगी, उस अंग में स्थिति के अनुसार रोग होगा। अशुभ अर्थात् रोग कारक ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, लग्न, लग्नेश, मेष राशि व मंगल पर शनि, राहु, केतु व षष्ठेश का प्रभाव युति या दृष्टि के द्वारा हो, तो जातक या जातका को मस्तिष्क का कैंसर होता है। द्वितीय भाव, द्वितीयेश, वृष राशि और शुक्र पर पापी ग्रहों का प्रभाव मुंह का कैंसर उत्पन्न करता है। जैसे द्वितीय भाव पर मंगल और केतु पापत्व लेकर दृष्टि या युति से प्रभाव डालते हैं, तो व्यक्ति तंबाकू चबाने का आदी हो जाता है (द्वितीय भाव में चर राशि भी हो) जिससे कालांतर में कैंसर होने की संभावना रहती है। यदि द्वितीय भाव में शनि और राहु विराजमान हों, चतुर्थ, चतुर्थेश व चंद्र पर भी उक्त ग्रहों का दृष्टि, युति या अप्रत्यक्ष प्रभाव हो तो व्यक्ति धूम्रपान का आदी हो जाता है जो आगे चलकर फेफड़ांे के कैंसर का कारण हो सकता है। तृतीय स्थान में नीच राशि, शत्रु राशि या अस्तगत ग्रह हों एवं उस भाव पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो, तो गले में कैंसर होता है। रक्त कारक ग्रह चंद्र व मंगल के ऊपर शनि, राहु और केतु का अशुभ प्रभाव हो और लग्न तथा लग्नेश पाप पीड़ित हों, तो रक्त कैंसर होता है। पंचम भाव, पंचमेश, कारक गुरु, सिंह राशि व सूर्य षडबल में कमजोर हांे और उनके ऊपर पापी ग्रहों (मंगल, केतु, राहु, शनि, षष्ठेश) का प्रभाव हो, तो पहले एसिडिटी, अल्सर और फिर कैंसर होता है। मंगल की महादशा एवं अंतर्दशा हो और वह व्यय या अष्टम भाव में पाप प्रभाव लिए स्थित हो, तो कैंसर रोग की संभावना रहती है। मंगल में केतु की अंतर्दशा हो, मंगल से केतु सप्तम में हो एवं दोनों पर पाप प्रभाव हो, तो कैंसर रोग होने की संभावना रहती है। राहु में मंगल की अंतर्दशा हो और मंगल राहु से 6, 8 या 12 वें भाव में हो, तो कैंसर रोग होने की संभावना रहती है। कैंसर से प्रभावित अंग जन्मकुंडली में लग्न को शरीर का दर्जा दिया गया है। लग्न अथवा लग्नेश पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन शरीर के अलग-अलग हिस्सों के अंदरूनी अथवा बाहरी हिस्सों का विश्लेषण करने के लिए जन्मकुंडली को दो हिस्सों में बांटना जरूरी होता है। इसमें दाएं और बाएं शरीर के अंगों का विश्लेषण किया जा सकता है। विश्लेषण करने के बाद ही शरीर के उन हिस्सों में बैठे ग्रहों, ग्रहों की युतियों, दृष्टि संबंधों आदि से यह पता लगाया जा सकता है कि कैंसर शरीर के किस अंग को प्रभावित करेगा। स जिस भाव के अंग के भाव पर पापी ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तथा चंद्र दूषित हो रहा हो उस भाव के अंग पर कैंसर होता है। स छठे भाव का स्वामी पापी ग्रहों के साथ जिस अंग के भाव में बैठता है उस भाव के अंग पर कैंसर होता है। स वृष लग्न में चंद्र, बुध और केतु द्वितीय स्थान में हों और पापी ग्रह मंगल और शनि देखें और लग्नेश अस्त हो, तो व्यक्ति को मुख का कैंसर होता है। स मीन लग्न में बृहस्पति छठे, केतु अष्टम, मंगल द्वितीयेश होकर बारहवें और चंद्र और शनि लग्न में हों, तो विषयोग का निर्माण होता है। इससे व्यक्ति को बाएं फेफड़े में कैंसर होता है। स कन्या लग्न में बृहस्पति वक्री होकर पंचम भाव में मकर राशि में नीचस्थ हो, शनि अपनी राशि मकर से बारहवें होकर धनु राशि में हो और केतु छठे भाव में हो, तो व्यक्ति को बड़ी आंत का कैंसर होने की संभावना रहती है। स चंद्र या गुरु जल राशि में होकर अष्टम स्थान में हो और उसे पाप ग्रह देखते हों, अथवा अष्टम स्थान में बुध हो और उसे पाप ग्रह देखते हों अथवा छठे भाव में राहु हो, लग्न से केंद्र स्थान में शनि हो तथा लग्नेश अष्टम भाव में हो, तो निस्संदेह व्यक्ति को छाती का कैंसर होता है। स तृतीय भाव का स्वामी बुध से युत होकर लग्न भाव में हो और पापी ग्रहों से दृष्ट हो अथवा तीसरे भाव में नीच राशि के ग्रह या शत्रु राशिस्थ या अस्त होकर किसी पाप ग्रह से दृष्ट हो, तो व्यक्ति को गले का कैंसर होता है। स मंगल और बुध के साथ यदि लग्न का स्वामी चैथे या बारहवें भाव में होकर राहु से दृष्ट हो, अथवा शनि व चंद्र के साथ गुरु छठे भाव में हो, अथवा लग्नेश छठे भाव में पापी ग्रह जिनमें छठे और अष्टम भाव के नक्षत्रों से संबंधित अंग क्र. नक्षत्र शरीर के अंग 1. अश्विनी दोनों घुटने 2. भरणी सिर 3. कृत्तिका कमर 4. रोहिणी दोनों पैर 5. मृगशिरा दोनों आंखें 6. आद्र्रा बाल 7. पुनर्वसु उंगलियां 8. पुष्य मुंह 9. अश्लेषा नाखून 10. मघा नाक 11. पर्वू ा फा. बाहरी जननंेि दय्र ां 12. उŸारा फा. बाहरी जननंेि दय्र ां 13. हस्त दोनों हाथ 14. चित्रा माथा 15. स्वाति दांत 16. विशाखा दोनों ऊपरी बाजू 17. अनुराधा हृदय 18. ज्येष्ठा जीभ 19. मूला दोनों पैर 20. पूर्वाषाढ़ा दोनों जांघें 21. उŸाराषाढ़ा दोनों जांघें 22. श्रवण दोनों कान 23. धनिष्ठा कमर 24. शतभिषा ठोढ़ी के दोनों तरफ का हिस्सा 25. पूर्वा भाद्रपद शरीर के दोनों भाग 26. उ. भाद्रपद शरीर के दोनों भाग 27. रेवती दोनों बगलें । प्रथम भाव द्वितीय भाव तृतीय भाव चतुर्थ भाव षष्ठ भाव पंचम भाव सप्तम भाव अष्टम भाव नवम भाव दशम भाव द्वादश भाव एकादश भाव मुख, सिर, रंग, रूप जाति, मेरुदंड दायीं आंख, नाक, वाणी, कंठ गला, दायां हाथ, दायां कान दायां कंधा छाती, हृदय, यकृत, फेफड़े, तिल्ली आदि पेट के अंदरूनी भाग, पीठ कमर, मूत्राशय, गुप्तांग, जननेंद्रिय, गुदा अंतड़ियां, नाभि, दायां पांव बायां पांव पेट, पीठ, बायां भाग हृदय, छाती का बायां भाग बायां हाथ, बायां कंधा, गला बायीं आंख, बांया कान ग्रह्रह्रह एवं शरीर के प्रभ््रभ््रभावित होनेनेने वाले अंगंगंग ग्रह अंग सूर्य हृदय, आमाशय, हड्डियां, दायीं आंख चंद्र शरीर में तरल पदार्थ, हारमोन्स, बायीं आंख, छाती, स्तन, मंगल सिर, अस्थि, मज्जा बुध त्वचा, गला, नाक, दिमाग का अगला हिस्सा गुरु लीवर, पिŸा की थैली, तिल्ली, आमाशय का कुछ हिस्सा, चर्बी, कान शुक्र चेहरा, दृष्टि, जननेंद्रियां, मूत्राशय, किडनी, आंखें, आतें, ग्रंथियां, हारमोन्स शनि पैर, घुटने के नीचे का हिस्सा,नाड़ियां, बड़ी आंत राहु/केतु शनि से प्रभावित होने वाले सारे अंग डाॅ. आर. पी. पटेल, सिविल वार्ड -4, के.एन. काॅलेज के सामने, जैन मंदिर के पास, दमोह (म. प्र.) अन्य भाग लेने वाले विद्वान: पं. राजेंद्र कुमार मिश्र, डिब्रूगढ़, बसंत कुमार सोनी, जबलपुर, पं. विजय कुमार शर्मा, कांगड़ा, हरिश्चंद्र प्रसाद आर्य, पटना, सुरेश चंद्र मल्लिक, कटक, एम. सी. गर्ग, दिल्ली, आर. पी. जोशी, रीवा विचार स्वामी लग्न म ंे हा,ंे चदं ्र अष्टम भाव म ंे हा,े तो व्यक्ति को रक्त कैंसर होता है। शनि या मंगल से युत चंद्र और बृहस्पति, तुला अथवा कर्क राशि में क्रमशः छठे व तृतीय भाव में बैठे हों और राहु से दृष्ट हों, तो व्यक्ति को कान या छोटी आंत में कैंसर होने की संभावना रहती है। लग्न भाव में मंगल, शनि एवं राहु हों, अथवा लग्नेश राहु के साथ आठवें भाव में हो अथवा लग्न में राहु, मंगल, शुक्र व केतु सप्तम भाव में और शनि दशम भाव में हो, तो व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर होने की संभावना रहती है। किसी स्त्री की कुंडली में षष्ठेश मंगल एवं राहु के साथ में स्थित हो, तो उसके जननांग में कैंसर होने की संभावना रहती है। तीसरे भाव में राहु मंगल से युत हो अथवा तीसरा भाव पापी ग्रहों से दृष्ट हो, तो जातक के दाएं कान में कैंसर होने की संभावना रहती है। यही युति अगर एकादश भाव में हो तो यह रोग बाएं कान में होता है। पाप ग्रह से युत चंद्र अष्टमेश राशि में हो, अष्टमेश पर राहु की दृष्टि हो तथा केतु अष्टम भाव में बैठा हो, तो जातक को गुदा का कैंसर हो सकता है। चंद्र जल राशि में हो और उस राशि का स्वामी छठे भाव में हो, तो व्यक्ति को जननेंद्रिय का कैंसर होने की संभावना रहती है। शनि की राशियों में चंद्र पाप ग्रहों के साथ छठे या अष्टम भाव में और मंगल लग्न में हो और लग्नेश राहु से दृष्ट हो, तो व्यक्ति को जिगर का कैंसर होने की संभावना रहती है। बुध लग्न में, गुरु छठे स्थान में और राहु, मंगल तथा शनि, सप्तम भाव में हों तो व्यक्ति को मुंह का कैंसर होने की संभावना रहती है। कर्क लग्न में सूर्य और शनि द्वितीय भाव में, बुध, शुक्र और केतु तृतीय में और गुरु छठे भाव में हो, तो व्यक्ति को गुर्दे का कैंसर होता है। किसी स्त्री की कुंडली में कुंभ लग्न में शनि लग्न में, सूर्य और शुक्र सप्तम भाव में और राहु तृतीय भाव में हो, तो उसे गर्भाशय का कैंसर हो सकता है। किसी स्त्री की कुंडली में चंद्र और शुक्र छठे भाव में, राहु लग्न में और मंगल तृतीय मंे हो, तो उसे स्तन कैंसर होने की संभावना रहती है। कुछ अन्य अशुभ योग यदि कोई पाप ग्रह पाप राशि में स्थित होकर शत्रु ग्रह से युत और दृष्ट हो, तो उसकी दशा में जातक की मृत्यु होती है। जन्मकुंडली में जो ग्रह षडबल में कमजोर व पाप पीड़ित (युति, दृष्टि या अशुभ भाव के स्वामी) हो, परस्पर महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा में मृत्यु देते हैं। पाप ग्रह की महादशा में पापग्रह की अंतर्दशा होने पर जातक की मृत्यु होती है। कैंसर रोग से बचने हेतु अनुष्ठान कैंसर जैसे रोग को खत्म करने हेतु श्री मृत संजीवनी और श्री महामृत्युंजय मंत्र का जप व अनुष्ठान करना चाहिए। श्री मृत संजीवनी का जप मृत हो रहे शरीर में जान डाल देता है। जिस प्रकार राम-रावण युद्ध में मेघनाद द्वारा चलाए गए शक्तिबाण से लक्ष्मण मृत समान ही हो गए थे। उस समय हनुमान जी द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी का अर्क लक्ष्मण जी को देने पर उन्हें नया जीवन मिला था। श्री मृत संजीवनी मंत्र में नीलकंठ महादेव और माता गायत्री दोनों की शक्ति है। इसी तरह श्री महामृत्युंजय जप की भी अपनी महिमा है। यह भी असाध्य रोग से मुक्ति प्रदान करता है और व्यक्ति को स्वस्थ बनाता है। श्री मृत संजीवनी का मंत्र ¬ हौं ¬ जूं ¬ सः, ¬ भूर्भुवः स्वः।। ¬ त्र्यंबकं यजामहे, ¬ तत्सविर्तुवरेणयम।। ¬ सुगंधिपुष्टिवर्धनम, ¬ भर्गो देवस्य धीमहि।। ¬ उर्वारुकमिव बन्धनात, धियो योनः प्रचोदयात।। ¬ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात, ¬ स्वः भुवः भूः ¬ सः जूं हौं ¬ ।। श्री महामृत्युंजय का मंत्र ¬ हौं ¬ जूं ¬ सः ¬ भूः ¬ भुवः ¬ स्वः ¬ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिपुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात। ¬ स्वः ¬ भुवः ¬ भूः ¬ सः ¬ जूं ¬ हौं ¬। जन्मकुंडली, वर्षकंुडली में स्थित ग्रहों के दुष्प्रभाव को रोकने, कैंसर जैसे भयानक रोग से मुक्ति पाने और अकाल मृत्यु से बचाव के लिए श्री मृत संजीवनी अथवा श्री महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। इन मंत्रों का जप कैंसर पीड़ित व्यक्ति और घर के अन्य सदस्य कर सकते हैं। अगर रोगी या घर वाले असमर्थ हों, तो यह जप किसी श्रेष्ठ, सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा करवाया जा सकता है। यंत्र प्रयोग कैंसर से मुक्ति एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए अकाल मृत्यु रोधक यंत्र का प्रयोग करना चाहिए। इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही एवं दाड़िम की कलम से शुभ मुहुर्त में उक्त यंत्र का निर्माण कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करें। फिर उसे तांबे या चांदी के शुद्ध कवच में डालकर मोम से मुंह को बंद कर दें और लाल धागे के सहारे गले में धारण करें। आयुर्वेद के मेषचय रत्नावली में कहा गया है कि सूर्यादि ग्रहों की प्रतिकूलता में व्याधिग्रस्त रोगी को औषधि भी अनुकूल फल नहीं करती देती औषधि के गुण का ग्रह हरण कर लेते हैं। अतः ग्रहों को अनुकूल करके चिकित्सा करनी चाहिए। अतः नीचे नौ ग्रह शांति यंत्र को दिया जा रहा है। इसे भी धारण करना चाहिए। अकाल मृत्यु रोधक यंत्र की तरह निर्माण कर प्रयोग करें परंतु स्याही इस यंत्र के निर्माण के लिए केसर की होनी चाहिए। कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के लिए सर्वप्रथम लघुरुद्र या नमक-चमक रुद्राभिषेक करके ‘अक्षीभ्यां‘ के अनुवाक से एवं ‘आपोहिष्ठा’ मंत्रों से अभिषिक्त जल और शिव निर्माल्य से रोगी का मार्जन करें। कुछ जल रोगी को पिलाएं। शिव पंचाक्षर मंत्र का अनुष्ठान करें। इस मंत्र का प्रयोग दीर्घायु देता है। इससे यक्ष्मा, कैंसर, हृदयाघात जैसी असाध्य बीमारियां भगवत्कृपा से छूट जाती हैं। अनुष्ठान साथ औषध चिकित्सा भी चालू रखें। औषध के साथ-साथ मंत्र चिकित्सा करने से औषधियां चमत्कारी ढंग से काम करने लगती हैं। इससे व्यक्ति के संचित पाप नष्ट होते हैं एवं रोग से निवृत्ति होती है। शिव पंचाक्षर मंत्र प्रयोग शिव संहार के देवता हंै, अतः रोग, अपमृत्यु एवं अकाल मृत्यु से सुरक्षा हेतु शिवजी की उपासना करनी चाहिए। यह मंत्र सभी आयु तथा वर्ग के स्त्री-पुरुषों के लिए समान रूप से सिद्धिदायक है इसलिए इसकी साधना सभी को करनी चाहिए। शिव पंचाक्षर मंत्र का प्रयोग दीर्घायु देता है। शिवोपासना के लिए पंचाक्षर अथवा षडाक्षर मंत्र ‘¬ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए। यह पंच महाफलप्रद है। विचार गोष्ठी शिव पंचाक्षरी मंत्र-प्रयोग यंत्र ¬ नमः शिवाय पीठ-पूजा पीठादि पर रचित सर्वतोभद्रमंडल अथवा लिंगतोभद्रमंडल में ‘मण्डुकादि परतत्वांत पीठ देवताभ्योनमः’ मंत्र से पीठ देवताओं की पूजा करके, अपने आगे प्रदक्षिणा क्रम से निम्नानुसार पीठ-शक्तियों की पूजा करें- ¬ वामायै नमः। ¬ ज्येष्ठायै नमः। ¬ रौद्रायै नमः। ¬ काल्यै नमः। ¬ कल विकरिण्यै नमः। ¬ बल विकरिण्यै नमः। ¬ बल प्रमथिन्यै नमः। ¬ बल सर्वभूतदमन्यै नमः। ¬ मनोन्मन्यै नमः। यंत्र: इसके बाद स्वर्णादि से निर्मित यंत्र अथवा मूर्ति को ताम्र पात्र में रखकर, घृत से उसका अभ्य¯ (लेप) करके उसके ऊपर दूध तथा जल की धार डाल कर फिर स्वच्छ वस्त्र से सुखाएं। तत्पश्चात् ‘‘¬ नमो भगवते सकलगुणात्मशक्ति युक्तायानन्ताय योग पीठात्मने नमः।’’ मंत्र से पुष्पाद्यासन देकर उसे पीठ के मध्य स्थापित तथा प्रतिष्ठित करके और ध्यान करके मूल मंत्र से पाद्यादि-पुष्पांत उपचारों से पूजा करके देव की आज्ञा लेकर आवरण-पूजा आरंभ करें। ग्रहों की शांति के लिए दान योग्य वस्तुएं सूर्य: सोना, माणिक्य, तांबा, गुड़, घी, पुष्प, केसर, मूंगा, लाल गाय, लाल वस्त्र, रक्त, चामर, लाल चंदन। चंद्र: मोती, सोना, चांदी, चावल, मिसरी, हल्दी, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, शंख, कपूर, श्वेत बैल, श्वेत चंदन। मंगल: मूंगा, सोना, गुड़, तांबा, लाल चंदन, लाल वस्त्र, लाल बैल, मसूर, लाल फूल। बुध: हरा वस्त्र, मूंगा, कांस्य, घृत, मिसरी, हाथी दांत, सोना, पन्ना, पुष्प, कपूर। गुरु: पीला अन्न्ा, पीला वस्त्र, सोना, घृत, पीला फूल, पीला फल, पुखराज, हल्दी, कपड़ा, पुस्तक, शहद, नमक, चीनी, भूमि, छत्र। शुक्र: श्वेत चावल, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घृत, सोना, श्वेत घोड़ा, दही, सुगंध द्रव्य, शर्करा, गेहूं आदि। शनि: तेल, नीलम, तिल, काला कपड़ा, कुल्थी, लोहा, भैंस, काली गाय, काला फूल, काले जूते, कस्तूरी, सोना आदि। राहु: उड़द, स्वर्ण का सांप, सात प्रकार के अन्न्ा, नीला वस्त्र, गोमेद, काला फूल, चाकू, तांबे के बर्तन में तिल, सोना, रत्न, आदि। केतु: काला कंबल, कस्तूरी, वैदूर्य मणि, लहसुनिया, काला फूल, तिल, सोना, लोहा, बकरा, शास्त्र, सात प्रकार के अनाज, आदि। घरेलू उपचार प्राणदायक अनुलोम विलोम प्राणायाम यथाशक्ति खाली पेट करना चाहिए। कैंसर के रोगी 25 मि.ली. गोमूत्र और 25 मि.ली. ताजे गिलोय के रस के साथ तुलसी के सात पŸो और नीम के तीन पŸो साफ सिलौटी पर पीसकर मिला लें और दिन में दो बार सुबह शाम पीएं। गोमूत्र को कई तहों वाले साफ कपड़े से छान लेना चाहिए। यह उपचार रोग को बढ़ने से रोकता है तथा अन्य दवाओं के कुप्रभाव को कम करता है। प्रातःकाल शौचादि से निवृत्त होकर स्नानोपरांत ऊन के आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। सामने घी का दीपक जलाकर रख लें। रुद्राक्ष की माला पर गायत्री मंत्र का कम से कम एक माला जप नियमित रूप से करें। पूरे जप काल तक सम्मुख दीपक जलता रहना चाहिए। शाकाहारी भोजन करें और ईश्वर में विश्वास रखें।



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